Author Topic: Srujan Se Magazine Published From Sahibabad - त्रिमासिक पत्रिका "सृजन से"  (Read 44348 times)

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Kandpal jyu,


Meelo fir aaj sham ko program me....Srujan se ki prati apko saprem bhet ki jaayegi waha...




Regards

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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दोस्तो,देश की बहुप्रसारित हिन्दी साप्ताहिक पत्रिका "पान्चजन्य" (५ से १२ दिसंबर) में "सृजन से" पत्रिका के "स्मृति अंक" (४वां अंक) पर आधारित समीक्षात्मक आलेख संलग्न है....
http://www.panchjanya.com/dynamic/modules.php?name=Content&pa=showpage&pid=407&page=१६


[/size]धन्यवाद कैलाश पाण्डेय09811504696[/font]

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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Mahila Visheshank Hetu Rachnayen Sadar Amantran...
« Reply #132 on: December 13, 2010, 06:00:49 AM »
प्रिय मित्रो !आपको प्र्स्सन्न्ता होगी कि हिंदी की मूर्धन्य पत्रिका "सृजन से "का अग्गामी अंक महिला विशेषांक होगा....आपसे निवेदन है क़ि इस सामयिक विशेषांक हेतु महिला सम्बन्धी रचनाएँ भेजकर हमें अनुग्रहित कीजिएगा.. इस अंक का एक मकसद यह भी है क़ि उन महिलाओं को सामने लाया जाय जिन्होंने समाज के लिए काम किया किन्तु किन्ही कारण बस उन्हें वह पहचान नही मिली जिसके वे हकदार थीं इस अंक में महिला सम्बन्धी कथाएं, महिला सम्बन्धी कविताएँ, महिला सम्बन्धी लघु नाटक, महिला सम्बन्धी चित्रकला, आलेख, जीवनी, विचारोत्तेजक लेख (जैसे महिला अधिकार), भारतीय महिलाओं की Globalization में अहम भूमिका, ग्रामीण महिलाओं का आगामी दशकों में सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में नई भूमिका , विश्वीकरण में अंतरजातीय विवाह, तलाक से महिलाओं को विशेष त्रासदी , आधुनिक महिलाओं का विन विवाह के किसी मर्द के साथ में रहना का औचित्य, आधुनिकता और संस्कृति के बीच पिसतीं आधुनिक महिलाएं जब महिलाओं को Commodity मान लिया जाता है. भारतीय गाथाओं, पुरातन साहित्य में महिलाओं क़ि भूमिका आज के साहित्य में महिलाओं को किस रूप में दर्शाया जा रहा है ? क्या टी वी सीरियलों में महिलाओं को सही रूप से चित्रित किया जा रहा है ?


ग्रामीण महिलाओं का हिंदी फिल्मों में चरित्र चित्रं कहाँ तक सही होता रहा है ? महिला व्यंग्य चित्रकार . चित्रकार या अन्य कलाओं में महिलाओं का योगदान विभिन्न लोकबोलियों के लोक साहित्य में महिलाओं का चरित्र चित्रण भारत में महिला अधिकार आन्दोलन का इतिहास और सफलताएँ जैसे कई विषय हैं जिन पर आप अपनी रचना भेज सकते हैं.


आपसे निवेदन है क़ि आपने साहित्यिक मित्रों को सृजन से की इस पहल की सूचना दे कर हमे कृतार्थ कीजियेगा..


संपर्क सूत्र
srujanse.patrika@gmail.com
www.srujunse.b
संपादिका- श्रीमती मीना पांडे
M -3 M.I .G Flats, C-61
Vaishnav Appartment
Shalimar garden Ext- II
Shahibabad, Ghaziabad
UP, pin 201005


Dhanyabad
Regards
Bhishma Kukreti

KAILASH PANDEY/THET PAHADI

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सृजन से.....
« Reply #133 on: December 16, 2010, 05:55:39 AM »
हिंदी साहित्य के उद्धार के लिए तत्पर, सृजन से एक ऐसा मंच है जहाँ हिंदी के श्रेष्ठ साहित्यकार अपनी रचनाओं को प्रकाशित करते हैं | देश भर के श्रेष्ठ हिंदी के साहित्यकार सृजन से के लिए लिखते आये हैं | मेरे लिए यह अत्यंत गौरव की बात है की मैं इनसे जुड़ा हूँ |

By- Saurav Roy
(Bangalore)

http://souravroy.com/publications/%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80/%E0%A4%B8%E0%A5%83%E0%A4%9C%E0%A4%A8-%E0%A4%B8%E0%A5%87/

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सृजन से का नवीनतम दिसम्बर का अंक मिला. स्मृति  अंक होने की वजह से ही शायद आवरण प्रष्ट इतना मनमोहक लगा. रंगों के सुन्दर ताल मेल से सुसज्तित आवरण प्रष्ट पर एक पल को नज़रें ठहर ही गयी. दिवंगत आदरणीय कन्हेया लाल नंदन जी और गिरीश तिवारी जी को हमारी भी हार्दिक श्रदांजली. "एक आदित्य चित्रकार - मोलाराम तोमर " की विलक्ष्ण प्रतिभा को पढ़ कर नतमस्तक हुए बिना नहीं रह सकी. गढ़वाली चित्र शैली से पहचान करने का दिल से आभार. रचना श्रीवास्तव जी की कविता "सपने" अंतर्मन को छु गयी.....जिस्म की दरारों से झांकते सपने....उफ़!!! कितनी पीड़ा है सपनो की भी......ना जी पाते हैं न ही मर पाते हैं. फिर भी बार बार जन्म लेते हैं. कई बार पड़ा इस कविता को और समझा उसके मर्म को भी. "गिर्दा" जी के बारे में स्मृति लेख बेहद रोचक लगा. उनके कहे शब्द " यार हमारा भी क्या बायोडाटा होता है"  कुछ भावुक कर गये. उनकी शालीनता और सादगी की जितनी तारीफ की जाये कम है. दुष्यंत कुमार जी को अकसर ही पढती आई हूँ.  उन पर प्रस्तुत  आलेख बेहद ही रोचक लगा.
"पूज्य पन्त जी आ जाओ, पहाड़ तुम्हे बुलाता है" आदरनीय मीना जी का आह्वान समा बांध गया..., एक कसक एक तड़प समाई है इन लफ्जो में ..."नदियों की कल कल है सुनी...बेहद प्रभावित करती हैं.
अन्य सभी आलेख और विमर्श भी अच्छे लगे.  पत्रिका में सभी प्रकार का साहित्य समेटने में बहुत ही मेहनत की गयी है, जो साफ़ नज़र आती है.
आदरणीय  मीणा पाण्डे  जी और सृजन से की पूरी टीम को हार्दिक बधाई इतनी सुन्दर  पेशकश पर.  साहित्य के क्षेत्र में आपका योगदान और ये प्रयास अत्यंत सराहनीय है. चित्रकला, कहानी, विभिन्न विषयों पर सार्थक आलेख, कवितायेँ और गजलों से प्रकाशमान  ये पत्रिका अत्यंत ही रोचक बन पड़ी है.  मेरी तरफ से सृजन से के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाये.

चलते चलते एक अशरार
"बिलख्ती आँखों मे बसे ख्वाब कुछ यूँ टिमटिमाते हैं,
गोया कांच के टुकड़े हैं जो आंख मे चुभे जाते हैं..."

From- Seema Gupta,
Gurgaon (Haryana)

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'सृजन से' अंक-4 (अक्टूबर -दिसंबर २०१०), सृजनात्मक विधाओं की संवाहक पत्रिका, यथा नाम तथा गुण के अनुरूप सृजित हुयी है| यह स्मृति अंक है, स्मृति पटल पर गुरदेव टैगौर से लेकर दुष्यंत कुमार तक तथा शेक्सपीयर से लेकर सुमित्रानंदन पन्त एवं कन्हैयालाल नंदन, मनोहर श्याम जोशी, मौलाराम तोमर, इफ्तिखार खां तथा गिर्दा तक का स्मरण 'सृजन से' ने करा दिया| जिन लोगों ने इन विभूतियों को पढ़ा-सुना होगा उन्हें इस स्मृति से हर्ष की अनुभूति हुयी होगी|

चालीस वर्ष पुरानी संस्मरणात्मक झलक के रूप में पंकज बिष्ट  का स्मृति लेख उनकी लेखन और साहित्य यात्रा के संघर्ष से रूबरू करता है|  बी मोहन नेगी का कोलाज 'गिर्दा' की पूरी कहानी बयां करता है, प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग से दिनेश द्विवेदी का साक्षात्कार  (भाग-२) स्त्री विमर्श के कई अनछुए पहलुओं की गहराई की ओर ले जाता है, स्त्री की कोख (गर्भाशय) पर तो केवल उसका ही अधिकार होना चाहिए और यदि पति या सास इसे हथियाना चाहें तो उन्हें पहले उस महिला के अंतर्मन को हतियाना चाहिए|  दूसरी बात पुरुषवादी सोच से हमारा समाज अवश्य ग्रसित है परन्तु  संवेदनशीलता स्त्री-पुरुष दोनों में विद्धमान है| मृदुला जी ने उन सभी बातों की चर्चा कर दी है जिससे बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे जो इत्तेफाक नहीं रखेंगे|
अंत में इतना ही कहूँगा कि ५२ पृष्ठ की इस पत्रिका का प्रत्येक पन्ना पठनीय है, सुरुचिपूर्ण है और संग्रहणीय है| 'सृजन से की पूरी टीम और टीम लीडर मीना पाण्डेय को साधुवाद के साथ कहना चाहूँगा -

तेरी हिम्मत तेरे साथ रहे
विजय पताका तेरे साथ रहे
दस्तक देता उपहार लिए
कर नवप्रभात अभिनन्दन तू
कर खुद अपना संचालन तू .

पूरन चन्द्र कांडपाल
Rohini (Delhi)

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सृजन से.....
« Reply #136 on: January 12, 2011, 04:50:11 AM »
Mene aap ki patrika padhi .patrika me aap ki mehnat dikhai deti hai .aap ne jis tarah se ek ek moti batora hai vo prashanshniye hai.

aap jo visheshank nikalti hain vo bhi achchha vichar hai.

aap ki patrika agrani hai aur iska bhavishya bahut hi ujjval hai.

Badhai.
Rachana Sriwastav
Dallas (USA)

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सृजन से.....
« Reply #137 on: January 12, 2011, 04:53:36 AM »
''सृजन से '' पत्रिका का अंक ४ मुझे प्राप्त हुआ,  अगर इसकी अंक संख्या पे गौर नहीं किया जाए तो लगता ही नहीं कि ''सृजन से'' मात्र  चौथा अंक नहीं ४०० वाँ अंक  है ये साहित्यक दृष्टी से भी देखे तो… ये अगर निरंतर यू ही अपना सार्थक ''साहित्यक रूप में'' प्रदान करती रही तो '' सृजन से'' सीघ्र ही साहित्यक की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में शामिल होगी, ये हमारी कामना है |  हां,  एक अधूरापन सा लगा कि अगर रचनाकार का साहित्यक परिचय के साथ साथ पूरा संपर्क सूत्र भी प्रदान करे तो रचना के प्रति अपना साधुवाद भी उनको प्रेषित किया जा सके |  अन्यथा भी  सुंदर है, पुनः '' सृजन से’' के उज्जवल भविष्य के लिए हार्दिक शुभकामनाये .
सादर!

Sunil Gajjani
Bikaner (Raj.)

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Deall All,

Some more Views/news related to Srujan se Magazine will Update very soon.....


Thanks & Regards
Kailash Pandey
09811504696

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आपको जानकर प्रसन्नता होगी कि "सृजन से" का जन०-मार्च २०११ अंक महिलाओं पर केन्द्रित किया गया है।

इस अंक में.....

पुरुष प्रधान समाज में अपनी अस्मिता को बनाये रखने के लिये महिलाओं को विशेष संघर्ष करना पडता है।

विषय पर अपने-अपने क्षेत्र विशेष में उल्लेखनीय योगदान दे रही महिलायें जैसे श्रीमती ईरा पाण्डे - साहित्यकार (पुत्री स्व० श्रीमती शिवानी पंत), श्रीमती नईमा खान उप्रेती जी - वरिष्ठ रंगकृमी, श्रीमती पुर्णिमा पाण्डे जी - सुप्रसिद्व कथक नृत्यागणा, श्रीमती अनामिका - सुप्रसिद्व कवियत्री व लेखिका, श्रीमती बेला नेगी जी - फ़िल्म मेकर व लेखिका इत्यादि के विचार उपलब्ध हैं|

इसके साथ ही पत्रिका में महिलाओं की उपलब्धियों और स्थिती पर बहुत कुछ और भी इस अंक में पढा जा सकता है.......


धन्यवाद

 

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