'सृजन से' अंक-4 (अक्टूबर -दिसंबर २०१०), सृजनात्मक विधाओं की संवाहक पत्रिका, यथा नाम तथा गुण के अनुरूप सृजित हुयी है| यह स्मृति अंक है, स्मृति पटल पर गुरदेव टैगौर से लेकर दुष्यंत कुमार तक तथा शेक्सपीयर से लेकर सुमित्रानंदन पन्त एवं कन्हैयालाल नंदन, मनोहर श्याम जोशी, मौलाराम तोमर, इफ्तिखार खां तथा गिर्दा तक का स्मरण 'सृजन से' ने करा दिया| जिन लोगों ने इन विभूतियों को पढ़ा-सुना होगा उन्हें इस स्मृति से हर्ष की अनुभूति हुयी होगी|
चालीस वर्ष पुरानी संस्मरणात्मक झलक के रूप में पंकज बिष्ट का स्मृति लेख उनकी लेखन और साहित्य यात्रा के संघर्ष से रूबरू करता है| बी मोहन नेगी का कोलाज 'गिर्दा' की पूरी कहानी बयां करता है, प्रख्यात लेखिका मृदुला गर्ग से दिनेश द्विवेदी का साक्षात्कार (भाग-२) स्त्री विमर्श के कई अनछुए पहलुओं की गहराई की ओर ले जाता है, स्त्री की कोख (गर्भाशय) पर तो केवल उसका ही अधिकार होना चाहिए और यदि पति या सास इसे हथियाना चाहें तो उन्हें पहले उस महिला के अंतर्मन को हतियाना चाहिए| दूसरी बात पुरुषवादी सोच से हमारा समाज अवश्य ग्रसित है परन्तु संवेदनशीलता स्त्री-पुरुष दोनों में विद्धमान है| मृदुला जी ने उन सभी बातों की चर्चा कर दी है जिससे बहुत कम ही लोग ऐसे होंगे जो इत्तेफाक नहीं रखेंगे|
अंत में इतना ही कहूँगा कि ५२ पृष्ठ की इस पत्रिका का प्रत्येक पन्ना पठनीय है, सुरुचिपूर्ण है और संग्रहणीय है| 'सृजन से की पूरी टीम और टीम लीडर मीना पाण्डेय को साधुवाद के साथ कहना चाहूँगा -
तेरी हिम्मत तेरे साथ रहे
विजय पताका तेरे साथ रहे
दस्तक देता उपहार लिए
कर नवप्रभात अभिनन्दन तू
कर खुद अपना संचालन तू .
पूरन चन्द्र कांडपाल
Rohini (Delhi)