Author Topic: SURPRISE & UNIQUE NEWS OF RELATED TO UTTARAKHAND- जरा हट के खबर उत्तराखंड की  (Read 26994 times)

jeetu negi

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जंगल उगाते जवान
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जल  जंगल
वृक्ष रेखा से आगे वृक्ष

  शालिनी जोशी
 
  भारत–चीन सीमा पर 12,000 फुट की ऊंचाई के दुर्गम इलाके में कभी बर्फ़ीला रेगिस्तान हुआ करता था लेकिन आज ‘इको टास्क फ़ोर्स’ की बदौलत वहां हजारों एकड़ में जंगल पनप रहे हैं.
 
  इस इलाक़े के ग्लेशियर और नदियों को भी इससे नया जीवन मिला है. भारतीय सेना के विशेष दस्ते ‘इको टास्क फोर्स’   के ये सैनिक कई किलोमीटर की लंबी-खड़ी चढ़ाई और दुर्गम दर्रों को पार करके   हिमालय के ऊंचे इलाक़ों में पेड़ लगाने की इस बेहद कठिन मुहिम में जुटे   हुए हैं. उनका जज़्बा देखते ही बनता है. उत्तराखंड के चमोली जिले में   भारत-चीन सीमा पर आखिरी गांव हैं नीति-माणा. यहां एक तरह से ‘ट्री लाइन’   यानी कि वृक्ष रेखा ख़त्म हो जाती है और ‘आइस लाइन’ यानी कि पूरी तरह से   बर्फ़ीला इलाक़ा शुरू होता है.
 
  पिछले कुछ समय से बढ़ती मानव गतिविधियों और अनियंत्रित निर्माण से यहां के पर्यावरण का ह्रास चिंता   का विषय था क्योंकि ये इलाका हिमालय के कई महत्वपूर्ण हिमनदों और ग्लेशियर   का स्त्रोत था. भारतीय सेना की ‘इको टास्क फ़ोर्स’ को करीब तीन साल पहले   इस क्षेत्र में पेड़ लगाने और यहां के पर्यावरण को नया जीवन देने का काम   सौंपा गया था. इको टास्क फोर्स के कर्नल हरिराज सिंह राणा बताते हैं कि,   “नीति, माणा औऱ नीलंकंठ के इस पूरे इलाक़े में करीब 1000 हेक्टेयर में 7   लाख 50 हज़ार से ज्यादा पेड़ लगाए गये हैं.” इनमें कैल, देवदार और थुनेर   जैसे लुप्तप्राय वृक्ष भी शामिल हैं.
 
  उत्तराखंड के अपर प्रमुख वन संरक्षक श्रीकान्त चंदोला की राय है कि सेना का वृक्षारोपण सफल तो है लेकिन ये और भी सार्थक होता जब   यहां वन तुलसी, जंगली अजवाइन, फरण और सफेद पुरचा जैसी स्थानीय तौर पर   प्रचलित जड़ी-बूटियों की प्रजातियां लगाई जातीं. जिससे ढलानों पर हिमस्खलन   को रोकने में भी मदद मिलती. 
 
  1981-82 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पहल पर ख़ासतौर   से मसूरी की पहाड़ियों के पुनर्जीवन के लिये ‘इको टास्क फ़ोर्स’ की   स्थापना की गई थी. मसूरी की पहाड़ियां उस समय अवैध कटान और अंधाधुंध खनन से   उजाड़ और नंगी हो चुकी थीं. सेना के इस दस्ते ने मसूरी और कैंपटी इलाके   में भी 46 हज़ार हेक्टेयर में 55 लाख से अधिक पेड़ लगाकर पहाड़ों की रानी   मसूरी को नया जीवन दिया है.  ‘इको टास्क फ़ोर्स’ इस समय देश भर में इसकी 8   यूनिट हैं और उत्तराखंड में ही चार और कंपनियां बनाई जा रही हैं.
 
  -negi d@@,   

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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  110 वर्षीय आईएनए के सिपाही का विधायक ने किया अभिनंदन              Aug 11, 09:48 pm            डीडीहाट(पिथौरागढ़)। कनालीछीना के विधायक मयूख महर ने आजाद हिन्द फौज के सिपाही रहे 110 नर सिंह का घर जाकर अभिनंदन किया। इस मौके पर उन्होंने सेनानी नर सिंह के दीर्घायु की कामना की।
सेनानी ने भी विधायक द्वारा दिये गये इस सम्मान को अभिभूत करने वाला बताया।
सीणी चामा पहुंचे विधायक मयूख महर आजाद हिन्द फौज में रहकर अंग्रेजों से लोहा लेने वाले 110 वर्षीय नर सिंह के आवास पर पहुंचे। इस मौके पर श्री महर ने कहा कि देश के लिये तन, मन और धन अर्पित करने वाले नर सिंह जैसे लोगों के ही त्याग और तपस्या से देश टिका हुआ है। उन्होंने इस तरह के लोगों से सीख लेकर जीवन में उतारने की लोगों से अपील की।
 
 

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एक बार अंग्रेज भी खा गये थे धोखाहल्द्वानी(नैनीताल)। अंग्रेजी हुकूमत से आजादी की लड़ाई में अपनी   सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानी डूंगर सिंह बिष्ट का कहना है   कि एक बार उन्हें अंग्रेज समझकर ब्रिटिश हुकमरानों ने अपनी फौज में भर्ती   कर सेकेंड लेफ्टिनेंट बना दिया था। लेकिन वह पं.गोविन्द बल्लभ पंत के   नेतृत्व में शुरू हो रहे सत्याग्रह में शामिल हो गये। उन्होने बताया कि   पहली बार गांधीजी ने भी उनका सत्याग्रही का फार्म अस्वीकृत कर दिया था।   श्री बिष्ट ने कहा कि देश को मिली आजादी वर्तमान में मजाक बन गयी है।    साढ़े चार साल से अधिक देश की 15 जेलों में रहे स्वतंत्रता सेनानी श्री   बिष्ट का कहना है कि एक बार अंग्रेजों ने फरमान निकाला कि जो लड़के 25 वर्ष   व इंटर पास है उन्हे सीधे सेकेंड लेफ्टिनेंट बना दिया जायेगा। उन्होने   बताया कि इसकी अल्मोड़ा में भर्ती हो रही थी, तो वह भी अन्य साथियों के साथ   उसमें भागीदारी करने चले गये। उन्होंने बताया कि मैं काफी गोरा व लम्बा   होने के कारण भर्ती कर रहे अंग्रेज कर्नल एडकिंसन ने बिना टेस्ट लिए ही   मुझे पास कर दिया और शीघ्र नौकरी ज्वाइन करने को कहा। लेकिन वह घूमते हुए   हल्द्वानी आ गये, यहां पंडित गोबिन्द बल्लभ पंत के नेतृत्व में विशाल   सत्याग्रह आंदोलन चल रहा था। श्री बिष्ट ने बताया कि मुझे भी उस आंदोलन में   शामिल होने की इच्छा हुई तो मेरा सत्याग्रह का फार्म भरकर बापू को भेज   दिया गया। लेकिन कुछ दिनों बाद जब फार्म वापस आया तो उसमें मुझे आंदोलन की   स्वीकृति नही मिली थी। क्योंकि फार्म में मेरे पारिवारिक स्थिति का उल्लेख   था। जिसमें 80 वर्षीय वृद्ध पिताजी की देखरेख का जिम्मा लिखा हुआ था। उस   दौरान वे हेडमास्टर की नौकरी भी कर रहे थे और माताजी के न होने के कारण घर   की स्थिति ठीक नहीं थी। इन्हीं कारणों से उनका फार्म निरस्त कर दिया गया।   बाद मे उन्होंने हेडमास्टर व फौज की नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
 स्वतंत्रता सेनानी बिष्ट ने बताया कि मैंने पुन:14 जनवरी 1941 को   मुक्तेश्वर डाकघर से गांधीजी को पत्र लिखा था। जिसमें मैंने सत्याग्रह करने   की प्रबल इच्छा जताई थी। इस पर 16 फरवरी 1941 को बापू के सहायक प्यारे लाल   का पत्र आया कि उन्हे गांधी जी ने व्यक्तिगत सविज्ञा सत्याग्रह आंदोलन की   स्वीकृति दे दी है। उन्होने बताया कि इसके बाद वह पहली बार 5 मार्च 1941 को   नैनीताल जेल में बंद हुए थे। उसके बाद आठ माह तक हल्द्वानी व बरेली के जेल   में रहे। श्री बिष्ट ने बताया कि दूसरी बार अंग्रेजों ने उन्हे साढ़े तीन   साल साल तक देश के विभिन्न जेलों में रखा था और इस दौरान कई बार उन्हे कई   बार यातनाएं भी दी गयी थी। श्री बिष्ट का कहना है कि यह आजादी इतनी सस्ती   नही है, जितना इसका वर्तमान में मजाक बना दिया है। उनका कहना है कि वर्तमान   शासकों से तो अंग्रेज भले थे जो सबकी सुनते थे। लेकिन आज तो यहां कोई   सुनने वाला ही नही है।
   
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6649601.html

विनोद सिंह गढ़िया

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बागेश्वर।
        भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त करने में इस क्षेत्र के रणबांकुरे भी पीछे नहीं रहे थे। अंग्रेजों भारत छोड़ो, अगस्त क्रांति, असहयोग तथा नमक आंदोलन समेत अनेक संघर्षों में जिले के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का योगदान किसी से भी पीछे नहीं रहा है। भगवान बागनाथ॒ की धरती से ही मकर संक्रांति के दिन अंग्रेजी हुकूमत के कुली बेगार, उतार तथा बर्दायश॒ जैसे काले कानूनों को जड़ से उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया गया। इस संकल्प ने कूर्मांचल॒ में स्वाधीनता की लड़ाई को न केवल नई ऊर्जा दी बल्कि अंग्रेजों के सामने मुश्किलें भी खड़ी कर दी। इस सफलता ने राष्ट्रपति महात्मा गांधी को यहां आने को विवश कर दिया था।
गोरी सरकार ने भारत माता को त्रस्त तो किया ही लेकिन उसमें भी कूर्मांचल॒क्षेत्र में अंग्रेजों ने लोगों  पर कुली उतार बर्दायश॒ तथा बेगार जैसे काले कानून थोपकर लोगों की परेशानियों को और भी बढ़ा दिया था। इस कानून के सहारे अंग्रेज हुक्मरान लोगों का जबरदस्त मानसिक, शारीरिक तथा आर्थिक उत्पीड़न किया करते थे। तब कांगे्रस के नागपुर सम्मेलन॒ में भाग लेने गए॒ नगर से बागेश्वर के श्याम लाल साह, अल्मोड़ा से कूर्मांचल॒ केसरी बद्रीदत्त॒पांडे तथा विक्टर मोहन जोशी आदि ने गांधी जी को इन कानूनों के बारे में विस्तार॒से बताया और उन्हें १४ जनवरी १९२१ को बागेश्वर चलकर मकर संक्राति॒ के दिन उनका मार्ग दर्शन करने की गुजारिश की। लेकिन गांधी जी ने उनकी बात को मुस्कराकर टाल दिया। मकर संक्राति॒ के दिन॒ क्रांति वीरों॒ ने संगम पर अंग्रेजों के काले कानूनों के रजिस्टरों को सरयू में प्रवाहित कर बेगार नहीं देने का संकल्प लिया। इस संकल्प से अंग्रेजों की मुश्किलें बढ़ गई। इन कानूनों को उखाड़ने पर मिली सफलता पर गांधी जी ने प्रसन्नता॒ जताई। उन्होने ने २८जून १९२८को बागेश्वर की यात्रा करके लोगों की सराहना की। कौसानी॒ में कुछ दिन रहकर वहां अनाशक्ति॒ योग लिखा। गांधी जी के नाम पर वहां आज अनाशक्ति॒आश्रम है जबकि एतिहासिक नुमाईशखेत॒ में गांधी जी की मूर्ति के साथ स्वराज॒ भवन बना है। आज जो महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हमारे बीच हैं वह हमारे प्रेरणास्रोत हैं। जो नहीं हैं उनकी महान कुर्बानियों का देश कृतार्थ है।


http://www.amarujala.com/city/Bagrswar/Bagrswar-1411-114.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Refused bribe, Uttarakhand cop throws driver into Yamuna river
« Reply #44 on: August 15, 2010, 08:49:37 PM »

Refused bribe, Uttarakhand cop throws driver into Yamuna river

Nahan: A police official from Uttarakhand posted at   Kulhal barrier reportedly thrashed a truck driver when he was allegedly   refused to pay bribe to him and later threw the injured driver into the   swollen Yamuna river, Himachal Pradesh police said.
Kedarnath, a resident of Bali Kutti of Shillai tehsil under Sirmaur   district, was taking his truck loaded with apples to Uttar Pradesh when   the cop stopped him for checking at the HP-Uttarakhand border at Kulhal.   The victim, after showing necessary documents, was allegedly asked by   the policeman to pay him a bribe of Rs 250. The victim was beaten up   when he could not meet the demand and throw into Yamuna river. He was   rescued by others present there and was taken to a private hospital with   multiple fractures.
When contacted, senior police superintendent from Uttarakhand GS   Martoria said that the matter was being probed and the culprits would be   punished as per law.
http://www.himvani.com/news/2010/08/14/refused-bribe-uttarakhand-cop-throws-driver-into-yamuna-river/6479/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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                रिटायर्ड शिक्षक का  कर दिया प्रमोशन        
          रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड के शिक्षा विभाग का कोई जवाब नहीं। बड़े महकमे   की बड़ी बातें। जब बातें बड़ी तो 'कारनामे' छोटे क्यों हों। जाहिर है   'कारनामे' करने में भी यह विभाग सबके कान काटता है। यहां बिना परीक्षा दिए   छात्रों को अंकतालिका मिल जाती है, स्कूलों में ताले लगे हैं और बच्चों को   समय पर किताबें नहीं मिल रहीं। बड़े महकमे के लिए ऐसी 'छोटी-छोटी' बातें कोई   मायने नहीं रखतीं। इस बार एक रिटायर्ड शिक्षक को अर्थशास्त्र के प्रवक्ता   पद पर प्रोन्नति के 'तोहफे' से नवाज 'बडे़ कारनामे' को अंजाम दे दिया गया।   विभाग की उलटबांसियां यहीं खत्म नहीं होतीं। जिस विद्यालय में उन्हें   प्रवक्ता बनाया गया है, वहां साल 2008 से अभी तक अर्थशास्त्र के प्रवक्ता   का पद रिक्त है, जबकि विभाग ने उक्त शिक्षक को इस पद पर कार्यरत दर्शा   मौलिक पदोन्नति दी है।
 एक तरफ शिक्षक प्रोन्नति के लिए आंदोलन से लेकर अदालतों तक का दरवाजा   खटखटा रहे हैं, दूसरी तरफ विभाग पदोन्नति देने में इतना 'उदार' है कि   कार्यरत को छोड़ सेवानिवृत्त शिक्षक को पदोन्नति दे डाली। मामला रुद्रप्रयाग   जनपद का है। पिताम्बर दत्त पुरोहित हडे़लीखाल हाईस्कूल से वर्ष 2009 में   हेडमास्टर के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इससे पहले वह राजकीय इंटर   कालेज चोपड़ा में एलटी पद पर शिक्षक के रूप में कार्य कर रहे थे। तेरह साल   पहले वर्ष 1997 में भी उन्हें प्रवक्ता पद पर पदोन्नति दी गई थी। तब चमोली   जिले में नियुक्ति दी गई, लेकिन निजी कारणों से उन्होंने यह प्रमोशन लेने   से इनकार कर दिया और पुराने पद पर ही बने रहे। वर्ष 2009 में श्री पुरोहित   को एक बार फिर पदोन्नति दी गई। इस बार उन्हें हड़ेलीखाल हाईस्कूल में   हेडमास्टर के पद पर तैनात किया गया। इस पद पर कुछ माह बिताने के बाद वह   सेवानिवृत्त हो गए। शिक्षा विभाग ने श्री पुरोहित को सेवानिवृत्ति के करीब   एक साल बाद अगस्त 2010 में फिर से प्रमोशन की 'खुशी' दी है। अगस्त 2010 की   पदोन्नति लिस्ट में उन्हें राजकीय इंटर कालेज चोपड़ा में अर्थशास्त्र के   प्रवक्ता पद पर मौलिक पदोन्नति दी गई है। हैरत यह है कि इस विद्यालय में   अर्थशास्त्र के प्रवक्ता का पद 2008 से रिक्त चल रहा है। जबकि विभाग ने   उक्तअध्यापक को 2008 से अर्थशास्त्र के प्रवक्ता के पद पर दर्शाया। खास बात   यह है कि वे हेडमास्टर पद से 2009 सेवानिवृत्त हो चुके है।
   
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6654850.html

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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          पिरुल व लैंटाना बनेगा रोजगार का जरियारुद्रप्रयाग। सबकुछ योजनाबद्ध तरीके से चला तो निष्प्रयोज्य समझी जाने   वाली लैंटाना झाड़ी व पिरूल पहाड़ के बेरोजगार युवाओं के लिए आर्थिकी का   जरिया बन जाएगी। खादी ग्रामोद्योग विभाग ने इस दिशा में प्रयास भी शुरू कर   दिए हैं।
 विभाग पिरुल (चीड़ की पत्ती), यूकेलिप्टस की छाल और पत्ते, लैंटाना,   गाजर घास, काफल, अखरोट और अनार से प्राकृतिक रंग तैयार करने जा रहा है। इन   रंगों का उपयोग धागों व कपड़ों को रंगने में किया जा सकेगा। इसके  अलावा   इनका उपयोग भवनों में रंग रोगन के लिए भी किया जा सकेगा। विदेशों में भी इन   नेचुरल कलर वाले कपड़ों की बहुत मांग है। उद्योग विभाग स्वयं सहायता समूह व   अन्य समूहों की एक टीम गठित कर प्राकृतिक रंग बनाने के कार्य को आगे   बढ़ाने की योजना बना रहा है। वेस्ट मैटीरियल से नेचुरल कलर तैयार करने का   प्रयोग पहली बार राज्य में खादी ग्रामोद्योग विभाग ने जिले के तुनेटा भरदार   में किया था। प्रशिक्षक बीएस तिलारा ने बताया कि वेस्ट मैटेरियल से रंग   निकालने का तरीका काफी आसान है। रंग निकालने के लिए निष्प्रयोज्य वस्तुओं   पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है। रंग निकालने के बाद बचे हुए बुरादे को खाद   के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। प्रभारी जिला खादी ग्रामोद्योग   अधिकारी एचएल आर्य ने बताया कि पिरुल, यूकेलिप्टस सहित अन्य वेस्ट   मैटेरियरल को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए विभाग प्रयास कर रहा है। उन्होंने   कहा कि इसके लिए ग्रामीणों को जागरूक किया जा रहा है तथा पूर्व में तुनेटा   भरदार में इस विषय पर कार्य किया था।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6682742.html

   

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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फरूखनगर के एक अस्पताल में 31 वर्षीय एक महिला के पेट से करीब साढ़े छह किलो का ट       
  ्यूमर निकाला गया। ट्यूमर की वजह से उसे सांस लेने में भी परेशानी हो रही थी। डॉक्टरों ने बताया कि अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।

अस्पताल के डॉक्टर नितिन अरोड़ा ने बताया कि महिला को सांस लेने में परेशानी थी। जांच के बाद पता चला की उसके अंडाशय के दाएं तरफ ट्यूमर है जिसने यूरीन के रास्ते को भी लगभग बंद कर दिया है। ट्यूमर लगातार फैलता जा रहा था। इसे देखते हुए महिला के परिजनों को तुरंत ऑपरेशन करवाने की सलाह दी गई। महिला का ऑपरेशन दूरबीन के माध्यम से किया गया और उसके पेट से लगभग साढे़ छह किलो का ट्यूमर निकाला गया।

उत्तराखंड के एक गांव में रहने वाली यह महिला पिछले कई महीनों से पेट में दर्द से परेशान थी। हालत बिगड़ने लगी तो वह अस्पतालों के चक्कर काटने लगी। वह पैसे के अभाव में उपचार नहीं करा पा रही थी। अंत में उसके भाई ने उसे फर्रुखनगर के एक अस्पताल में भर्ती कराया।
 
http://navbharattimes.indiatimes.com/delhiarticleshow/6481540.cms       

Devbhoomi,Uttarakhand

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कृषि वानिकी का मंत्र मालदीव में फूंकेगा जान
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हल्द्वानी (नैनीताल)। सुनामी की तबाही से उबरने की जद्दोजहद में मालदीव कृषि वानिकी के मंत्र को अपनाने जा रहा है। आन डिमांड टेक्नोलोजी के तहत पंतनगर विवि के इंटरनेशनल कालेज ऑफ एग्रीकल्चर में एग्रो फारेस्ट्री का डिप्लोमा ले रहे 11 छात्रों का दल उत्तराखंड में फल-फूल रही कृषि वानिकी का गुर सीख रहा है। मालदीव जैसे छोटे देश में पर यूनिट एरिया अधिकतम आय अर्जित करने के लिए कृषि के साथ ही वानिकी के मिश्रण का मंत्र मालदीव में जान फूंकेगा।

मालदीव के छात्रों के दल को डिप्लोमा के तहत छह पाठ्यक्रमों की शिक्षा दी जा रही है, जिसमें एग्रो फारेस्ट्री मुख्य रूप से शामिल है। कैपिसिटी बिल्डिंग प्रोग्राम के तहत यह तकनीक सीखने आये ये विदेशी छात्र इस विकसित विधा के हर पहलुओं से अवगत हो रहे हैं। कम होती जा रही जमीन और बढ़ रही जनसंख्या से अन्य देशों की भांति मालदीव भी बुरी तरह जूझ रहा है। खुद डिप्लोमा करने आये दल के सदस्यों का कहना है कि अब उनके देश में वनों के क्षैतिज बढ़ाव की गुंजाइश कम होती जा रही है। ऐसे में ऊपर की ओर बढ़ाव के मद्देनजर उत्तराखंड की एग्रो फारेस्ट्री एक बेहतर विकल्प हो सकती है। पर्यावरणीय लाभ के तहत भूक्षरण को रोकने, खेतों के आर्गेनिक तत्वों को बनाये रखने, जंगलों पर जैविक दबाव को कम करने एवं कार्बन चेन को संतुलित रखने के लिए भी कृषि वानिकी को मालदीव के लिए कारगर बताया जा रहा है। एग्रो फारेस्ट्री के लिए प्रसिद्ध तराई केन्द्रीय वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी डा. पराग मधुकर धकाते कहते हैं कि मालदीव की परिस्थितियों के अनुसार कृषि की मुख्य फसलों के साथ वानिकी को अपनाकर समृद्धि हासिल की जा सकती है। साथ ही यांत्रिक पद्धति से एक रुपये के खर्च पर दो रुपये तक का औसतन लाभ लिया जा सकता है। पंतनगर विवि स्थित इंटरनेशनल कालेज के सह समन्वयक डा. प्रभात कुमार कहते हैं

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6700928.html

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                         साहब मैं जिंदा हूं, मरा नहीं        

Nov 14, 07:29 pm                                                                                                                                                               उत्तरकाशी, जागरण कार्यालय : मुर्दा को जिंदा और जिंदा को मुर्दा   बनाने में सरकारी विभागों का कोई सानी नहीं है। सरकारी तंत्र की ऐसी ही एक   और बानगी सामने आई है, जहां एक वृद्ध समाज कल्याण विभाग के दफ्तर में स्वयं   के जीवित होने का यकीन दिला रहा है, लेकिन सरकारी कर्मचारी हैं कि उसे मरा   हुआ साबित करने पर तुले हैं।
डकंडा ब्लाक के ठांडी गांव के रहने वाले 68 वर्षीय दशरथ प्रसाद सेमवाल   की आजीविका का साधन खेती ही है। पत्‍‌नी समेत चार बेरोजगार लड़कों व दो   लड़कियों की जिम्मेदारी भी उनके ही बूढ़े कंधों पर है। गरीबी रेखा से नीचे   जीवन यापन के कारण उन्हें समाज कल्याण विभाग के जरिये दी जाने वाली 400   रुपए की वृद्धावस्था पेंशन के लिये चुना गया। इसी वर्ष मार्च, अप्रैल व मई   माह की पेंशन उन्हें मिली। यह धनराशि प्रक्रिया के मुताबिक सहकारी मिनी   बैंक में उनके खाता संख्या 537 में डाली गई थी, लेकिन उसके बाद जून माह से   उनकी पेंशन बंद हो गई। पांच माह तक इंतजार करने वे विकास भवन स्थित समाज   कल्याण विभाग के दफ्तर में पहुंचे। अपनी पेंशन के बारे में पता किया तो   कर्मचारियों ने उन्हें बताया कि तुम तो मृत घोषित हो चुके हो। यह भी बताया   गया कि मृतक होने के कारण उनकी दो माह की पेंशन यानी आठ सौ रुपये मिनी बैंक   से विभाग को वापस भी लौटाई गई। बीते एक हफ्ते से वे कागजों में खुद को   जिंदा घोषित करवाने की कोशिश में जुटे हैं। कभी पटवारी तो कभी ग्राम विकास   अधिकारी की तलाश में इधर उधर चक्कर काट रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या का हल   नहीं निकल पा रहा है। माना जा रहा है कि समाज कल्याण विभाग से वितरित होने   वाली विभिन्न पेंशन योजनाओं में इस तरह की कई गड़बड़ियां हैं।
 इस संबंध में जिला समाज कल्याण अधिकारी ने बताया कि यह चूक हुई है और   जांच कराई जा रही है। कुछ औपचारिकताओं के बाद दशरथ प्रसाद सेमवाल को जीवित   घोषित कर दिया जाएगा।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6903960.html

 

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