बुलंद विरासत की बुलंद तस्वीर
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फलक से तोड़कर देखो सितारे लोग लाए हैं, मगर मैं वो नहीं लाया जो सारे लोग लाए हैं।' यहां भी ऐसा ही है। कई प्रांतों के लोग भांति-भांति की नेमतें साथ लेकर लाए हैं, लेकिन इन्हीं में एक शख्स ऐसा भी है, जिसके पास अतीत की ऐसी धरोहर है, जिसे देख आपकी आंखें विस्मय से खुली की खुली रह जाएंगी।
इस शख्स का नाम है एसए शाह। काम है बुनकरी। ठिकाना है हुब्बी कालोनी, जो वादी-ए-कश्मीर के श्रीनगर के लाल बाजार में पड़ती है। बुनकरी उसके खून में है। उसे खुद नहीं मालूम कब से उसका खानदान इस पेशे से जुड़ा है। इसी पेशे ने उसे देश-दुनिया दिखा दी। इन दिनों इस युवक ने राजधानी में चल रही ग्रामीण खादी, ऊनी एवं हस्तशिल्प प्रदर्शनी में अपना स्टाल लगाया हुआ है।
आप सोच रहे होंगे कि हम खामखां उसका महिमामंडन किए जा रहे हैं। मित्रों ऐसा नहीं है। असल में इस युवक के पास एक ऐसा शॉल है, जिसे चार पीढ़ी पूर्व उसी के परिवार में बनाया गया। तब से 158 बरस बीत गए, लेकिन शॉल में सलवट तक नहीं आई। 'कानी जामावार' नाम के इस शॉल को कानी से बनाया गया, जिनमें आज भी पूरी तरह तरोताजगी है।
बकौल शाह, 'इस शॉल को बुनने में उनके पूर्वजों को छह बरस लगे। कलर कांबिनेशन ऐसा है कि उसका एक भी रंग फीका नहीं पड़ा। गर्मियों में इसे हम मलमल में लपेट कर रखते हैं तो सर्दियों के दौरान तीन-चार बार हवा देते हैं। कई बार लोगों ने मुंहमांगी कीमत पर इसे खरीदने की कोशिश की, लेकिन हमने नहीं बेचा। यह हमारे बाप-दादाओं की ऐसी निशानी है, जो हमें आगे बढ़ने को प्रेरित करती है।'
http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6959765.html