Author Topic: Weather Reports from Uttarakhand - उत्तराखण्ड में मौसम के हाल  (Read 31087 times)

हेम पन्त

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इस टापिक में मिलेंगे उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों के मौसम के ताजा हाल.... खबरों का मुख्य श्रोत होगा आप-हम और समाचार पत्रों में छपी खबरें...

नोट- इस टोपिक के अन्तर्गत दिये जाने वाले समाचार प्रतिदिन विभिन्न समाचार पत्रो की साईटस से चयनित कर यहां पर प्रकाशित किये जाते हैं, इसलिये यह लाजमी है कि पहले पेज तथा अन्य पेजों में प्रकाशित समाचार अद्यतन नहीं होंगे। आप लोगों से अनुरोध है कि कृपया इस टोपिक के अन्तिम पेज को देखें, उसमें आपको उत्तराखण्ड से संबंधित ताजा समाचार मिलेंगें।
सादर,
मेरा पहाड़ टीम

Note: All the news under this topics are daily updated from various Newspaper sites, so it is but natural that news on various pages will not be latest. All are requested to view the last page of the topic for latest news.

Regards,
Mera Pahad Team

Devbhoomi,Uttarakhand

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पहाड़ पर आफत बन कर बरस रहे हैं मेघ
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बारिश के कारण क्षेत्र में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रखा है। भूस्खलन से क्षेत्र के कई मोटर मार्ग बंद, तो कई गांव में आवासीय मकानों को खतरा पैदा हो गया है। वहीं, पेयजल लाइन क्षतिग्रस्त होने से कई गांवों में पानी का संकट पैदा हो गया है।

चम्बा प्रखंड के तहत चौपड़ियाल गांव-कखवाड़ी और चौपिड़याल गांव -सौड़ मोटरमार्ग तो एक माह से बंद हैं। वहीं, मातली-भाटूसैण पटूड़ी मोटरमार्ग भी बंद है। यहां ग्रामीणों को 5 से 7 किमी की पैदल दूरी तय करनी पड़ रही है। दूसरी ओर, आराकोट-वाल्काखाल मोटर मार्ग भी खड़ीखाल से आगे बंद पड़ा है, जिससे लोगों को परेशानी हो रही है। नागणी-मांडा मोटर मार्ग भी जगह-जगह बाधित हो रखा है। इतना ही नहीं चम्बा-धरासू मोटर मार्ग कुनेर के पास लगातार बाधित हो रहा है, जिस कारण कई बार जाम की स्थिति पैदा हो रही है।

ग्राम प्रधान आनंद सिंह, रतन सिंह, बसंती देवी आदि का कहना है कि अब मोटर मार्गो को खोला जा सकता है। इसलिए विभागों को बंद मोटरमार्गो को शीघ्र खोलना चाहिए। उधर, लोनिवि के अधिशासी अभियंता एस राठी का कहना है कि पहले उन मोटर मार्गो को खोला जा रहा है, जहां सबसे अधिक आवागमन है। उसके बाद सभी बंद मोटर मार्ग खोले जाएंगे।

बारिश ने लोगों को किया बेघर

चम्बा: बारिश से प्रखंड के कई गांवों में कई मकान, खेत क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। कखवाड़ी गांव के सुरेश चन्द्र का मकान ध्वस्त हो गया है। सुनारगांव में मोहम्मद सलीम और जान मोहम्मद के मकान भी टूट गए हैं। वहीं, सौड़ गांव में उमेद सिंह का मकान बारिश से ध्वस्त हो गया है। वहीं, स्यूल गांव में मुस्सा सिंह का घराट और दस सिंचित खेत मलबे से दब गए हैं।

पेयजल संकट

चाका: उपतहसील गजा के अंर्तगत चाका क्षेत्र के कई गांवों में बारिश से पेयजल लाईन के क्षतिग्रस्त हो रखी है। चाका क्षेत्र के चाका बाजार, बैरोला, धारकोट, चौपड़ियों, लवा, गुमालगांव आदि गांवों में पेयजल संकट बना हुआ है। जल संस्थान के सहायक अभियंता एके सक्सेना ने बताया था कि शीघ्र ही क्षतिग्रस्त लाइनों को ठीक कर दिया जाएगा।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6316915.html

हेम पन्त

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इंद्रदेव मेहरबान, लहलहाते खेत खलिहान
देहरादून, जागरण संवाददाता: देश के कुछ भागों में भले ही इंद्रदेव रुठे हों, लेकिन देवभूमि पर तो वह नेमत बरसाए हुए हैं। बीते अगस्त माह में हुई बारिश को देखें तो यह गत वर्ष के मुकाबले दस फीसदी अधिक है। फिर पूरे मानसून सीजन की अब तक की बात करें तो सूबे को 25 फीसदी अधिक बारिश मिल चुकी है।

राज्य में इस मर्तबा भी मेघ खूब बरस रहे हैं। प्री-मानसून सीजन यानी अपै्रल से ही बारिश की निरंतरता बनी हुई है। मानसून सीजन को ही लें तो एक जून से 31 अगस्त की अवधि में राज्य को 1282.3 मिमी बारिश मिल गई, जबकि सामान्य तौर पर इस दौरान 1022 मिमी वर्षा होती है। यानी 25 फीसदी अधिक बारिश। अगस्त माह का ही जिक्र करें तो राज्य में मेघों ने 564.2 मिमी बारिश दी, जबकि बीते वर्ष इस माह 516 मिमी बारिश हुई थी। अगस्त में सामान्य रुप से 420 मिमी वर्षा होती है।

फिर मौसम का जैसा रुख है, इससे आने वाले दिनों में इसमें बढ़ोत्तरी की संभावना है।

राज्य में अगस्त में बारिश

वर्ष वर्षा स्थिति

2011 564 +32

2010 516 +23

अगस्त में दून में बरसात

2011 878.9

2010 1017

2009 453.9

2008 711.9

खेती को इंद्रदेव की 'संजीवनी'

देहरादून: स बे में बरस रही नेमत ने किसानों के चेहरे खिला दिए हैं। वर्षाधारित खेती के लिए यह संजीवनी से कम नहीं है तो सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में भी खेतों में पानी लगाने की जरूरत नहीं पड़ी। फिर मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई के लिए ट्यूबवैल चलाने पर आने वाला खर्च भी इस मर्तबा बच गया। यही नहीं, महकमे को भी बारिश की मेहरबानी को देखते हुए अच्छे उत्पादन की उम्मीद है।

कृषि व्यवस्था पर नजर डालें तो सूबे के 95 विकासखंडों में से 71 में खेती पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। यानी वक्त पर बारिश हो गई तो ठीक, अन्यथा सब चौपट, लेकिन इस बार तो अपै्रल से ही इंद्रदेव मेहरबान हैं। अब तक ड्राइ स्पेल की नौबत नहीं आई। हर दो-चार दिन में लगातार बारिश मिल रही है।

राज्य मौसम केंद्र के निदेशक डॉ.आनंद शर्मा के मुताबिक यह स्थिति खेतों में खड़ी धान की फसल के लिए बेहद मुफीद है। लगातार वर्षा के चलते मैदानी इलाकों में भी खेतों में पानी लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। कृषि निदेशक डॉ. मदनलाल का कहना है कि बारिश खेती के लिए संजीवनी है। बारिश अच्छी रही है तो इससे राज्य में बेहतर उत्पादन की आस भी जगी है। कृषि निदेशक का कहना है कि इन दिनों जहां भी धान पर बालियां फूट रही है, उसे देखते सिर्फ कीट-व्याधि के मद्देनजर सावधानी बरतने की जरूरत है।

Source - Jagran.com

Devbhoomi,Uttarakhand

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पहाड़ में गिरा पारा, ठिठुरन से कांपे हाड़
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पर्वतीय अंचल में पारा तेजी से नीचे गिरने लगा है। पखवाड़े भर के भीतर तापमान में पांच डिग्री सेल्सियस की अप्रत्याशित गिरावट आने से पहाड़ में हाड़ कंपाती ठंड शुरु हो गई है। मौसम के अचानक करवट लेने से हवा के झोंकों ने भी रफ्तार पकड़ ली है। क्षेत्र में अधिकतम तापमान 18 जबकि न्यूनतम 8.5 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया।

पहाड़ी क्षेत्रों में सर्दी ने एकाएक सिहरन बढ़ा दी है। पखवाड़ा भर पूर्व पर्वतीय अंचल का अधिकतम तापमान 23 जबकि न्यूनतम 9 डिग्री सेल्सियस था। मगर शनिवार को मौसम का एकाएक मिजाज बदलने से ठंड में और इजाफा हो गया है। विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में मौसम विभाग के अनुसार तापमान में अच्छीखासी गिरावट आ गई है। अधिकतम पारा 18.5 व न्यूनतम 8.5 डिग्री रहा।

इसके अलावा पूर्व-उत्तर-पूर्व दिशा से हवा की गति भी 5 से 8 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से बही। जो पखवाड़ा पूर्व से कहीं ज्यादा रही। दूसरी ओर ठिठुरन बढ़ने केसाथ वायु मंडलीय नमी ने भी 90 फीसदी का आंकड़ा छू लिया है। जबकि न्यूनतम में आंशिक गिरावट के साथ नमी 58 प्रतिशत पहुंच गई है। पंतनगर विवि के मौसम वैज्ञानिक डॉ.एचएस कुशवाहा के अनुसार बढ़ती नमी बारिश का संकेत दे रही है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8514849.html

हेम पन्त

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पिथौरागढ़ : दिसम्बर बीतने को है शीतकालीन वर्षा नहीं हुई है। हिमालयी भू भाग में मौसम के रंग को लेकर अब पर्यावरणविद् भी परेशान हैं। औसत ऊंचाई वाले स्थानों पर सरसों में फूल आ चुके हैं तो मुनस्यारी में पानी जमने लगा है। अलबत्ता मुनस्यारी में न तो वर्षा हुई है और ना हीं हिमपात।

पर्वतीय क्षेत्र में सरसों अमूमन जनवरी अंत या फिर फरवरी प्रथम सप्ताह में खिलता था। शीतकालीन वर्षा और हिमपात के चलते सरसों को फरवरी माह के शुरु में ऐसा तापमान मिलता था जिससे उसमें फूल खिलते थे। वहीं उच्च और उच्च मध्य हिमायली भू भाग में भारी हिमपात होने केबाद पानी जमने की स्थिति पैदा होती थी। इस बार प्रकृति ने इस मिथक को तोड़ दिया है। दिन में धूप खिलने के बाद तापमान सामान्य हो रहा है। पिथौरागढ़ में जहां 14 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान रह रहा है वहीं रात को तापमान 1 या 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। उच्च मध्य हिमालयी भू भाग मुनस्यारी में रात को तापमान शून्य डिग्री से नीचे चला जा रहा है। प्रात: पाईपों सहित अन्य ताल पोखरों का पानी जमा हुआ नजर आ रहा है। दिन में धूप खिलने के बाद मुनस्यारी में भी दिन का तापमान सामान्य रह रहा है।

पर्यावरणविद् इसे शीतकालीन वर्षा नहीं होना मान रहे हैं। उनका कहना है कि वर्षा नहीं होने से तापमान असामान्य हो चुका है। अन्यथा हिमालय के अधिकांश भू भाग में रात और दिन के तापमान में इतना अधिक अंतर नहीं रहता है। मौसम के इस चक्र का अंतर वनस्पतियों में देखने को मिल रहा है। मध्य हिमालयी भू भाग में समय से पहले ही सरसों खिल चुका है। क्षेत्र के विख्यात पर्यावरणविद् वृक्षमित्र कुंवर दामोदर राठौर इसे पर्यावरणीय असंतुलन मान रहे हैं।

Source - Dainik Jagran 28/12/11

Devbhoomi,Uttarakhand

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बारिश और बर्फबारी के लिए तरह रहे पहाड़ों में इस बार पहाड़वासी बर्फ नहीं बल्कि पाले की ठंड से कांप रहे हैं। लंबे समय से बारिश न होने से पड़ रही सूखी ठंड में सेहत बिगड़ने का भी खतरा बढ़ रहा है।
गत वर्षों में दिसंबर माह में बारिश और बर्फबारी के चलते कड़ाके की ठंड के बावजूद हिमपात का नजारा पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है लेकिन इस बार पहाड़ों में मौसम का मिजाज कुछ अलग ही नजर आ रहा है। सूर्य अस्त होते ही यहां पाला गिरना शुरू हो जा रहा है। सुबह तक पाले से सड़कें इस तरह गीली हो रही हैं जैसे रात भर रिमझिम बारिश हुई हो।

हालत यह है कि बुआखाल क्षेत्र, कंडोलिया, देवप्रयाग मार्ग पर पाले में वाहनों के रपटने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। जिले में खिर्सू, सिंगोरी, चौरी बंगला आदि क्षेत्रों में तो कई जगहों पर पाले की सफेद परतों का नजारा इन दिनों आम हो रहा है।
कंडोलिया, देवप्रयाग मार्ग पर पाले से रपटने लगे हैं वाहन

पाले से होने वाली ठंड के कारण एच-1 एन-1 के वैक्टीरिया सक्रिय होने की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा सांस फूलना, दिल की बीमारी, अस्थमा, एलर्जी आदि की दिक्कतें बढ़ती हैं। ऐहतियात के लिए पाले की ठंड से बचाव के इंतजाम करने जरूरी हैं।


Amarujala

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बर्फ से ढ़कीं ऊंची चोटियां
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मौसम ने करवट बदलकर प्रकृति को सफेद चादर के आगोश में समेट लिया है। सोमवार को गढ़वाल के विभिन्न स्थानों पर बर्फबारी हुई और रिमझिम फुहारों से भी किसानों के चेहरे खिल गए। सोमवार को केदारपुरी, मद्दमेहश्वर, तुंगनाथ, चोपता में जोरदार बर्फबारी हुई। चमोली जिले की ऊंची चोटियों पर और उत्तरकाशी में गंगोत्री, यमुनोत्री, दयारा व केदारकांठा आदि स्थानों पर बर्फबारी हुई।

रुद्रप्रयाग : सोमवार को दिनभर जिले मे मौसम करवट बदलता रहा। कभी हल्की धूप, तो कभी आसमान पर चारों ओर बादल मंडराते रहे, जिससे केदारनाथ सहित आस-पास के शिखरों मद्दमेहश्वर, तुंगनाथ, चोपता में जबर्दस्त बर्फबारी होती रही। केदारनाथ में दो फीट से भी अधिक बर्फ पड़ गई है। खासकर गौरीकुंड, फाटा, सोनप्रयाग, त्रियुगीनारायण व ऊखीमठ में भी शीतलहर का प्रकोप अधिक हो गया है।

गोपेश्वर : सोमवार को चमोली जिले की ऊंची चोटियों पर हल्की बर्फबारी होने से चोटियां श्वेत धवल हो गयीं। कुछ स्थानों पर बारिश होने से काश्तकारों के चेहरे खिल उठे। जिले की ऊंची चोटियों पर हल्की बर्फबारी हुई, जबकि मंडल घाटी समेत कुछ अन्य स्थानों पर बारिश हुई।

उत्तरकाशी : बीते रविवार की सुबह से ही बादल घिरे रहने के बावजूद जनपद में सोमवार की दोपहर बाद ही कुछ बूंदाबांदी हुई। जबकि गंगोत्री, यमुनोत्री, दयारा व केदारकांठा जैसी ऊंचाई वाली जगहों पर बर्फबारी हुई। भटवाड़ी, रैथल, बार्सू सहित कुछ हिस्सों में रिमझिम बारिश हुई। हालांकि अभी कोरी ठंड से पूरी तरह निजात नहीं मिली है और लोगों को बर्फबारी का और इंतजार है। खास तौर पर सेब काश्तकारों को मौसम की मेहरबानी की उम्मीद है। जनवरी के पहले पखवाड़े में बर्फबारी होना काश्तकारों के लिये काफी फायदेमंद रहता है।

कर्णप्रयाग/गैरसैंण : पिछले दो दिनों से आकाश में घुमड रहे बादलों से जहां शुष्क ठंड पसरा दी है वहीं पिंडरघाटी के देवाल, गैरसैंण में दिनभर सर्द हवाओं के बीच बर्फबारी हुई। गैरसैंण के दूधातोली की पहाड़ियों में बिना बारिश के आज जमकर बर्फबारी हुई। दोपहर बाद क्षेत्र में आसमान सूरज की आंखमिचौनी व हल्की बूंदाबादी के बीच बर्फबारी हुई तो दूधातोली की पहाडियां बर्फ की सफेद चादर से ढ़क गयी, जिसका स्थानीय लोगों ने जमकर लुत्फ उठाया। वहीं इसी तरह देवाल के उपरी क्षेत्रों तथा ग्वालदम से भी बर्फबारी होने की खबर हैं।


Source Dainik jagran

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बर्फबारी से बेहाल उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड के साथ पहाड़ों पर जम के बर्फबारी हो रही है। पिछले कुछ दिनों से हो रही बर्फबारी की वजह से जम्मू कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बर्फ की मोटी सफेद चादर बिछ चुकी है। लगातार बर्फबारी ओर ठंड से स्थानीय लोग परेशान हो गए हैं। अधिकांश पहाड़ी इलाके देश के अन्य हिस्सों से कट गए हैं। इस बार कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी बर्फबारी हुई है जहां आम तौर पर ऐसा नहीं होता है।

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बिगड़े मौसम ने फिर उड़ाई नींदऊंची चोटियों पर बर्फबारी,  निर्वाचन मशीनरी और प्रत्याशी भी चिंतित
देहरादून/हल्द्वानी। मौसम के बदले मिजाज ने आम लोगों के साथ ही निर्वाचन मशीनरी और चुनावी उम्मीदवारों की भी नींद उड़ा दी है। रविवार को गढ़वाल और कुमाऊं में ऊंची चोटियों पर हिमपात हुआ। दिनभर आकाश पर बादल छाए रहने से जहां ठंड बढ़ गई वहीं बर्फबारी ने कई मार्गों को अवरुद्ध कर दिया। कुछ रास्तों पर भारी वाहनों की आवाजाही पर ब्रेक लग गया। मौसम विभाग के मुताबिक अभी बर्फबारी बंद होने के आसार नहीं हैं।गंगोत्री और यमुनोत्री घाटी के लोगों को ठंड से निजात नहीं मिल पा रही है। देर शाम हर्षिल, राड़ी टॉप और हरकीदून घाटी में बर्फबारी हुई। यमुनोत्री राजमार्ग के राड़ी टॉप में बर्फबारी होने से यातायात पर फिर ब्रेक लगने के आसार हैं। उत्तरकाशी में बर्फ से अवरुद्ध 27 सड़कों की स्थिति अब भी यथावत है। उधर, चमोली में जिला निर्वाचन विभाग सुबह से ऊंची चोटियों पर रुक-रुककर हिमपात होने से परेशान रहा। बर्फबारी के चलते उत्तरकाशी से सुक्की टॉप तथा हर्षिल से झाला जसपुर तक वाहनों की आवाजाही के बाधित होने के हालात पैदा हो गए हैं। दूसरी ओर कुमाऊं में मुनस्यारी तथा धारचूला के ऊंचाई वाले इलाकों में भारी हिमपात हुआ। थल-मुनस्यारी मार्ग पर हिमपात के कारण एक बार फिर से यातायात बंद होने की आशंका है। पंचाचूली, हंसलिंग, छिपलाकेदार में भारी बर्फबारी हो रही है। मुनस्यारी नगर में न्यूनतम तापमान शून्य डिग्री तक पहुंच गया है। धारचूला के ऊंचाई वाले सभी इलाकों में इस बार जबर्दस्त हिमपात हुआ है। प्रदेश में मतदान एक हफ्ते बाद है और बर्फबारी के मद्देनजर ऊंचाई पर स्थित मतदान केंद्रों को लेकर निर्वाचन कार्यालय की चिंता ज्यादा है। उधर, सियासी दलों की चिंता मतदान प्रतिशत को लेकर है। अगर मौसम लंबे समय तक खराब रहा तो कम मतदाता वोट डालने के लिए घर से निकलेंगे और मतदान प्रतिशत पर इसका असर पड़ सकता है।      संबंधित पेज 2 पर   बर्फबारी से उत्तरकाशी, चमोली में कई मार्ग अवरुद्ध राड़ी टॉप में फिर यातायात ठप होने के आसार बनेतैयारी ः  मौसम पर निर्वाचन विभाग की भी निगाह है। मौसम विभाग बर्फबारी के और स्पेल की बात कर रहा है। इसको देखते हुए निर्वाचन विभाग ने अपनी तैयारी की है। पोलिंग पार्टियों को मतदान केंद्रों तक पहुंचाने के लिए तीन हेलीकाप्टर की व्यवस्था भी की गई है। पोलिंग पार्टिया 27 जनवरी से रवाना होनी शुरू होंगी। ऐसे में हेलीकाप्टर की व्यवस्था न होने पर इन पार्टियों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।आशंका ः  मौसम विभाग की मानें तो बर्फबारी जल्द थमने के आसार नहीं हैं। मौसम विज्ञान विभाग के निदेशक डा. आनंद शर्मा के मुताबिक इस समय फिर से एक सिस्टम सक्रिय हो गया है। इसका असर ऊंचाई वाले इलाकों में ज्यादा दिखाई देगा। उन्होंने कहा कि अभी कुछ दिनों तक मौसम की स्थिति में कोई खास सुधार आने वाला नहीं है। मौसम के लिहाज से गढ़वाल में 387 मतदान केंद्र संवेदनशील हैं। इनमें उत्तरकाशी में 123, चमोली में 70, नई टिहरी में 23, पौड़ी में 136 और रुद्रप्रयाग में 35 मतदान केंद्र शामिल हैं।कहां कितना यूनतम तापमान2.4मसूरी थल-मुनस्यारी मार्ग पर हिमपात से यातायात पर असर की आशंका0.1मुक्तेश्वर1.7पिथौरागढ़2.9उत्तरकाशी

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अबकी बरसात किल्लत में ही कटेंगे दिन!


बेशक पहाड़ों के लिए तीन माह का अतिरिक्त राशन कोटा भेज दिया गया है। मगर भंडारण के पुख्ता बंदोबस्त न होने से अबकी बरसात भी किल्लत में ही कटेगी।

31 न्याय पंचायतों में खाद्यान्न गोदामों पर जहां जमीन का पेंच फंसा है, वहीं तीन बड़े भंडार गृहों पर भी बजट का ब्रेक लग गया है। नतीजतन, क्षमता से दोगुना आवंटित रसद का सरकारी दुकानों में भंडारण बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।

दरअसल, पर्वतीय जिलों में शुरुआती दौर से ही खाद्यान्न गोदामों की कमी खटकती रही है। खासतौर पर वर्षाकाल में मैदान व पहाड़ का संपर्क कटने पर इसकी परिणति राशन संकट के रूप में सामने आती रही है।

इसी से पार पाने को बीते वर्ष आखिर में एक हजार या इससे अधिक आबादी वाली न्याय पंचायतों में 500-500 मीट्रिक टन क्षमता के गोदाम स्थापित करने की कवायद शुरु हुई।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_9409628.html

 

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