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Weather Reports from Uttarakhand - उत्तराखण्ड में मौसम के हाल

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हेम पन्त:
इस टापिक में मिलेंगे उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों के मौसम के ताजा हाल.... खबरों का मुख्य श्रोत होगा आप-हम और समाचार पत्रों में छपी खबरें...

नोट- इस टोपिक के अन्तर्गत दिये जाने वाले समाचार प्रतिदिन विभिन्न समाचार पत्रो की साईटस से चयनित कर यहां पर प्रकाशित किये जाते हैं, इसलिये यह लाजमी है कि पहले पेज तथा अन्य पेजों में प्रकाशित समाचार अद्यतन नहीं होंगे। आप लोगों से अनुरोध है कि कृपया इस टोपिक के अन्तिम पेज को देखें, उसमें आपको उत्तराखण्ड से संबंधित ताजा समाचार मिलेंगें।
सादर,
मेरा पहाड़ टीम

Note: All the news under this topics are daily updated from various Newspaper sites, so it is but natural that news on various pages will not be latest. All are requested to view the last page of the topic for latest news.

Regards,
Mera Pahad Team

Devbhoomi,Uttarakhand:
पहाड़ पर आफत बन कर बरस रहे हैं मेघ
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बारिश के कारण क्षेत्र में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रखा है। भूस्खलन से क्षेत्र के कई मोटर मार्ग बंद, तो कई गांव में आवासीय मकानों को खतरा पैदा हो गया है। वहीं, पेयजल लाइन क्षतिग्रस्त होने से कई गांवों में पानी का संकट पैदा हो गया है।

चम्बा प्रखंड के तहत चौपड़ियाल गांव-कखवाड़ी और चौपिड़याल गांव -सौड़ मोटरमार्ग तो एक माह से बंद हैं। वहीं, मातली-भाटूसैण पटूड़ी मोटरमार्ग भी बंद है। यहां ग्रामीणों को 5 से 7 किमी की पैदल दूरी तय करनी पड़ रही है। दूसरी ओर, आराकोट-वाल्काखाल मोटर मार्ग भी खड़ीखाल से आगे बंद पड़ा है, जिससे लोगों को परेशानी हो रही है। नागणी-मांडा मोटर मार्ग भी जगह-जगह बाधित हो रखा है। इतना ही नहीं चम्बा-धरासू मोटर मार्ग कुनेर के पास लगातार बाधित हो रहा है, जिस कारण कई बार जाम की स्थिति पैदा हो रही है।

ग्राम प्रधान आनंद सिंह, रतन सिंह, बसंती देवी आदि का कहना है कि अब मोटर मार्गो को खोला जा सकता है। इसलिए विभागों को बंद मोटरमार्गो को शीघ्र खोलना चाहिए। उधर, लोनिवि के अधिशासी अभियंता एस राठी का कहना है कि पहले उन मोटर मार्गो को खोला जा रहा है, जहां सबसे अधिक आवागमन है। उसके बाद सभी बंद मोटर मार्ग खोले जाएंगे।

बारिश ने लोगों को किया बेघर

चम्बा: बारिश से प्रखंड के कई गांवों में कई मकान, खेत क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। कखवाड़ी गांव के सुरेश चन्द्र का मकान ध्वस्त हो गया है। सुनारगांव में मोहम्मद सलीम और जान मोहम्मद के मकान भी टूट गए हैं। वहीं, सौड़ गांव में उमेद सिंह का मकान बारिश से ध्वस्त हो गया है। वहीं, स्यूल गांव में मुस्सा सिंह का घराट और दस सिंचित खेत मलबे से दब गए हैं।

पेयजल संकट

चाका: उपतहसील गजा के अंर्तगत चाका क्षेत्र के कई गांवों में बारिश से पेयजल लाईन के क्षतिग्रस्त हो रखी है। चाका क्षेत्र के चाका बाजार, बैरोला, धारकोट, चौपड़ियों, लवा, गुमालगांव आदि गांवों में पेयजल संकट बना हुआ है। जल संस्थान के सहायक अभियंता एके सक्सेना ने बताया था कि शीघ्र ही क्षतिग्रस्त लाइनों को ठीक कर दिया जाएगा।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6316915.html

हेम पन्त:
इंद्रदेव मेहरबान, लहलहाते खेत खलिहान
देहरादून, जागरण संवाददाता: देश के कुछ भागों में भले ही इंद्रदेव रुठे हों, लेकिन देवभूमि पर तो वह नेमत बरसाए हुए हैं। बीते अगस्त माह में हुई बारिश को देखें तो यह गत वर्ष के मुकाबले दस फीसदी अधिक है। फिर पूरे मानसून सीजन की अब तक की बात करें तो सूबे को 25 फीसदी अधिक बारिश मिल चुकी है।

राज्य में इस मर्तबा भी मेघ खूब बरस रहे हैं। प्री-मानसून सीजन यानी अपै्रल से ही बारिश की निरंतरता बनी हुई है। मानसून सीजन को ही लें तो एक जून से 31 अगस्त की अवधि में राज्य को 1282.3 मिमी बारिश मिल गई, जबकि सामान्य तौर पर इस दौरान 1022 मिमी वर्षा होती है। यानी 25 फीसदी अधिक बारिश। अगस्त माह का ही जिक्र करें तो राज्य में मेघों ने 564.2 मिमी बारिश दी, जबकि बीते वर्ष इस माह 516 मिमी बारिश हुई थी। अगस्त में सामान्य रुप से 420 मिमी वर्षा होती है।

फिर मौसम का जैसा रुख है, इससे आने वाले दिनों में इसमें बढ़ोत्तरी की संभावना है।

राज्य में अगस्त में बारिश

वर्ष वर्षा स्थिति

2011 564 +32

2010 516 +23

अगस्त में दून में बरसात

2011 878.9

2010 1017

2009 453.9

2008 711.9

खेती को इंद्रदेव की 'संजीवनी'

देहरादून: स बे में बरस रही नेमत ने किसानों के चेहरे खिला दिए हैं। वर्षाधारित खेती के लिए यह संजीवनी से कम नहीं है तो सिंचाई सुविधा वाले क्षेत्रों में भी खेतों में पानी लगाने की जरूरत नहीं पड़ी। फिर मैदानी क्षेत्रों में सिंचाई के लिए ट्यूबवैल चलाने पर आने वाला खर्च भी इस मर्तबा बच गया। यही नहीं, महकमे को भी बारिश की मेहरबानी को देखते हुए अच्छे उत्पादन की उम्मीद है।

कृषि व्यवस्था पर नजर डालें तो सूबे के 95 विकासखंडों में से 71 में खेती पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। यानी वक्त पर बारिश हो गई तो ठीक, अन्यथा सब चौपट, लेकिन इस बार तो अपै्रल से ही इंद्रदेव मेहरबान हैं। अब तक ड्राइ स्पेल की नौबत नहीं आई। हर दो-चार दिन में लगातार बारिश मिल रही है।

राज्य मौसम केंद्र के निदेशक डॉ.आनंद शर्मा के मुताबिक यह स्थिति खेतों में खड़ी धान की फसल के लिए बेहद मुफीद है। लगातार वर्षा के चलते मैदानी इलाकों में भी खेतों में पानी लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। कृषि निदेशक डॉ. मदनलाल का कहना है कि बारिश खेती के लिए संजीवनी है। बारिश अच्छी रही है तो इससे राज्य में बेहतर उत्पादन की आस भी जगी है। कृषि निदेशक का कहना है कि इन दिनों जहां भी धान पर बालियां फूट रही है, उसे देखते सिर्फ कीट-व्याधि के मद्देनजर सावधानी बरतने की जरूरत है।

Source - Jagran.com

Devbhoomi,Uttarakhand:
पहाड़ में गिरा पारा, ठिठुरन से कांपे हाड़
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पर्वतीय अंचल में पारा तेजी से नीचे गिरने लगा है। पखवाड़े भर के भीतर तापमान में पांच डिग्री सेल्सियस की अप्रत्याशित गिरावट आने से पहाड़ में हाड़ कंपाती ठंड शुरु हो गई है। मौसम के अचानक करवट लेने से हवा के झोंकों ने भी रफ्तार पकड़ ली है। क्षेत्र में अधिकतम तापमान 18 जबकि न्यूनतम 8.5 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया।

पहाड़ी क्षेत्रों में सर्दी ने एकाएक सिहरन बढ़ा दी है। पखवाड़ा भर पूर्व पर्वतीय अंचल का अधिकतम तापमान 23 जबकि न्यूनतम 9 डिग्री सेल्सियस था। मगर शनिवार को मौसम का एकाएक मिजाज बदलने से ठंड में और इजाफा हो गया है। विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में मौसम विभाग के अनुसार तापमान में अच्छीखासी गिरावट आ गई है। अधिकतम पारा 18.5 व न्यूनतम 8.5 डिग्री रहा।

इसके अलावा पूर्व-उत्तर-पूर्व दिशा से हवा की गति भी 5 से 8 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से बही। जो पखवाड़ा पूर्व से कहीं ज्यादा रही। दूसरी ओर ठिठुरन बढ़ने केसाथ वायु मंडलीय नमी ने भी 90 फीसदी का आंकड़ा छू लिया है। जबकि न्यूनतम में आंशिक गिरावट के साथ नमी 58 प्रतिशत पहुंच गई है। पंतनगर विवि के मौसम वैज्ञानिक डॉ.एचएस कुशवाहा के अनुसार बढ़ती नमी बारिश का संकेत दे रही है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_8514849.html

हेम पन्त:
पिथौरागढ़ : दिसम्बर बीतने को है शीतकालीन वर्षा नहीं हुई है। हिमालयी भू भाग में मौसम के रंग को लेकर अब पर्यावरणविद् भी परेशान हैं। औसत ऊंचाई वाले स्थानों पर सरसों में फूल आ चुके हैं तो मुनस्यारी में पानी जमने लगा है। अलबत्ता मुनस्यारी में न तो वर्षा हुई है और ना हीं हिमपात।

पर्वतीय क्षेत्र में सरसों अमूमन जनवरी अंत या फिर फरवरी प्रथम सप्ताह में खिलता था। शीतकालीन वर्षा और हिमपात के चलते सरसों को फरवरी माह के शुरु में ऐसा तापमान मिलता था जिससे उसमें फूल खिलते थे। वहीं उच्च और उच्च मध्य हिमायली भू भाग में भारी हिमपात होने केबाद पानी जमने की स्थिति पैदा होती थी। इस बार प्रकृति ने इस मिथक को तोड़ दिया है। दिन में धूप खिलने के बाद तापमान सामान्य हो रहा है। पिथौरागढ़ में जहां 14 से 18 डिग्री सेल्सियस तापमान रह रहा है वहीं रात को तापमान 1 या 2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है। उच्च मध्य हिमालयी भू भाग मुनस्यारी में रात को तापमान शून्य डिग्री से नीचे चला जा रहा है। प्रात: पाईपों सहित अन्य ताल पोखरों का पानी जमा हुआ नजर आ रहा है। दिन में धूप खिलने के बाद मुनस्यारी में भी दिन का तापमान सामान्य रह रहा है।

पर्यावरणविद् इसे शीतकालीन वर्षा नहीं होना मान रहे हैं। उनका कहना है कि वर्षा नहीं होने से तापमान असामान्य हो चुका है। अन्यथा हिमालय के अधिकांश भू भाग में रात और दिन के तापमान में इतना अधिक अंतर नहीं रहता है। मौसम के इस चक्र का अंतर वनस्पतियों में देखने को मिल रहा है। मध्य हिमालयी भू भाग में समय से पहले ही सरसों खिल चुका है। क्षेत्र के विख्यात पर्यावरणविद् वृक्षमित्र कुंवर दामोदर राठौर इसे पर्यावरणीय असंतुलन मान रहे हैं।

Source - Dainik Jagran 28/12/11

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