Read a very nostalgic article by Devendra Mewari ji on Birds of Uttarakhand.
अब, सच्ची बात तो यह है कि हमारे गांव में हमीं जो क्या रहने वाले ठैरे, और भी बाशिंदे हुए वहां के। आप ‘गोरु-बाछ-बाकार’ सोच रहे होंगे। वे तो हुए ही। बल्कि वे ही क्यों, सिरु-बिरालू और ढंट कुकर भी तो हमारे घरों में ही रहने वाले हुए। मगर इनके अलावा भी मेरे गांव के सैकड़ों बाशिंदे गांव की जमीन, खेतों में खड़े पेड़-पौधों और गांव की सरहद से लगे डान-कानों और उनमें उगे जंगलों में रहते थे।
समझ ही गए होंगे आप? मैं अपने गांव की उन चिड़ियों की बात कर रहा हूं जिनसे हमारी गांव की दुनिया गुलजार रहती थी। दिनमान भर तो हुआ ही, रातों को भी उनमें से कई चिड़ियों की हलचल चलती रहती थी।
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