गोरी गंगा नदी के पास मिला काला बंदर
पिथौरागढ़ के गोरी गंगा नदी के पास (4000 से 8000 फीट ऊंचाई पर) काला बंदर पाया गया है। कौतूहल का विषय बने इस बंदर की जानकारी जुटाने में वन महकमे की टीम लग गई है। इसके डीएनए सैंपल लेकर बंगलूरू भेजे गए हैं। यह बंदर अरुणाचल और असम में मिलने वाले बंदरों की प्रजाति से मेल तो खाता है लेकिन इसके लक्षण भिन्न हैं। अब डीएनए टेस्ट के जरिए इसका इतिहास खंगाला जाएगा।
गोरी गंगा के पास कौनियाबेल नामक स्थान पर अप्रैल 2006 में वर्तमान प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) श्रीकांत चंदौला, डब्ल्यूटीआई के डा. भास्कर चतुर्वेदी और दिनेश पांडे की टीम ने पहली बार कुछ अलग तरह का बंदर मिला। इसका मुंह काला था। उस समय केवल मार्फोलॉजी स्टडी (बाहरी रंग, आकार, बनावट) की गई। काली नदी के पास इसी साल जून में गुइयां नामक जगह पर इसी प्रजाति के बंदरों का पूरा कुनबा देखा गया। अलग तरह का बंदर दिखने के बाद वन विभाग की टीम में कौतूहल जागा। डीएफओ हल्द्वानी अमित वर्मा और डीएफओ सिल्वा हिल नेहा वर्मा के निर्देशन में टीम ने अध्ययन शुरू किया है। टीम को अरुणाचल प्रदेश (नूनजाला) और असम (असमेंसियज पेलाप्स) में इसी तरह के मिलते-जुलते बंदरों के होने की जानकारी मिली। वनाधिकारियों के अनुसार यह बंदर व्यवहार जैसे कई मामलों में अलग है। टीम ने बंदर के चार डीएनए सैंपल लिए हैं, जिनको नेशनल इंस्टीटूट ऑफ एडवांस स्टडीज (बंगलूरू) भेजा गया। इनके जीन मैप के जरिए प्रजाति का इतिहास खंगाला जाएगा। डीएफओ अमित वर्मा कहते हैं अगर यह अरुणाचल-असम के बंदरों का ही परिवार है तो यह अध्ययन का विषय है कि असम के बाद ये बीच में क्यों नहीं मिलते? सैकड़ों किलोमीटर की दूरी होने पर अलग प्रजाति विकसित हो जाती है। डीएफओ नेहा वर्मा कहती हैं इकोलॉजी स्टडी के जरिए प्रजाति के बारे में जानकारी जुटाने के साथ यह पता करने की कोशिश की जा रही है कि कहीं यह लुप्त होने की कगार पर तो नहीं।
अरुणाचल प्रदेश और असम में मिलने वाले बंदरों की प्रजाति से मेल खाते हैं इसके लक्षण। जिन जगहों पर यह बंदर पाए गए हैं उससे नेपाल भी सटा है। ऐसे में वन विभाग नेपाल के जरिए उन क्षेत्रों में भी अध्ययन की योजना बना रहा है। Source- epaper.amarujala