Author Topic: Braham Kamal Flower found in Uttarkahand-ब्रहमा जी का फूल ब्रहमकमल  (Read 32102 times)

विनोद सिंह गढ़िया

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ब्रह्मकमल एक प्रकार के अद्वितीय फूल का नाम है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण पश्चिम चीन में पाया जाता है। जैसे कि नाम से ही विदित है, ब्रह्म कमल नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा जी के नाम पर रखा गया है। इसे Saussurea Obvallata के नाम से भी जाना जाता है।

कहा जाता है कि ब्रह्म कमल के पौधों में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। अपने इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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" ब्रह्मकमल "   
ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है । तालाबों या पानी के पास नहीं बल्कि ज़मीन पर होता है। ब्रह्मकमल 3000-5000 मीटर की ऊँचाई में पाया जाता है। ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प है। और इसकी भारत में लगभग 61 प्रजातियां पायी जाती हैं जिनमें से लगभग 58 तो अकेले हिमालयी इलाकों में ही होती हैं। ब्रह्मकमल का वानस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह एसटेरेसी वंश का पौंधा है। इसका नाम स्वीडर के वैज्ञानिक डी सोसेरिया के नाम पर रखा गया था। ब्रह्मकमल को अलग-अगल जगहों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे उत्तरखंड में ब्रह्मकमल, हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस नाम से इसे जाना जाता है। ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है। इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं। इस के राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है। गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है। इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है । इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है!

(Source-http://khabaronkiduniyaraipur.blogspot.com)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 हिमालय में खिलने वाला अद्वितीय फूल - ब्रह्मकमल!    10:52 AM जी.के. अवधिया 5 comments   Email This  BlogThis!  Share to Twitter  Share to Facebook       
ब्रह्म कमल एक प्रकार के अद्वितीय फूल का नाम है जो कि सिर्फ हिमालय, उत्तरी बर्मा और दक्षिण पश्चिम चीन में पाया जाता है। जैसे कि नाम से ही विदित है, ब्रह्म कमल नाम उत्पत्ति के देवता ब्रह्मा जी के नाम पर रखा गया है। इसे Saussurea obvallata के नाम से भी जाना जाता है।
 
 कहा जाता है कि ब्रह्म कमल के पौधों में एक साल में केवल एक बार ही फूल आता है जो कि सिर्फ रात्रि में ही खिलता है। अपने इस गुण के कारण से ब्रह्म कमल को शुभ माना जाता है। (http://dhankedeshme.blogspot.com)





एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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New about Brahma Flower.
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17000 फीट की ऊंचाई से लाए ब्रह्मकमल
Story Update : Tuesday, September 06, 2011    12:01 AM

नाचनी (पिथौरागढ़)। सदियों से चली आ रही परंपरा को निभाते हुए 35 किमी की कठिन डगर पार कर 17000 फीट की उंचाई पर स्थित हीरामणि कुंड से राज्य पुष्प ब्रह्मकमल लाकर मां नंदा को अर्पित किया गया। ब्रह्मकमल हर तीसरे साल नंदादेवी पर्वत शृंखला से लाया जाता है।

भाद्र शुक्लपक्ष में होने वाला नंदा महोत्सव मुनस्यारी क्षेत्र में विशिष्ट तरीके से मनाया जाता है। परंपरा के अनुसार सैणराथी, डोर, गिरगांव, गौला आदि गांवों केलोग भाद्र शुक्लपक्ष की चतुर्थी अथवा पंचमी को पूर्ण शुद्धि के साथ हीरामणि कुंड को रवाना होते हैं। थलठौक नामक स्थान पर पहला पड़ाव डाला जाता है। दूसरे दिन लोग हीरामणि कुंड के लिए रवाना होते हैं। हीरामणि कुंड पहुंचकर शुद्ध वस्त्र धारण कर कुंड की पूजा के बाद स्नान किया जाता है। उसके बाद ब्रह्मकमल तोड़े जाते हैं। रिंगाल केडंडों में पुष्प को बांधकर थलठौक पड़ाव के लिए रवाना हो जाते हैं।
उस दिन अर्थात षष्टी तिथि को थलठौक में बने अस्थाई पड़ाव में रुकते हैं। इस दौरान सभी लोगों का मौनव्रत रहता है। सप्तमी तिथि को थलठौक से गांवों के लिए यह लोग रवाना होते हैं। रविवार की शाम को ब्रह्मकमल लेकर आए दल गांवों में पहुंचे। सोमवार भाद्र शुक्लपक्ष की अष्टमी को लोगों ने अपने घरों में स्थित मां नंदा के मंदिरों में ब्रह्मकमल चढ़ाया। ब्रह्मकमल लाने गए डोर निवासी 66 साल के बुजुर्ग कुमेर सिंह, देव डांगर दीवान सिंह राणा और ग्राम प्रधान गंगा सिंह राणा ने बताया कि ब्रह्मकमल यात्रा में शुद्ध आचरण का विशेष महत्व बताते हुए कहते हैं कि मां नंदा को ब्रह्मकमल काफी प्रिय हैं।

विनोद सिंह गढ़िया

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जगत पिता श्री ब्रह्मा जी
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[/size]        जगतपिता ब्रहमा मन्दिर , पुष्‍कर                                   पुष्‍कर तलाब
[/size]   भगवान विष्णु की नाभी रचना से प्रकृट सर्वप्रथम ब्रह्मा को सृष्टि की रचना हेतु आदेश मिला । इस पर ब्रह्मा जी ने एक कमल के पुष्प से प्रहार करके राक्षसो का नाश किया और जिस स्थान पर वह पुष्प गिरा वहां तीन सुन्दर सरोवर बने जिसे हम पुष्कर के नाम से जानते है। कार्तिक नक्षत्र की महिमा को जानकर सर्व देवताओं, ऋषियों तथा मुनियो को पुष्कर में आमंत्रित किया गया । ब्रह्माजी ने यज्ञ शुरू करने से पूर्व अपनी धर्मपत्नी सावित्री को बुलाने के लिये नारद को भेजा । नारद ने सावित्री माता को आने का कारण बताया लेकिन सावित्री माता सुसज्जीत होने में व्यस्थ थी इस पर सावित्री माता ने कहा नारद तुम जाओ मैं अपनी सहेलियो के साथ आ रही हूं । इतना सुनकर नारदजी वहां से लौट आये और ब्रह्माजी से कहने लगे कि सावित्री माता ने कहा है कि मेरे बिना यज्ञ का शुभारम्भ नहीं हो सकता इतना सुन देवताओं ने यज्ञ का शुभ समय निकलने को देखते हुए एक गुर्जर कन्या को यज्ञ में बैठाने का निर्णय लिया । जिसे आप इस गायत्री मां के नाम से जानते है परन्तु जब वहां सावित्री मां ने देखा कि यज्ञ में मेरे स्थान पर कोई और स्त्री बैठी है, तो अत्यन्त क्रोधित हुई और बोली हे ब्रह्मदेव पृथ्वीलोक में यदि कोई भी मनुष्य आपका मन्दिर बनवायेगा तत्पश्चात् उसकी मृत्यु हो जायेगी । ब्रह्मदेव आपको अपना मन्दिर बनवाने के लिये पृथ्वी पर अवतार लेना होगा । इतना कहकर सावित्री स्वयं दूर एक पहाड़ी पर जाकर स्थाई रूप से विराजमान हो गई । सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा के ही वंश में ऋषि भारद्वाज, ऋषि विशिष्ठ, ऋषि गौतम, ऋषि कश्यप, ऋषि सांण्डिल्य, ऋषि पिपलाद, ऋषि पाराशर और ऋषि उदालक इन ऋषियों के ही वंशज राजपुरोहित चुने गये । ‘‘वयं राष्ट्रे जाग्रयाम पुरोहिताः’’ ब्रह्म समाज के उत्थान के लिये स्वयं ब्रह्माजी ने खेताराम के रूप में उदेशिय वंश राजपुरोहित परिवार में जन्म लिया ।  [/size]
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[/size]भारत में स्थित ब्रह्माजी के मन्दिर
[/size]ब्रह्मधाम:- विश्व का अद्वितीय ब्रह्माजी का मंदिर बालोतरा स्टेशन से 11 कि.मी. दूर आसोतरा प्याऊ पर स्थित है। यह मन्दिर खेताराम जी महाराज ने बनवाया । इसकी विशेषता यह हैं कि इसके निर्माण में लगी सम्पूर्ण धनराशि राजपुरोहित समाज से एकत्रित की हैं।पुष्कर:- पुष्कर पश्चिमी रेल्वे के अजमेर स्टेशन से 7 मील दूर हैं। यहां ब्रह्माजी ने तपस्या की थी इसलिए यहां ब्रह्माजी का प्राचीन मन्दिर है।निंबेश्वर:- पश्चिमी रेलवे के फालना स्टेशन के पास कुछ दूरी पर निंबेश्वर महादेव का स्थान हैं जहां ब्रह्माजी की मूर्तिया पाई गई है।ढ़ालोप:-  पश्चिमी रेलवे के रानी स्टेशन के पास कुछ दूरी पर ढ़ालोप गांव हैं जहां ब्रह्माजी की एतिहासिक मूर्तिया मिली है।नाभीकमल तीर्थ:- कुरू क्षेत्र के पास थानेसर शहर हैं उसी के निकट नाभिकमल तीर्थ है । यहां भगवान विष्णु का प्रमुख मंदिर है तथा उसके पास ही ब्रह्मा का मन्दिर है।जावा:- भारतीय संस्कृति का केन्द्र यह द्वीप जावा प्राचीन समय में बहुत प्रसिद्ध रहा हैं। यहां प्राबनानक नामक शिव मन्दिर प्रमुख है । शिव मन्दिर के दोनो तरफ विष्णु व ब्रह्मा के मन्दिर है।पिंडाराः- द्वारिका से 20 मील दूर पिंडारा है। इसे प्राचीनकाल में पिंडारक या पिंडतारक कहते थे । यहां सरोवर के किनारे कपाल मोचन महादेव का प्रमुख मन्दिर है तथा कहते है कि श्राद्ध करके दिये हुए पिण्ड महर्षि दुर्वासा के वरदान से सरोवर में डालने पर वे डुबते नहीं, जल पर तैरते हैं। यहां भी ब्रह्माजी की मूर्ति है।कालन्द्री:- सिरोही जिले में कालन्द्री कस्बे से डेढ़ किलोमीटर दूर ब्रह्मा मन्दिर हैं। जिसकी व्यवस्था क्षेत्रीय नव परगना राजपुरोहित बन्धुओं द्वारा ही की जाती हैं।खेड ब्रह्माः- ईडर से 15 मील दूर खेड ब्रह्मा स्टेशन हैं यहां हिरण्याक्षी, कोसंबी और भीमाक्षी नदियों का संगम हैं। यहां त्रिवेणी पर भृगु आश्रम है तथा भृगुनाथ महादेव का यहां प्रमुख मन्दिर है। यहां शिव रात्रि को मेला भी लगता है। यहां भृगु ने तप किया था तथा ब्रह्मा ने यज्ञ किया था । त्रिवेणी पर एक तरफ महादेव का व दूसरी तरफ ब्रह्मा का मन्दिर है।शुक्ल तीर्थः- भरूच से 10 मील नर्मदा के उŸार तट पर शुक्ल तीर्थ है । यहां कवि ओकेरेश्वर और शुक्ल नाम के कुण्ड थे, जो लुप्त हो गये हैं। यहां शुक्लनारायण विष्णु की श्वेत चतुर्भुज मूर्ति है। इसके एक बाजू शिव एवं दूसरी बाजू ब्रह्माजी की मूर्ति है।धारापुरीः- समुद्र के मध्य एक द्वीप हैं। बंबई के निकट जिसे एलिफेंटा भी कहते हैं, यहीं धारापुरी हैं। यहां 16 फीट ऊंची अर्द्धनारीश्वर शिव की मूर्ति हैं। उसके बांये विष्णु तथा दांये ब्रह्माजी बैठे है।नागपत्तमः- तंजोर-नागौर रेलवे लाईन पर नेगापट्टम स्टेशन हैं। यहां विशाल शिव तथा विष्णु मनिदर समुद्र तट पर हैं। वहीं ब्रह्माजी का भी एक मन्दिर है । इन्हें यहां ‘‘पैरूमलस्वामी’’ कहते है।शुचीन्द्रमः- कन्याकुमारी से त्रिवेन्द्रम के सीधे मार्ग के बीच शुचीन्द्रम 8 मील पर आता है । इन्द्र को गौतम के शाप से यहीं मुक्ति मिली थी और प्रज्ञा-कुण्ड सरोवर पर शिवजी का विशाल मन्दिर हैं। इसी मन्दिर में विष्णु और ब्रह्मा की मूर्तियां है।त्रिवेन्द्रमः- इसका नया नाम तिरूअनन्तपुरम् है तथा पुराणों में अनन्तमवनम कहा जाता हैं। यहां किले में पद्मनाथ भगवान विष्णु की विशाल काले पत्थर की मूर्ति हैं। नाभिकमल पर ब्रह्माजी बैठे है तथा भगवान शेष शैया पर शयन किये हुए हैं। विष्णु का दाहिना हाथ शिवलिंग के ऊपर स्थित है।मौथा:- मौथा गांव कपडवन्ज (गुजरात) के पास आया हुआ हैं। यहां पर ब्रह्माजी का अति प्राचीन मन्दिर है एवं 5 फीट ऊंची मूर्ति स्थित है।थाईलैण्डः- दक्षिण एशियाई देश थाईलैण्ड में भी एक अतिप्राचीन ब्रह्मा मन्दिर है।तिरूतलमः- त्रिवेन्द्र तिरूअनन्तपुरम् से 3 मील पर तिरूत्तलम हैं। यहां मत्स्य तीर्थ सरोवर हैं। यहां मत्स्यावतार भगवान की मूर्ति के साथ-साथ विष्णु, शिव, परशुराम तथा ब्रह्मा की मूर्तियां हैं। कहते है कि यहां परशुराम ने श्राद्ध किया था ।आबू:- पश्चिम रेलवे के आबू स्टेशन से आबू पवर्त 17 मील दूर हैं। कहते है कि यहां पृथ्वी में एक छिद्र था जो पाताल लोक को जाता था । यहां गोमती कुण्ड के पास ब्रह्माजी की मूर्ति है।बसन्तगढ़ः- सिरोही जिले की पिण्ड़वाड़ा तहसील में बसन्तगढ़ गांव में भी एक ब्रह्मा मन्दिर हैं। जिसकी व्यवस्था क्षेत्रीय राजपुरोहित बन्धुओं द्वारा की जाती है।हाथल:- सिरोही जिले के हाथल गांव में भी एक अति प्राचीन ब्रह्माजी का मन्दिर है।इसके अतिरिक्त ब्रह्माजी की छोटी-छोटी मूर्तियां तो भारत के लगभग सभी प्रान्तों में मिलती हैं।Sabhar -http://www.rajpurohitsamaj.org/brahamajibhagvan.htm

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Braham Flower is considered to be very auspicious. If you have Braham Flower in your house or even leaf of Brahm Flower, evil spirit can not enter in your house.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जोशीमठ।  प्रसिद्ध नंदाष्टमी त्योहार के लिए बुग्यालों में ब्रह्मकमल पुष्प नने उच्च हिमालयी क्षेत्र जाएंगी छंतोलियां

फूल चुनकर अपने गांव के मिलेंगे भी या नहीं इसे लेकर संशय तो बना है, लेकिन सीमांत प्रखंड जोशीमठ में  पारंपरिक नंदाष्टमी पर्व मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। १३ सिंतबर को पिछले दो महीनों से लगातार हो रही वर्षा के चलते उच्च हिमालयी बुग्यालों मे इस बार ब्रह्मकमल पुष्प मिल सकेंगे या नहीं इसे लेकर ग्रामीणों मे संशय बना हुआ है। बावजूद इसके मां नंदा के प्रति आस्था के चलते  इस वर्ष भी विभिन्न गांवाें से नंदा जात की छंतोलियां उच्चहिमालयी बुग्यालों की ओर रुख करेंगी और अपने-अपने नंदा मंदिरों के लिए ब्रह्मकमल लेकर लौंटेगी ऐसा नंदा भक्तों का विश्वास है।
सीमांत प्रखंड जोशीमठ मे उर्गम घाटी के साथ ही नीती-माणा घाटियों जोशीमठ नगर, भ्यूंडार वैली और सलूड-डुंग्रा में नंदाष्टमी पर्व बड़े  धूम-धाम से मनाया जाता है। १३ सितबंर से शुरू होने वाले इस पर्व पर विभिन्न गांवों की ब्रह्मकमल फूल लेने वाले फुलारी उच्च हिमालयी बुग्याल को नंगे पावं जाते हैं और दूसरे दिन ब्रह्म कमल से लदी छंतोली लेकर वापस अपने-अपने गांवाें के नंदा मंदिरों मे पहुंचते हैं। फुलारी को विदा करते और वापसी के वक्त जागर गीत गाया जाता है, जबकि दो दिनों तक नंदा भगवती के गीतों के साथ दांकुडी लगाकर त्योहार को मनाया जाता है।
जोशीमठ प्रखंड के प्रसिद्ध फ्यूंला नारायण मंदिर में तो नंदा मेले की रौनक ही कुछ और होती है। यहां उर्गम घाटी के कई अन्य गांवों की छंतोली भी पंहुचती हैं।  भर्की गांव के ठीक ऊपर स्थित इस  मंदिर मे श्रावण संक्राति से ही पूजा अर्चना की शुरू हो जाती है और  नंदाष्टमी पर समापन इसका समापन होता है।
भर्की के पूर्व प्रधान दुलप सिंह रावत का कहना है कि नंदाष्टमी की तैयारियां तो पूरे जोराें पर हैं, लेकिन लगातार बारिश से ब्रह्म कमल पुष्प सही हालात में मिलेंगे भी या नहीं,  कुछ कहा नहीं जा सकता।

(Source - Amar Ujala).

 

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