गहथ दाल
गढ़वाल के किसान सदियों से अपने खेतों में विविधतापूर्ण फसलें उगाते हैं। यहां की फसलों का विशेष महत्व है। दलहनी फसलों की बात करें, तो गहथ सबसे उपयोगी है। इसे दाल ही नहीं, दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है। पथरी के रोगियों के लिए तो रामबाण की तरह है।
गहथ को लगभग 1500 से 2000 मीटर तक की ऊंचाई पर यह फसल उगाई जाती है। इसमें खास बात यह है कि कम पानी वाली तथा पथरीली जमीन पर ही इसका अछा उत्पादन होता है। पर्वतीय अंचलों में गहथ को सिर्फ दाल के तौर पर ही भोजन में शामिल नहीं किया जाता, बल्कि इसके कई गुण भी हैं।, लेकिन चिंता की कोई बात नहीं, क्योंकि हर घर में गहथ है।
पहाड़ी घरों में गहथ की दाल तो बनती ही है, कई अन्य पकवान भी तैयार किए जाते हैं। इनमें गथ्वाणी और फाणा मुख्य हैं। यह शीतकालीन में उर्जा पैदा करने वाली दाल है। जुकाम-खांसी के इलाज के लिए गढ़वाल के लोग गहथ की पकोड़ियां बनाकर खिलाते हैं।
गढ़वाल से गहथ का अभिन्न रिश्ता है। गहथ से पथरी रोग के इलाज की जानकारी के पीछे गढ़वाली किसानों का पारंपरिक ज्ञान है। पुराने समय में पहाड़ों में जब लोग घरों का निर्माण करते थे, तो पथरीली जमीन होने के कारण खासी परेशानी होती थीं। उस समय विस्फोटक नहीं हुआ करते थे। ऐसे में पत्थरों को तोड़ने के लिए उन्हें लकड़ी के ढेर से दबा दिया जाता था तथा आग लगा दी जाती थी। बाद में गर्म पत्थर पर गहथ का गरम-गरम पानी डाला जाता था, तो पत्थर के टुकड़े हो जाते थे। गावं के लोगो ने पथरी रोग पर भी गहथ के पानी का प्रयोग शुरू किया,
तो फयादा मिलाता रहा। बताते है कि एक महीने तक गहथ का रस पीने तथा दाल खाने से पुरानी पथरी भी टूटकर मूत्र विसर्जन के साथ निकल जाती है। गुर्दे की पथरी के लिए तो रामबाण है। गहथ के पौधों व फलियों के सूखे अवशेष पशुओं के लिए उत्तम चारा है।