कला-संस्कृति
बागेश्वर को अक्सर उत्तराखंड की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में संबोधित किया जाता है। यह विभिन्न तरह की कलाओं, संगीत और नृत्य रूपों का संगम है। काफी संख्या में मंदिरों की वजह से यहां धार्मिक आस्था और सोच वाले लोगों की बहुलता है। इस पक्ष का इस क्षेत्र की कला और संस्कृति पर भी गहरा प्रभाव है।
सांस्कृतिक प्रभाव (नृत्य और संगीत): पहाड़ी क्षेत्र और खराब मौसम की वजह से बागेश्वर का जीवन, कृषि आदि हरे-भरे और उर्वर मैदान की तुलना में कठिन है। नतीजतन इस क्षेत्र के नृत्य रूप की लय धीमी है। झोड़ा या छपेली धीमी लय वाले नृत्य रूप हैं जो न्योली एक उदास गाने) की उदासी से भरी धुन पर संपादित होते हैं। छोलिया नृत्य का एक अन्य रूप है जिसे सिर्फ राजपूत करते हैं।
झोड़ा़, चांचरी और छपेली हुडका की धुनों पर संपादित होते हैं। स्थानीय वाद्ययंत्र जैसे ढ़ोल, निशाण, नगाड़े, रणसिंघा, छोलिया और तुरही भी नृत्य प्रदर्शनों के आकर्षण को बढ़ा देते हैं।
धर्मः बागेश्वर में रहने वाली अधिकांश आबादी हिंदू है। उनमें से अधिकांश सनातन धर्म की बेहद पुरानी शिक्षा और सिद्धांतों को मानते हैं। मंदिरों में मंगलवार, शनिवार और महत्वपूर्ण त्योहारों के अवसर पर बड़ी संख्या में लोग आते हैं। रामायण और अन्य धार्मिक ग्रन्थों का पाठ यहां के लोगों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण भगवान शिव और देवी शक्ति को काफी सम्मान दिया जाता है।
हिंदू राजा द्वारा शहर की स्थापना की गई थी, इसलिस यहां पर हिदुत्व का प्रभाव स्पष्ट है। प्राचीन काल से यानी ब्रिटिश शासन के पहले से यहां हिंदू शासक शासन करते रहे। लेकिन आज सच्चे अर्थों में इसकी तस्वीर महानगरीय हो गई है, क्योंकि इस्लाम, ईसाई, बौद्ध समेत सभी धर्मों के लोग हिंदुओं के साथ समरसता स्थापित करके रह रहे हैं।
भाषा (स्थानीय): अल्मोड़ा हिमालयी के कुमायूं क्षेत्र का एक हिस्सा है। यहां के लोगों की प्राथमिक भाषा कुमायूं है। यहां बोली जाने वाली अन्य भाषाएं हिंदी और अंग्रेजी हैं।
शहर के लोग: बागेश्वर के लोग बेहद दोस्ताना और मेहनती है। इससे यहां आने का मजा कई गुणा बढ़ जाता है।
यहां के लोग मजबूत लेकिन छोटे कद के होते हैं। इस शहर की साक्षरता दर काफी ऊंची 71.94 फीसदी है।