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Flora Of Uttarakhand - उत्तराखंड के फल, फूल एव वनस्पति

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suchira:
Some of the fruits grown are
peach, plum, apricot, pears cherry,mango, citrus, litchi, guava, jackfruit,apple,grape, strawberry, lemon and litchi. Dehra Dun is famous for its litchi.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
फलों के नाम

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घरेलू फल

अखरोट, आलू, बुखार, अलूचा, आम, इमली, अमरुद, अनार, अँगूर, आड़ू, बड़हल, बेर, चकोतरा (इसे अठन्नी भी कहते हैं) चेरी (पयं), गुलाबजामुन, कटहल, केला, लीची, लोकाट, नारंगी, नासपती (गोल, तुमड़िया तथा चुसनी) नींबू, पांगर (chestnut ), पपीता, शहतूत (कीमू) सेब, खरबूज, तरबूज, फूट, खुमानी, काक, अंजीर आदि फल कुमाऊँ में होते हैं।



जंगली फल

आंचू (लाल व काले हिसालू), अंजीर (बेड़ू), बहेड़ा, बोल, बैड़ा, आँवला, बनमूली, बन नींबू, बेर, बमौरा, भोटिया बादाम, स्यूँता (चिलगोजा), चीलू (कुशम्यारु), गेठी, घिंघारु, गूलर, हड़, जामन, कचनार, काफल, खजूर, किल्मोड़, महुआ, मौलसिरी, मेहल, पद्म (पयं), च्यूरा, कीमू, तीमिल, गिंवाई आदि कुमाऊँ के जंगलों में होते हैं।

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
फूल

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फूल कुमाऊँ में बहुत होते हैं। मुख्य ये हैं - बेला, चमेली, चंपा, गुलाब, कुंज, हंसकली, केवड़ा, जुही (जाई), रजनीगंधा (हुस्नहाना), गेंदा, गुलदावरी, डलिया, गुलबहार, मोतिया, नरगिस, कमल, सूर्य व चन्द्र तथा अन्य प्रकार के। शिलिंग, जिनकी सुगंध दूर तक फैलती है, इन पर्वतों का एक खआस फूल है। यह सितंबर के बाद फूलता है। बुरांस जब बसंत में जंगलों में खिलता है, तो टेसू से कई गुना सुन्दर दिखाई देता है। गुल बाँक भी कई कि का होता है।


अँग्रेजी फूलों में ऐस्टर, बिगोनिया, डलिया, हौलीहौक, कैलोसिया, कौक्स कौम, टफूशिया, स्वीट विलियम, स्वीट सुल्तान, जीरेनियम, पिट्रेनियाँ, जिनियाँ, डेजी, कागजू फूल आदि होते हैं।

देशी फूल खुशबूदार होते हैं। अँग्रेजी फूल देखने में उत्तम होते हैं, पर विशेषत: निर्गेध होते हैं।

हिमालय के पास तथा जंगलों में नाना प्रकार के जंगली फूल खिलते हैं, जिनमें कई बड़े सुन्दर या खुश्बुदार होते हैं। कुछ जहरीले भी होते हैं।

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
लकड़ी

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जितनी लकड़ियाँ, घास व वनस्पतियाँ कूर्माचल के जंगलों में उत्पन्न होती हैं, उनको कौन गिना सकता है, ज्यादातर इन पेड़ों से काम पड़ता है, इनको प्राय: सब लोग जानते हैं -


अखरोट, अयाँर, अरंडी, अशोक, अर्जुन, आम इमली, उतीस, कचनार, कदम, कैल, कीकड़, खैर, सड़क, खरसू, गेठी, चंदन (तराई में कुछ पेड़ चंद-राजाओं ने लगाये थे), चीड़, च्यूरा, जामन, तुन, देवदारु, नीम, पदम पाँगर, फयाँट, पपड़ी, बबूल, बेल, बड़, बिचैण, बाँझ, बेंत, बुराँस, बाँस, मालझन (मालू), भौरु, भेकुल, भौजपत्र, किंरयाज, राई, रीठा, स्याँज, साल, शीशम, हल्दू आदि। इन पेड़ों की लकड़ी देशांतरों की जाती है।



पहाड़ से - चीड़ देवदारु, तुन।


तराई भावर से - साल, शीशम, हल्दू, खैर।


पहले 'सिद्ध बड़ु़वा' के पेड़ो से पहाड़ी कागज बनता था, जो मजबूत होता था। बाहर को भी यह कागज जाता था। अब कागज भावड़ घास तथा बाँसों से बनाया जाता है। अब पहाड़ा कागज बहुत कम बनता था।

 

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
घासें

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ये घासें तराई - भावर से देश को जाती है -


कांस - टोकरी बनाने को।

सींक - झाडू व कागज बनाने को।

तुली - गाड़ी ठाँपने की सिरकी।

बेंदू, नल, ताँता - चटाई बनाने को।

मूँग - रस्सी बनाने को।

भावर - कागज बनाने को।

बाँस - तराई भावर से बहुत बाहर को भेजा जाता है।



शहद भी कुमाऊँ से बहुत जाता है।

 

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