Author Topic: Flora Of Uttarakhand - उत्तराखंड के फल, फूल एव वनस्पति  (Read 529966 times)

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0

Risky Pathak

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 2,502
  • Karma: +51/-0

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
उत्तराखंड का राज्यपुष्प ब्रह्मकमल


ब्रह्मकमल भारत के उत्तराखंड, सिक्किम, अरूणाचल प्रदेश, कश्मीर में पाया जाता है। भारत के अलावा यह नेपाल, भूटान, म्यांमार, पाकिस्तान में भी पाया जाता है। उत्तराखंड में यह पिण्डारी, चिफला, रूपकुंड, हेमकुण्ड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि जगहों में इसे आसानी से पाया जा सकता है। इस फूल के कई औषधीय उपयोग भी किये जाते हैं।

 इस के राइज़ोम में एन्टिसेप्टिक होता है इसका उपयोग जले-कटे में उपयोग किया जाता है। यदि जानवरों को मूत्र संबंधी समस्या हो तो इसके फूल को जौ के आटे में मिलाकर उन्हें पिलाया जाता है।

  गर्मकपड़ों में डालकर रखने से यह कपड़ों में कीड़ों को नही लगने देता है। इस पुष्प का इस्तेमाल सर्दी-ज़ुकाम, हड्डी के दर्द आदि में भी किया जाता है। इस फूल की संगुध इतनी तीव्र होती है कि इल्का सा छू लेने भर से ही यह लम्बे समय तक महसूस की जा सकती है और कभी-कभी इस की महक से मदहोशी सी भी छाने लगती है। इस फूल की धार्मिक मान्यता भी बहुत हैं।

 ब्रह्मकमल का अर्थ है ‘ब्रह्मा का कमल’। यह माँ नन्दा का प्रिय पुष्प है। इससे बुरी आत्माओं को भगाया जाता है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है और इसके तोड़ने के भी सख्त नियम होते हैं जिनका पालन किया जाना अनिवार्य होता है। यह फूल अगस्त के समय में खिलता है और सितम्बर-अक्टूबर के समय में इसमें फल बनने लगते हैं। इसका जीवन 5-6 माह का होता है।
   

 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
आसमान छूती महंगाई के इस दौर में कोई पेड़ घी देने लगे, तो इससे सुखद स्थिति और क्या होगी। चौंकिए नहीं, इस तरह का पेड़ उत्तराखंड में है। च्यूर नाम का यह पेड़ देवभूमि वासियों को वर्षों से घी उपलब्ध करा रहा है। इसी खासियत के कारण इसे इंडियन बटर ट्री कहा जाता है। बस, जरूरत इसके व्यावसायिक इस्तेमाल की है।

नाबार्ड समेत गैर सरकारी संस्थाओं के अध्ययन बताते हैं कि उत्तराखंड में प्रतिवर्ष 120 टन यानी बारह हजार कुंतल च्यूर घी [वनस्पति घी] के उत्पादन की संभावना है। हालांकि, फिलहाल करीब 110 कुंतल ही उत्पादन हो पा रहा है। दूध की तरह मीठा और स्वादिष्ट होने के कारण च्यूर के फलों को चाव से खाया जाता है। दुनिया में तेल वाले पेड़ों की सैकड़ों प्रजातियां हैं, लेकिन कुछ ही ऐसी हैं, जिनसे खाद्य तेल प्राप्त किया जा सकता है। डा.डिमरी कहते हैं कि यदि च्यूर के व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए, तो यह राज्य की आर्थिक स्थिति को बदल सकता है।

दो हजार से पांच हजार फीट की ऊंचाई पर पाए जाने वाले च्यूर वृक्ष के बीजों से चमोली के कुछ हिस्सों समेत पिथौरागढ़, अल्मोड़ा व नैनीताल में दशकों से वनस्पति घी का उत्पादन किया जा रहा है। हालांकि, वहां के निवासी केवल अपनी जरूरत भर ही इस घी का उत्पादन करते रहे हैं। इसके व्यावसायिक उत्पादन के बारे में प्रयास चल रहे हैं।

कुमाऊं मंडल में च्यूर, जिसका वानस्पतिक नाम डिप्लोनेमा ब्यूटेरेशिया अथवा एसेन्ड्रा ब्यूटेरेशिया है, के करीब 60 हजार पेड़ हैं। इनमें से करीब 40 हजार पेड़ों से फल और बीज प्राप्त किए जा सकते हैं। च्यूर को अलग-अलग क्षेत्रों में फुलावार, गोफल आदि नामों से भी जाना जाता है। यह महुआ के वृक्षों से मिलता-जुलता है। सिक्किम, भूटान व नेपाल में भी च्यूर के वृक्ष हैं। सिक्किम में च्यूर के फल 25-30 रुपये किलो बिकते हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
फूलों के देश में दमकी देवभूमि की आभा
=============================

देवभूमि के फूलों ने देश में ही चमक नहीं बिखेरी, यूरोप का दिल भी जीता है। फूलों के देश हॉलैंड ने उत्तराखंड के ग्लैडियोलस को सिर आंखों पर बैठाया है। सरकारी स्तर पर पहली मर्तबा हुए प्रयासों से फूल न सिर्फ हॉलैंड पहुंचे, बल्कि वहां से हर हफ्ते पांच हजार कट फ्लावर की डिमांड भी उत्तराखंड को मिली है। फूलों की पहली खेप इसी हफ्ते भेजी भी जा चुकी है। उम्मीद जगी है कि हॉलैंड से अब समूचे यूरोप में उत्तराखंडी फूल अपनी आभा बिखेरेंगे और इन्हें मिलेगी अंतरराष्ट्रीय पहचान। साथ ही किसानों के लिए भी इसे एक नई उम्मीद के रूप में देखा जा रहा है।

कारनेशन, जरबेरा, ग्लैडियोलस जैसे कट फ्लावर के मामले में उत्तराखंड ने देशभर में खास जगह बनाई है। बेहतर क्वालिटी का ही नतीजा है कि देश में होने वाले राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय फ्लोरा एक्सपो में यहां के फूल खूब चमक बिखेरते आ रहे हैं। इनमें भी सूबे के चार जिले देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहगर व नैनीताल का बड़ा योगदान है। सबसे अधिक पुष्पोत्पादक इन्हीं जिलों में हैं।

फूलों की बढ़ती चमक को देखते हुए उद्यान महकमे ने पहली मर्तबा इन्हें कृषि निर्यात इकाई के जरिए विदेश की सैर कराने की ठानी और इसमें कामयाबी भी मिली है। यह सफलता भी कहीं और नहीं, बल्कि फूलों के देश कहे जाने वाले हॉलैंड में मिली है। अपर सचिव उद्यान जीएस पांडे के मुताबिक एग्री एक्सपोर्ट जोन के जरिए उत्तराखंड से ग्लैडियोलस के सैंपल हॉलैंड भेजे गए। क्वालिटी के मानक पर तो ये खरे उतरे, मगर पैकिंग में कुछ कमियां रह गई।

बाजार की मांग के अनुरूप कमियां दूर की गई और फिर सैंपल हॉलैंड भेजे गए, जहां लोगों ने इन्हें सिर आंखों पर बिठा लिया। इसी का नतीजा रहा कि अब वहां से हर हफ्ते पांच हजार कट फ्लावर की डिमांड मिली है। पहली खेप इसी हफ्ते हॉलैंड भेज भी दी गई। श्री पांडे के अनुसार हॉलैंड में मिली इस कामयाबी को देखते हुए अब फूलों की खेती को और आगे बढ़ाया जाएगा। इससे किसानों के लिए भी नए द्वार खुले हैं। उन्होंने कहा कि हॉलैंड की डिमांड पूरी करने में सूबा सक्षम है और आने वाले दिनों यहां के फूल समूचे यूरोप में फैलेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
जखिया का पौधा

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
आडू का फूल..
 

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
कई रूपों में होता है साकिना का प्रयोग

  चम्बा, : धरती में मनुष्य के उपयोग के लिए किस्म-किस्म की वनस्पतियां हैं। उनका प्रयोग वह समय-समय पर किसी न किसी रूप में करता आया है। साकिन भी एक ऐसी वनस्पति है, जिसका उपयोग कई रूपों में किया जाता है। यह चारे के अलावा दवा के रूप में भी प्रयोग होता है।
साकिना मुख्यतया मध्यम ऊंचाई में उगने वाला पौधा है। इसका उपयोग वैसे तो जलाऊ लकड़ी व चारे के रूप में होता है, लेकिन दवा के रूप में इसे ज्यादा महत्व दिया गया है। मार्च माह के अंत में जब इस पर फूल निकलने शुरू होते हैं, तो इसक ा उपयोग भरवा रोटी के लिए किया जाता है।

जो सुपाच्य व स्वादिष्ट होती है। फूलों का उपयोग उबालकर दही के साथ रायते के रूप में किया जाता है। यह खूनी पेचिश रोकने की रामबाण दवा भी है। इसके अलावा जब इनका मौसम नहीं होता, तो उस समय प्रयोग करने के लिए फूलों क ो सूखाकर रख देते हैं। इसका प्रयोग आज भी वैसा ही होता है,

जितना पहले हुआ करता था। फूलों के अलावा इसकी पत्तियां प्राकृतिक रंगों क ा काम भी करती है। इसकी पत्तियों से रंग निकालकर कपड़ों को रंगने का कार्य भी होता है। भले ही यहां यह कार्य नहीं होता है, लेकिन बाहर इसकी मांग रहती है।

ग्रामीण रामलाल, सुन्दर सिंह,दयाल सिंह, शिवदास आदि का कहना है कि यह प्रकृति द्वारा उन्हें मिला नि:शुल्क उपहार है, जिसके कई उपयोग व फायदे है। जरूरत केवल इसको प्रयोग में लाने की है।



Source dainink jagran

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22