आसमान छूती महंगाई के इस दौर में कोई पेड़ घी देने लगे, तो इससे सुखद स्थिति और क्या होगी। चौंकिए नहीं, इस तरह का पेड़ उत्तराखंड में है। च्यूर नाम का यह पेड़ देवभूमि वासियों को वर्षों से घी उपलब्ध करा रहा है। इसी खासियत के कारण इसे इंडियन बटर ट्री कहा जाता है। बस, जरूरत इसके व्यावसायिक इस्तेमाल की है।
नाबार्ड समेत गैर सरकारी संस्थाओं के अध्ययन बताते हैं कि उत्तराखंड में प्रतिवर्ष 120 टन यानी बारह हजार कुंतल च्यूर घी [वनस्पति घी] के उत्पादन की संभावना है। हालांकि, फिलहाल करीब 110 कुंतल ही उत्पादन हो पा रहा है। दूध की तरह मीठा और स्वादिष्ट होने के कारण च्यूर के फलों को चाव से खाया जाता है। दुनिया में तेल वाले पेड़ों की सैकड़ों प्रजातियां हैं, लेकिन कुछ ही ऐसी हैं, जिनसे खाद्य तेल प्राप्त किया जा सकता है। डा.डिमरी कहते हैं कि यदि च्यूर के व्यावसायिक उत्पादन को बढ़ावा दिया जाए, तो यह राज्य की आर्थिक स्थिति को बदल सकता है।
दो हजार से पांच हजार फीट की ऊंचाई पर पाए जाने वाले च्यूर वृक्ष के बीजों से चमोली के कुछ हिस्सों समेत पिथौरागढ़, अल्मोड़ा व नैनीताल में दशकों से वनस्पति घी का उत्पादन किया जा रहा है। हालांकि, वहां के निवासी केवल अपनी जरूरत भर ही इस घी का उत्पादन करते रहे हैं। इसके व्यावसायिक उत्पादन के बारे में प्रयास चल रहे हैं।
कुमाऊं मंडल में च्यूर, जिसका वानस्पतिक नाम डिप्लोनेमा ब्यूटेरेशिया अथवा एसेन्ड्रा ब्यूटेरेशिया है, के करीब 60 हजार पेड़ हैं। इनमें से करीब 40 हजार पेड़ों से फल और बीज प्राप्त किए जा सकते हैं। च्यूर को अलग-अलग क्षेत्रों में फुलावार, गोफल आदि नामों से भी जाना जाता है। यह महुआ के वृक्षों से मिलता-जुलता है। सिक्किम, भूटान व नेपाल में भी च्यूर के वृक्ष हैं। सिक्किम में च्यूर के फल 25-30 रुपये किलो बिकते हैं।