उत्तराखंड में लीची का प्रवेश (इतिहास)
History of Litchi i Introduction in Uttarakhand
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History of Agriculture , Culinary , Gastronomy, Food, Recipes referring Uttarakhand -105
आलेख : भीष्म कुकरेती
उत्तराखंडी नाम - लीची
हिंदी नाम - लीची
सामान्य अंग्रेजी नांम लीची
Botanical Name - Litchi chinesis
जन्म मूल स्थान - क्वांगतुंग , ग्वांगडोंग दक्षिण चीन - महाद्वीप - एशिया
फल की भारत व उत्तराखंड यात्रा - लीची का मूल स्थान दक्षिण पूर्व चीन माना जाता है। हाँ कुल सम्राट के समय (140 - 86 ईशा पूर्व ) में लीची का विवरणमिलता है व लीची के बारे में 1059 में पहली बार सन Tsai Hsiang
ने लिखित प्रकाश डाला। जबकि वॉल्ट्न स्विंगलर का मानना है कि किन्ही चीनी विद्वान् ने 1056 में ही प्रथम बार लीची विवरण प्रकाशित किया।
लीची को चीन से बर्मा व भारत के उत्तर पूर्व में आने में सैकड़ों साल लगे और कहा जाता है कि लीची सत्रहवीं सदी में म्यानमार व ( उत्तर पूर्व भारत ) में पंहुची यानी लीची का उत्पादन सत्रहवीं सदी में शुरू हुआ। और बंगाल तक आते आते लीची को सौ साल लगे। याने बंगाल में लीची का उत्पादन अठारहवीं सदी में शुरू हुआ। 1870 में मौरिसिस पंहुची।
बंगाल ( पश्चिम भाग ) में शायद 1780 प्रवेश किया। सहारनपुर से लीची ने 1883 में फ्लोरिडा प्रवेश किया । वहां से 1897 में कैलिफोर्निया पंहुची या उगाना शरू हुआ। जब 1883 में सहारनपुर से लीची फ्लोरिडा पंहुची तो इसका अर्थ है कि 1883 तक लीची का सहारनपुर देहरादून व भाबर में भली भांति उत्पादन शुरू हो गया था। सहारनपुर, देहरादून , गढ़वाल व कुमाऊं में सन 1750 से 1815 तक राजनैतिक व सामाजिक उथल पुथल का युग था याने उस काल में बंगाल या बिहार से लीची सहारनपुर अथवा देहरादून बिलकुल नहीं पंहुची होगी। ब्रिटिश शासन स्थापित होने के बाद ही लीची ने देहरादून व सहारनपुर प्रवेश किया होगा। संभवतया ब्रिटिश सैनिक अधिकारियों (सहारनपुर व देहरादून सैनिक छावनियां थीं ) द्वारा ही सहरानपुर व देहरादून में लीची का उत्पादन शुरू हुआ होगा। अधिक संभावना यह है कि लीची का उत्पादन देहरादून व सहारनपुर में 1857 के बाद ही शुरू हुआ होगा क्योंकि तब तक सहारनपुर व देहरादून में अंग्रेजों के लिए तथाकथित अराजक स्थिति नहीं रही होगी।
यह बताना कठिन है कि लीची का उत्पादन देहरादून व सहारनपुर में एक साथ शुरू हुआ या अलग अलग समय। देहरादून ब्रिटिश काल सहारनपुर रेंज में आता था तो देहरादून में लीची उत्पादन भी हुआ तो भी नाम आता रहा होगा।
उत्तराखंड में लीची लगभग 20 मैट्रिक टन प्रतिवर्ष पैदा होती है और भारत में सबसे कम पैदावार , उत्पादकशीलता का प्रदेश भी उत्तराखंड ही है
शुरू से ही लीची उत्तराखंड में रसूखदारों का फल में गिनती होती आयी है। लीची का पेड़ आकर्षक व फल लाभकारी होते हैं। लीची में पर्याप्त मात्रा में विटामिन्स , लवण , खनिज , पाए जाते हैं से लाभ में लीची कामगर साबित हुयी है। आयु प्रभाव बालों की सुरक्षा , तवचा को चमक देने, ब्लड प्रेसर को स्थिर करने , हड्डी की शक्ति बढ़ाने आदि में प्रयोग होती है।
लीची हेतु गर्म व विशेष मिटटी की आवश्यकता होने के कारण लीची देहरादून , भाबर , उगाया जाता है पहाड़ों में कृषकों ने लीची उगाने की कम ही प्रयोग किये। किन्तु सन 2000 के लगभग , सत्यप्रसाद बड़थ्वाल ने गंगा तट पर बसे गाँव में खंड , दाबड़ (बिछला , पौड़ी गढ़वाल, गंगा से 1000 फ़ीट ऊंची भूमि ) ) में लीची उगाना शुरू किया।
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संदर्भ - डा इंदु मेहता , - 2017 लीची - द क्वींस ऑफ फ्रूट्स , जर्नल ऑफ़ ह्यूमनटीज ऐंड साइंस , वॉलयूम 22 इस्यु 9
Copyright @ Bhishma Kukreti 25 /1/2014
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