Author Topic: Historical Facts Of Uttarakhand - जानिए उत्तराखंड से संबंधित कुछ ऐतिहासिक तथ्य  (Read 24776 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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In January 2007, the name of the state was officially changed from Uttaranchal, its interim name, to Uttarakhand.

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The Nanda Devi National Park is a national park situated around the peak of Nanda Devi, 7,817 m (25,646 ft), in the state of Uttarakhand in northern India. It was established as national park in 1982

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1857
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In 1857 Kalu Mahra from Champawat (kaalmarjew) revolted agaist British Empire.



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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1905
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First issue of "Garwal Union" paper started. This paper played a vital role in spreading the awareness about Freedom Movement in Garwal areas.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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1921
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In 1921 on occasion of Makarsangrati (Uttarayani) about 40 thousands people gathered in Bageshwar under the leadership of Badri Dutt Pandey and Chiranji Lal with a objective to abolish "Kuli Begar" System.

People torn all the paper related to Kuli Begar system and threw them in the the Saryu River.

Devbhoomi,Uttarakhand

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उत्तरकाशी धार्मिक दृष्‍िट से भी महत्‍वपूर्ण शहर है। यहाँ भगवान विश्‍वनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। यह शहर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर है। यहाँ एक तरफ जहाँ पहाड़ों के बीच बहती नदियाँ दिखती हैं वहीं दूसरी तरफ पहाड़ों पर घने जंगल भी दिखते हैं। यहाँ आप पहाड़ों पर चढ़ाई का लुफ्त भी उठा सकते हैं। उत्तरकाशी को प्राचीन समय में विश्वनाथ की नगरी कहा जाता था। कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा। केदारखंड और पुराणों में उत्तरकाशी के लिए 'बाडाहाट' शब्द का प्रयोग किया गया है। केदारखंड में ही बाडाहाट में विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख मिलता है। पुराणों में इसे 'सौम्य काशी' भी कहा गया है। हिमालय की सुरम्य घाटी में उत्तरकाशी समुद्र तल से एक हज़ार छह सौ इक्कीस फुट की ऊँचाई पर गंगोत्री मार्ग पर गंगा-भागीरथी के दाएं तट पर स्थित है तथा पूर्व और दक्षिण की ओर नदी से घिरा है। इसके उत्तर में अस्सी गंगा और पश्चिम में वरणा नदी है। वरणा और अस्सी के मध्य का क्षेत्र 'वाराणसी' के नाम से प्रसिद्ध है। इसे 'पंचकाशी' भी कहा जाता है। यह वरुणावर्त पर्वत की घाटी में स्थित है तथा इसके पूर्व में केदारघाट और दक्षिण में मणिकर्णिका घाट हैं।

Devbhoomi,Uttarakhand

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मालपा गांव को बारह साल पहले १९९८ मे यहा हुए एक हादसे के कारण जाना जाता है। उस समय कुमाऊं पर्यटन का कैलाश यात्रा का पडाव मालपा मे हुआ करता था। १९९८ मे कैलाश मानसरोवर के यात्री यहां रुके थे कि रात में बरसात के बाद भंयकर भूस्खलन हो गया। कैप की जगह से ठीक उपर का पूरा पहाड ही नीचे आ गिरा।
 इस मलबे में मालपा गांव के साथ ही पूरा कैप ही खत्म हो गया। कैप का हिस्सा अभी भी मलबे के नीचे ही दबा है। बहुत से लोगो की लाशो को आज तक निकाला नही जा सका है।
 जानी मानी नृत्यागंना और अभिनेता कबीर बेदी का पत्नी प्रोतिमा बेदी का भी इस दुर्घटना मे निधन हो गया था। मालपा में इन सभी लोगो की याद मे स्मारक भी बनाया गया है। मालपा हादसे के बाद से ही कैप को मालपा से बुद्दि ले जाया गया था।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अठूर का सैण

टेहरी गढ़वाल -  अंग्रेजो के शाशन के काल में पट्टी सकलाना में माफिदारो को मिली थी! दशहरे के अवसर पर अठूर में उनकी कचहरी लगती थी! साथ ही इस क्षेत्र में अनेक पौराणिक स्थल भी थे जिसमे अष्टावक्र ऋषि आश्रम, माली देवल (माल्यवती) आश्रम आदि !

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गंगा नदी का पौराणिक सन्दर्भ

राजा भागीरथ ने देवताओं को प्रसन्न करने के लिये 5500 वर्षों तक घोर तप किया। उनकी भक्ति से खुश होकर देवी गंगा ने पृथ्वी पर आकर उनके शापित पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति देना स्वीकार कर लिया। देवी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के वेग से भारी विनाश की संभावना थी और इसलिये भगवान शिव को राजी किया गया कि वे गंगा को अपनी जटाओं में बांध लें। (गंगोत्री का अर्थ होता है गंगा उतरी अर्थात गंगा नीचे उतर आई इसलिये यह शहर का नाम गंगोत्री पड़ा।

भागीरथ ने तब गंगा को उस जगह जाने का रास्ता बताया जहां उनके पूर्वजों की राख पड़ी थी और इस प्रकार उनकी आत्मा को मुक्ति मिली। परंतु एक और दुर्घटना के बाद ही यह हुआ। गंगा ने जाह्नु मुनि के आश्रम को पानी में डुबा दिया। मुनि क्रोध में पूरी गंगा को ही पी गये पर भागीरथ के आग्रह पर उन्होंने अपने कान से गंगा को बाहर निकाल दिया। इसलिये ही गंगा को जाह्नवी भी कहा जाता है।

बर्फीली नदी गंगोत्री के मुहाने पर, शिवलिंग चोटी के आधार स्थल पर गंगा पृथ्वी पर उतरी जहां से उसने 2,480 किलोमीटर गंगोत्री से बंगाल की खाड़ी तक की यात्रा शुरू की। इस विशाल नदी के उद्गम स्थल पर इसका नाम भागीरथी है जो उस महान तपस्वी भागीरथ के नाम पर है जिन के आग्रह पर गंगा स्वर्ग छोड़कर पृथ्वी पर आयी। देवप्रयाग में अलकनंदा से मिलने पर इसका नाम गंगा हो गया।

माना जाता है कि महाकाव्य महाभारत के नायक पांडवों ने कुरूक्षेत्र में अपने सगे संबंधियों की मृत्यु पर प्रायश्चित करने के लिये देव यज्ञ गंगोत्री में ही किया था।

गंगा को प्रायः शिव की जटाओं में रहने के कारण भी आदर पाती है। एक दूसरी किंबदन्ती यह है कि गंगा मानव रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई और उन्होंने पांडवों के पूर्वज राजा शान्तनु से विवाह किया जहां उन्होंने सात बच्चों को जन्म देकर बिना कोई कारण बताये नदी में बहा दिया। राजा शांतनु के हस्तक्षेप करने पर आठवें पुत्र भीष्म को रहने दिया गया। पर तब गंगा उन्हें छोड़कर चली गयी। महाकाव्य महाभारत में भीष्म ने प्रमुख भूमिका निभायी।

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कहा जाता है कि चंद राजाओं ने जब चम्पावत में अपनी राजधानी स्थापित की तो इसके शीर्ष भाग में नगर की रक्षा के लिए नाथ संप्रदाय के एक महंत ने अपना डेरा जमाया। जिसे राजा ने अपना गुरु मानते हुए उनसे आशीर्वाद लिया और यह स्थान नागनाथ के रूप में जाना जाने लगा। इस मंदिर में नागनाथ की धूनी के साथ ही कालभैरव का भी मंदिर है। कहते हैं यहां पूजा अर्चना करने से संतान सुख की प्राप्ति तो होती ही है, वहीं शत्रुओं का नाश होता है। सुबह व सायं आरती के समय यहां आज भी नौमत लगती है। तूरी जाति के लोग नगाडे़ के साथ ही तुरही बजाते हैं। वैसे तो यहां हर समय भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन बसंत और शारदीय नवरात्र के मौके पर तो यहां भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ता है। जिले ही नहीं बल्कि कुमाऊं के अन्य हिस्सों से भी लोग यहां आकर अपनी मुरादें पूरी करते हैं। इस मंदिर के पुजारी रावल लोग हैं, जो नियमित रूप से पूजा अर्चना करवाते हैं। कृष्ण जन्माष्टमी के तीसरे रोज यहां हर वर्ष फूलडोल मेले का भी आयोजन होता है।

 

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