Author Topic: Holy Rivers Of Uttarakhand - उत्तराखंड की पवित्र नदिया  (Read 61917 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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हिमालय पर्वतमाला को विश्व का उत्तम जल स्तम्भ कहा जाता है। हिमालय से पिघलते बर्फ से कई निरन्तर बहती नदियों का जन्म हुआ है जिन पर मानव जीवन निर्भर है। हिमालय में बर्फवारी अक्टूबर से अप्रैल तक होती है, जबकि जनवरी- फरवरी में अधिकतम बर्फ गिरती है। चौखम्भा शिखर के उत्तरी-पश्चिमी भाग पर स्थित गंगोत्री हिमशिखर की 4000 मी0 ऊँचाई पर गौमुख से भगीरथी नदी का उद्गम हुआ है।

भगीरथी
नदी की एक सहायक नदी भिलंगना का उद्गम टिहरी गढ़वाल में घुत्तू के उत्तर में खत्लिंग हिमशिखर से हुआ है।


भ्युन्दर नदी (ध्वल गंगा) जो अलकनंदा की सहायक नदी है, कामत हिमशिखर के पूर्व से निकली है।

सोंग नदी दून घाटी के मध्यपूर्वी भाग के पानी को लेकर बनी है तथा ऋषिकेश व हरिद्वार के बीच गंगा में मिलती है।


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उत्तराखंड में कोई नदी बची ही नहीं है, जिस पर बांध बनाकर जल-विद्युत परियोजना का कार्य न हो रहा या प्रस्तावित न हो। उत्तराखंड ने लगभग सभी नदियों को निजी कंपनियों के पास बिजली बनाने के लिए बेच दिया है। भागीरथी और अलकनंदा जैसी बड़ी नदियों पर तो पांच या उससे भी अधिक परियोजनाएं शुरू की जाने वाली हैं। यह सही है कि इन पर टिहरी जैसे बड़े बांध नहीं बनाए जाएंगे, लेकिन बिजली बनाने के लिए प्रत्येक पर एक छोटा बांध बनाना आवश्यक है, जो उनकी जलधारा को रोक उसे सुरंग या नहर में प्रवाहित कर सके, ताकि जल तब तेजी से नीचे जाकर बिजली पैदा करनेवाली चरखियों (टरबाइन्स) को घुमा सके।

ये छोटे बांध भी नदी की धारा को प्रभावित करते हैं। बदरीनाथ के पास लामबगड़ में अलकनंदा को रोकने के लिए एक छोटा बांध बनाया गया है, जहां से उसकी धारा को एक सुरंग में डाल 16 किलोमीटर नीचे 400 मेगावाट बिजली उत्पादित हो रही है। सुरंग में डालने के बाद बचा जल इतना कम है कि उसे नदी नहीं कहा जा सकता। इस राज्य में नदियों पर बननेवाली 145 सुरंगों के बाद जो जल बाहर बहेगा, वह इतना कम होगा कि उससे सिंचाई नहीं हो पाएगी, जो कि अभी हो रही है। सुरंगों के शुरू से अंत तक के भाग में नदियों की पुरानी सतह पर इतना कम पानी रह जाएगा कि उसकी नमी क्षेत्र के लिए कम पड़ जाएगी।
 नमी के अभाव से खेती-पाती, घास और वन सब प्रभावित हो सूखने लगेंगे।
 संभव है, ऐसा तुरंत न हो। लेकिन कुछ वर्षों में जब पहाड़ नमी की कमी से मरुभूमि हो जाएंगे, तब वहां जीवन के साधन समाप्त होने से मनुष्य शायद न रह पाएं। भूमिगत नहरों या सुरंगों के बनने से पानी के स्त्रोत समाप्त हो रहे हैं। पीने का पानी सतह पर आने के बजाय भूमिगत हो नीचे चला जा रहा है। सुरंगों के बनने से पहाड़ों की सतह पर बड़े़-बड़े परिवर्तन हो रहे हैं। जमीन धंस रही है, खेत और मकान ढह रहे हैं, घास-वनस्पति समाप्त हो रही है और वन्यजीव अपने स्थान छोड़ दूर चले जा रहे हैं।

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सुकून चाहिए, सोना नदी अभयारण्य आइए



कोटद्वार (पौड़ी गढ़वाल)। सुहाना मौसम, घने जंगलों से घिरे पहाड़, छोटी सी पहाड़ी नदी, जलस्रोत, कच्चे रास्ते, ऊंची-नीची पगडंडियां, पेड़ों में बने घोंसलों पर कलरव मचाते विहंग, धमाचौकड़ी करते हिरणों का झुंड और नदी के पानी में नहाकर गर्मी भगाते हाथी। गर्मियों की छुट्टियों में सुकून पाने के लिए पहाड़ों का रुख करने वाले पर्यटकों के लिए सोना नदी अभयारण्य बेहतर विकल्प साबित हो सकता है। खास बात यह है कि इस वन्य जीव विहार में न सिर्फ पक्षियों की छह सौ से अधिक प्रजातियां व उपजातियां हैं, बल्कि हाथी, गुलदार, हिरण जैसे वन्य जीव काफी संख्या में हैं।

कोटद्वार तहसील के 301.73 वर्ग किमी वनक्षेत्र में फैले इस अभयारण्य की स्थापना नौ जनवरी 1987 को हुई थी। साल, शीशम, खैर, असना, बांस आदि के सघन वनों से आच्छादित यह अभयारण्य कार्बेट नेशनल पार्क में पाए जाने वाले समस्त वन्य जीवों का प्राकृतिक आवास है। यहां कल-कल बहती सोना व पलैन नदियां वन्यजीवों के साथ-साथ पर्यटकों को भी अपनी ओर आकर्षित करती हैं। वर्षाकाल में यहां एशियाई हाथियों के झुंड आसानी से देखे जा सकते हैं। यह अभयारण्य राजाजी व कार्बेट नेशनल पार्को के हाथियों को संरक्षण प्रदान करने में अहम भूमिका निभा रहा है। इसके अलावा यहां बाघ, तेंदुआ, सांभर, चीतल, काकड़, घुरड़, भालू, अजगर, कोबरा, मगरमच्छ, घड़ियाल आदि आसानी से देखे जा सकते हैं। हिरन की सीरों प्रजाति सिर्फ इसी अभयारण्य में पाई जाती है। यही नहीं, किंग फिशर, ग्रेटर रैकेट टेल ड्रोंगो, क्रेस्टेड सर्पेट ईगल, ग्रीन मैगपाइ आदि सहित यहां करीब 600 प्रजातियों के पक्षी मौजूद हैं। अभयारण्य की विशिष्ट जैव विविधता के चलते वर्ष 1991 में इस क्षेत्र को कार्बेट नेशनल पार्क में शामिल कर लिया गया। कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग की ओर से पर्यटकों के लिए हल्दूपड़ाव, सेंधीखाल, रथुवाढाब, मुंडियापानी, मोरघट्टी में विश्राम गृह बनाए गए हैं।

कैसे पहुंचे अभ्यारण्य
कोटद्वार: गढ़वाल के प्रवेश द्वार 'कोटद्वार' से सोनानदी वन्य जीव विहार में आसानी से पहुंचा जा सकता है। अभयारण्य का प्रवेशद्वार वतनवासा यहां से करीब 60 किमी दूर कोटद्वार-दुगड्डा-रथुवाढाब मार्ग पर स्थित है। कोटद्वार नगर देश के सभी हिस्सों से रेल व सड़क माध्यम से जुड़ा हुआ है। इसके अलावा नजदीकी हवाई अड्डा जौलीग्रांट कोटद्वार से 121 किमी दूर है। एसडीओ डीडी बछुवाण ने बताया कि सोनानदी में आने वाले पर्यटक आने से पूर्व 01386-262235 व 01382-224823 नंबरों पर फैक्स के माध्यम से अभ्यारण्य में विचरण की अनुमति ले सकते हैं। पंजीकरण के लिए कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग के लैंसडौन स्थित मुख्य कार्यालय अथवा कोटद्वार स्थित स्वागत कक्ष में संपर्क किया जा सकता है।

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नदियों व भूजल को प्रदूषित कर रहीं अम्लीय चट्टानें

उत्ताराखंड में विकास कार्यों और भूगर्भीय हलचलों की वजह से अम्लीय चट्टानें नदियों और भूजल में घुलकर पानी को प्रदूषित कर रही हैं। मेन सेंट्रल थ्रस्ट क्षेत्र में स्थित उत्तारकाशी के कुमाल्टी (सैंज) के पास बहने वाली सौर गाड (गदेरा) में एक अरसे से सल्फाइड खनिज चट्टानों की वजह से पानी प्रदूषित हो रहा है। सौर गाड भागीरथी नदी में मिलती है। इस तरह यह प्रदूषित जल गंगा नदी में मिल रहा है।

दून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने इस परिघटना 'एसिड रॉक ड्रेनेज' का पता लगाया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक सल्फाइड खनिज से बनी चट्टानें अपने अम्लीय गुणों के कारण जहरीली भारी धातुओं को पानी में मिलाने में सक्षम हैं।

 वैज्ञानिकों का कहना है कि भूगर्भीय हलचलों के अलावा उत्ताराखंड में जारी विकास कार्यो की वजह से पहाड़ी ढलानों की पुनर्रचना हो रही है जिसकी वजह से सल्फाइड खनिज चट्टाने खुले वातावरण में आ रही हैं। इससे भूगर्भीय जल और नदियों के पानी के विषैले होने का खतरा बढ़ गया है।

दरअसल जब पाइराइट (एक तरह का आयरन सल्फाइड) खुले वातावरण में आता है तो हवा और पानी की क्रिया से सल्फ्यूरिक अम्ल बनता है। यह अम्ल बहकर तांबा, आर्सेनिक, सीसा और पारा जैसी भारी धातुओं को घोलकर भूजल या नदी के पानी में मिला देता है।

 कुछ लोहा लाल या नारंगी या पीले तलछट के रूप में नदियों की तली या भूगर्भीय जलाशय के तल में जम जाता है। सल्फाइड खनिज का आक्सीकरण एल फेरोक्सेडस नामक बैक्टीरिया की वजह से होता है। चट्टानों में लाल से दाग या निशान सल्फाइड खनिज की पहचान हैं।

 इसलिए जरूरी है थ्रस्ट क्षेत्रों में पहाड़ी ढलानों को खुले वातावरण में आने से रोका जाए ताकि सल्फाइड खनिज की वजह से पानी का प्रदूषण रोका जा सके। वैज्ञानिकों का कहना है कि 2003 में भारी मानसून की वजह से कुमाल्टी में मुनस्यारी थ्रस्ट के पास सौर गाड में काफी बड़े क्षेत्र में एसिड रॉक ड्रेनेज देखा गया।

 सैंज में ही सड़क के लिए ताजी कटी पहाड़ी पर भी पाइराइट का ऑक्सीकरण देखा गया। वाडिया संस्थान के निदेशक बीआर अरोड़ा, वरिष्ठ वैज्ञानिकों आरके मजारी और पीके मुखर्जी का कहना है कि जल-स्रोतों के आसपास एसिड रॉक ड्रेनेज पर लगाम लगाकर जल प्रदूषण रोका जा सकता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Ganga. Kalyani, Uttarakhand,


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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River Ganga, upstream Rishikesh



 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The mighty & holy river Ganga or the Ganges starts at DEVPRAYAG (altitude 518 metres) in the state of Uttarakhand, India by the confluence of two holy rivers --- the Bhagirathi (seen on the left, with crystal blue water) & the Alaknanda (seen on the right with muddy flow). Devprayag is well connected with Hrishikesh (69 km) which is in turn well connected with the rest of India by rail, road & air.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Saryu River... Bageshwar flowing from Bharadi, kapkot side. Photo taken from Jarti Peak.


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उत्तराखंड में जितनी भी नदियाँ है वो किरनी पवित्र है.लोगों के पापों को धोते-धोते आज भी ये नदियाँ कितनी पवित्र है इसीलिए इसे देवभूमि कहा जाता है !

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Mnadakini river vew from syalsaur


 

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