Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में

Important Days Related To Uttarakhand - उत्तराखण्ड से संबंधित महत्वपूर्ण दिवस

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
उत्तराखंड के संघर्ष से राज्य के गठन तक जिन महत्वपूर्ण तिथियों ने भूमिका निभायी वे इस प्रकार हैं- आधिकारिक सूत्रों के अनुसार मई 1938 में तत्कालीन ब्रिटिश शासन मे गढ़वाल के श्रीनगर में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों को अपनी परिस्थितियों के अनुसार स्वयं निर्णय लेने तथा अपनी संस्कृति को समृद्ध करकने के आंदोलन का समर्थन किया. सन् 1940 में हल्द्वानी सम्मेलन में बद्रीदत्त पाण्डेय ने पर्वतीय क्षेत्र को विशेष दर्जा तथा अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने कुमांऊ गढ़वाल को पृथक इकाई के रूप में गठन की मांग रखी.

1954 में विधान परिषद के सदस्य इन्द्रसिंह नयाल ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत से पर्वतीय क्षेत्र के लिये पृथक विकास योजना बनाने का आग्रह किया तथा 1955 में फजल अली आयोग ने पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य के रूप में गठित करने की संस्तुति की. वर्ष 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टीटी कृष्णमाचारी ने पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं के निदान के लिये विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया. 

12 मई 1970 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा पर्वतीय क्षेत्र की समस्याओं का निदान राज्य तथा केन्द्र सरकार का दायित्व होने की घोषणा की और 24 जुलाई 1979 में पृथक राज्य के गठन के लिये मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना की गयी. जून 1987 में कर्ण प्रयाग के सर्वदलीय सम्मेलन में उत्तराखंड के गठन के लिये संघर्ष का आह्वान किया तथा नवंबर 1987 में पृथक उत्तराखंड राज्य के गठन के लिये नयी दिल्ली में प्रदर्शन और राष्ट्रपति को ज्ञापन एवं हरिद्वार को भी प्रस्तावित राज्य में शामिल करने की मांग की गयी

पंकज सिंह महर:
30 मई को तिलाड़ी कांड की बरसी मनाई जाती है, वर्ष १९३० में राजा ने यहां पर सैकड़ो निर्दोष लोगों की हत्या करवा दी थी।

तिलाड़ी का मैदान



यह मैदान बड़कोट से 2.5 किलोमीटर दूर है तथा जलियांवाला बाग हत्याकांड को छोड़कर, भारतीय इतिहास के सर्वाधिक निर्दय हत्याकांडों में से एक है। इसे तिलारी कांड कहा जाता है। 30 मई, 1930 को किसानों की एक बड़ी संख्या यहां जुटी एवं गढ़वाल के राजा नरेन्द्र शाह से अपने अधिकारों की मांग की। इनमें से सैकड़ों की निर्मम हत्या राजा के दीवान चक्रधर जुवाल द्वारा कराकर उनके शव को यमुना में फेंक दिया गया।

      तिलारी कांड की जड़ वर्ष 1927-28 के वन बन्दोबस्ती से है जिसके अनुसार वन की सीमाओं का पुननिर्धारण हुआ। नयी सीमाओं से परंपरागत पशु चारागाहों पर अतिक्रमण हुआ जिसके कारण लोगों का आक्रोश बढ़ा। 20 मई, को उन्होंने जंगल में आग लगा दी जिसके कारण वन पदाधिकारियों ने आंदोलन के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। परंतु लोगों ने नेताओं को छुड़ा लिया और वे राजा से मिलने टिहरी की ओर चल पड़े। तभी राजा की सेना ने गोली चलाकर कई विरोधियों को मार डाला और इसीलिये प्रत्येक वर्ष मई में इस दिन को तिलारी शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

दिनेश मन्द्रवाल:
परसों दिनांक ९ जुलाई को बाबा मोहन उत्तराखण्डी जी की पुण्य तिथि थी, ग्यात हो कि बाबा मोहन उत्तराखण्डी गैरसैंण राजधानी की मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे थे और उसी में उनकी मृत्यु हो गई।

बाबा मोहन उत्तराखण्डी को हमारी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि

पंकज सिंह महर:
9 नवम्बर, २००० नये उत्तरांचल (अब उत्तराखण्ड) राज्य का गठन।
१ जनवरी, २००७ को इस राज्य को अपना मूल नाम उत्तराखण्ड प्राप्त हुआ।

पंकज सिंह महर:
१ सितम्बर, १९९४, उत्तराखण्ड आन्दोलन का पहला गोलीकांड खटीमा में हुआ।
२ सितम्बर, १९९४ को मसूरी में आन्दोलनकारियों के साथ गोली कांड हुआ।
१/२ अक्टूबर की काली रात, मुजफ्फर नगर कांड हुआ।

यह तीन तारीखें उत्तराखण्ड के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज रहेंगी।

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