Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में
Information about Uttarakhand Herbs by Sunita Sharma - उत्तराखंड औषधि दर्पण
Sunita Sharma Lakhera:
Melia azadirachta (Neem )
Neem is a fast growing tree that can reach a height of 15-20 m.
Uses:
Neem is mainly grown and used for its health and medicinal properties however the tender shoots of the neem tree are sometimes eaten as a vegetable. The flavour is quite bitter and therefore not enjoyed by many. The flowers are also eaten raw but mainly for its medicinal effects not for nourishment or pleasure. The pulp of the fruit is sometimes consumed by children.
Neem has been used for many medicinal benefits for over three thousand years. Neem flowers, fruits, seeds, oil, leaves, bark and roots have such uses as general antiseptics, anti microbials, treatment of urinary disorders, diarrhorea, fever and bronchitis, skin diseases, septic sores, infected burns, hypertension and inflammatory diseases.
Sunita Sharma Lakhera:
Hibiscus -Gudehal
rubbing the juice of this flower prevents pre - mature greying of hair . Home made oil prepared with combination of coconut oil and Hibiscus flower is a boon for the healthy hair
Pawan Pathak:
उच्च हिमालयी क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ों की पट्टी सिमटती जा रही है। कटान के चलते पिछले दस वर्षों में भोजपत्र के पेड़ों के पेड़ों की संख्या 25 फीसदी तक कम हो गई है, लेकिन राहत भरी बात यह है कि वन विभाग अनुसंधान ने 1200 पौधे मुनस्यारी और रानीखेत नर्सरी में तैयार कर लिए हैं।
एक जमाने में विभिन्न विषयों पर सैकड़ों ग्रंथ भोज पत्र की छाल पर लिखे गए। अब वही प्रजाति संकट में है। मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान एसके सिंह कहते हैं कि भोज पत्र का इस्तेमाल कई चीजों में होता है, इसके कारण इसका अनियंत्रित विदोहन हुआ है। यह हिमालय की आखिरी ट्री लाइन है। भोजपत्र संरक्षण के तहत नर्सरी में तैयार करने का तीन साल का प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। मुनस्यारी में आठ सौ और रानीखेत नर्सरी में चार सौ पौधे तैयार हो गए हैं। विभाग बीज कलेक्शन करने, नर्सरी में पौधे तैयार करने की तकनीक को और बेहतर करने की दिशा में काम कर रहा है। उसके बाद इन पौधों को जंगल में रोपित किया जाएगा।
भोजपत्र के पेड़ उच्च हिमालयी क्षेत्र में 10 हजार फीट की ऊंचाई पर पिथौरागढ़ जिले के गर्व्यांग से आगे कालापानी तक मिलते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में वन विभाग के कर्मचारी नहीं पहुंच पाते। वहां पर भोजपत्र को नुकसान पहुंच रहा है।
भोजपत्र उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की जीवनचर्या के जुड़ा हुआ पेड़ है। इसकी छाल में यदि रोटियां लपेटी जाएं तो वह तीन-चार दिन तक गरम रहती हैं। इसकी पत्तियों से चाय भी बनती है। इसकी लकड़ी हल्की होने के कारण लोग हल बनाने में उपयोग में लाते हैं। रेंजर एनके टम्टा ने बताया कि भोजपत्र के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
खत्म नहीं होगी यह प्रजाति भोजपत्र कई रोगों में कारगर
धारचूला। आयुर्वेद चिकित्सक एमडी डा. नवीन जोशी ने बताया कि भोजपत्र का वानस्पतिक नाम ब्रीच बिटुला है। इसकी पत्तियों की चाय पीने से दमा नहीं होता। छाल का काढ़ा वात रोग में काम आता है। भोजपत्र की पत्ती, खाल, तना सभी का उपयोग किया जाता है। छाल से लोग विभूती तैयार होती है।
source-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20140812a_002115010&ileft=-5&itop=73&zoomRatio=130&AN=20140812a_002115010
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