Author Topic: Information about Uttarakhand Herbs by Sunita Sharma - उत्तराखंड औषधि दर्पण  (Read 5127 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

Our Senior Member Sunita Lakhera Sharma ji will be writing here exclusive information about various herbs found in Uttarkahand and their medicinal use. We are sure that information provided by Sunita Ji will be appreciated by you.

Here is one article which Sunita Lakhera Sharma Ji has posted in another topic in the forum. This article has been written in Garhwali language. 

औषधीय डाला-बूटों कु हमर जीवन दगडी सीधू सम्बन्ध च जैक वास्ता हम सभीयुं त जागरूक हूँ चेंद ! उत्तराखंड त अमूल्य संजीवनी वाटिका च जैकी जानकारी हम सभयूं ते हूण बहुत जरूरी च, निथर हमर प्राकृतिक संपदा केवल कुछ हथो मा सिमट जैली ! अगर हम सैह ढंग से जीण चाणा छंवा त अपर आसपास क वनस्पति ते न केवल समझन प्वाडल बल्कि वेक सुरक्षा वास्ता काम भी कन प्वाड़ल ! आधुनिक [एलोपथिक] दवै आराम त दीन्दी च पर वेकि दगड न जाने कथsकू आफत भी दगड़ मा लन्दिन ! हमर पुरण जमsने कू वैध हकीमो कु इलाज मा जू चमत्कार हून्दी छयाई व् यु नै दवाईयों मा कख छ ! सबसे पैली त समस्त वनस्पति जगत और मनखि जीवन मा परस्पर मेल हूण चेणू च ! हमर देस कु रिसी मुनियों न वेद , पुराणों , उपनिषदों अर अनेक धार्मिक ग्रंथों मा हमर यूँ संसाधनों की जानकारी मिलदी ! यु लेख अपुर राज्य मा ही न बल्कि हर घेर अर दरोज तक 'हर्बलिज्म' फैलाण क वास्ता उठायु गयु कोसिस/कदम च ! 'हर्बलिज्म' मतलब जड़ी बूटीयूं कु संसार क आधुनिक धारा दगडी विकास व् प्रचार /प्रसार करन च ! १५ -१७ शताब्दी ,जड़ी बूटी कुण स्वर्ण युग छयाई ! जड़ी बूटी कु सिधांत हमर आयुर्वेद ,चीनी अर यूनानी पारम्परिक हकीमों कु माध्यम च ! विश्व स्वास्थ्य सगठन कु अनुमानुसार आज क दुनिया कु ८०% आबादी कै हद तक अपर इलाज घरेलू चिकित्षा अपने की कर लिंदीन !प्राकृतिक चिकित्सक दुनिया भर मा २/३ % से अधिक जातिया जे मा अनुमानित रूप मा ३५००० औषधि गुंणों से भरपूर छन !हर्बल दवे बीज / कलम पद्धति से उगै जै सक्दन ,आर थोडा बहुत खर्च कं अपर पुंगडीयूं ,घर ,बगीचों मा उगै जै सकदन ! दुनिया भर मा भी लोग ईं दिशा मा जागरूक छन्न!

वैध डाली बूटयूं कु विभिन्न हिस्सों -जेड़, टेनी ,पत्ता ,फूल अर फलों कु रसायन / सुखू पौडर बने कन अपर रोगियों कु उपचार करदन !जातिगत वनस्पति कु अध्यन बहुत जरुरी च ! हमर उत्तराखंड मा त यु जड़ी बूटियों कु अपार संपदा च ! हमर उद्देश्य हरेक घोर मा एकी जागरूकता फैलाण कु अभियान च ! जै से धन व् समय कु बर्बाद नि करी कण हम अपर आस पास की वनस्पति कु सेह इस्तमाल कर सकवां !

देवभूमि उत्तराखंड दुर्लभ जड़ी बूटियों कुण संसार मा प्रसिद्ध च पण आधुनिक धारा मा ईंते पिछने धकेलनायी छन यु एलोपथिक सत्ताधारी ! उत्तराखंड सासन द्वारा स्वास्थ्य पर्यटन व् जड़ी बुटीयु का विकास पर ध्यान नि दीणा छन जै की वजह से लोगों ते एक यांका बारा ज्ञान नी च ! बाबा रामदेव ,गुरुकुल ,बैधनाथ अर डाबर जन और भी यीन पद्धति पर आज भी अडिग छन ! कतका यन भी वैध छन जोंते अपर ज्ञान औरों त बटण मा डैर लगदी, न वा कखी वु मै से आग्ने चली जाव !
आज इन्टरनेट कु युग छ ! अर ये माध्यम से न जाने कथका समाजसेवी यीं दिसा मा अग्रसर छन ! यूँ सब मा आजकल डॉ अरुण बडोनी जी कु नाम शिरोमणि [सर्वोपरि] चलणु च च जौन अपर फील्ड रिसर्च कु अध्यन जनता तक अपर गैर सरकारी संस्था -शेर -( सोसाईटी आफ हिमालयन एन्वैर्नमेंट रिसर्च कू माध्यम से पौंछाणा छन !
उत्तराखंड कु ज्यादातर क्षेत्र पहाड़ी हूण से ज्यादातर इखा क लोग गुरबत अर अभावग्रस्त जीवन यापन करणा छन ! इन परिस्तिथि मा छुट- मुट रोगों क वास्ता ये लोग अपर इलाज करी सकदन ,साथ ही बड से बड रोगों से अफु ते सुरक्षित रख सक्दन ! यदि हर गौं कु हर सदस्य अपर आसपास कु वन संपदा अर घास -पात कु जानकार व्हेह जाली त हर घर मा वैध ह्वाला अर यूँ अंग्रेजी दवे ते बस आपातकाल मा ही इस्तेमाल कारला ! पण उत्तराखंड की प्राकृतिक स्वास्थ्य केन्द्रों कु स्तिथि ठीक नि च ! दुर्लभ व् संजीवनी वर्ग कु औषधि कु महत्व दीं कु दगडी वैधों कु शिक्षा ,व् ये ज्ञान कु प्रयोग व् प्रचार वास्ता सरकारी - गैर सरकारी स्वयं सेवियों ते यीं दिशा मा कार्य करनी चेंद ! आवा हम सब एक सजग उत्तराखंडी बणिक अपर औषधि ज्ञान बढ़ौला ! सरकार ते भी शोधकर्ता अर किसानो त यीं दिशा मा बढ़ावा दीण चेन्दु ! जै उत्तराखंड !

M S  Mehta




Sunita Sharma Lakhera

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नमस्कार मेरा सभी बड भेजी दीदियों , छुटु  भाई  भूलियों त ! औषिधि कु ज्ञान धरा माँ आप सभी कु सादर स्वागत च !
आज कु भागदौड़ भरी जिन्दगी मा  हमते अपर स्वास्थ्य की जरह भी परवाह  नि रांदी  जैक वजह से  बुढापा से पेल ही दवई  पर जीन परद ! भाँती भाँती कु रोग मा सबसे ज्यादा मधुमेह कु रोग चिंता कु विशे बन्यू च ! विश्व माँ 80 % कु आबादी ये से ही दुखी च ! अस्त व्यस्त जीन कु  अंदाज , खाण  पीण मा लापरवाही हमर स्वास्थ्य त पंगु बनाण पर लग्युं च ! बड़ों की दगडी आजकल  छुटु  बच्चों भी एसे परेशान छन !
हमर  प्रदेश माँ जड़ी बूट आर वैकु ज्ञान कु कुई कमी नि च ! कमी त  बस जागरूकता कु च !  जय भी घरों मा  जड़ी बूटियों कुण प्रेम हूंद वख परिवार निरोगी  छन किलैकी जब जय भी रोग माँ वू लोग पीड़ित हवाल त  उनते अपर इलाज वास्ता कखी  भगण  नि पर्दी ! पण  आधुनिकता कु दौड़ माँ लोग अप्रि औषधीय ज्ञान कु तिलांजली दीना छन ! आर वू भी अंग्रेजी द्वी वास्ता जैसे तुरंत आराम दीन वाल समझी जान्द ! पण  वैकी  दगडी  न जाने कतका होर  बीमारी हम अपर गल  लगा लेनद छ ! अर फिर शुरू वैह  जंद च अनंत दवई  कु सिलसिला ,समय अर धन की बर्बादी भी ! जन बोल्दन छन पेल स्वास्थ्य फिर परमार्थ त  हम सभियुं त  सजग हूण पडल ! औषधीय जानकारी एक दूसरा तक पहुंचान कुण  लोग्युं कु रूचि वैकी  विस्तारं मा जरूरी च ! काफी शोध अर  लोगों दगड सम्पर्क करण कु बाद जू औषधि मैत्ते  मधुमेह वास्ता बढ़िया लगी वेते  मी आपकू समक्ष  रखना रौलू !

Sunita Sharma Lakhera

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CULTIVATE----HAMP---- HIMALAYAN AROMATIC and MEDICINAL PLANTS-

-It is a matter of fact that in most parts of mountain
regions within Himalaya, the agriculture is sub marginal except in rare small pockets of fertile valley land. Because of further division of already very small land holding the return from agriculture is on decline. It is progressively and miserably failing to full time employment and adequate income to the rising population. Therefore, migration from the rural areas of mountain is motivated largely by economic pressure and better amenities and facilities in urban areas. Due to this reason the women of the rural areas are backbone and very hub of agriculture practices. This process has to be arrested in the larger interest of nation. Any strategy of development must necessarily taken into account the living condition of the local populace. Ergo we must also cum diverting surplus population from traditional agriculture practice by alternative gainful employment what striving for rational utilization of the biodiversity and rapid all round development. Therefore, in this connection the cultivation of promising MAPs will not only yield far-reaching lucrative results but will also prove a vital point in creating job opportunities as well as uplifting the socio-economic condition of the mountain people.

Sunita Sharma Lakhera

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linum usitatissimum plants or अलसी ( एक चमत्कार )


अलसी एक चमत्कारी आहार है। इसके नियमित सेवन से कई प्रकार के रोगों से बचा जा सकता है। अलसी में ओमेगा३ पाया जाता है। यह हमें कई रोगों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। ओमेगा३ शरीर के अंदर नहीं बनता इसे भोजन द्वारा ही ग्रहण किया जा सकता है। शाकाहारियों के लिए अलसी से अच्छा इसका कोई और स्रोत नहीं है।अलसी टीबी, कैंसर, हृदयरोग, मधुमेह, उच्चरक्तचाप, कब्ज, बवासीर, जोड़ों का दर्द, एग्जिमा, ब्रिटल नेल एण्ड ब्रिटल हेयर जैसे नाना प्रकार के रोगों से आपको बचा सकती है। यह शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रोल को बढ़ाती है और खराब कोलेस्ट्रोल को कम करती है। धमनियों में जमे कोलेस्ट्रोल को साफ करती है। पेट की सफाई करती है। अर्थात यह प्रकृति का सफाई आहार है।
अलसी को धीमी आँच पर हल्का भून लें। फिर मिक्सर में दरदरा पीस कर किसी एयर टाइट डिब्बे में भरकर रख लें। रोज सुबह-शाम एक-एक चम्मच पावडर पानी के साथ लें। इसे सब्जी या दाल में मिलाकर भी लिया जा सकता है। एक चम्मच अलसी पावडर को 360 मिलीलीटर पानी में तब तक धीमी आँच पर पकाएँ जब तक कि यह पानी आधा न रह जाए। थोड़ा ठंडा होने पर शहद या शकर मिलाकर सेवन करें। सर्दी, खाँसी, जुकाम में यह चाय दिन में दो-तीन बार सेवन की जा सकती है।

Sunita Sharma Lakhera

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Melia azadirachta (Neem )

Neem is a fast growing tree that can reach a height of 15-20 m.
Uses:
Neem is mainly grown and used for its health and medicinal properties however the tender shoots of the neem tree are sometimes eaten as a vegetable. The flavour is quite bitter and therefore not enjoyed by many. The flowers are also eaten raw but mainly for its medicinal effects not for nourishment or pleasure. The pulp of the fruit is sometimes consumed by children.
Neem has been used for many medicinal benefits for over three thousand years. Neem flowers, fruits, seeds, oil, leaves, bark and roots have such uses as general antiseptics, anti microbials, treatment of urinary disorders, diarrhorea, fever and bronchitis, skin diseases, septic sores, infected burns, hypertension and inflammatory diseases.

Sunita Sharma Lakhera

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Melia azadirachta (Neem )

Neem is a fast growing tree that can reach a height of 15-20 m.
Uses:
Neem is mainly grown and used for its health and medicinal properties however the tender shoots of the neem tree are sometimes eaten as a vegetable. The flavour is quite bitter and therefore not enjoyed by many. The flowers are also eaten raw but mainly for its medicinal effects not for nourishment or pleasure. The pulp of the fruit is sometimes consumed by children.
Neem has been used for many medicinal benefits for over three thousand years. Neem flowers, fruits, seeds, oil, leaves, bark and roots have such uses as general antiseptics, anti microbials, treatment of urinary disorders, diarrhorea, fever and bronchitis, skin diseases, septic sores, infected burns, hypertension and inflammatory diseases.

Sunita Sharma Lakhera

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Hibiscus -Gudehal
rubbing the juice of this flower prevents pre - mature greying of hair . Home made oil prepared with combination of coconut oil and Hibiscus flower is a boon for the healthy hair

Pawan Pathak

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 उच्च हिमालयी क्षेत्र में भोजपत्र के पेड़ों की पट्टी सिमटती जा रही है। कटान के चलते पिछले दस वर्षों में भोजपत्र के पेड़ों के पेड़ों की संख्या 25 फीसदी तक कम हो गई है, लेकिन राहत भरी बात यह है कि वन विभाग अनुसंधान ने 1200 पौधे मुनस्यारी और रानीखेत नर्सरी में तैयार कर लिए हैं।
एक जमाने में विभिन्न विषयों पर सैकड़ों ग्रंथ भोज पत्र की छाल पर लिखे गए। अब वही प्रजाति संकट में है। मुख्य वन संरक्षक अनुसंधान एसके सिंह कहते हैं कि भोज पत्र का इस्तेमाल कई चीजों में होता है, इसके कारण इसका अनियंत्रित विदोहन हुआ है। यह हिमालय की आखिरी ट्री लाइन है। भोजपत्र संरक्षण के तहत नर्सरी में तैयार करने का तीन साल का प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। मुनस्यारी में आठ सौ और रानीखेत नर्सरी में चार सौ पौधे तैयार हो गए हैं। विभाग बीज कलेक्शन करने, नर्सरी में पौधे तैयार करने की तकनीक को और बेहतर करने की दिशा में काम कर रहा है। उसके बाद इन पौधों को जंगल में रोपित किया जाएगा।
भोजपत्र के पेड़ उच्च हिमालयी क्षेत्र में 10 हजार फीट की ऊंचाई पर पिथौरागढ़ जिले के गर्व्यांग से आगे कालापानी तक मिलते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में वन विभाग के कर्मचारी नहीं पहुंच पाते। वहां पर भोजपत्र को नुकसान पहुंच रहा है।
भोजपत्र उच्च हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले लोगों की जीवनचर्या के जुड़ा हुआ पेड़ है। इसकी छाल में यदि रोटियां लपेटी जाएं तो वह तीन-चार दिन तक गरम रहती हैं। इसकी पत्तियों से चाय भी बनती है। इसकी लकड़ी हल्की होने के कारण लोग हल बनाने में उपयोग में लाते हैं। रेंजर एनके टम्टा ने बताया कि भोजपत्र के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
खत्म नहीं होगी यह प्रजाति भोजपत्र कई रोगों में कारगर
धारचूला। आयुर्वेद चिकित्सक एमडी डा. नवीन जोशी ने बताया कि भोजपत्र का वानस्पतिक नाम ब्रीच बिटुला है। इसकी पत्तियों की चाय पीने से दमा नहीं होता। छाल का काढ़ा वात रोग में काम आता है। भोजपत्र की पत्ती, खाल, तना सभी का उपयोग किया जाता है। छाल से लोग विभूती तैयार होती है।


source-http://epaper.amarujala.com/svww_zoomart.php?Artname=20140812a_002115010&ileft=-5&itop=73&zoomRatio=130&AN=20140812a_002115010

 

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