Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में

It Happens Only In Uttarakhand - यह केवल उत्तराखंड में होता है ?

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एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

जब तक बकरा अपना शरीर नहीं हिलाता उसकी बलि नहीं
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उत्तराखंड की देवी भूमि जहाँ लोगो की देवी देवताओ पर अटूट धार्मिक आस्था है ! वैसे बलि प्रथा का सारे हिंदुस्तान पर समय समय पर विरोध होता रहा है ! लेकिन हर जगह पर आज भी बलि प्रथा जारी है !

उत्तराखंड में बलि प्रथा से जुडी यह भी प्रथा है कि बकरे कि बलि से पहले उस पर पानी और चावल, फूल आदि छिड़का जाता है और जब तक बकरा अपना पूरा बदन नहीं हिलाता, उसकी बलि नहीं दी जाती ! जिसे स्थानीय भाषा मे कहते है " बकरा बरकाना " !  लोगो की मान्यता है जब बकरा अपनी शरीर हो हिलाता है इसका मतलब ही कि भगवान् को उनकी पूजा स्वीकार है और तभी उसकी बलि दी जाती है अन्यथा नहीं !

Rawat_72:

--- Quote from: एम.एस. मेहता /M S Mehta on May 30, 2009, 11:34:20 AM ---
जब तक बकरा अपना शरीर नहीं हिलाता उसकी बलि नहीं
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उत्तराखंड की देवी भूमि जहाँ लोगो की देवी देवताओ पर अटूट धार्मिक आस्था है ! वैसे बलि प्रथा का सारे हिंदुस्तान पर समय समय पर विरोध होता रहा है ! लेकिन हर जगह पर आज भी बलि प्रथा जारी है !

उत्तराखंड में बलि प्रथा से जुडी यह भी प्रथा है कि बकरे कि बलि से पहले उस पर पानी और चावल, फूल आदि छिड़का जाता है और जब तक बकरा अपना पूरा बदन नहीं हिलाता, उसकी बलि नहीं दी जाती ! जिसे स्थानीय भाषा मे कहते है " बकरा बरकाना " !  लोगो की मान्यता है जब बकरा अपनी शरीर हो हिलाता है इसका मतलब ही कि भगवान् को उनकी पूजा स्वीकार है और तभी उसकी बलि दी जाती है अन्यथा नहीं !

--- End quote ---


Mehta ji Janwar ke sar par paani daloge toh wo use jhadega hee…
lekin log andh vishwash mein itne jakade hue hai unhe itne chooti se baat samajh nahi aati.

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:

Information Provided by our Member : Rajen Ji

पिथोरागढ़ जिले में "हिलजात्रा" महोत्सव:

पूरे बिश्व में मेले और त्यौहार सामाजिक गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण अंग हैं.  यह सभी जगह अलग-अलग ढंग से मनाये जाते हैं.  इन परंपरागत मेलों और त्योहारों का सम्बन्ध धार्मिक विश्वासों, लोकमतों, स्थानीय रीति रिवाजों, बदलते मौसमों, फसलों आदि से है.  हमारे देश में अनेक धर्म और उनसे जुड़े केवल बिभिन्न उत्सव ही नहीं हैं बल्कि अपनी विविध साँस्कृतिक परम्परों के कारण उन्हें अलग-अलग ढंग से मनाया भी जाता है.  इससे प्रकार कुमाओं, पिथोरागढ़ जनपद में कुछ उत्सव समारोह पूर्वक मनाये जाते हैं, हिल्जात्रा उनमें से एक है.
जनपद पिथोरागढ़ में "कुमौड़" गाँव में गौर-महेश्वर पर्व के आठ दिन बाद प्रतिवर्ष हिलजात्रा का आयोजन होता है.  यह उत्सव भादो माह में मनाया जाता है.  मुखौटा नृत्य-नाटिका के रूप में मनाये जाने वाले इस महोत्सव का कुख्य पात्र लाखिया भूत, महादेव शिव का सबसे प्रिय गण, बीरभद्र मन जाता है.  प्रतिवर्ष इस तिथि पर लाखिया भूत के आर्शीवाद को मंगल और खुशहाली का प्रतीक मन जाता है.  हिलजात्रा उत्सव पूरी तरह कृषि से सम्बन्धित माना गया है. 

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
सामेश्वर या दुर्योधन पूजा
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टौन्स, यमुना, भागीरथी, बलंगाना एवं भीलंगान की ऊपरी घाटियों में दुर्योधन की पूजा की जाती है।

पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड के श्रीनगर के उफल्डा गांव में नागराजा देवता मंदिर में हर तीन साल बाद एक मेला लगता है, जिसमें इस गांव के देश-विदेश में बसे ग्रामवासी भी भाग लेते हैं। इस अवसर पर ४० किलो गेहूं के आटे को बड़े-बड़े मुगदरों से गूंथा जाता है और इस आटे की एक ही रोटी बनाकर इसे धूनी में ३ घंटे के लिये रख दिया जाता है। उसके बाद इस रोटी से ही भगवान को भोग लगाया जाता है और इसी को प्रसाद स्वरुप बांटा जाता है।

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