शहीद मोहन चन्द्र शर्मा (मासीवाल) जी को मेरा शत शत नमन.
ईश्वर उनकी आत्मा को शाँती दें और शोक संतृप्त परिवार को यह दुख सहने की शाक्ती दें. उनके जाने से दिल्ली पुलिस ने एक जाँबाज आफ़िसर खो दिया है. देश को उनकी कमी सदा खलेगी.
यह उनका बलिदान ही था कि उनकी अन्तिम यात्रा में भारी भीड़ शामिल हुई. इसमें विभिन्न पुलिस विभागों, IB, आदि के आफ़िसर, कर्मचारी, उनके पूर्व साथी, रिश्तेदार एवं विभिन्न गणमान व्यक्ति तो थे ही साथ ही दिल्ली में उत्तराँचल के प्रवासी बन्धु भी काफ़ी आए थे. इनसे भी बड़ी बात है कि दिल्ली के आम नागरिक जो कि उनसे पूर्व परिचित नहीं थे, वे भी भारी संख्या में निगम बोध घाट पहुँचे थे. हमने यह तो देखा है कि सैनिकों की शहादत पर देश की जनता उनको काफ़ी सम्मान देती है पर यह शायद पहली बार हुआ कि एक पुलिस वाले की अन्तिम यात्रा में इतना बड़ा जनसमुदाय शामिल हुआ वह भी तब जब देश में पुलिस की छवि कोई अच्छी नही मानी जाती. यह उनका बलिदान ही था कि लोग उनकी जय-जयकार "शाहीद मोहन चन्द्र शर्मा अमर रहें" के साथ-साथ "दिल्ली पुलिस जिन्दाबाद" के नारे भी लगा रहे थे. उनकी शहादत से दिल्ली पुलिस का सिर भी ऊँचा हो गया है.
वे मेरे ही गाँव आदिग्राम कनौणियाँ, पट्टी तल्ला गेवाड़, पोस्ट आफ़िस मासी (तिमिलखाल - पसीखाल), तहसील चौखुटिया, अल्मोड़ा के मूल निवासी थे. उनका पैतृक surname मासीवाल था.
इस वर्ष वे जून में देव पूजन के लिए परिवार सहित गाँव आए थे. हम लोग भी देव पूजन (जागर बैसी)के लिए उसी दौरान गाँव गये हुए थे जैसा कि इस फ़ोरम में अन्यत्र मैं इस बारे में विस्तार से लिख चुका हूँ. उनके परिवार का भी नव-अवतार गढ़ाने और बैसी का कार्यक्रम था. पर ४-५ दिन की जागर के बाद जब देवता अवतरित नहीं हुए तो उन्होंने सत्यनारायण भगवान की कथा कराई और पूरे गाँव को भोज दिया था. उनके साथ उनके अंगरक्षक भी आए थे जिनका रहने खाने की व्यवस्था उन्होंने मासी बाजार में कराई थी. मासी के भूमियाँ मन्दिर में वे घंटी भी चढ़ा गये थे. उन्होंने हमारे गाँव "आदिग्राम कनौणियाँ" का नाम भी सुर्खियों में ला दिया और हम ग्राम निवासियों का सिर भी ऊँचा कर दिया है.
सरकार से विनम्र प्रार्थना है कि उनके परिवार का उचित सम्मान किया जाए ओर उन्हें समय के साथ भुला न दिया जाए.
अन्त में इतना ही कहना चाहुँगा कि " ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना"
वीरेन्द्र सिंह बिष्ट