प्रेरणादायी परंपरा है पानी पंचायत
चम्बा (टिहरी)। विकास योजनाओं के अलावा सामूहिक भागीदारी के कामों को संपन्न कराने में अकसर ग्रामीण आपस में भिड़ जाते हैं। खासकर सिंचाई के पानी का सार्वजनिक बंटवारा ऐसा काम है, जिसका विवादों से चोली-दामन का साथ रहता है, लेकिन जड़धार गांव की सदियों पुरानी परंपरा 'पानी पंचायत' दूसरे गांवों के लिए मिसाल बनकर उभरी है। दरअसल, सिंचाई के लिए पानी का बंटवारा इसी पंचायत की देखरेख में किया जाता है। किसी विवाद की स्थिति में ग्रामीण आपस में लड़ने की बजाय पंचायत का निर्णय ही मानते हैं।
टिहरी जनपद के चम्बा प्रखंड की ग्राम पंचायत जड़धार गांव में सदियों पुरानी पानी पंचायत आज भी कार्य कर रही है। पंचायत का कार्य है किसानों की जरूरत के अनुसार खेतों तक पानी पहुंचाना और समय-समय फसलों की सिंचाई करना। जड़धार गांव लगभग चार सौ परिवारों वाला हेंवलघाटी का सबसे बड़ा गांव है। यहां के लोगों के नागणी में बड़े भू-भाग पर सिंचित खेत हैं।
खेतों की सिंचाई के लिए सदियों पुरानी व्यवस्था है, जो पानी पंचायत या जल समिति द्वारा तय की जाती है। सिंचित खेतों में मुख्य रूप से धान और गेहूं की फसल ली जाती है। गांव के बड़े-बुर्जुगों ने बडी सूझबूझ से ऐसी व्यवस्था बनाई की सभी को पानी मिल सके और किसी तरह का विवाद न हो। हालांकि, पानी पंचायत का गठन कब हुआ, किसी को पता नहीं, लेकिन गांव के बुजुर्ग कहते हैं कि यह सदियों पुरानी परंपरा है।
गांव के समाजसेवी विजय जड़धारी का कहना है, कि पानी पंचायत न होती, तो पानी के बंटवारे को लेकर लोग आपस में झगड़ते, सभी को एक साथ पानी चाहिए तो यह संभव न होता। ऐसे में आज भी पंचायत के लोग बारी-बारी से जरूरत के अनुसार गूल के जरिए खेतों तक पानी पहुँचाते हैं। इसमें सभी समुदायों की भागीदारी होती है और किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता।
सिंचाई के बदले पंचायत के लोगों को धन नहीं, बल्कि अनाज दिया जाता है, वह भी उपज के अनुसार। पंचायत का चुनाव हर वर्ष होता है। खास बात यह है कि जिन नियम- कायदों के आधार पर विवादों के निर्णय लिये जाते है, वे लिखित नहीं बल्कि मुंहजबानी हैं। काम का बंटवारा, कब, कौन, कहां, किसके खेतों में पानी देगा, कब बैठक होगी,
काम के बदले लिये अनाज का बंटवारा आदि कार्य भी सिर्फ आपसी विश्वास के आधार पर मुंहजबानी ही किए जाते हैं। खास बात यह है कि पंचायत में लिए निर्णय पर कोई सदस्य मुकर नहीं सकता।