Author Topic: UKD: Regional Party - उत्तराखंड क्रांति दल: उत्तराखंड की क्षेत्रीय पार्टी  (Read 97542 times)

पंकज सिंह महर

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खुद को साबित कर पाएगा उक्रांद?

देहरादून, जागरण संवाददाता: राजनीतिक दलों के लिए खुद को साबित करने का चुनाव से बेहतर मौका और क्या हो सकता है। भाजपा-कांग्रेस ही नहीं, उक्रांद समेत अन्य छोटे दलों के लिए पंचायत चुनाव ऐसा मौका है, जब वह जनता पर अपनी पकड़ का वास्तविक आकलन कर सकते हैं, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या ये दल, खासकर उक्रांद खुद को साबित कर भी पाएंगे? पंचायत चुनाव हालांकि संसदीय और विधायी चुनावों का आईना नहीं होते हैं, लेकिन बावजूद इसके इनकी अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता। राजनीतिक दलों के लिए यही अवसर खाद-पानी का काम करते हैं, लेकिन उत्तराखंड में भाजपा-कांग्रेस को छोड़कर अन्य सभी दलों की हालत पतली नजर आ रही है। उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद यहां दो प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस ही प्रमुख रूप से राजनीतिक क्षितिज पर उभरकर सामने आए, जबकि उक्रांद जैसा क्षेत्रीय दल, जो पृथक उत्तराखंड के नारे के साथ अस्तित्व में आया था, पृष्ठभूमि में चला गया। खासकर राज्य गठन के बाद तो उक्रांद की जमीन खिसकती ही चली गई और सत्ता में भागीदार बनने के बाद तो उसके सामने झंडे-डंडे बोकने वालों का संकट तक खड़ा हो गया। अब सवाल यह है कि क्या उक्रांद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अपनी जगह बना पाएगा? राजनीतिक विश्लेषकों की नजर से देखें तो उक्रांद के सामने आज खुद का अस्तित्व बचाए रखने का भी संकट खड़ा हो गया है। माना जाता है कि सत्ता में भागीदारी किसी भी राजनीतिक दल के लिए संजीवनी का काम करती है, लेकिन उक्रांद के मामले में स्थिति इसके ठीक उलट है। दल के जितने चेहरे थे, लगभग पूरी तरह छितर गए हैं। उन्हें कलेक्ट करना ही उसके सामने एक बड़ी चुनौती है। ऐसे मौके पर जब भाजपा व कांगे्रस भी उथल-पुथल के दौर से गुजर रहे हैं, उक्रांद स्वयं को मजबूती से स्थापित कर सकता था, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। दल में जितने नेता हैं, उतनी ही धाराएं बह रही हैं। न किसी नेता की बात में स्थायित्व है और कोई रीति-नीति। विचारों का कोई प्रभाव नहीं है। हालांकि उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष डा. नारायण सिंह जंतवाल दावा कर रहे हैं कि पंचायत चुनाव में उक्रांद मजबूती के साथ उभरकर सामने आएगा। उनका कहना है कि भविष्य में दल अंतिम व्यक्ति तक अपनी घुसपैठ बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। डा. जंतवाल की ये बातें जबानी खर्च ज्यादा प्रतीत हो रही हैं। एकमात्र क्षेत्रीय दल होने के बावजूद उक्रांद का जो हश्र दिख रहा है, उससे तो लगता नहीं है कि पंचायत चुनाव में वह स्वयं को कहीं खड़ा कर पाएगा।  

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Both BJP and Congress have ruled in Uttarakhand. However, both of them unable to keep Uttarakhand on developmental track. Now it  is UKD which is the only  regional party in UK., which has yet to rule. The scarification of UKD will always be remembered. It  would be nice if UKD get  a chance to rule in UK


खुद को साबित कर पाएगा उक्रांद?

देहरादून, जागरण संवाददाता: राजनीतिक दलों के लिए खुद को साबित करने का चुनाव से बेहतर मौका और क्या हो सकता है। भाजपा-कांग्रेस ही नहीं, उक्रांद समेत अन्य छोटे दलों के लिए पंचायत चुनाव ऐसा मौका है, जब वह जनता पर अपनी पकड़ का वास्तविक आकलन कर सकते हैं, लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या ये दल, खासकर उक्रांद खुद को साबित कर भी पाएंगे? पंचायत चुनाव हालांकि संसदीय और विधायी चुनावों का आईना नहीं होते हैं, लेकिन बावजूद इसके इनकी अहमियत को कम करके नहीं आंका जा सकता। राजनीतिक दलों के लिए यही अवसर खाद-पानी का काम करते हैं, लेकिन उत्तराखंड में भाजपा-कांग्रेस को छोड़कर अन्य सभी दलों की हालत पतली नजर आ रही है। उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद यहां दो प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस ही प्रमुख रूप से राजनीतिक क्षितिज पर उभरकर सामने आए, जबकि उक्रांद जैसा क्षेत्रीय दल, जो पृथक उत्तराखंड के नारे के साथ अस्तित्व में आया था, पृष्ठभूमि में चला गया। खासकर राज्य गठन के बाद तो उक्रांद की जमीन खिसकती ही चली गई और सत्ता में भागीदार बनने के बाद तो उसके सामने झंडे-डंडे बोकने वालों का संकट तक खड़ा हो गया। अब सवाल यह है कि क्या उक्रांद त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अपनी जगह बना पाएगा? राजनीतिक विश्लेषकों की नजर से देखें तो उक्रांद के सामने आज खुद का अस्तित्व बचाए रखने का भी संकट खड़ा हो गया है। माना जाता है कि सत्ता में भागीदारी किसी भी राजनीतिक दल के लिए संजीवनी का काम करती है, लेकिन उक्रांद के मामले में स्थिति इसके ठीक उलट है। दल के जितने चेहरे थे, लगभग पूरी तरह छितर गए हैं। उन्हें कलेक्ट करना ही उसके सामने एक बड़ी चुनौती है। ऐसे मौके पर जब भाजपा व कांगे्रस भी उथल-पुथल के दौर से गुजर रहे हैं, उक्रांद स्वयं को मजबूती से स्थापित कर सकता था, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा है। दल में जितने नेता हैं, उतनी ही धाराएं बह रही हैं। न किसी नेता की बात में स्थायित्व है और कोई रीति-नीति। विचारों का कोई प्रभाव नहीं है। हालांकि उक्रांद के केंद्रीय अध्यक्ष डा. नारायण सिंह जंतवाल दावा कर रहे हैं कि पंचायत चुनाव में उक्रांद मजबूती के साथ उभरकर सामने आएगा। उनका कहना है कि भविष्य में दल अंतिम व्यक्ति तक अपनी घुसपैठ बनाने की रणनीति पर काम कर रहा है। डा. जंतवाल की ये बातें जबानी खर्च ज्यादा प्रतीत हो रही हैं। एकमात्र क्षेत्रीय दल होने के बावजूद उक्रांद का जो हश्र दिख रहा है, उससे तो लगता नहीं है कि पंचायत चुनाव में वह स्वयं को कहीं खड़ा कर पाएगा।  


हेम पन्त

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देहरादून। भारतीय जनता पार्टी के साथ सत्ता में भागीदार उत्तराखंड क्रांति दल ने इस चुनाव में बगैर लड़े ही हथियार डाल दिए। सहयोगी दल की कृपा से जो मिला उसी पर संतोष कर लिया। आलम यह रहा कि उक्रांद ने तीन जिलों में जिपं अध्यक्ष के प्रत्याशी घोषित किए पर किसी ने भी नामांकन तक नहीं किया।

लगता है खुद को क्षेत्रीय दल कहने वाला उक्रांद राज्य में मंत्री का एक पद लेकर ही संतुष्ट है। शायद यही कारण है कि पंचायत चुनाव में जो भाजपा की कृपा से मिला उसी को सब कुछ मान लिया। उक्रांद ने टिहरी, रुद्रप्रयाग और चंपावत जिले में जिपं अध्यक्ष पद के लिए पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों की घोषणा की थी। टिहरी जिले में तो उक्रांद के पास जिपं के आठ सदस्य थे। इसके बाद भी किसी भी प्रत्याशी ने नामांकन नहीं कराया। चुनाव से पहले भाजपा के साथ गठजोड़ की बात जोर-शोर से करने वाले नेता इस मुद्दे पर मौन साधे बैठे रहे। उक्रांद के लिए संतोष की बात यह हो सकती है कि इस बार ब्लाक प्रमुख के तीन पद उसके हिस्से में आ गए। टिहरी जिले के नरेंद्र नगर और कीर्तिनगर व पौड़ी जिले के देवप्रयाग विकास खंड में उक्रांद का प्रत्याशी ब्लाक प्रमुख चुना गया है। इसी प्रकार चंपावत व रुद्रप्रयाग जिले में जिला पंचायत उपाध्यक्ष का पद भी उक्रांद के खाते में गया है। इस पद के लिए उक्रांद को नौ मत मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी को छह मतों से ही संतोष करना पड़ा। सूत्रों की मानें तो उक्रांद को ये सभी पद भारतीय जनता पार्टी के साथ स्थानीय स्तर पर हुए समझौते के तहत ही मिले हैं। उक्रांद ने किसी भी स्तर पर सीधे अपनी दम पर चुनाव लड़ने की कोशिश नहीं की।

हेम पन्त

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रामनगर (नैनीताल)। उत्तराखंड क्रांति दल की केन्द्रीय कार्यसमिति की दो दिवसीय बैठक में तय हुआ कि राज्य राजधानी गैरसेंण के अलावा अन्य कहीं भी स्वीकार नहीं की जायेगी।

रविवार को केन्द्रीय अध्यक्ष नारायण सिंह जंतवाल की अध्यक्षता में संपन्न बैठक में तय किया गया कि उक्रांद राज्य का स्थापना दिवस नौ नवंबर को गैरसेंण में बनायेगा। तथा इसके लिए एक नवंबर से राज्य के प्रमुख स्थानों से यात्राएं निकाली जायेगी। यह यात्राएं नौ नवबंर को गैरसेंण में जाकर समाप्त होगी।

पंकज सिंह महर

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हल्द्वानी: उत्तराखंड क्रांति दल का जनजागरण अभियान जोरशोर से चल रहा है। गुरुवार को पार्टी के कार्यकर्ता कई क्षेत्रों में गये और राज्य स्थापना दिवस नौ नवंबर को गैरसैंण चलने का आह्वान किया। पार्टी के नेता कैप्टन लक्ष्मण सिंह चुफाल के नेतृत्व में कार्यकर्ता रामनगर, चकलुवा, लामाचौड़, फतेहपुर, ऊंचापुल, हल्द्वानी, गोजाजाली, गोरापड़ाव, मोटाहल्दू, मोती नगर, हल्दूचौड़, बिन्दुखत्ता, लालकुआं आदि क्षेत्रों में जनजागरण अभियान चलाया। यहां के लोगों से नौ नवंबर को गैरसैंण पहुंचने का आह्वान किया। पूर्व जिलाध्यक्ष बसंत जोशी ने कहा कि संस्कृति, सामाजिक एकता का प्रतीक गैरसैंण को ही राजधानी बनाने में राज्य की भलाई है। एचजी मठपाल ने कहा कि राजनीतिक स्वार्थो के चलते राष्ट्रीय दल बरगला रहे हैं। इस दौरान इन्द्र सिंह मनराल, रवि वाल्मीकि, रवि बेलवाल, पीसी जोशी, कर्णवीर सिंह, योगेश, इन्द्र लाल आर्या, महेश लाल, विनोद मासीवाल, केशर सिंह, राजेन्द्र पाण्डे, प्रदीप जग्गी, राजकुमार आगरी, इश्तिकार अंसारी, प्रदीप गुप्ता आदि उपस्थित थे।
 

हेम पन्त

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Uttarakhand Kranti Dal undecided on alliance with BJP
« Reply #35 on: January 27, 2009, 10:30:08 AM »
Dehradun , Jan 24 Members of Uttarakhand Kranti Dal, an ally of the ruling BJP, today frankly expressed their views on forming an alliance with the BJP in the upcoming Lok Sabha elections but no firm decision could be taken.

Lone minister from the party Diwakar Bhatt, told reporters that partymen expressed their views on the last day of the two-day convention here, but no decision could be taken on an alliance with the BJP in the Lok sabha elections.

हेम पन्त

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उक्रांद का शीर्ष नेतृत्व वर्तमान में दुविधा में फसा हुआ नजर आ रहा है. एक तरफ़ वह भाजपा के साथ गठबन्धन से बाहर निकलने में हिचकिचा रहा है, दूसरी तरफ आम कार्यकर्ताओं का दवाब है कि लोकसभा व कपकोट विधान सभा उपचुनाव में उक्रांद अपने प्रत्याशी खङा करे.

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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is baare mai discuss karna to bahut chahate hai hem bhai per kare bhi to kya... kyon ki is baare mai kaye baar mai discuss kar chuka hoon apne yaha ke ukd karykartao se... but inko kuch hall to nikalna hi hoga.. is dubidha ka... kyon ki is kshaitriya party ko aage hone ke bajah piche ho rahi hai...

kuch baato per to yesa lagta hai ki hadd hi ho gaye hai.... ise kuch nichale sthat per kaam kaaz karna hoga... aur apne karya kartao ko majboot karna hoga...
ukd jab apne pratyashi khada karne mai hi hichkicha rahi hai to phir uk se bahar to ye kuch kar bhi nahi payegi....

so sabse pahle ukd o uttarakhand me hi majboot hona padega... o kaise kyon.. is mai unke top leaders ko hi sochna hoga kuch .. kyon ki jaisa hum dekhate aaye hai to state mai kshaitri party ka majboot hona hi jaruri hai...

jai uttarakhand

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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There is also talk about formation a new party. This is from some of the leaders of UKD.


deepak pant

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No doubt UKD is the alone party which bothers for the local issues. The info about UKD is interesting and should be brought to the notice of every uttarakhandi.  In this era of regional parties UKD must revitalise itself and make it's presence felt prominently by raising the issues of our local folks.

 

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