उत्तराखंड में जगह नहीं बना पा रहे क्षेत्रीय दल
(04:07:51 AM) 16, Mar, 2014, Sunday
देहरादून ! देश के कई राज्यों में जहां क्षेत्रीय दल तेजी से पैर पसार रहे हैं वहीं उत्तराखंड में क्षेत्रीय दल अपने अस्तित्व की लडाई लड रहे हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश से लेकर राय गठन के 13 वर्ष बीत जाने के बाद भी उत्तराखंड में क्षेत्रीय राजनीतिक दल अपने अस्तित्व के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं भाजपा-कांग्रेस को छोड़ देश की राजनीति की दिशा व दशा तय करने वाले अन्य बड़े दल भी उत्तराखंड में अपनी पहचान के लिए तरस रहे हैं।
क्षेत्रियता की भावना से उपजे उत्तराखंड में राय निर्माण के बाद भी क्षेत्रीय राजनीति दलों की शून्यता बरकरार है। नेतृत्व क्षमता की कमी कहें या फिर अति महत्वकांक्षा। वजह चाहे जो भी हो क्षेत्रीय राजनीति राष्ट्रीय राजनीतिक दलों पर हावी नहीं हो पा रही है। यही वजह रही की आम चुनाव में क्षेत्रीय अस्मिता की सियासत करने वाले दल केवल वोट काटने तक ही सीमित हो कर रह गए हैं। यही स्थिति कई अन्य उन बड़े दलों की भी है, जो देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। अविभाजित उत्तर प्रदेश से लेकर वर्तमान तक कभी भी ऐसा अवसर नहीं आया जब क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के चलते भाजपा व कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय राजनीति करने वाले दलों को हाशिए पर जाना पड़ा हो। राय गठन के पूर्व से एक मात्र उांद ही ऐसा दल है जो विगत कई वर्षों से क्षेत्रीय राजनीति का ध्वजावाहक बना हुआ है। इसके अतिरिक्त चुनावी सीजन में क्षेत्रीय राजनीति का दम भरने वाले कई दल आए और गुम हो गए। वर्तमान में क्षेत्रीय राजनीति का झंडा उठाए एक मात्र उांद ही मैदान में है, वह भी अपने अस्तित्व को बरकार रखने की जद्दोजहद में है। उांद के अलावा उत्तराखंड जनवादी पार्टी(यूजेपी), उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखंड प्रगतिशील पार्टी, उत्तराखंड रक्षा मोर्चा (यूआरएम) जैसे कई दल आए और कब समाप्त हुए पता ही नहीं चला। इसकी बड़ी वजह यही मानी जा रही है कि अतिमहत्वकांक्षा के चलते क्षेत्रीय दल कभी भी प्रदेश की जनता का विश्वास हासिल नहीं कर पाए। बहुजन समाजवादी पार्टी को अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो सपा, सीपीई, सीपीएम, एनसीपी, लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोकदल, तृणमूल कांग्रेस जैसे दल भी अपनी पहचान बनाने की जुगत में हैं और उत्तराखंड में पहचान को तरस रहे हैं। बसपा जनाधार तो बढ़ा रही है लेकिन विधानसभा में उसकी सीटें घटती जा रही हैं। लोकसभा में वह उत्तराखंड से दस्तक नहीं दे पा रही है। विगत कुछ चुनावों पर नजर डालें तो कई दल ऐसे हैं जो चुनावों में केवल वोटकाटू की छवि ही बना पाए हैं। इन दलों को भले ही कोई फ ायदा न पहुंचा हो, लेकिन भाजपा व कांग्रेस के लिए नफ ा-नुकसान का काम जरूर कर रहे हैं। विगत दो विधानसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस पूर्ण बहुमत पाने में सफ ल नहीं हो सकी है।