Uttarakhand > Uttarakhand at a Glance - उत्तराखण्ड : एक नजर में
Uttarakhand At A Glance - उत्तराखण्ड: एक परिचय
पंकज सिंह महर:
खेती-बाड़ी
खेती-बाड़ी का काम यहाँ पर प्राय: प्राचीन ढ़ंग से होता है। पहाड़ों की ढालों में काट-काटकर खेत बनाये गये हैं, जिनमें अनाज बोया जाता है। जहाँ कहीं हो सकता है, पर्वतीय नदियों से नाला काटकर नहर ले जाता हैं, जिन्हें 'गुल' कहते हैं। उनसे सिंचाई होती है। कहीं-कहीं पहाड़ की घाटियों में नदी के किनारे बड़ी उपजाऊ जमीने हैं। ये 'सेरे' कहे जाते हैं। जिस जमीन में पानी से सिंचाई नहीं हो सकती, वह 'उपजाऊ' कहलाती है। गाँव के हिस्से 'तोक, सार, टाना' आदि नामों से पुकारे जाते हैं।
यों तो खेती हल चलाकर होती है। किन्तु कहीं-कहीं ऐसी पर्वतीय जगहें हैं, जहाँ बैल नहीं जा सकते। वहाँ कुदाली (कुटल) से खोदकर खेती करते है । फसलें प्राय: दो होती हैं। तराई भावर में कहीं-कहीं तीन फसलें होती हैं। फसलों में जो-जो चीजें पैदा होती हैं, उनका ब्यौरा नीचे दिया गया है -
खरीफ
अनाज - धान, मडुवा, मानिरा, कौणी, चीणा, चौलाई या चुआ, उगल (फाफरा), मक्का।
तराई भावर में इनके अलावा ज्वार, बाजरा, गानरा आदि भी होते हैं।
दालें - उर्द, भट, गहत, रैंस, अरहर, मूँग । अरहर पर्वतों में नहीं होता।
तिलहन - सरसों, तिल, भंगीरा।
रबी
अनाज - गेहूँ, जौं, भावर में गानरा
दालें - मसूर, मटर (चना भावर तराई में)
तिलहन - अलसी, सरसों।
रुई यहाँ पर यत्र-तत्र कुछ होती है। फसल खरीफ के साथ भाँग भी बोई जाती है, जिसके पत्तों से चरस बनती है। इसके बीज पीसकर जाड़ों में तरकारी में डालकर खाये जाते हैं। ये बड़े गरम होते हैं। भागों के रेसों से रस्सियाँ तथा बोरी का कपड़ा बनता है।
गन्ना कहीं-कहीं पहाड़ों में भी होता है। अदरख, हल्दी, मिर्च, बहुतायत से बाहर भेजे जाते हैं। आलु व घुइयाँ (पिनालु) बहुत होते हैं। बंडे (गडेरी) ८-१० सेर तक होते हैं, और कलकत्ते तक भेजे जाते हैं।
तम्बाकु निजी खर्च के लिए कहीं-कहीं बोया जाता है।
लोगों की मुख्य गुज़र खेती से होती है। पर खेती लोगों के पास थोड़ी-थोड़ी बोने से सब बातों की गुज़र उससे नहीं होती, इसलिए लोग नौकरी करते हैं। तमाम भारत में, खासकर उत्तरी भारत में बहुत से लोग उच्च सरकारी व अन्य नौकरियों में फैले हैं।
कुमाऊँ में कुमाऊँ के लायक अनाज पैदा नहीं होता। तराई-भावर से अनाज पर्वतों को जाता है, किन्तु यह ज्यादातर नगरों को जाता है, जैसे नैनीताल, भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा मुक्तेश्वर आदि। देहात अन्न के बारे में प्राय: स्वावलंबी हैं
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
The following stanza is really great for UK.
अस्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:।
पूर्वापरौं तोयनिधी वगाह्य स्थित: पृथि इवमानदणड:।।
पंकज सिंह महर:
फूल
फूल कुमाऊँ में बहुत होते हैं। मुख्य ये हैं - बेला, चमेली, चंपा, गुलाब, कुंज, हंसकली, केवड़ा, जुही (जाई), रजनीगंधा (हुस्नहाना), गेंदा, गुलदावरी, डलिया, गुलबहार, मोतिया, नरगिस, कमल, सूर्य व चन्द्र तथा अन्य प्रकार के। शिलिंग, जिनकी सुगंध दूर तक फैलती है, इन पर्वतों का एक खआस फूल है। यह सितंबर के बाद फूलता है। बुरांस जब बसंत में जंगलों में खिलता है, तो टेसू से कई गुना सुन्दर दिखाई देता है। गुल बाँक भी कई कि का होता है।
अँग्रेजी फूलों में ऐस्टर, बिगोनिया, डलिया, हौलीहौक, कैलोसिया, कौक्स कौम, टफूशिया, स्वीट विलियम, स्वीट सुल्तान, जीरेनियम, पिट्रेनियाँ, जिनियाँ, डेजी, कागजू फूल आदि होते हैं।
देशी फूल खुशबूदार होते हैं। अँग्रेजी फूल देखने में उत्तम होते हैं, पर विशेषत: निर्गेध होते हैं।
हिमालय के पास तथा जंगलों में नाना प्रकार के जंगली फूल खिलते हैं, जिनमें कई बड़े सुन्दर या खुश्बुदार होते हैं। कुछ जहरीले भी होते हैं।
विश्वा प्रसिद पर्यटक स्थल फूलों की घाटी भी इसी खूबसूरत उत्तराखंड राज्य मे शोभायमान है.
फल
घरेलू फल
अखरोट, आलू, बुखार, अलूचा, आम, इमली, अमरुद, अनार, अँगूर, आड़ू, बड़हल, बेर, चकोतरा (इसे अठन्नी भी कहते हैं) चेरी (पयं), गुलाबजामुन, कटहल, केला, लीची, लोकाट, नारंगी, नासपती (गोल, तुमड़िया तथा चुसनी) नींबू, पांगर (chestnut ), पपीता, शहतूत (कीमू) सेब, खरबूज, तरबूज, फूट, खुमानी, काक, अंजीर आदि फल कुमाऊँ में होते हैं।
जंगली फल
आंचू (लाल व काले हिसालू), अंजीर (बेड़ू), बहेड़ा, बोल, बैड़ा, आँवला, बनमूली, बन नींबू, बेर, बमौरा, भोटिया बादाम, स्यूँता (चिलगोजा), चीलू (कुशम्यारु), गेठी, घिंघारु, गूलर, हड़, जामन, कचनार, काफल, खजूर, किल्मोड़, महुआ, मौलसिरी, मेहल, पद्म (पयं), च्यूरा, कीमू, तीमिल, गिंवाई आदि कुमाऊँ के जंगलों में होते हैं।
जड़ी-बूटियाँ
१. छड़ीला या दगद फूल
२. पद्म
३. दारुहल्दी
४. घुड़बच
५. मुलीम
६. पखानवेद
८. रीठा मीठा दाने का
९. दालचीनी, तेजपात
१०. राजिगरा सफेद व काले छीटे का
११. हंसराज सबज
१२. चिरायता मोटा
१३. कोटू फाफरा दाने का
१४. अमलतास फली व गूदा
१५. सुहागा
१६. बिरोजा
१७. समोया
१८. घासीजीरा
१९. तेजपत्ता
२०. मिर्च दड़ा
२१. सींक
२२. सिंगाड़ा मोटे दाने का
२३. बनफ्सा
२४. ब्राह्मी
२५. बिजसार की छाल
२६. बबूल
२७. खैर
२८. कायफल की छाल तथा रसौद, कुचिला, पुनर्नवा रोहिणी, पिपली, तरुड़, गेठी, लीसा आदि।
पंकज सिंह महर:
चाय के बगीचे
बज्यूला, ग्वालदम, डूमलोट, ओड़ा, लोध, दुनागिरि, जलना, बिसनर, गौलपालड़ी, बेनीनाग, डोल, लोहाघाट, झलतोला, कौसानी, स्याही देवी, चौकोड़ी, छीड़ापानी आदि में चाय की खेती होती थी। इन सब में कौसानी, बेनीनाग तथा लोध ने खूब नाम कमाया। कौसानी की चाय अब नाम-मात्र को रह गई है। चौकड़ी व बेनीनाग में अभी बहुत कुछ चाय ठा. देवीसिंह व दानसिंह बिष्ट बना रहे हैं। ये ही सबसे बड़ी चाय के बगीचे यहाँ पर रह गये हैं।
पर्वतीय खेती में अत्यधिक श्रम तथा दक्षता की आवश्यकता होती है। सीढ़ीदार खेतों को पुरातन यंत्रों से जोतना एक कठिन कार्य है। यद्यपि बाढ़ तथा सूखा जैसे प्राकृतिक प्रकोपों से सामान्यत: यह क्षेत्र मुक्त रहा था। परन्तु भूमि के कटाव तथा भूस्नखल जैसी समस्यायें उठती रही।
प्रारम्भ में किसान असुरक्षा के कारण अस्थिर तथा घुमक्कड़ थे। कुछ समय तक एक स्थान पर खेती करने के बाद दूसरे स्थान की तलाश में निकल जाते थे। फसल परिवर्तन की परिवर्तन की परम्परागत व्यवस्था इस क्षेत्र के लिए अत्यनत उपयुक्त थी, बशर्तें� भूमि की उर्वरता बनी रहे। ऊँची ढलानों में पैदावार कम होती थी जबकि घाटियों की भूमि अत्यन्त उपजाऊ थी। जहाँ भूमि का छोटे से छोटा भाग भी श्रम पूर्वक जोता जाता था। एटकिन्सन से सोमेश्वर व भीमताल की घाटियों को सम्पूर्ण एशिया में सुन्दरतम व उर्वरतम बताया है। खास जाति के लोग, जो पश्चिमी एशिया से आये थे, मुख्यत: पशुपालन करते थे और अपने पशुओं को चराने के लिए उन्होंने पर्वतों की तलहटी में बसना श्रेयस्कर समझा। बाद में उन्होंने पशुचारण के साथ खेती भी स्वीकार की।
कुमाऊँ में विभिन्न राजवंशों ने राज्य किया। विभिन्न जन जातियों के बीच निरन्तर युद्धों से खेती पर असर पड़ा और भूमि की उर्वरता क्षीण होती चली गयी। चीनी यात्री ह्मवेनसांग, जो हर्ष काल के समय भारत आया था, ने पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र को देखकर लिखा कि यह अत्यन्त सम्पन्न है, भूमि उर्वर है तथा मुख्य फसलें हैं मोटा गेहूँ, जौ, उवा तथा फाफर। यहाँ खेतों में बीजों के अंकुरण तथा फसलों की रक्षा हेतु खेतों के देवता भूमिया (क्षेत्रपाल), वनों के संरक्षण का देवता सैम, पशुधन में वृद्धि का देवता चामू, बधाण, कलबिष्ट इत्यादि।
पंकज सिंह महर:
उत्तराखण्ड : देश का सत्ताइसवां राज्य
राज्य का गठन - 9 नवम्बर, 2000
कुल क्षेत्रफल - 53,483 वर्ग कि०मी०
कुल वन क्षेत्र - 35,394 वर्ग कि०मी०
राजधानी - देहरादून (अस्थाई)
सीमायें
अंर्तराष्ट्रीय - चीन एवं नेपाल
राष्ट्रीय - उत्तर प्रदेश एवं हिमाचल प्रदेश
उच्च न्यायालय - नैनीताल
प्रति व्यक्ति आय - 15186 रुपये
कुल जनसंख्या - 84,89,349
पुरुष - 43,25,924
महिला - 41,63,425
लिंग अनुपात - (964 महिला : 1000 पुरुष)
जनसंख्या घनत्व - 159 प्रति वर्ग कि०मी०
कुल साक्षरता - 71.06 %
पुरुष - 83.06 %
महिला - 59.06 %
मण्डल - 03
जिले - 13
तहसील - 78
विकास खण्ड - 95
न्याय पंचायत - 670
ग्राम पंचायत - 7227
कुल ग्राम - 16826
आबाद ग्राम - 15761
गैर आबाद ग्राम - 1065
आबाद वन ग्राम - 165
शहरी इकाइयां - 86
नगर निगम - 01
नगर पंचायत - 31
छावनी परिषद - 09
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