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Uttarakhand At A Glance - उत्तराखण्ड: एक परिचय

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पंकज सिंह महर:
उतराखंड की जलवायु

जलवायु भिन्नता के कारण वनस्पति, कृषि एवं मानवीय रीति रिवाज़ों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। ये जलवायु विभिन्न मौसमों में चक्र के रुप में चलती है। जैसे ग्रीष्म ॠतु जिसे स्थानीय भाषा में ऊरी कहा जाता है जो अंग्रेजी माह के मार्च से प्रारम्भ होकर मध्य जून तक रहती है। मार्च से तापमान में वृद्धि होती है।

नवम्बर से जनवरी तक शीत ॠतु का काल है। नवम्बर से जनवरी तक तापमान निरन्तर घटती रहती है। जनवरी अत्यधिक ठण्डा रहता है।

वर्षा ॠतु मध्य जून से अगस्त तक रहती है। कुल वार्षिक वर्षा का प्रतिशत ७३.३ है। सबसे अधिक वर्षा १२० से.मी. से होती है।

शरद ॠतु सितम्बर के अन्त तक रहती है। इस ॠतु से तापमान गिरने लगता है जो दिसम्बर तक रहता है।

श्रीनगर में १९३ से.मी. वार्षिक वर्षा, देहरादून में २१२ से.मी., नरेंद्र नगर में १८० से.मी., कोटिद्वार में १८० से.मी., टिहरी में १८० से.मी., मंसूरी में २४२ से.मी., नैनीताल में १६८ से.मी., अल्मोड़ा में १३६ से.मी. वर्षा दर्ज की गई है।

धरातलीय विषमताओं के कारण तापमान में विविधताएँ पाई जाती है। हिम क्षेत्रों में इसका प्रभाव अधिक देखने को मिलता है। उतराखंड के पर्वतीय भागों में अप्रैल-मई में दैनिक तापान्तर सबसे अधिक होता है। विभिन्न ऊँचाइयों पर तापमान की दर अलग-अलग होती है।

पंकज सिंह महर:
उतराखंड प्रदेश की नदियाँ

इस प्रदेश की नदियाँ भारतीय संस्कृति में सर्वाधिक स्थान रखती हैं। उतराखंड अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। यहाँ की नदियाँ सिंचाई व जल विद्युत उत्पादन का प्रमुख संसाधन है। इन नदियों के किनारे अनेक धार्मिक व सांस्कृतिक केन्द्र स्थापित हैं।

हिन्दुओं की अत्यन्त पवित्र नदी गंगा का उद्गम स्थल मुख्य हिमालय की दक्षिण श्रेणियाँ हैं। गंगा का आरम्भ अलकनन्दा व भागीरथी नदियों से होता है। अलकनन्दा की सहायक नदी धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। गंगा नदी भागीरथी के रुप में गोमुख स्थान से २५ कि.मी. लम्बे गंगोत्री हिमनद से निकलती है। भागीरथी व अलकनन्दा देव प्रयाग संगम करती है जिसके पश्चात वह गंगा के रुप में पहचानी जाती है।

यमुना नदी का उद्गम क्षेत्र बन्दरपूँछ के पश्चिमी यमनोत्री हिमनद से है। इस नदी में होन्स, गिरी व आसन मुख्य सहायक हैं।

राम गंगा का उद्गम स्थल तकलाकोट के उत्तर पश्चिम में माकचा चुंग हिमनद में मिल जाती है।

सोंग नदी देहरादून के दक्षिण पूर्वी भाग में बहती हुई वीरभद्र के पास गंगा नदी में मिल जाती है।

पंकज सिंह महर:
झीलें और तालाब

झीलें और तालाब का निर्माण भू-गर्भीय शक्तियों द्वारा परिवर्तन के पश्चात हिमानियों के रुप में हुआ है जो स्थाई है और जल से भरी है। इनकी संख्या कुमाऊँ मण्डल में सबसे अधिक है।

नैनीताल की झील भीमताल जिसकी लम्बाई ४४५ मी. है, एक महत्वपूर्ण झील है। इसके अलावा नैकुनि, चालाल, सातसाल, खुर्पाताल, गिरीताल मुख्य है जो अधिकतर नैनीताल जिले में है।

गढ़वाल के तालाब व झीलें: डोडिताल, उत्तरकाशी, देवरियाताल, रुद्रप्रयाग जनपद, वासुकीताल, अप्सरा ताल, लिंगताल, नर्किंसग ताल, यमताल, सहस्मताल, गाँधी सरोवर, रुपकुण्ड धमो जनपद, हेमकुण्ड, संतोपद ताल, वेणीताल, नचकेला ताल, केदार ताल, सातताल, काजताल मुख्य हैं।

उतराखंड के प्रमुख हिमनदों में गंगोत्री, यमुनोत्री, चौरावरी, बद्रीनाथ हिमनद महत्वपूर्ण है।

पंकज सिंह महर:
उतराखंड प्रदेश की वनस्पतियाँ

वनस्पति की दृष्टि से उतराखंड समृद्ध है। ६५ प्रतिशत भू-भाग वनों से अच्छादित है। ३२ प्रतिशत वन कुमाऊँ मण्डल में है। वनों का सर्वाधिक भाग ३० प्रतिशत उत्तरकाशी जनपद में है। पिथौरागढ़ व चमोली का वन भूमि का कम होना हिमाच्छादित प्रमुख कारण है। कुमाऊँ में ३६ प्रतिशत भाग वन नैनीताल जिले में हैं।

बुग्याल वनस्पति हिमालयी क्षेत्रों में प्रारम्भ होती है। ये हरे-भरे मैदान के रुप में दिखाई देती हैं।

चमोली जनपद के बद्रीनाथ मार्ग पर जोशीमठ के बीच गोविन्दधाम से १५ कि.मी. धांधरिया व धरिये से ४ कि.मी. दूर फूलों की घाटी है। यह बहुत स्मरणीय क्षेत्र है।

प्राचीनकाल से ही यह प्रदेश तपोभूमि के रुप में विख्यात है। केदारनाथ, बद्रीनाष योमनोत्री, गंगोत्री विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थल यहीं स्थित है। इन्ही तीर्थों में से ताड़केश्वर धाम एक है। कोटद्धार से ताड़केश्वर (महादेव) की दूरी लगभग ६० किलोमीटर है। तीन किलोमीटर में फैले देवदार वृक्षों के बीच में स्थित ताड़केश्वर धाम की खूबसूरती विलक्षण है। श्री ताड़केश्वर महादेव की पूजा एक वर्ष में दो बार होती है। इसके अधीन ८६ गाँव है। गाँव में फसल होने पर सर्वप्रथम मन्दिर में भेंट चढ़ाई जाती है। इसके पश्चात ही गाँव वाले इस्तेमाल करते हैं। लोक मान्यता के अनुसार पौराणिक समय में यहाँ अदृश्य आवाज़ आती थी कि जो भी गलत कार्य करेगा उसे देव शक्ति द्वारा प्रताड़ित किया जाएगा। इसलिए इसका नाम ताड़केश्वर पड़ा। मन्दिर में अदृश्य शिवलिंग है। मन्दिर के उत्तर दिशा में देवदार के वृक्ष का आकार त्रिशूल एवं चिमटा जैसा है तथा पश्चिम दिशा में भी एक त्रिशूल के आकार का देवदार वृक्ष है। इन आश्चर्यजनक वृक्षों को दर्शनार्थी नमन करते हैं।

पंकज सिंह महर:
साग-सब्जी

तरकारियाँ यानि साग-सब्जियाँ यहाँ पर प्राय: सभी होती हैं। खास-खास ये हैं - आलू, प्याज, मूली, घुइयाँ, गडेरी, गावे, ककड़ी कद्द, कोहड़ा (भुज) लौकी, तोरई, चरचिंडे, तरुड़, जमीकंद (सुरण), शलजम, पालक, धनिया, मेथी, मटर, बाकुला, टमाटर, सोया। गोबी, सलाद, हाथीचुक आदि चीजें भी पैदी होती हैं। गेठी व तरुड़ यहाँ की खास सब्जियाँ हैं, जो घर व जंगल में भी होती है।

लाई, उगल, चुआ या चौलाई आदि उन गरीब किसानों की सब्जियाँ है, जिन्हें प्राय: नमक के साथ रोटी खानी पड़ती है। ये लोग जंगलों से 'कैरुवा, लिंगुड़, कोहयड़ा' आदि भी मौसम में ले आते.

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