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Uttarakhand At A Glance - उत्तराखण्ड: एक परिचय

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पंकज सिंह महर:
उत्तराखंड राज्य एक परिचय


हिमालय पर्वतमाला की गोद में बसा नवगठित राज्य उतराखंड ९ नवंबर २००० को भारतवर्ष का सत्ताईसवाँ राज्य बन गया। दूर-दूर तक हज़ारों वर्ग मील में फैला यह प्रदेश भारतमाता की शोभा बढ़ाने वाला परिधान है। हिममण्डित शिखर उस राजरानी राजेश्वर का शुभ्र मुकुट है। ऐसे में कालिदास याद आते हैं। अपनी कृति कुमारसम्भव में कालीदास कहते हैं:


अस्युत्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:।
पूर्वापरौं तोयनिधी वगाह्य स्थित: पृथि इवमानदणड:।।
उतराखंड सौंदर्य का जीवन्त प्रतीक है, सरलता एवं गरिमा का अभिषेक है और सभ्यता एवं संस्कृति इसकी विशिष्ट पहचान है। यहाँ प्रकृति और जीवन के बीच ऐसा सामंजस्य हैं जो सभी पर्यटकों और तीर्थयात्रियों को मंत्रमुग्ध कर देता है। यहाँ की शीतल हवा शान्ति की प्रतीक हैं तो फलदार वृक्ष दान की महिमा का गुणगान करते हैं। यहाँ के लोक जीवन में परंपराएँ, खेल-तमाशे, मेले, उत्सव, पर्व-त्यौहार, चौफुला-झुमैलो, दैरी-चांचरी, छपेली, झौड़ो के झमाके, खुदेड़ गीत, ॠतुरैण, पाण्डव-नृत्य, संस्कार सभी कुछ अपने निराले अन्दाज में जीवन को सजाते हैं।

ब्रह्मावर्त, ब्रह्मदेश, ब्रह्मर्षिदेश और आर्यावर्त आदि नामों से विख्यात उतराखंड प्रदेश वेद भूमि है। पुराणों में केदारखण्ड नाम से और संस्कृत साहित्य में हिमवान् हिमवन्त और इसी प्रकार पालि साहित्य में भी उसी आदर और प्रेम से उन्हीं नामों से अभिहित हुआ है। हिमालय इस वसुन्धरा का प्रिय वत्स है। वत्सरुप हिमालय को प्राप्त कर ही धरती-धेनु ने रस, औषधियाँ और रत्न रुपी दूध प्रदान किया। यह यज्ञ साधन है। विष्णु पुराण में स्वयं भगवा विष्णु कहते हैं कि "मैंने पर्वत राज हिमालय की सृष्टि यज्ञ साधन के लिए की है।"[/color] [/b]

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
महर जी,

उत्तराखंड कई नामों से जाना जाता है. देव भूमि, उत्तरांचल  और उत्तराखंड !

बहुत की struggle   के बाद हमे राज्य मिला.. ! short  मे उत्तराखंड देव भूमि से ही जाना जाय और भी अच्छा है

पंकज सिंह महर:
उत्तराचल के चार विरासत या धरोहर के प्रतीक हैं:

(क) राज्य पुष्प ब्रह्म कमल;
(ख) राज्य वन्य पशु कस्तूरी मृग;
(ग) राज्य वृक्ष बुरांस; और
(घ) राज्य पक्षी मोनाल।

ब्रह्म कमल यहाँ का राज्य पुष्प है। वेदों में भी इसका उल्लेख मिलता है। यह कश्मीर, मध्य नेपाल, उतराखंड में फूलों की घाटी, केदारनाथ, शिवलिंग, बेस, पिंडापी, ग्लेशियर, आदि में ३६०० मीटर की ऊँचाई पर पाया जाता है। पौधों की ऊँचाई ७०-८० से.मी. होती है। जुलाई से सितम्बर के मध्य यह जहाँ खिलता है वहीं का वातावरण सुगंध से भर जाता है। पुष्प के चारों ओर कुछ पारदर्शी ब्लैडर के समान पत्तियों की रचना होती है जिसको स्पर्श कर लेने मात्र से उसकी सुगंध कई घंटों तक अनुभव की जा सकती है। इसकी जडों में औषधीय गुण होते है। यह दुर्लभ प्रजाति का विशेष पुष्प है। इतिहास एवं धार्मिक ग्रंथों में इस पुष्प का कई स्थलों पर उल्लेख मिलता है

पंकज सिंह महर:
उतराखंड प्रदेश का क्षेत्रफल 53,483 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पर विस्तृत है। इस प्रदेश के अन्तर्गत गढ़वाल व कुमाऊँ मण्डल तथा हरिद्वार जनपद शामिल है। गढ़वाल मण्डल के अन्तर्गत ६ जिले शामिल हैं जिनमें देहरादून, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली, पौड़ी गढ़वाल हैं। कुमाऊँ मण्डल के अतर्गत नैनीताल, अल्मोड़, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चम्पावत और उधमसिंह नगर हैं। इसके अलावा हरिद्वार जनपद भी उतराखंड प्रदेश में शामिल है। भौगोलिक दृष्टि से उतराखंड प्रदेश के पश्चिम में हिमालय प्रदेश, पूर्व में नेपाल, उत्तर में चीन के तिब्बती क्षेत्र एवं दक्षिण में उत्तर प्रदेश के गंगा-यमुना (नदियों) के मैदान सम्मिलित है।

उतराखंड के प्राकृतिक भू-भाग धरातलीय ऊँचाई, वर्षा की मात्रा में भिन्नता होने के कारण उतराखंड के क्षेत्रीय भाषा मानवीय क्रिया-कलापों में विभिन्नता होना स्वाभावित है। इसीलिए इस प्रदेश को विभिन्न भू-भागों में बाँटा गया है। ये भू-भाग है:

(क) महान हिमालय
(ख) मध्य हिमालय
(ग) दून या शिवालिक
(घ) तराई व भावर क्षेत्र
(च) हरिद्वार का मैदानी भू-भाग।

पंकज सिंह महर:
(क) महान हिमालय

महान हिमालय भू-भाग हिमाच्छादित रहता है। यहाँ नन्दा देवी सर्वोच्च शिखर है जिसकी ऊँचाई ७८१७ मीटर है। इसके अलावा कामेत, गंगोत्री, चौखम्बा, बन्दरपूँछ, केदारनाथ, बद्रीनाथ, त्रिशूल बद्रीनाथ शिखर है जो ६००० मीटर से ऊँचे है। फूलों की घाटी तथा कुछ छोटे-छोटे घास के मैदान जिन्हें बुग्याल के नाम से जानते हैं, भी इसमें शामिल हैं। इस भू-भाग में केदारनाथ, गंगोत्री आदि प्रमुख हिमनंद है जो कि गंगोत्री हिमनंद, यमनोत्री हिमनंद, गंगा-यमुना आदि नदियों के उद्गम स्थल है। यह भू-भाग अधिकतर ग्रेनाइट, नीस व शिष्ट शैलों से आवृत है।

(ख) मध्य हिमालय

महान हिमालय के दक्षिण में मध्य-हिमालय-भू-भाग फैला हुआ है जो कि ७५ कि.मी. चौड़ी है। इस भू-भाग में कुमाऊँ के अन्तर्गत अल्मोड़ा, गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल तथा नैनीताल का उत्तरी भाग भी सम्मिलित है जो कि ३००० से ५००० मी. तक के भू-भाग में फैले हुए है।
(ग) दून या शिवालिक का भू-भाग

यह क्षेत्र मध्य हिमालय के दक्षिण में विद्यमान है। इसे बाह्य हिमालय के नाम से भी पुकारते हैं। इस क्षेत्र के अन्तर्गत ६००० मीटर से १५०० मीटर ऊँचे वाले क्षेत्र अल्मोड़ा के दक्षिणी क्षेत्र मध्यवर्ती नैनीताल, देहरादून मिला है। शिवालिक एवं मध्य श्रेणियों के बीच क्षैतिज दूरी पाई जाती है जिन्हें 'दून' कहा जाता है। दून का अर्थ घाटियों से है। इस घाटी के अन्तर्गत २४ से ३२ कि.मी. चौड़ी ३५० से ७५० मी. ऊँची देहरादून की घाटी अत्यन्त महत्वपूर्ण है जो कि वर्तमान समय में उतराखंड की राजधानी है। अन्य दून घाटियों के रुप में देहरादून, पवलीदून, केहरीदून आदि प्रमुख हैं।
(घ) तराई व भावर क्षेत्र

तराई व भावर क्षेत्र के अन्तर्गत हरिद्वार, उधमसिंह नगर के मैदानी क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस भाग में पर्वतीय क्षेत्र सम्मिलित है। हालांकि इस भाग में पर्वतीय नदियाँ, नालों, रेतीली भूमि के अदृश्य हो जाती है।

(च) हरिद्वार का मैदानी क्षेत्र

इस क्षेत्र की उत्तरी सीमा ३०० मी. की समोच्च रेखा द्वारा निर्धारित होती है जो गढ़वाल और कुमाऊँ को पृथक करती है। हरिद्वार एक विश्वविख्यात और महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है जहाँ बारह वर्ष के बाद कुम्भ का मेला लगता है।

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