Linked Events

  • मोहन उत्तराखण्डी की पुण्य तिथि: August 08, 2012

Author Topic: Baba Mohan Uttarakhandi(Hero Of Uttrakhand Struggle) - बाबा मोहन उत्तराखण्डी  (Read 22820 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

  • MeraPahad Team
  • Hero Member
  • *****
  • Posts: 13,048
  • Karma: +59/-1
बाबा मोहन उत्तराखंडी जी की पुन्य तिथि के अवसर पर बाबाजी को सत-सत नमन

पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0
उत्तराखण्ड की इस महान विभूति को मेरा पहाड़ परिवार का शत-शत नमन, आपकी जलाई हुई लौ को हम बुझने ना देंगे, यह हमारा प्रण और आपका स्मरण है।

बाबा की शहादत एक प्रश्न भी उठाती है। जब हम खटीमा, मसूरी और मुजफ्फरनगर कांड के दोषियों को सजा देने की बात पर इतने उद्वेलित हो जाते हैं कि उन्हें फांसी देने की मांग कर डालते हैं। लेकिन बाबा की मौत की जिम्मेदार तो उत्तराखण्ड की सरकार थी, हमारी अपनी ही सरकार की उदासीनता के कारण बाबा आज हमारे बीच में नहीं हैं। सरकार के साथ-साथ जनता भी उतनी ही दोषी है, जिसने इस जीवट आत्मा को यूं ही भुल दिया। जहां तमाम राजनीतिक दलों के प्रमुखों की पुण्य तिथि पर हमारी सरकारें लाखों रुपये के विज्ञापन जारी करती हैं, वहीं उत्तराखण्ड की इस विभूति को न तो किसी सरकार ने कल याद किया ना किसी राजनैतिक दल न किसी संस्था ने।

शर्म करो......शर्म करो........अपने आप पर शर्म करो।

हेम पन्त

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 4,326
  • Karma: +44/-1
बहुत सार्थक बात कही है पंकज दा... यह हमारा दुर्भाग्य है कि ऐसे महान बलिदानी और निस्वार्थी आदमी को याद करने की जरूरत किसी नेता / संस्था या दल ने नहीं समझी...

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

मुझे लगता है इस महान व्यक्तित्व के शहादत को सरकार भूल गयी!

गौर करने वाली बात है बहुत सारे लोग अभी मोहन उत्तराखंडी के वलिदान को! बाबा ने ना केवल राज्य के निर्माण में अहम् भूमिका निभायी थी बल्कि राज्य के राजधानी के लिए अपने प्राण भी त्याग दिए!

Dehradoon me baith aakao ko Mohan Uttarakhandi ka naam tak yaad nahi! They have just forgortten his sacrification for state.

Really it is a matter of shame!



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

This is the news of 2004 when Baba Mohan Uttarakhandi had tried to intensify the agitation for Capital issue. After a long hunger strike, he lost his life but Govt did not take any action
------------------------------------------------------------------



UKD seeks change of Uttaranchal capital
TNN, Aug 11, 2004, 05.38am IST
NAINITAL/DEHRA DUN: With the death of Uttarakhand Kranti Dal (Aery) (UKD-A) leader Baba Mohan Uttarakhandi, the party has decided to intensify its agitation for shifting the capital of Uttaranchal from Dehra Dun to Gairsain. Baba passed away after fasting for 38 days on Monday.

The Uttarakhand Sanyukt Sangharsh Samiti decided to keep the sacrifice made by Baba alive yet another senior member of the Samiti, Darvan Singh Manai (60), has decided to go on fast-unto-death from August 15.


http://articles.timesofindia.indiatimes.com/2004-08-11/india/27151747_1_ukd-uttarakhand-kranti-dal-uttaranchal

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Only remembering the Birth Anniversay is not the solution!

We need someone like Mohan Baba who take-up the issue strongly with the State Govt for the Permanent Capital.

शहीदों के वर्षी पर आंसू बहाने से उनका सपना सच नहीं होगा! आज जरुरत है बाबा मोहन उत्तराखंडी के आन्दोलन को आगे बढाने की !

Gairsain martyr remembered 
Tribune News Service

Dehradun, August 8
Uttarakhand Sanyukt Sanghrash Samiti (USSS) today observed the death anniversary of statehood agitationist Baba Mohan Uttarakhandi as Gairsain Day.

The samiti held a series of functions all over the state and also in Delhi to offer their tributes to the leader.

Samiti’s central president Dhirendra Pratap, a former Uttarkhand Minister, said that the people of state remember Baba Mohan Uttarakhandi’s sacrifice for the cause of the getting permanent capital status for Gairsain.

Baba Uttarakhandi had died after undertaking a 38-day-long indefinite fast demanding the declaration of Gairsain as the permanent capital of the state in place of Dehradun, the interim capital of the state.

Dhirendra Pratap also took the opportunity to announce a Uttarakhand Bandh on October 2 in support of popular public sentiment of the state in favour of Garisain.

He declared Baba Uttarakhandi a great martyr and urged the state government to construct a memorial at Satpuli in Pauri Garhwal district in his memory.

http://www.tribuneindia.com/2009/20090809/dun.htm

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
बाबा मोहन उत्तराखण्डी की शहादत व अण्णा का अनशन! आखिर कब तक शहीदों की शहादत पर मूक रहेंगे उत्तराखण्डी
बाबा मोहन उत्तराखण्डी की शहादत व अण्णा का अनशन!

आखिर कब तक शहीदों की शहादत पर मूक रहेंगे उत्तराखण्डी
मैं इस बात से हैरान हॅू कि जहां देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ पूरे देश में एक व्यापक माहौल हैं परन्तु भ्रष्टाचार में आकंण्ठ डूबे उत्तराखण्ड में सरकारी भ्रष्टाचार पर जिस शर्मनाक ढ़ग से यहां की मीडिया व राजनेतिक दलों ने शर्मनाक मौन रखा है उससे पूरे देश के चिंतकों को चिंतित कर दिया है। लोगों को समझ में नहीं आ रहा है कि दिल्ली में तो भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मात्र 98 घंटे की आमरण अनशन पर दिल्ली सरकार जाग गयी थी। अण्णा देश के महानायक बन गये। देश की जनता ने उनको हाथों हाथ लिया । परन्तु उत्तराखण्ड में बाबा मोहन उत्तराखण्डी की राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग को लेकर चले 29 दिन के आमरण अनशन पर अपनी शहादत देने के बाबजूद तत्कालीन धृतराष्ठ से बने मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी की वासना के गर्त में मरी आत्मा ही जाग पायी व नहीं प्रदेश की जनता ही जागी। वहीं 68 दिनों तक हरिद्वार में भ्रष्टाचार के खिलाफ आमरण अनशन करने वाले स्वामी निगमानंद के अनशन ने भाजपा की वर्तमान प्रदेश सरकार ही जागी व नहीं देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ हुकार भरने वाले संघ व भाजपा के आला नेताओं की आत्मा को ही झकझोर पायी। नहीं प्रदेश की जनता सकड़ों पर उतरी। स्वामी निगमानंद की कुशलक्षेम पूछने के लिए उमा भारती तो दिल्ली से डोईवाला स्थित हिमालयन हॉस्पिटल जौलीग्रांट इसी सोमवार को पहुंची । गौरतलब है कि स्वामी निगमानंद ने हरिद्वार में भ्रष्टाचार के खिलाफ 68 दिनों तक अनशन किया था। हालत बिगड़ने पर उन्हें दो मई को आईसीयू में भर्ती कराया गया था। चिकित्सकों का कहना है कि स्वामी निगमानंद की हालत स्थिर बनी हुई है। यह सब उत्तराखण्ड में की वर्तमान हालत को ही दर्शता है कि लोग आज किस प्रकार से जड़ हो गये है। इस प्रकार की स्थिति को देखते हुए सवाल होता है कि क्या उत्तराखण्ड के लोगों की जिन्होंने सदियों तक इस देश के स्वाभिमान व आत्मसम्मान के लिए अपना सर्वस्व निछावर किया था। जिनकी वीरता व ईमानदारी का डंका पूरे संसार में बड़े ही सम्मान से लिया जाता था। वहां राज्य गठन जनांदोलन में उत्तराखण्ड के स्वाभिमानी लोगों ने उत्तराखण्डी आत्म सम्मान को रौंदने वाले तत्कालीन उप्र के मुख्यमंत्री मुलायम व केन्द्र सरकार के मुखिया राव के अमानवीय दमन को बहादूरी से संगठित हो कर विफल कर देश के हुक्मरानों को पृथक राज्य गठन के लिए विवश कर दिया था। जिस उत्तराखण्ड ने मुगलों व फिरंगी सहित तमाम विदेशी आक्रांताओं को मुंहतोड़ जवाब दिया था। जिस उत्तराखण्ड की बहादूर जनता ने इंदिरा गांधी की थोपशाही के खिलाफ गढ़वाल लोकसभा उपचुनाव में मुहतोड़ जवाब दिया। जिस उत्तराखण्ड की जनता ने उत्तराखण्ड विरोधी नारायणदत्त तिवारी के कुशासन को उखाड़ फेंका था। आज वही उत्तराखण्ड की जनता प्रदेश में एक के बाद एक हो रहे भ्रष्टाचार पर मूक क्यों है। वह क्यों प्रदेश की राजनैतिक ताकत व भविष्य को सदा के लिए जमीदोज करने वाले प्रदेश विधानसभाई परिसीमन को जनसंख्या पर आधार पर थोपने वाले तिवारी व खंडू डी सहित कांग्रेसी नेताओं के कुकृत्य को मूक रह कर सह रहे हैं। वह क्यों प्रदेश की जनांकांक्षाओं की कूंजी स्थाई राजधानी गैरसैंण न बनाने पर तुले प्रदेश की अब तक की सरकारों के षडयंत्रों पर अपना विरोध प्रत्यक्ष रूप से प्रकट क्यों नहीं कर पा रही है। वह क्यों अपने स्वाभिमान को मुजफरनगर काण्ड-94 में रौंदने वाले अपराधियों को दण्डित करने के बजाय मूक रह कर बचाने के कृत्य करने वाले अब तक के शासकों को धिक्कार नहीं रहे है। आखिर अपने स्वाभिमान व हक हकूकों को रोंदने वाले तिवारी से लेकर निशंक तक के तमाम सत्तासीनों से दो टूक सवाल क्यों नहीं किया। आज यह सवाल वर्तमान के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है अपितु यह सवाल उत्तराखण्ड के भविष्य को भी प्रभावित करेंगे। जिस प्रकार से निशंक सरकार के भ्रष्टाचार व कुशासन एक के बाद एक उच्च न्यायालय में खुल रहे हैं उस पर शर्मनाक ढ़ग से उनको राजनैतिक संरक्षण मिल रहा है तथा मीडिया का मूक समर्थन मिल रहा है वह उत्तराखण्ड के भविष्य के साथ साथ देश की लोकशाही के लिए काफी खतरनाक है।
आखिर आमरण अनशन में ही शहादत देने वाले श्री देव सुमन की शहादत के बाद टिहरी की जांबाज जनता ने टिहरी से राजशाही का कलंक सदा के लिए दफन कर लोकशाही का स्थापित कर दिया था। परन्तु आज शहादत से गठित हमारे प्रदेश में, देश भूमि कहलाये जाने वाली पावन धरती उत्तराखण्ड में आज यहां की जनता को क्या हो गया कि वह प्रदेश के हितों को निर्ममता से रौंदे जाने पर भी मूक क्यों हैं। आज यहां इन सत्ता के सौंदागर प्रदेश के हक हकूकों को अपने निहित स्वार्थ के लिए जिस प्रकार से बंदरबांट कर रहे है। यहां पर प्रतिभा के बजाय जातिवाद व क्षेत्रवाद का जो अंधा कुशासन चल रहा है वह प्रदेश के विकास को ही नहीं यहां पर सदियों से स्थापित समाजिक सौहार्द को भी तहस नहस कर दिया। यहां की प्रतिभाओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने के बजाय अपने प्यादों व दिल्ली के आकाओं के प्यादों को उत्तराखण्ड में थोपा जा रहा है। ऐसे में प्रदेश की जनता जो कभी अपनी ईमानदारी के लिए विश्व विख्यात रही। ऐसे उत्तराखण्ड की जनता लगता है चुनाव के समय भ्रष्टाचारियों को कड़ा सबक सिखायेगी। परन्तु चुनाव में तो जनता अवश्य इनके मनसूबों को तहस नहस करने के लिए खुल कर न केवल आवाज उठायेंगी अपितु इन कुशासकों के भ्रष्टाचार को मूक समर्थन देने वाली मीडिया पर भी सही जवाब देगी। शेष श्रीकृष्ण कृपा। हरि ओम तत्सत्। श्रीकृष्णाय् नमो।

http://www.rawatdevsingh.blogspot.com/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0

Mr Dhirendra Pratap ON Baba Mohan Uttarakhandi

---------------------


---------- Forwarded message ----------
From:   dhirendra pratap <dhirendrapratap100@yahoo.co.in>
Date:   Fri, 27 May 2011 12:23:28 +0530 (IST)
Subject:   Baba Uttarakhandi,jine hum kabhi bhula nahi sakte
To:   msmehta@merapahad.com

Baba Mohan Uttarakhandi was a great crusador.In 1994 I was travelling across the Garhwal region for strengthening Uttarakhand Sanyukt Sanghrash Samiti(USSS),which was spearheading the Uttarakhand formation movement as its Founder Central Coordinator & Spokesman,He met me in Satpuli on my way to Pauri and in my first interaction I became fond of him and immediately decalerd him as the Patron of District Pauri Grhwal unit of USSS.He was long and very simply dressed.His personality was like great Socrate and his looks were like Romans though he was true Gandhian.He sat on many hunger strikes to press the Govt. for early formation of Uttarakhand separate hill statei. When he started his great hunger strike for the daclaration of Gairsen as the permanent capital of the Uttarakhand state.Unfotunatley at that time was I was the Executive Chairman of of the State Govts.  Rajya Nirman Andolankari Kalyan Parished,a govt. body made for the welfare of the Uttarakhand formation movement agitators.I was instrumantal in bringing a new legislation giving a right of job to every agitator who had remained in jail for seven or more days or was injured during the agitation but the govt.records must varify his credentials.I sggested a 16 point charter and Chief Minister Mr.N.D.tiwari was very liberal and accepted all my suggestions with great regard and humility.It succeeded in providing jobs to hundreds of agitators and brought life to many of their families.What happened during the fasting days of Baba Uttarakhandi between me.the ruling Congress Party and the Chief Minister was a very sad story and if I might right something today It would may prove disastrous for some of big political luminaries,who are sitting on high positions.I have decided in coming years when I would retire from politics I would right a book on the days of Uttarakhand movement and then only like to narrate the whole story.


पंकज सिंह महर

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 7,401
  • Karma: +83/-0

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

  • Core Team
  • Hero Member
  • *******
  • Posts: 40,912
  • Karma: +76/-0
श्र(ांजली: बाबा उत्तराखण्डी

बलिदान तो देना ही होगा
श्र(ांजली: बाबा उत्तराखण्डी

‘सूबे के जिन लोगों के दिलों में मां की अस्मिता के प्रति चिनगारी नहीं भड़कती, उफान नहीं
आता व जरा भी शर्म नहीं है, वो नपुंसक हैं, वे मां के दलाल हैं और दलालों को उत्तराखंड की
जनता कभी माफ नहीं करती।’ -बाबा उत्तराखण्डी

------------------

By - बसंत शाह ‘कुसुमाकर’ (Regional Reporter)

जून की एक दोपहरी को जब मैं आदिबदरी पोस्ट ऑफिस के आगे खड़ा था, तो वहां एक गैरिक वस्त्रों वाले सज्जन आ पहुंचे और मेरा नाम ले कर पता पूछने लगे।  उन्हें प्रणाम करते हुए जब उनका परिचय पूछा, तो अपना भारी भरकम झोला कन्धे से पीठ की तरफ धकेलते हुए और अपने चेहरे को बिखरी हुई लटों से अनावृत्त करते हुए बोले कि, पत्रकार पुरुषोत्तम असनोड़ा जी ने आपसे मिलने को कहा है। तब तक मुझे मालूम नहीं था कि मैं किसी बड़े आन्दोलनकारी उत्तराखण्ड के हितों के प्रबल हिमायती बाबा ‘मोहन उत्तराखण्डी’ से बातें कर रहा हूं। मैं तुरन्त उन्हें अपने घर में ले आया और उनसे उनका परिचय पाते ही उनकी बातों में डूब गया। उनकी बातों का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ कि मुझे लगा कि मेरे और मेरे घर के अन्दर उत्तराखण्ड का सारा दुख-दर्द पसर गया है। कितने सारे दर्द थे बाबा के दिल में? उत्तराखण्ड के बेरोजगार युवाओं का दर्द, दिन-रात खेतों व जंगलों में खटने वाली पहाड़ी नारी का दर्द, सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों के पिछड़ेपन का दर्द और न जाने कितनी पीड़ा इस राज्य के प्रति। मुझे लगा बाबा के दुख दर्दों की गठरी इतनी भारी हो चली थी कि वे उसे अब सर से उतार कर खुद को व उत्तराखण्डियों को हल्का करना चाहते थे। इस दर्द को हमेशा गैरसैंण के सन्दर्भ में जोड़ते हुए वे राजधानी के लिए अपने संघर्ष को रेखांकित करते चले जाते। जिस बाबा को मैंने प्रथम दृष्टि में हल्के में लिया था वह जुनूनी बाबा अब मेरे हृदय के अंतस्थल में श्र(ा का विस्तार पाकर रम गए थे और श्री आदिबद्रीनाथ जी के मन्दिर में वरद मुद्रा में विराजमान प्रतिमा की तरह स्थापित हो गए थे। बाबा एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर मंत्रणा की दृष्टि से मुलाकात करने आए थे। वह मुद्दा था गैरसैंण राजधानी के लिए एक निर्णायक लड़ाई लड़ना। जिसके बारे में शायद पत्रकार पुरुषोत्तम असनोड़ा जी से उन्होंने पहले ही विचार विमर्श कर लिया था। यद्यपि बाबा कई बार इस लड़ाई को दूधातोली, नन्दा ठोंकी, कौन गढ़ व अन्य स्थानों पर लड़ चुके थे किन्तु इस बार की लड़ाई को वे दृढ़ संकल्प के साथ उसके मुकाम तक पहुंचाना चाहते थे। जैसे कि उनके ज़ज्बातों से साफ जाहिर हो रहा था। बाबा का यह संकल्प मुझे इस बात का भी भान करा गया कि राजधानी की बात करने वाले राजनेता व उनके दलों की वैचारिक दिवालियापन की परिणति ने ही उन्हें इस अन्तिम विकल्प को चुनने के लिए प्रेरित किया था। बाबा ने तय कर लिया था कि वे अब एक ऐतिहासिक लड़ाई लड़ेंगे।

बस उन्हें इस लड़ाई को लड़ने के लिए उपयुक्त स्थान की तलाश थी। इसी सन्दर्भ में बाबा ने मुझ से प्राचीन गढ़
नरेशों की राजधानी चांदपुरगढ़ को देखने की इच्छा प्रकट की थी। मैं उन्हें अपने स्कूटर पर बिठा चांदपुरगढ़ किला ले गया। वहां बारीकी से उन्होंने सब कुछ निहारा, आन्दोलन के पहल से हर चीज को परखा। यह 28 जून 2004 की बात है। फिर मैं उनको साथ ले अपने घर लौट आया। सूक्ष्म जल-पान के बाद वे कुर्सी पर बैठ कर मौन हो  उनके चेहरे के भावों से साफ दृष्टिगत हो रहा था कि वे अपने अन्दर उठे हुए विचारों के तूफान से खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। वे अचानक उठे और छत की तरफ निहारते हुए बोले भाई मेरे बलिदान तो देना ही होगा, वरना बलिदानियों का त्याग बेकार गया। देखो अपने अगले कदम की मैं तुम्हें शीघ्र सूचना दूंगा यह कहकर उन्होंने अपना झोला-झमटा उठाया और हल्के कदमों से सीढ़ियां उतरते हुए विदा हो गए। विद्यालय का नया सत्र शुरू हो गया था। इसलिए मेरी व्यस्तता बढ़ गई थी। इसी व्यस्तता के बीच 3 जुलाई 2004 की सुबह बेनीताल के मेरे परिचित सुबेदार पदम सिंह मेरे स्कूल के कार्यालय में आ धमके और मेरे हाथ में एक पत्र थमाकर बोले बाबा राजधानी के मुद्दे को लेकर बेनीताल टोपटी उड्यार में अनशन पर बैठ गए हैं। मुझे बाबा का आदेश हुआ है कि मैं यह पत्र किसी प्रकार आप तक पहुंचा दूं। सुबह ही उठकर चला आया हूं। मुझे और पुरुषोत्तम असनोड़ा को सम्बोधित इस पत्र की अन्तिम पक्तियां थी, ‘‘अनशन की श्रृखंला में मेरा यह तेरहवां अनशन होगा, जो लक्ष्य-प्राप्ति में मील का पत्थर साबित होगा।’’ उस रोज मैं बेनीताल चाह कर भी नहीं जा सका। समाचार प्रेषण भी महत्वपूर्ण था। दूसरे दिन समाचार-पत्र (अमर उजाला) में आमरण अनशन का समाचार खूब मोटी हेड लाइन के साथ छप गया था। इसी रोज मैं बेनीताल अनशन स्थल पर पहुंचा। 2 जुलाई 2004 से बाबा के अनशन पर बैठने का समाचार पूरे क्षेत्र में फैलते ही दोपहर तक बाबा के समर्थन में वहां भारी भीड़ जुटनी शुरू हो गई थी। अनशन के दो सप्ताह गुजरते-गुजरते यह भीड़ कई गुना बढ़ गई। बेनीताल का शान्त वन क्षेत्र अब एक कस्बे की तरह गुलजार हो गया था। लगातार होने वाली वर्षा  से  बेनीताल की ढलानों पर हरियाली के गलीचे बिछ गए थे। 15 जुलाई 2004 को झील के किनारे ऐसे ही एक गलीचे पर बैठकर राजधानी निर्माण संघर्ष समिति के गठन हेतु ग्रामीणों द्वारा एक बड़ी बैठक आयोजित की गई। जिसमें
बाबा जी भी शामिल हुए बैठक में संघर्ष समिति के अध्यक्ष पद हेतु मेरे नाम का प्रस्ताव आया, जो सर्वसम्मति से  दबोचना चाहती थी और अपने साथ ले जाना चाहती थी, किन्तु वे कभी झांसे में नहीं आए।  बाबा अपने साथ हमेशा निवान की शीशी व सल्फास की दस गोलियां रखे रहते थे। उनकी चेतावनी थी कि यदि उन्हें जबरन उठाया गया, तो वो सल्फास निगल कर

अपना प्राणान्त कर देंगे। 3 जुलाई को बाबा ने अपनी डायरी में लिखा था- ‘सूबे के जिन लोगों के दिलों में मां की अस्मिता के प्रति चिनगारी नहीं भड़कती, उफान नहीं आता व जरा भी शर्म नहीं है, वो नपुंसक हैं, वे मां के दलाल हैं और दलालों को उत्तराखंड की जनता कभी माफ नहीं करती।’ एक माह बाद 2 अगस्त 2008 को बाबा अपनी डायरी में लिखते हैं- ‘प्रभु की असीम कृपा से मैं अनशन के 32वें दिन में पहुंच गया हूं एवं प्रफुल्लित महसूस कर रहा हूं। इसी रोज मण्डल मुख्यालय पौड़ी से उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की आग भड़की थी। आज प्रातः छप्पर के बाहर कौआ शुभ संकेत दे गया, आज जो भी आएगा शुभ आएगा।’ किन्तु बाबा का शुभ सन्देश लेकर उस रोज कोई भी शासन-प्रशासन का नुमाइन्दा नहीं आया। 8 जुलाई 2004 को रात्रि से ही मेघ झमाझम बरस रहा था। रात्रि से ही सारे गाड़ गधेरे उफान पर थे। आदिबद्री से बेनीताल का 03 किमी. खड़ी चढ़ाई वाला रास्ता घास व झाड़ियों से इतना ढका हुआ था कि उस पर चलना मुश्किल हो रहा था। रास्ते भर जौंक लिपलिपा रहे थे। सारा मार्ग कुहरे व धुंध में गुम था। रास्ता दिखाई तक नहीं देता था, पर मैंने आज बाबा जी से एक अन्तरंग लम्बे साक्षात्कार करने का मन बना लिया था। किसी तरह गिरते पड़ते बेनीताल टोपरी उड्यार पहुंच गया। बाबा अपनी पूर्ववत मुद्रा में बैठे मदन व अन्य ग्रामीणों से बतिया रहे थे। मौसम भयावह हो चला था। बाहर वर्षा और तेज हो गई थी, अन्दर धूनी में गीली लकड़ियां सुलग कर धुंआं कर रही थी। आज बेनीताल के अधिकांश लोग गैरसैंण में आयोजित राजधानी निर्माण के सम्बन्ध में होने वाली बैठक में भाग लेने चल गए थे। बाहर-भीतर सूनापन पसरा था। रह-रह कर कभी कभार बगल में बंधे गाय-बैलों की घण्टियांे के धीमे श्वर उभर कर ध्यान खींचते थे। ऐसे में मैं बाबा से प्रश्न करते चला गया और मेरे हर प्रश्न का उत्तर बाबा ने विस्तार से दिया। अपने पास रखे छोटे से वॉक-मैन पर मैंने उसे टेप  कर लिया। मुझे क्या पता था कि, बाबा से होने वाली यह मेरी अन्तिम वार्ता है और बाबा का अन्तिम साक्षात्कार।

 

Sitemap 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22