1857 के गदर से आई कुमाऊं में क्रांति की लहर
अल्मोड़ा: ब्रितानी हुकूमत के अत्याचारों से त्रस्त गुलाम हिंदुस्तानियों के 1857 का विद्रोह गदर नाम से इतिहास में दर्ज हो गया। यही था स्वतंत्रता आदोलन का पहला सशक्त शंखनाद। इसने दक्षिण से उत्तर व पूरब से पश्चिम तक के भारतवासियों को अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया। कुमाऊंभला इससे भला कैसे अछूता रह सकता था। पहाड़ के बाके वीर संग्राम में कूद गए। इसकी भनक जैसे ही अंग्रेजी शासकों के कमिश्नर रैमजे हेनरी को लगी वह तत्काल कुमाऊं पहुंच गया। उसने कुमाऊं व गढ़वाल में मार्शल लॉ लागू कर दिया। सारी आंदोलनकारी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई। अब ब्रिटिश साम्राज्य के हुक्मरानों का अत्याचार और बढ़ गया। गरम दल के कई स्वतंत्रता संग्रामियों को नैनीताल के एक गधेरे में फांसी पर लटका दिया गया। उस गधेरे का नाम ही फांसी गधेरा पड़ गया। आज भी वह इसी नाम से जाना जाता है। 1958 आते-आते इसकी आग काली कुमाऊं में उग्र बगावत के रूप में फैल गई। विशुं पटट्ी के देश भक्त कालू सिंह महरा, आंनद सिंह फत्र्याल व विशन सिंह करायत आर-पार के संघर्ष के लिए कूद गए। आंनद सिंह फत्र्याल व विशन सिंह करायत को सरकार का विद्रोही करार देते हुए अंग्रेजों ने उन्हें गोली से उड़ा दिया। कालू सिंह महरा को आजीवन जेल की सजा सुनाई गई। इसी दौर में स्वामी विवेकानंद अल्मोड़ा आए। उनके ओज का परिणाम था कि लाला बद्री साह ठुलघरिया ने आर्थिक मदद के लिए आंदोलन में दिल खोल कर पैसा दिया। तभी युवा स्वामी सत्यदेव का भी आगमन हुआ। उन्होंने परतंत्रता के खिलाफ खड़े हो कर स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष का पाठ पढ़ाया। जिससे अनेक युवा प्रभावित हुए। उनमें ज्वाला दत्त जोशी, वाचस्पति पंत, हरीराम पांडे, सदानंद सनवाल, शेख मानुल्ला व बद्री साह प्रमुख आंदोलकारियों में गिने जाते हैं। उसी दौर में देशभक्ति भावना व अंग्रेजी सरकार के खिलाफ आग उगलने वाली साप्ताहिक पत्रिका 'अल्मोड़ा अखबार' ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। अल्मोड़ा से निकला यह समाचार पत्र राष्ट्रीय पत्रिका बन गई। इस पत्रिका का संपादन कुर्माचल केसरी बद्री दत्त पांडे, विक्टर मोहन जोशी व जयंिहंद का नारा देने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी राम सिंह धौनी जैसे संग्रामी ने किया।
इंसेट-
प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख गतिविधियां
- 1914 में बद्री दत्त पांडे, लाला चिरंजी लाल, डॉ. हेम चंद्र जोशी, मोहन जोशी ने होम रूल लीग की स्थापना की।
- 1917 में कुमाऊं परिषद की स्थापना हुई। अग्रणी भूमिका में भारत रत्न पं.गोविंद बल्लभ पंत, बद्रीदत्त पांडे, तारा दत्त गैरोला, बद्री दत्त जोशी, प्रेम बल्लभ पांडे, बैरिस्टर मुकंदी लाल, इंद्र लाल साह, मोहन सिंह दरम्वाल रहे।
- 1920 में महात्मा गांधी के नागपुर अधिवेशन में बद्रीदत्त पांडे के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल कुली बेगार अन्याय को लेकर मिला।
- 1921 में मकर संक्रांति के दिन कुली बेगार के रजिस्टरों को सरयू में प्रवाहित किया गया।
-1941 में गांव-गांव में सत्याग्रहियों ने स्वाधीनता आंदोलन चलाया
- पांच सितंबर 1942 को खुमाड़ में अंग्रेजों ने गोली चलाई, जिसमें गंगा राम, खीमानंद व चार दिन बाद चूड़ामणी, बहादुर सिंह की मौत हो गई।
(
http://www.jagran.com)