हमारे सन्जू दा (Dr shailesh Upreti, अमेरिका वाले) और बिन्दिया भाभी जी गैरसैंण के पक्ष में अमेरिका के प्रवासी उत्तराखण्डियों को जागरुक कर रहे हैं. उनकी यह सुन्दर कविता देखिये
ठान एछौ मन में आज, पूर करण छु सबुक स्वैंण
टालि हैलो बहुत दिनां बे, आब बनानू उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण
राजनितिक दल, राजनेता, समाजसेवी सब्ब बस कौने रेंल
स्वैण छु हमौर, यौके सत्य करूहूँ हम जेंल
यौ नि हुन - ऊ नि हुन - कै बेर के नि हुन
जब पिस्छा पीसी इजू ग्यूं दागड़ पिसछौ घुन
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती, मिलाओ हाथ सब भै बैण
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...
और ले छन समस्या हमरी यश ले सोचिल कुछ दगड़ू
भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी छोड़ि बे गैर्सैणक पछिल किले पड़ू
ठीक सोच्छा आपू.. हम ले तुमौर दगड़ छूं ददा भुलू..
पर कें तो करण पड़ली शुरुआत, यौ लिजी गैरसैण हम चलु
देश मजी भ्रष्टाचार कां नहेती, बेरोजगारी दुनिया मजी फैली...
गरीबीक यश हाल छु भैया, दूध बे सस्ती छु शराबक थैली..
देश व परदेश लिजी महत्वपूर्ण हैछौ राजधानी..
वें बेटी विकास योजना बननी, और एंछौ बिजली-पाणी
दगड़ु, उत्तराखंड प्रदेश छु गरीब किसानुक, जो बसी छन पहाड़ा मजी..
कसीक पहुंचाल अपण दुःख व्यथा राजधानी, जो छु इतू दूर बसी..
जां ननाहूँ दूध नहेती वाँ शहर जाहूं डबल कां बे आल..
कसि करला गाँव माँ विकासक आशा, जब नेता शहरक चमकें चैल
किलेकी जां होली राजधानी, ऊ तो वोट मांगन्हु वैं ही जेंल
शहरक विकास हेने रौलो, गरीब जस छि तस्स रेंल
गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी ले वस्सी रौली..
शहर और गाँव मजी फर्क हन्ने जालो गैण..
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती...मिलाओ हाथ सब भै बैण..
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...
चिपको आन्दोलन माजी कूदी कदूगैज मातृभूमि, भक्त, मैश-सैण...
वी भाव चें छौ हमुकें आज, बनाहूँ उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण....
कसीक नी हौल पुर हमर तुमौर यौ स्वैण ...
मिलबे करुल तो गोल ज्यु ले है जेंल देणं..
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती...मिलाओ हाथ सब भै बैण..
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...