Author Topic: Gairsain: Uttarakhand Capital - गैरसैण मुद्दा : अब यह चुप्पी तोड़नी ही होगी  (Read 85658 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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दिनेश जी,

बहुत-२ धन्यवाद.  आपके विचारों से मै तरह से सहमत हूँ! उत्तराखंड राज्य को बने लगभग १ दसक का समय होने वाला है और साथ राजधानी का मुद्दा तब से लटका हुवा है!

मै इस बात से हैरान हूँ इस राज्य में कितने आन्दोलन चाहिए होंगे! राज्य बनाने के बाद हमारे राज्य ने विकास तो कोई खास देखा नहीं लेकिन ४ मुख्यमंत्री देख लिए और राजधानी के नाम पर हर कोई राजनीति कर गया!

हाँ लगता है जरुर एक और आन्दोलन जी जरुरत है! यह होगा १००% होगा !  मेरा मानना कि  उत्तराराखंड क्रांति दल राज्य के मात्र एक क्षेत्रीय पार्टी है जिसने राज्य के निर्माण के लिए बहुत बड़ा योगदान रहा है लेकिन राज्य बनाने के बाद एक बार भी इस पार्टी को राज्य में राज करने का मौका नहीं मिला! राजधानी का मुद्दा उत्तराखंड क्रांति दल का सबसे मुद्दा है! एक बार जनता को उत्तराखंड क्रांति दल को भी मौका देना चाहिए!



निश्चित ही गैरसैंण पर आन्दोलन की जरूरत है। सरकारों या किसी पहली, दूसरी, तीसरी पार्टी के भरोसे भी राजधानी पहाड़ों पर नहीं पहुंच सकती। उत्तराखण्ड को मिलने में भी ६० साल से ज्यादा समय लगा। राजधानी भी जल्दी नहीं मिलने वाली, तय मानिए। गैरसैंण किसी मजहब या ठाकरे का फतवा नहीं कि आन्दोलन खड़ा हो जाये। आज यदि जनमत जुटाने का उपक्रम किया तो आप हार जायेंगे। परिसीमन हो चुका है। आप हाशिए पर धकेले जा चुके हैं। आन्दोलन की जमीन बेहद कमजोर है। अपनों ने ही कमजोर की है यह। राज्य के एक बड़े वर्ग को गढ़वाल में देहरादून और कुमाऊं में हल्द्वानी नजदीक और आसान हो गया है। यहां की जमीनों की कीमतें बता रही हैं कि पहाड़ कहां बसना चाहता है। लिहाजा समाधान क्या है? भंवर बना दिया गया है, और इसी भंवर से निकालना होगा समाधान।
मैं मानता हूं कि आन्दोलन के लिए विचारों की जरूरत है, मजबूत विचारों की। जो जानते हों कि गैरसैंण क्यों चाहिए और किसे!! आप यदि पक्षधर हैं तो अपने ईर्दगिर्द समझाइये कि गैरसैंण क्यों? इस मंथन में निश्चित ही विष भी सामने आयेगा, अमृत भी। लड़ाई जारी रखिए...........................।


धनेश कोठारी

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mehta ji UKD bhi ab satta ki malai mein mast hai. so ummid bemani hai. vah apana Agenda hi bhul chuki. Jis dal mein apne sangathan ke liye hi ek ray na ho use gaddi dena pairon par kulahda marne jaisa hai. halanki main bhi chahata hun ki bhagawan unhin sadbuddhi de. ve rajya ke pakshadharon ke sath eka kar aage badain na ki BJP ya CONGRES ke sath.
UK mein ab tak 4 nahi 5 CM ho chuke hain.

Devbhoomi,Uttarakhand

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गैरसैण के मुद्दे को अब काफी समय हो चुका है और अभी तक कुछ भी फैसला नहीं लिया गया है और  न ही शायद लिया जायगा,अगर हम लोग सरकार के भरोसे पर रहेंगें तो कुछ भी नहीं हो सकता है !

 अगर हम सरकार के भरोसे ही रहते तो आज उत्तराखंड उत्तर प्रदेश  से अलग भी नहीं होता और हम लोग वहीँ चक्की पीस रहे होते क्योंकि अभी तक उत्तराखंड में पांच सी यम आ गए हैं लेकिन किसी ने भी गैरसैण को राजधानी बनाने का प्रस्ताव अभी तक आगे नहीं बढ़ाया! अगर गैरसैण को कोई राजधानी बना सकता है तो वो हैं उत्तराखंड कि जनता न कि सरकार !

 दोस्तों एक कहावत है कि
" जब -तक बच्चा रोयेगा नहीं, तब-तक माँ भी दूध नहीं पिलाती है "

पंकज सिंह महर

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" जब -तक बच्चा रोयेगा नहीं, तब-तक माँ भी दूध नहीं पिलाती है "

बच्चा तो न जाने कब से रो रहा है, लेकिन मां (सरकार) इतनी निष्ठुर हो चुकी है कि बच्चे के रोने का उसपर कोई प्रभाव ही नहीं पड़ रहा। वह तो लिपिस्टिक लाली लगाये अच्छी मां होने का नाटक कर बस्स फोटो खिंचवा रही है।

सत्यदेव सिंह नेगी

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गैरसैण राजधानी बनाना अनिवार्य है क्योंकि उत्तराखंड एक पर्वतीय राज्य है

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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The Torch (masal) for shifting the capital will continue to flame.. till the Rajdhani is shifted to Gairsain. This is what people has been demanding .

उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी गैरसैंण घोषित करने की मांग

अल्मोड़ा: उत्तराखण्ड क्रांति दल (युवा प्रकोष्ठ) के जिला इकाई की यहां हुई बैठक में उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी गैरसैंण घोषित किए जाने पर जोर दिया गया।

उक्रांद के जिला कार्यालय में हुई बैठक में वक्ताओं ने बढ़ती महंगाई के लिए केन्द्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया। वक्ताओं ने ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न व मिट्टी के तेल की अनुपलब्धता पर नाराजगी जाहिर की। शीघ्र ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न व मिट्टी का तेल उपलब्ध कराने की मांग की। जिलाध्यक्ष बहादुर सिंह कनवाल ने कार्यकर्ताओं का आह्वान किया कि वह दल की नीतियों को ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुंचाएं। वक्ताओं ने उत्तराखण्ड विधानसभा द्वारा प्रस्तुत बजट को अल्मोड़ा जनपद के लिए निराशाजनक बताया। बैठक में दल को और सुदृढ़ बनाने का निर्णय भी लिया गया।

बैठक की अध्यक्षता जिलाध्यक्ष बहादुर सिंह कनवाल व संचालन ब्लाक अध्यक्ष सोनू कनवाल ने किया।

Source :http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6271434.html

Rawat_72

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अरे बुबू किस्म किस्म के विद्वान पैदा हुए कहा उस समय , एक विद्वान ने उस समय आन्दोलन को भटकाने के लिए वृहद उत्तराँचल बनाने की बात कर दी (पश्चिमी उत्तर प्रदेश और वर्तमान उत्तराखंड) पर जब जनता ने उनको जूते मरना शुरु किया तब उन्होंने अपनी मांग वापस ली और उत्तराखंड राज्य को उत्तराँचल कहना शुरू कर दिया इन विद्वान ने भी मौका मिलते ही मुखमंत्री की कुर्सी लपक ली !

एक विद्वान और थे , उन्होंने आन्दोलन के दौरान जब दिल्ली मे प्रदर्शन का आवाहन हुआ तो उन् विद्वान ने गृह मंत्रालय को एक चिठ्ठी लिख दी की पहाडी लोग हतियारों से लैस होकर दिल्ली प्रदर्शन को आ रहे है  जबकि पूरा आन्दोलन एक अहिंसात्मक आन्दोलन था ! उन विद्वान ने राज्य बनने के बाद अपने को राज्य का सबसे बड़ा आंदोलनकारी घोषित करवा दिया ! और फिर बाद मे मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हड़प ली !

एक और विद्वान् हुए उस समय उन्होंने रातो रात दिल्ली मे कई फर्जी संगठन बनाये और उन सबको तत्कालिन प्रधानमंत्री से मिलवा दिया और उनसे कहलवा दिया की पहाड़ के लोग अलग राज्य नहीं चाहते है ! वो भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के जुगाड़ मे हाथ पांव मारते रहे हैं !

कुछ और घणे किस्म के बुद्दिजीवी थे जो कह रहे थे की क्या उत्तराखंड राज्य बनाकर हम उसको तमाम व्याप्त सामाजिक बुराईयों से दूर रख पाएंगे (जरा अंदाज लगाना तो कौन थे वे ?) और कह रहे थे की पहाड़ की सारी समस्याओं पर बात करो पर अलग राज्य की बात मत करो !

एक और महान किस्म  के विद्वान इस आर्याव्रत मे हुए हैं  उन्होंने तो उत्तराखंड आन्दोलन को अलगाववादी मांग तक कह दिया था ! तो बुबू उत्तराखंड आन्दोलन का इतिहास तो इन महान विद्वानों के काले कारनामो से भरा हुआ है !

अब ऐसे ही कई विद्वान्  टाइप और पैदा हो गये हैं जो अपनी एक्सपर्ट राय दे रहे है राजधानी के बारे मे , एक एक्सपर्ट तो कह रहा था की गैरसैण अल्मोडा का
हिस्सा है , तो कोई कह रहा है वहां बाड़ का बहुत खतरा है ,कोई कह रहा है की वहां पानी की उपलब्धता नहीं है ! कुछ अंतर्ज्ञानी कह रहे हैं की कर्णप्रयाग तो समुद्र तल से नीचे चला गया है , और धीरे धीरे गैरसैण भी इसी तरह समुद्र तल के नीचे नीचे होते होते पाताल लोक मे चला जायेगा , तो काहे को गैरसैण का मोह करते हो जो अपना है ही नहीं !कोई विकट किस्म का ज्ञानी गैरसैण को ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने की सलाह दे रहा है !

मुझे तो ये लग रहा है ये विद्वान् टाइप लोग कल को गैरसैण को ही उत्तराखंड का हिस्सा मानने  से मना कर दें , या कहीं ये विद्वान राजधानी मेरी लाश वाश पर बनेगी टाइप बयांन ना दे दें , या फिर अभी कुछ  गैरसैण को केंद्र शाशित दर्जा देने की मांग  भी उठा सकते है !  कुछ सर्वज्ञानी किस्म के पंडित अभी ऐसा भी कह सकते है की गैरसैण तो उत्तराखंड के गाँव गाँव ,डाने काने सभी जगह  व्याप्त है बस अगर हृदय निर्मल है और गैरसैण का भावः है तो वो सब जगह नजर आएगा फिर चाहे देहरादून हो ऋषिकेश हो रामनगर हो सभी जगह एक ही बात है ! और कई ज्ञानी पुरुष तो गैरसैण को राजधानी मानते भी है और नहीं भी, वो इस मुद्दे पर समदृष्टि से चलते हैं गैरसैण और देहरादून को एक ही दृष्टि से देखते हैं!





Shailesh ji kirpya, board mein use vyakti kaa naam daalen jisne home ministry ko letter likha tha kee andolan kari hatiyaaron se laise hokar aa rahe hai. Hame kam se kam Uttarakhand ke Jai chand aur Mir Jaffar kaa naam toh pata hona chaihiye......

हेम पन्त

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उत्तराखण्ड के संगीत सम्राट श्री नरेन्द्र नेगी भी गैरसैण राजधानी के पक्षधर हैं. गैरसैण को उत्तराखण्ड की स्थाई राजधानी घोषित करने की मांग को लेकर किये जा रहे आन्दोलन को नेगी जी के गाने "तुम भि सुणा मिल सुण्यालि" से एक नया जोश मिला है-

इस गाने को आप www.apnauttarakhand.com पर देख, सुन और समझ सकते हैं. 

http://apnauttarakhand.com/tum-bhi-suno-min-sunyali-narendra-singh-negi/

हेम पन्त

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हमारे सन्जू दा (Dr shailesh Upreti, अमेरिका वाले) और बिन्दिया भाभी जी गैरसैंण के पक्ष में अमेरिका के प्रवासी उत्तराखण्डियों को जागरुक कर रहे हैं. उनकी यह सुन्दर कविता देखिये

ठान एछौ मन में आज, पूर करण छु सबुक स्वैंण
टालि हैलो बहुत दिनां बे, आब बनानू उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण
राजनितिक दल, राजनेता, समाजसेवी सब्ब बस कौने रेंल
स्वैण छु हमौर, यौके सत्य करूहूँ हम जेंल
यौ नि हुन - ऊ नि हुन - कै बेर के नि हुन
जब पिस्छा पीसी इजू ग्यूं दागड़ पिसछौ घुन
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती, मिलाओ हाथ सब भै बैण
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...

और ले छन समस्या हमरी यश ले सोचिल कुछ दगड़ू
भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी छोड़ि बे गैर्सैणक पछिल किले पड़ू
ठीक सोच्छा आपू.. हम ले तुमौर दगड़ छूं ददा भुलू..
पर कें तो करण पड़ली शुरुआत, यौ लिजी गैरसैण हम चलु
देश मजी भ्रष्टाचार कां नहेती, बेरोजगारी दुनिया मजी फैली...
गरीबीक यश हाल छु भैया, दूध बे सस्ती छु शराबक थैली..
देश व परदेश लिजी महत्वपूर्ण हैछौ राजधानी..
वें बेटी विकास योजना बननी, और एंछौ बिजली-पाणी

दगड़ु, उत्तराखंड प्रदेश छु गरीब किसानुक, जो बसी छन पहाड़ा मजी..
कसीक पहुंचाल अपण दुःख व्यथा राजधानी, जो छु इतू दूर बसी..
जां ननाहूँ दूध नहेती वाँ शहर जाहूं डबल कां बे आल..

कसि करला गाँव माँ विकासक आशा, जब नेता शहरक चमकें चैल
किलेकी जां होली राजधानी, ऊ तो वोट मांगन्हु वैं ही जेंल
शहरक विकास हेने रौलो, गरीब जस छि तस्स रेंल
गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी ले वस्सी रौली..
शहर और गाँव मजी फर्क हन्ने जालो गैण..
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती...मिलाओ हाथ सब भै बैण..
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...

चिपको आन्दोलन माजी कूदी कदूगैज मातृभूमि, भक्त, मैश-सैण...
वी भाव चें छौ हमुकें आज, बनाहूँ उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण....
कसीक नी हौल पुर हमर तुमौर यौ स्वैण ...
मिलबे करुल तो गोल ज्यु ले है जेंल देणं..
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती...मिलाओ हाथ सब भै बैण..
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...

अड़्याट

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हमारे सन्जू दा (Dr Shailesh Upreti, अमेरिका वाले) गैरसैंण के पक्ष में अमेरिका के प्रवासी उत्तराखण्डियों को जागरुक कर रहे हैं. उनकी यह सुन्दर कविता देखिये

ठान एछौ मन में आज, पूर करण छु सबुक स्वैंण
टालि हैलो बहुत दिनां बे, आब बनानू उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण
राजनितिक दल, राजनेता, समाजसेवी सब्ब बस कौने रेंल
स्वैण छु हमौर, यौके सत्य करूहूँ हम जेंल
यौ नि हुन - ऊ नि हुन - कै बेर के नि हुन
जब पिस्छा पीसी इजू ग्यूं दागड़ पिसछौ घुन
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती, मिलाओ हाथ सब भै बैण
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण......

is jajbe ko salaam

 

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