Author Topic: Gairsain: Uttarakhand Capital - गैरसैण मुद्दा : अब यह चुप्पी तोड़नी ही होगी  (Read 85378 times)

Devbhoomi,Uttarakhand

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हमारे सन्जू दा (Dr shailesh Upreti, अमेरिका वाले) और बिन्दिया भाभी जी गैरसैंण के पक्ष में अमेरिका के प्रवासी उत्तराखण्डियों को जागरुक कर रहे हैं. उनकी यह सुन्दर कविता देखिये

ठान एछौ मन में आज, पूर करण छु सबुक स्वैंण
टालि हैलो बहुत दिनां बे, आब बनानू उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण
राजनितिक दल, राजनेता, समाजसेवी सब्ब बस कौने रेंल
स्वैण छु हमौर, यौके सत्य करूहूँ हम जेंल
यौ नि हुन - ऊ नि हुन - कै बेर के नि हुन
जब पिस्छा पीसी इजू ग्यूं दागड़ पिसछौ घुन
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती, मिलाओ हाथ सब भै बैण
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...

और ले छन समस्या हमरी यश ले सोचिल कुछ दगड़ू
भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी छोड़ि बे गैर्सैणक पछिल किले पड़ू
ठीक सोच्छा आपू.. हम ले तुमौर दगड़ छूं ददा भुलू..
पर कें तो करण पड़ली शुरुआत, यौ लिजी गैरसैण हम चलु
देश मजी भ्रष्टाचार कां नहेती, बेरोजगारी दुनिया मजी फैली...
गरीबीक यश हाल छु भैया, दूध बे सस्ती छु शराबक थैली..
देश व परदेश लिजी महत्वपूर्ण हैछौ राजधानी..
वें बेटी विकास योजना बननी, और एंछौ बिजली-पाणी

दगड़ु, उत्तराखंड प्रदेश छु गरीब किसानुक, जो बसी छन पहाड़ा मजी..
कसीक पहुंचाल अपण दुःख व्यथा राजधानी, जो छु इतू दूर बसी..
जां ननाहूँ दूध नहेती वाँ शहर जाहूं डबल कां बे आल..

कसि करला गाँव माँ विकासक आशा, जब नेता शहरक चमकें चैल
किलेकी जां होली राजधानी, ऊ तो वोट मांगन्हु वैं ही जेंल
शहरक विकास हेने रौलो, गरीब जस छि तस्स रेंल
गरीबी, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी ले वस्सी रौली..
शहर और गाँव मजी फर्क हन्ने जालो गैण..
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती...मिलाओ हाथ सब भै बैण..
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...

चिपको आन्दोलन माजी कूदी कदूगैज मातृभूमि, भक्त, मैश-सैण...
वी भाव चें छौ हमुकें आज, बनाहूँ उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण....
कसीक नी हौल पुर हमर तुमौर यौ स्वैण ...
मिलबे करुल तो गोल ज्यु ले है जेंल देणं..
काम छु कठिन पर नामुमकिन नहेती...मिलाओ हाथ सब भै बैण..
आओ तुम लै भागीदार बनो, बनानू हम उत्तराखंडक राजधानी गैरसैण...

THAT GRATE NEWS PANT DAJU

हुक्का बू

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्टेट यूनिट ने अपने दल की १२ वीं वर्षगांठ को "२१ वीं सदी का राज्य और २१ वीं सदी की राजधानी" के रुप में मनाने का संकल्प लिया है और उन्होंने राज्य की राजधानी गैरसैंण ले जाने का पुरजोर समर्थन किया है।

Devbhoomi,Uttarakhand

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की स्टेट यूनिट ने अपने दल की १२ वीं वर्षगांठ को "२१ वीं सदी का राज्य और २१ वीं सदी की राजधानी" के रुप में मनाने का संकल्प लिया है और उन्होंने राज्य की राजधानी गैरसैंण ले जाने का पुरजोर समर्थन किया है।


ये साली पार्टियाँ केवल संकल्प ही क्यूं लेती हैं करती तो कुछ हैं और,आज उसने संकल्प लिया कल इसने संकल्प लिया और जब वो दूरी बार संकल्प का समय आते -आते वो तो  सहीद हो जाते है !! लगता है गैरसैण राजधानी का सपना ,या गैरसैण को राजधानी अब संकल्पों में ही बनेगी !

Anil Arya / अनिल आर्य

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We should demand for an international level sport stadium in Gairsain too?

Devbhoomi,Uttarakhand

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गैरसैंण राजधानी को संघर्ष जारी रहेगा: उक्रांद
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अल्मोड़ा: उत्तराखण्ड क्रांतिदल राज्य की स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाए जाने समेत विभिन्न समस्याओं को लेकर संघर्ष करेगा। दल ने कहा कि राज्य के जनता के हितों की उपेक्षा बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दल ने 25 नवंबर को जिला मुख्यालय में धरना-प्रदर्शन का ऐलान किया है।

उक्रांद के जिलाध्यक्ष सुभाष पांडे ने कहा है कि दल लंबे अर्से से उत्तराखण्ड की स्थायी राजधानी गैरसैंण बनाए जाने की मांग कर रहा है, पर कोई सुध नहीं ली जा रही है। दल ने लोहारी-नागपाला विद्युत परियोजना समेत अन्य बंद की गई परियोजनाओं को चालू किए जाने की मांग की है। श्री पांडे ने बताया कि दल उत्तराखण्ड के बेरोजगार नौजवानों को रोजगार दिए जाने, जल, जंगल व जमीन पर उत्तराखण्ड की जनता को हक-हकूक दिए जाने तथा अन्य समस्याओं को लेकर उक्रांद 25 नवंबर को जिला मुख्यालय में धरना-प्रदर्शन करेगा। उन्होंने कहा कि गैरसैंण राजधानी दल की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में है। कहा कि स्थायी राजधानी गैरसैंण के लिए दल का संघर्ष जारी रहेगा। उन्होंने 25 नवंबर को जिला मुख्यालयों में होने वाले प्रदर्शन में दल के तहसील व ब्लाक इकाइयों के कार्यकर्ताओं से भागीदारी की अपील की है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6917508.html

पंकज सिंह महर

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कल चुण्डी चखुली- गैरसैंण पर धरमवीर परमार की एक कविता


‘कलचुण्डी चिड़िया’ गढ़वाली लोकबोली के अनुसार ‘दीन रात नहेण धुएण कर दी छौ-कर दी, छौ, सब्या बोदीं काली छै, काली छै, काली छै।’ की धुन पर आधारित यह गीत उत्तराखण्ड राज्य व गैरसैंण राजधानी के लिये शहीद हुए साथियों की कल्पना को साकार करने हेतु समर्पित है –

दीन रात एकि बात बोल्दि छौं, टक्क लगैक सूंणा धौं,

गैरसैंण, गैरसैंण, गैरसैंण, राजधानी गैरसैंण।

हिंस्वली, किलमोड़ी, काफल जख

बेड़ु का बि झुण्टा जख

उच्चा निस्सा डांडा जख

गदन कू घुघराट जख

पुरैयलीं शितगा साल, ढंग से कारा देख भाल

जनकैकि हमल रैंण, हमल रैंण, हमल रैंण

सक्या धाणीं गैरसैंण।

दीन रात …

 

सब्बि जिलों क बीच मा, सब्बि दिलों क बीच मा

सुद्ध हवा का बीच मा, सुद्ध पाणी क बीच मा

कीचड़ की किचकिच ना, भू माफिया की चिकचिक ना

अपण जनम भूमि जनि राजधानी हूणि चैन्द

सूणा सब्बि भाई बैंण, गैरसैंण-गैरसैंण-गैरसैंण, राजधानी गैरसैंण -

मरी गैन कदगा लोग, ऊका छाया कन यो जोग

जनम भूमि क वास्ता, जौन कब्बि सुख नि भोग

स्वींण ऊंकू कौरि सच, आस ऊंकि कुई नि बच

कलचुण्डी चखुली बोल्दी, मन मा हमर यो गीत द्योल्दी

चुप हमल बि अब नि रैंण, अब नि रैंण, अब नि रैंण – मेरि प्राणी गैरसैंण।

 

- धरमवीर परमार

भावार्थ: ध्यान लगाके सुनो, दिन रात एक ही बात बोलती है कि राजधानी गैरसैंण…गैरसैंण…गैरसैंण। हिसालू-किलमोड़ी-काफल व बेडू के झुरमुट के बीच, ऊँचे-नीचे पहाड़ों के बीच जहाँ नदियों की आवाज सुनाई देती है। राज्य बने इतने साल हो गये हैं। ठीक से इसकी देखभाल करो। ऐसी राजधानी गैरसैंण में बनाओ जो हमारे रहने लायक हो।

सभी जिलों के बीच में, हम सबके दिल में, शुद्ध हवा-पानी के बीच जहाँ न कीचड़ की किच-किच है और न भू माफियाओं का डर है। अपनी जन्म भूमि के बीच राजधानी गैरसैंण ही होनी चाहिये। यह उनका धन्य भाग है जो राज्य के लिये शहीद हो गये। उन्होंने जन्म भूमि के लिये कभी सुख नहीं भोगा। उनके सपनों को साकार करो, ताकि उनकी कोई आस बची न रहे। कलचुण्डी चिड़िया ने हमारे मन में यह गीत घोल दिया है कि मेरे प्राण गैरसैंण में हैं इसलिये अब चुप नहीं रहना है।

 

साभार- नैनीताल समाचार

http://www.nainitalsamachar.in/kalchundi-chakhuli-rajdhani-gairsain/

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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अति सुंदर कविता

गैरसैंn के मुद्दे को सशक्त करता हुआ ! 

कल चुण्डी चखुली- गैरसैंण पर धरमवीर परमार की एक कविता


‘कलचुण्डी चिड़िया’ गढ़वाली लोकबोली के अनुसार ‘दीन रात नहेण धुएण कर दी छौ-कर दी, छौ, सब्या बोदीं काली छै, काली छै, काली छै।’ की धुन पर आधारित यह गीत उत्तराखण्ड राज्य व गैरसैंण राजधानी के लिये शहीद हुए साथियों की कल्पना को साकार करने हेतु समर्पित है –

दीन रात एकि बात बोल्दि छौं, टक्क लगैक सूंणा धौं,

गैरसैंण, गैरसैंण, गैरसैंण, राजधानी गैरसैंण।

हिंस्वली, किलमोड़ी, काफल जख

बेड़ु का बि झुण्टा जख

उच्चा निस्सा डांडा जख

गदन कू घुघराट जख

पुरैयलीं शितगा साल, ढंग से कारा देख भाल

जनकैकि हमल रैंण, हमल रैंण, हमल रैंण

सक्या धाणीं गैरसैंण।

दीन रात …

 

सब्बि जिलों क बीच मा, सब्बि दिलों क बीच मा

सुद्ध हवा का बीच मा, सुद्ध पाणी क बीच मा

कीचड़ की किचकिच ना, भू माफिया की चिकचिक ना

अपण जनम भूमि जनि राजधानी हूणि चैन्द

सूणा सब्बि भाई बैंण, गैरसैंण-गैरसैंण-गैरसैंण, राजधानी गैरसैंण -

मरी गैन कदगा लोग, ऊका छाया कन यो जोग

जनम भूमि क वास्ता, जौन कब्बि सुख नि भोग

स्वींण ऊंकू कौरि सच, आस ऊंकि कुई नि बच

कलचुण्डी चखुली बोल्दी, मन मा हमर यो गीत द्योल्दी

चुप हमल बि अब नि रैंण, अब नि रैंण, अब नि रैंण – मेरि प्राणी गैरसैंण।

 

- धरमवीर परमार

भावार्थ: ध्यान लगाके सुनो, दिन रात एक ही बात बोलती है कि राजधानी गैरसैंण…गैरसैंण…गैरसैंण। हिसालू-किलमोड़ी-काफल व बेडू के झुरमुट के बीच, ऊँचे-नीचे पहाड़ों के बीच जहाँ नदियों की आवाज सुनाई देती है। राज्य बने इतने साल हो गये हैं। ठीक से इसकी देखभाल करो। ऐसी राजधानी गैरसैंण में बनाओ जो हमारे रहने लायक हो।

सभी जिलों के बीच में, हम सबके दिल में, शुद्ध हवा-पानी के बीच जहाँ न कीचड़ की किच-किच है और न भू माफियाओं का डर है। अपनी जन्म भूमि के बीच राजधानी गैरसैंण ही होनी चाहिये। यह उनका धन्य भाग है जो राज्य के लिये शहीद हो गये। उन्होंने जन्म भूमि के लिये कभी सुख नहीं भोगा। उनके सपनों को साकार करो, ताकि उनकी कोई आस बची न रहे। कलचुण्डी चिड़िया ने हमारे मन में यह गीत घोल दिया है कि मेरे प्राण गैरसैंण में हैं इसलिये अब चुप नहीं रहना है।

 

साभार- नैनीताल समाचार

http://www.nainitalsamachar.in/kalchundi-chakhuli-rajdhani-gairsain/


हेम पन्त

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Gairsain: Uttarakhand Capital - Poem of Balli Singh Cheema
« Reply #277 on: February 12, 2011, 11:34:08 AM »

Devbhoomi,Uttarakhand

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विकास को गैरसैण में सत्र चलना जरूरी
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गढ़वाल सांसद व केंद्रीय रक्षा समिति के अध्यक्ष सतपाल महाराज ने कहा कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों का विकास तभी संभव है, जबकि प्रत्येक वर्ष एक विधानसभा सत्र गैरसैण में आयोजित किया जाए। उन्होंने राज्य के विकास के लिए गढ़वाली व कुमाऊंनी भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की जरूरत पर भी जोर दिया।

राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय के छात्र संघ वार्षिकोत्सव के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि सतपाल महाराज ने कहा कि राज्य में रोजगार के तमाम संसाधन उपलब्ध हैं, आवश्यकता है तो उनका दोहन करने की। उन्होंने प्रदेश में हाईड्रोजन ईधन उत्पादित करने, राज्य में विभिन्न सुविधाओं से लैस ईको विलेज बनाने की बात भी कही।

कार्यक्रम में बतौर विशिष्ट अतिथि पूर्व काबीना मंत्री सुरेंद्र सिंह नेगी ने युवाओं को परिस्थितियों से निपटने के लिए बौद्धिक संव‌र्द्धन करते हुए विकास के लिए आगे आने को कहा। उन्होंने नौनिहालों को राष्ट्र निर्माता बताते हुए कहा कि आज बुद्धिजीवी वर्ग नौनिहालों के शैक्षणिक स्तर को सुधारने के लिए प्रयासरत हैं।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_7433516.html

Anil Arya / अनिल आर्य

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विधानसभा में पेश संकल्प पर भाजपा-कांग्रेस-बसपा और यूकेडी (डी) के सदस्य कुछ नहीं बोले
गैरसैंण पर सदन में छाई चौंकाने वाली चुप्पी
अमर उजाला ब्यूरो
देहरादून। उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण को बनाने के मुद्दे पर शुक्रवार को सभी प्रमुख सियासी दलों की पोल खुल गई। इस मुद्दे से जुड़ा संकल्प विधानसभा में आया तो सभी दलों के नेताओं ने चुप्पी साध ली। अहम बात यह है कि यूकेडी की तरफ से इस संकल्प को लाने की कोशिश कई वर्षों से चल रही थी। नेताओं की खामोशी से तो यही लगता है कि इनकी चाहत देहरादून को ही राजधानी बनाए रखने की है।
प्रदेश की राजधानी गैरसैंण बनाने की मांग के पीछे प्रमुख तर्क इसका गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के बीच स्थित होना है। राजधानी चयन के लिए सरकार ने दीक्षित आयोग का गठन किया पर उसने दून को सर्वश्रेष्ठ विकल्प बताया। गैरसैंण को उसने जनभावनाओं से जुड़ी मांग करार दिया। इस मुद्दे पर लंबी चुप्पी के बाद शुक्रवार को जब विधानसभा में यूकेडी (पी) के पुष्पेश त्रिपाठी ने गैरसैंण को राजधानी बनाने का संकल्प सदन में प्रस्तुत किया तो सभी दलों का व्यवहार चौंकाने वाला था। भाजपा और कांग्रेस की तरफ से एक भी वक्तव्य पक्ष या विपक्ष में नहीं आया। बसपा से आशा भी नहीं थी यूकेडी (डी) के ओमगोपाल रावत और दिवाकर भट्ट भी खामोश रहे। कभी बसपा में रहे काजी निजामुद्दीन जरूर गैरसैंण के हक में बोले, मगर उन्हें ताली नहीं मिली। गोया दबी जुबान में यह प्रतिक्रिया सुनने को मिली कि यह क्या मुसीबत आ गई। आखिरकार संकल्प निर्ममता के साथ दफन कर दिया गया।
गैरसैंण को राजधानी बनाने पर चर्चा नामंजूर
देहरादून। गैरसैंण को राजधानी घोषित करने के संकल्प पर चर्चा सदन में नामंजूर हो गई। पुष्पेश त्रिपाठी के संकल्प प्रस्ताव पर सभी सदस्य खामोश रहे। नेता सदन और नेता प्रतिपक्ष सदन में नहीं थे। सिर्फ बसपा के असंबद्ध विधायक काजी निजामुद्दीन ने प्रस्ताव का समर्थन किया। पुष्पेश त्रिपाठी ने 27 फरवरी, 2009 को राज्य की राजधानी गैरसैंण घोषित करने का संकल्प सदन में प्रस्तुत किया था। कुछ समय से त्रिपाठी इस पर बोलने से बच रहे थे। लिहाजा इस संकल्प पर चर्चा का मसला खिंचता रहा। शुक्रवार को सदन में पुष्पेश इस पर बोले और गैरसैंण को राजधानी बनाने के पक्ष में तर्क दिए। संकल्प पर संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने दीक्षित आयोग की रिपोर्ट का हवाला दिया। कहा कि 2006 का एक आश्वासन भी आश्वासन समिति में लंबित है। प्रावधान है कि सदन में एक ही विषय पर दो बार अलग-अलग चर्चा नहीं की जा सकती है। पीठ की ओर से चर्चा को अस्वीकृत कर दिया गया। इसका विरोध जताते हुए पुष्पेश ने सदन से बहिर्गमन किया।
http://epaper.amarujala.com/svww_index.php

 

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