Author Topic: Gairsain: Uttarakhand Capital - गैरसैण मुद्दा : अब यह चुप्पी तोड़नी ही होगी  (Read 85207 times)

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Bubu aapke lekh main  Jab Jab sarfire bole hain, aawaz uthai hai aur kar dikhaya hai, aaj v wahi itihas dohraya jayega, sarfirun ne bola hai Gaisain Rajdhani banegi to ban hi jayegi,

Mohan Bisht -Thet Pahadi/मोहन बिष्ट-ठेठ पहाडी

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wah bubu tumne to humara josh aur bhi bada diya thaira...ab ye sarfire bhi nahi rukne waale hai ...... sachi mai hum sabhi sapath laite hai ki ab hum dum tabhi lange jab rajdhani gairsain banegi.... kasam us uttarakhand ki dev bhumi ki bubu

ek krantiveer mohan uttarakhandi thai jo saheed ho gaye hai per ab ek naya mohan uttarakhandi aapko nazar aayega....... unhone bhukh hartaal 34 din tak rakha jarurat padi to hum log bhi apne haq ko pan ke liye jindagi ki bazi laga dange...

jai uttarakhand...
मेरे नाती हेम ने एक ब्लाग पर खतरनाक टाईप का लेख चेपा है, आप  लोग भी पढिये-


कई साल पहले की बात है 2 भाई थे, इतिहास में Write Brothers के नाम से प्रसिद्ध हैं. उन्होंने एक सपना देखा, सपना था आदमी को हवा में उड़ाने की तकनीक विकसित करने का. लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाई, कुछ लोगों ने उन्हें ’सिरफिरा’ कहा.

आज हवाई जहाज में उड़ते हुए हम एयर होस्टेस की खूबसूरती निहारते हुए और पत्रिकाएं उपन्यास पड़ते हुए सफर खतम कर देते हैं पर शायद ही कोई Write Brothers को याद करता होगा.
ऐसे ही सिरफिरों ने फिर एक सपना देखा. 1857 में कुछ सिरफिरों ने सोचा क्यूं ना भारत से अंग्रेजों को खदेड़ दिया जाये. कोशिश की, पूरी सफलता तो नही मिली, लेकिन और लोगों के दिमाग में सपना जगा गये. आखिर 90 साल बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ. अब साल में एक-दो बार उन ’सिरफिरों’ को याद कर लो तो बहुत है. क्यूंकि भाई अब तो आजादी शब्द समलैंगिकता और ना जाने किन-किन बेहूदा मसलों के लिये प्रयोग किया जाने लगा है.


अपने पहाड़ी लोग भी कम ’सिरफिरे’ जो क्या ठैरे? भारत को आजादी मिलने के समय से ही कहने लगे कि हमें अलग राज्य चाहिये. 1994 में तो हद ही कर दी, कहने लगे- आज दो अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो. उस टाइम भी कुछ विद्वान लोग अवतरित हुए. एक ’विद्वान’ तब कहते थे- "उत्तराखण्ड राज्य मेरी लाश पर बनेगा". उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला तोइ चूके नहीं. एक और भाई सैब थे, ये बोलते थे- "राज्य तो शायद नही बन पायेगा, अगर केन्द्र शासित प्रदेश (Union Territory) हो जाये तो हमें मन्जूर है. (नाम नही बोलुंगा- दोनों लोग उच्च पद पर आसीन है, नाम लेने से पद की गरिमा को ठेस पहुंच सकती है.)


जो भी हुआ फिर, 2001 में उत्तराखण्ड राज्य बन ही गया. इन ’सिरफिरों’ का सपना भी सच हो गया? ’विद्वान’ लोग बोले राजधानी Temporary रखते हैं अभी. समिति बनाओ वो ही बतायेगी असली वाली राजधानी कहां होगी? समिति ने 9 साल लगा दिये यह बताने में कि Temporary वाली राजधानी ही Permanent के लायक है. और यह भी बोला कि पहाड़ की तरफ़ तो देखना भी मत, स्थाई राजधानी के लिये, वहां तो समस्याएं ही समस्याएं हैं. (उन्होंने बताया तो हमें भी यह पता लगा). समिति ने कहा है कि नया शहर बसाने में तो खर्चा भी बहुत होगा.

लेकिन फिर कुछ नये टाइप के ’सिरफिरे’ पैदा हो रहे हैं. उनका कहना है कि समस्याओं से भाग क्यों रहे हो? उन्हें हल करो. राजधानी बनानी है प्रदेश की जनता की सुविधा के लिये, नेताओं और नौकरशाहों की सुविधा के लिये नहीं. बांध बनाने के लिये तो पुराने शहरों, दर्जनों गांवों को उजाड़ कर नया शहर बना रहे हो, राजधानी के लिये भी बनाओ एक नया शहर!!!! ’सिरफिरे’ कह रहे हैं - ना भावर ना सैंण, उत्तराखण्ड की राजधानी होगी गैरसैंण. अब देखते हैं फिर क्या करते हैं ये ’सिरफिरे’? कुछ विद्वान ऐसा भी कह गये हैं - "No Pain Without Gain", विद्वानों ने कहा है तो भई ठीक ही कहा होगा. तो करो संघर्ष, अब उत्तराखण्ड की राजधानी को गैरसैंण पहुंचा कर ही दम लेना है हां!!!



हुक्का बू

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नातियो, २४ सितम्बर, २००० को गिर्दा ने गैरसैंण रैली में यह छ्न्द कहे थे, जो सच भी हुये

कस होलो उत्तराखण्ड, कां होली राजधानी,
राग-बागी यों आजि करला आपुणि मनमानी,
यो बतौक खुली-खुलास गैरसैंण करुंलो।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

टेम्पुरेरी-परमानैन्टैकी बात यों करला,
दून-नैनीताल कौला, आपुंण सुख देखला,
गैरसैंण का कौल-करार पैली कर ल्हूयला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

वां बै चुई घुमाल यनरी माफिया-सरताज,
दून बै-नैनताल बै चलौल उनरै राज,
फिरि पैली है बांकि उनरा फन्द में फंस जूंला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

’गैरसैणाक’ नाम पर फूं-फूं करनेर,
हमरै कानि में चडि हमने घुत्ति देखूनेर,
हमलै यनरि गद्दि-गुद्दि रघोड़ि यैं धरुला।
हम लड़्ते रयां भुली, हम लड़्ते रुंल॥

अब बखत आ गया है कि इनकी गुद्दि रघोडि़ जाय, तो हिटो गैरसैंण.




जोर लगा बेर हईय्या-गैरसैंण राजधानी पुजैय्या

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Aadaraneeya Girda Ka ye Geet V Sun Lo----
        Taduk Na laga Udekh , Ghunan Munai Na take,
        Bubu ek din to aala u din yo duni main.

Jo din Chor ni phalal Kaiki Jor na Chalal,
Bubu ek din to aalo u din yo duni mai.

Chahe Hun Ni lai sakun , Chahe Tum ni lai sako,
par kwe na kwe to lyala u din yo duni main,

ab to dun ni chalal, na aayog ko banal,
Bubu gair sain kau naam aab rajdhani chhu ( thodi Chhed chhad ke liye mmafi chahta huin, last ki 2 line maine jodi hain)

shailesh

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अरे बुबू किस्म किस्म के विद्वान पैदा हुए कहा उस समय , एक विद्वान ने उस समय आन्दोलन को भटकाने के लिए वृहद उत्तराँचल बनाने की बात कर दी (पश्चिमी उत्तर प्रदेश और वर्तमान उत्तराखंड) पर जब जनता ने उनको जूते मरना शुरु किया तब उन्होंने अपनी मांग वापस ली और उत्तराखंड राज्य को उत्तराँचल कहना शुरू कर दिया इन विद्वान ने भी मौका मिलते ही मुखमंत्री की कुर्सी लपक ली !

एक विद्वान और थे , उन्होंने आन्दोलन के दौरान जब दिल्ली मे प्रदर्शन का आवाहन हुआ तो उन् विद्वान ने गृह मंत्रालय को एक चिठ्ठी लिख दी की पहाडी लोग हतियारों से लैस होकर दिल्ली प्रदर्शन को आ रहे है  जबकि पूरा आन्दोलन एक अहिंसात्मक आन्दोलन था ! उन विद्वान ने राज्य बनने के बाद अपने को राज्य का सबसे बड़ा आंदोलनकारी घोषित करवा दिया ! और फिर बाद मे मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हड़प ली !

एक और विद्वान् हुए उस समय उन्होंने रातो रात दिल्ली मे कई फर्जी संगठन बनाये और उन सबको तत्कालिन प्रधानमंत्री से मिलवा दिया और उनसे कहलवा दिया की पहाड़ के लोग अलग राज्य नहीं चाहते है ! वो भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के जुगाड़ मे हाथ पांव मारते रहे हैं !

कुछ और घणे किस्म के बुद्दिजीवी थे जो कह रहे थे की क्या उत्तराखंड राज्य बनाकर हम उसको तमाम व्याप्त सामाजिक बुराईयों से दूर रख पाएंगे (जरा अंदाज लगाना तो कौन थे वे ?) और कह रहे थे की पहाड़ की सारी समस्याओं पर बात करो पर अलग राज्य की बात मत करो !

एक और महान किस्म  के विद्वान इस आर्याव्रत मे हुए हैं  उन्होंने तो उत्तराखंड आन्दोलन को अलगाववादी मांग तक कह दिया था ! तो बुबू उत्तराखंड आन्दोलन का इतिहास तो इन महान विद्वानों के काले कारनामो से भरा हुआ है !

अब ऐसे ही कई विद्वान्  टाइप और पैदा हो गये हैं जो अपनी एक्सपर्ट राय दे रहे है राजधानी के बारे मे , एक एक्सपर्ट तो कह रहा था की गैरसैण अल्मोडा का
हिस्सा है , तो कोई कह रहा है वहां बाड़ का बहुत खतरा है ,कोई कह रहा है की वहां पानी की उपलब्धता नहीं है ! कुछ अंतर्ज्ञानी कह रहे हैं की कर्णप्रयाग तो समुद्र तल से नीचे चला गया है , और धीरे धीरे गैरसैण भी इसी तरह समुद्र तल के नीचे नीचे होते होते पाताल लोक मे चला जायेगा , तो काहे को गैरसैण का मोह करते हो जो अपना है ही नहीं !कोई विकट किस्म का ज्ञानी गैरसैण को ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने की सलाह दे रहा है !

मुझे तो ये लग रहा है ये विद्वान् टाइप लोग कल को गैरसैण को ही उत्तराखंड का हिस्सा मानने  से मना कर दें , या कहीं ये विद्वान राजधानी मेरी लाश वाश पर बनेगी टाइप बयांन ना दे दें , या फिर अभी कुछ  गैरसैण को केंद्र शाशित दर्जा देने की मांग  भी उठा सकते है !  कुछ सर्वज्ञानी किस्म के पंडित अभी ऐसा भी कह सकते है की गैरसैण तो उत्तराखंड के गाँव गाँव ,डाने काने सभी जगह  व्याप्त है बस अगर हृदय निर्मल है और गैरसैण का भावः है तो वो सब जगह नजर आएगा फिर चाहे देहरादून हो ऋषिकेश हो रामनगर हो सभी जगह एक ही बात है ! और कई ज्ञानी पुरुष तो गैरसैण को राजधानी मानते भी है और नहीं भी, वो इस मुद्दे पर समदृष्टि से चलते हैं गैरसैण और देहरादून को एक ही दृष्टि से देखते हैं!



मेरे नाती हेम ने एक ब्लाग पर खतरनाक टाईप का लेख चेपा है, आप  लोग भी पढिये-


कई साल पहले की बात है 2 भाई थे, इतिहास में Write Brothers के नाम से प्रसिद्ध हैं. उन्होंने एक सपना देखा, सपना था आदमी को हवा में उड़ाने की तकनीक विकसित करने का. लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाई, कुछ लोगों ने उन्हें ’सिरफिरा’ कहा.

आज हवाई जहाज में उड़ते हुए हम एयर होस्टेस की खूबसूरती निहारते हुए और पत्रिकाएं उपन्यास पड़ते हुए सफर खतम कर देते हैं पर शायद ही कोई Write Brothers को याद करता होगा.
ऐसे ही सिरफिरों ने फिर एक सपना देखा. 1857 में कुछ सिरफिरों ने सोचा क्यूं ना भारत से अंग्रेजों को खदेड़ दिया जाये. कोशिश की, पूरी सफलता तो नही मिली, लेकिन और लोगों के दिमाग में सपना जगा गये. आखिर 90 साल बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ. अब साल में एक-दो बार उन ’सिरफिरों’ को याद कर लो तो बहुत है. क्यूंकि भाई अब तो आजादी शब्द समलैंगिकता और ना जाने किन-किन बेहूदा मसलों के लिये प्रयोग किया जाने लगा है.


अपने पहाड़ी लोग भी कम ’सिरफिरे’ जो क्या ठैरे? भारत को आजादी मिलने के समय से ही कहने लगे कि हमें अलग राज्य चाहिये. 1994 में तो हद ही कर दी, कहने लगे- आज दो अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो. उस टाइम भी कुछ विद्वान लोग अवतरित हुए. एक ’विद्वान’ तब कहते थे- "उत्तराखण्ड राज्य मेरी लाश पर बनेगा". उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला तोइ चूके नहीं. एक और भाई सैब थे, ये बोलते थे- "राज्य तो शायद नही बन पायेगा, अगर केन्द्र शासित प्रदेश (Union Territory) हो जाये तो हमें मन्जूर है. (नाम नही बोलुंगा- दोनों लोग उच्च पद पर आसीन है, नाम लेने से पद की गरिमा को ठेस पहुंच सकती है.)


जो भी हुआ फिर, 2001 में उत्तराखण्ड राज्य बन ही गया. इन ’सिरफिरों’ का सपना भी सच हो गया? ’विद्वान’ लोग बोले राजधानी Temporary रखते हैं अभी. समिति बनाओ वो ही बतायेगी असली वाली राजधानी कहां होगी? समिति ने 9 साल लगा दिये यह बताने में कि Temporary वाली राजधानी ही Permanent के लायक है. और यह भी बोला कि पहाड़ की तरफ़ तो देखना भी मत, स्थाई राजधानी के लिये, वहां तो समस्याएं ही समस्याएं हैं. (उन्होंने बताया तो हमें भी यह पता लगा). समिति ने कहा है कि नया शहर बसाने में तो खर्चा भी बहुत होगा.

लेकिन फिर कुछ नये टाइप के ’सिरफिरे’ पैदा हो रहे हैं. उनका कहना है कि समस्याओं से भाग क्यों रहे हो? उन्हें हल करो. राजधानी बनानी है प्रदेश की जनता की सुविधा के लिये, नेताओं और नौकरशाहों की सुविधा के लिये नहीं. बांध बनाने के लिये तो पुराने शहरों, दर्जनों गांवों को उजाड़ कर नया शहर बना रहे हो, राजधानी के लिये भी बनाओ एक नया शहर!!!! ’सिरफिरे’ कह रहे हैं - ना भावर ना सैंण, उत्तराखण्ड की राजधानी होगी गैरसैंण. अब देखते हैं फिर क्या करते हैं ये ’सिरफिरे’? कुछ विद्वान ऐसा भी कह गये हैं - "No Pain Without Gain", विद्वानों ने कहा है तो भई ठीक ही कहा होगा. तो करो संघर्ष, अब उत्तराखण्ड की राजधानी को गैरसैंण पहुंचा कर ही दम लेना है हां!!!



dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Shailuwa aaj uttarakhand kain tas vidwanuk jarurat nahitin Uttarakhand kain chaini Kalidas ja vidwan jo murkh hai be lai vidwan huni, yas vidwan chaini jo samajak bhal karani na ki aapan, yas vidwan chaini janar soch sakaratmak hain, Vidwan chaini ho maharaj Vighnwaan na  :o

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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One of this reasons for Capital issue not getting resolved is that our have divided in different opinion.

At the time of struggle of state, people were united for the objective. However, now the unity is lacking somewhere. There is section of some people who have a lot property in Dehradoon etc, they don't want to the capital to be Gairsain.

There is need to be united again for the capital shifting.

dayal pandey/ दयाल पाण्डे

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Dear Member,
                     Again breaking chuppi on Gairsain, we have a meeting on Sunday 23rd Aug 2009, at 4:00 PM at TECH 2 SOLUTION ( Mohanda's Office) , address is - 1734 / 26 2nd Flour , Sher Singh Bazar, Gurudwara Road Kotla, South Ext - 1, agenda is preplanning on Gairsain Yatra,
So You all are requested to attend this important Meeting with your innovative idea to making the Gairsain Yatra successful. Thank you
 
Meeting scheduel-
Date              -  23rd Aug. 2009
Time              - 4:00 PM
Place             - Tech to Solution, 1734 / 26 2nd Flour, Sher Singh Bazar, South Ext - 1
Agenda          - Preplanning for Gairsain Yatra
 
 
Regards
Dayal Pandey
09968534993

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Jai Pahar < < Jai Golu > > Jai Badri Vishal
Next-gen troupe on ground

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Thanks Dayal Ji the information.

We request that maximum people atttend this meeting.

Dear Member,
                     Again breaking chuppi on Gairsain, we have a meeting on Sunday 23rd Aug 2009, at 4:00 PM at TECH TO SOLUTION ( Mohanda's Office) , address is - 1734 / 26 2nd Flour , Sher Singh Bazar, Gurudwara Road Kotla, South Ext - 1, agenda is preplanning on Gairsain Yatra,
So You all are requested to attend this important Meeting with your innovative idea to making the Gairsain Yatra successful. Thank you
 
Meeting scheduel-
Date              -  23rd Aug. 2009
Time              - 4:00 PM
Place             - Tech to Solution, 1734 / 26 2nd Flour, Sher Singh Bazar, South Ext - 1
Agenda          - Preplanning for Gairsain Yatra
 
 
Regards
Dayal Pandey
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Next-gen troupe on ground


हेम पन्त

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Commendable efforts... Best wishes for the succes of the meet... see u at Gairsain..

 

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