अरे बुबू किस्म किस्म के विद्वान पैदा हुए कहा उस समय , एक विद्वान ने उस समय आन्दोलन को भटकाने के लिए वृहद उत्तराँचल बनाने की बात कर दी (पश्चिमी उत्तर प्रदेश और वर्तमान उत्तराखंड) पर जब जनता ने उनको जूते मरना शुरु किया तब उन्होंने अपनी मांग वापस ली और उत्तराखंड राज्य को उत्तराँचल कहना शुरू कर दिया इन विद्वान ने भी मौका मिलते ही मुखमंत्री की कुर्सी लपक ली !
एक विद्वान और थे , उन्होंने आन्दोलन के दौरान जब दिल्ली मे प्रदर्शन का आवाहन हुआ तो उन् विद्वान ने गृह मंत्रालय को एक चिठ्ठी लिख दी की पहाडी लोग हतियारों से लैस होकर दिल्ली प्रदर्शन को आ रहे है जबकि पूरा आन्दोलन एक अहिंसात्मक आन्दोलन था ! उन विद्वान ने राज्य बनने के बाद अपने को राज्य का सबसे बड़ा आंदोलनकारी घोषित करवा दिया ! और फिर बाद मे मुख्यमंत्री की कुर्सी भी हड़प ली !
एक और विद्वान् हुए उस समय उन्होंने रातो रात दिल्ली मे कई फर्जी संगठन बनाये और उन सबको तत्कालिन प्रधानमंत्री से मिलवा दिया और उनसे कहलवा दिया की पहाड़ के लोग अलग राज्य नहीं चाहते है ! वो भी मुख्यमंत्री की कुर्सी के जुगाड़ मे हाथ पांव मारते रहे हैं !
कुछ और घणे किस्म के बुद्दिजीवी थे जो कह रहे थे की क्या उत्तराखंड राज्य बनाकर हम उसको तमाम व्याप्त सामाजिक बुराईयों से दूर रख पाएंगे (जरा अंदाज लगाना तो कौन थे वे ?) और कह रहे थे की पहाड़ की सारी समस्याओं पर बात करो पर अलग राज्य की बात मत करो !
एक और महान किस्म के विद्वान इस आर्याव्रत मे हुए हैं उन्होंने तो उत्तराखंड आन्दोलन को अलगाववादी मांग तक कह दिया था ! तो बुबू उत्तराखंड आन्दोलन का इतिहास तो इन महान विद्वानों के
काले कारनामो से भरा हुआ है !
अब ऐसे ही कई विद्वान् टाइप और पैदा हो गये हैं जो अपनी एक्सपर्ट राय दे रहे है राजधानी के बारे मे , एक एक्सपर्ट तो कह रहा था की गैरसैण अल्मोडा का
हिस्सा है , तो कोई कह रहा है वहां बाड़ का बहुत खतरा है ,कोई कह रहा है की वहां पानी की उपलब्धता नहीं है ! कुछ अंतर्ज्ञानी कह रहे हैं की कर्णप्रयाग तो समुद्र तल से नीचे चला गया है , और धीरे धीरे गैरसैण भी इसी तरह समुद्र तल के नीचे नीचे होते होते पाताल लोक मे चला जायेगा , तो काहे को गैरसैण का मोह करते हो जो अपना है ही नहीं !कोई विकट किस्म का ज्ञानी गैरसैण को ग्रीष्म कालीन राजधानी बनाने की सलाह दे रहा है !
मुझे तो ये लग रहा है ये विद्वान् टाइप लोग कल को गैरसैण को ही उत्तराखंड का हिस्सा मानने से मना कर दें , या कहीं ये विद्वान राजधानी मेरी लाश वाश पर बनेगी टाइप बयांन ना दे दें , या फिर अभी कुछ गैरसैण को केंद्र शाशित दर्जा देने की मांग भी उठा सकते है ! कुछ सर्वज्ञानी किस्म के पंडित अभी ऐसा भी कह सकते है की गैरसैण तो उत्तराखंड के गाँव गाँव ,डाने काने सभी जगह व्याप्त है बस अगर हृदय निर्मल है और गैरसैण का भावः है तो वो सब जगह नजर आएगा फिर चाहे देहरादून हो ऋषिकेश हो रामनगर हो सभी जगह एक ही बात है ! और कई ज्ञानी पुरुष तो गैरसैण को राजधानी मानते भी है और नहीं भी, वो इस मुद्दे पर समदृष्टि से चलते हैं गैरसैण और देहरादून को एक ही दृष्टि से देखते हैं!
मेरे नाती हेम ने एक ब्लाग पर खतरनाक टाईप का लेख चेपा है, आप लोग भी पढिये-
कई साल पहले की बात है 2 भाई थे, इतिहास में Write Brothers के नाम से प्रसिद्ध हैं. उन्होंने एक सपना देखा, सपना था आदमी को हवा में उड़ाने की तकनीक विकसित करने का. लोगों ने उनकी खिल्ली उड़ाई, कुछ लोगों ने उन्हें ’सिरफिरा’ कहा.
आज हवाई जहाज में उड़ते हुए हम एयर होस्टेस की खूबसूरती निहारते हुए और पत्रिकाएं उपन्यास पड़ते हुए सफर खतम कर देते हैं पर शायद ही कोई Write Brothers को याद करता होगा.
ऐसे ही सिरफिरों ने फिर एक सपना देखा. 1857 में कुछ सिरफिरों ने सोचा क्यूं ना भारत से अंग्रेजों को खदेड़ दिया जाये. कोशिश की, पूरी सफलता तो नही मिली, लेकिन और लोगों के दिमाग में सपना जगा गये. आखिर 90 साल बाद 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ. अब साल में एक-दो बार उन ’सिरफिरों’ को याद कर लो तो बहुत है. क्यूंकि भाई अब तो आजादी शब्द समलैंगिकता और ना जाने किन-किन बेहूदा मसलों के लिये प्रयोग किया जाने लगा है.
अपने पहाड़ी लोग भी कम ’सिरफिरे’ जो क्या ठैरे? भारत को आजादी मिलने के समय से ही कहने लगे कि हमें अलग राज्य चाहिये. 1994 में तो हद ही कर दी, कहने लगे- आज दो अभी दो, उत्तराखण्ड राज्य दो. उस टाइम भी कुछ विद्वान लोग अवतरित हुए. एक ’विद्वान’ तब कहते थे- "उत्तराखण्ड राज्य मेरी लाश पर बनेगा". उत्तराखण्ड का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला तोइ चूके नहीं. एक और भाई सैब थे, ये बोलते थे- "राज्य तो शायद नही बन पायेगा, अगर केन्द्र शासित प्रदेश (Union Territory) हो जाये तो हमें मन्जूर है. (नाम नही बोलुंगा- दोनों लोग उच्च पद पर आसीन है, नाम लेने से पद की गरिमा को ठेस पहुंच सकती है.)
जो भी हुआ फिर, 2001 में उत्तराखण्ड राज्य बन ही गया. इन ’सिरफिरों’ का सपना भी सच हो गया? ’विद्वान’ लोग बोले राजधानी Temporary रखते हैं अभी. समिति बनाओ वो ही बतायेगी असली वाली राजधानी कहां होगी? समिति ने 9 साल लगा दिये यह बताने में कि Temporary वाली राजधानी ही Permanent के लायक है. और यह भी बोला कि पहाड़ की तरफ़ तो देखना भी मत, स्थाई राजधानी के लिये, वहां तो समस्याएं ही समस्याएं हैं. (उन्होंने बताया तो हमें भी यह पता लगा). समिति ने कहा है कि नया शहर बसाने में तो खर्चा भी बहुत होगा.
लेकिन फिर कुछ नये टाइप के ’सिरफिरे’ पैदा हो रहे हैं. उनका कहना है कि समस्याओं से भाग क्यों रहे हो? उन्हें हल करो. राजधानी बनानी है प्रदेश की जनता की सुविधा के लिये, नेताओं और नौकरशाहों की सुविधा के लिये नहीं. बांध बनाने के लिये तो पुराने शहरों, दर्जनों गांवों को उजाड़ कर नया शहर बना रहे हो, राजधानी के लिये भी बनाओ एक नया शहर!!!! ’सिरफिरे’ कह रहे हैं - ना भावर ना सैंण, उत्तराखण्ड की राजधानी होगी गैरसैंण. अब देखते हैं फिर क्या करते हैं ये ’सिरफिरे’? कुछ विद्वान ऐसा भी कह गये हैं - "No Pain Without Gain", विद्वानों ने कहा है तो भई ठीक ही कहा होगा. तो करो संघर्ष, अब उत्तराखण्ड की राजधानी को गैरसैंण पहुंचा कर ही दम लेना है हां!!!