Author Topic: Heroes Of Wars From Uttarakhand - देश की रक्षा में शहीद उत्तराखंड रणबाकुरे  (Read 90154 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Mahi Singh Mehta
 
यह एक साहसी मां की वीर पुत्र के प्रति अगाध प्रेम की अनूठी कहानी है - अल्मोड़ा (uttarakhand)

आम तौर पर बच्चों द्वारा माता-पिता की स्मृति में मंदिर बनाने के उदाहरण मिलते हैं, लेकिन इकलौते बेटे के कारगिल में शहीद होने के बाद मां ने सरकारी सहायता के रूप में मिले पैसों से मंदिर बनाकर वहां बेटे की मूर्ति लगाई।

गांव में शहीद मोहन सिंह की स्मृति में सड़क भी बन चुकी है। गांव के लोग खास अवसरों पर मंदिर जाकर शहीद मोहन सिंह बिष्ट को याद करते हैं।

अल्मोड़ा तहसील के खड़ाऊं गांव निवासी मोहन सिंह बिष्ट चार जुलाई 1999 को कारगिल में शहीद हुए थे।
उस समस उनके पिता भीम सिंह का निधन हो चुका था। तब उनकी बहन सुंदरी का विवाह हो चुका था। मोहन सिंह अपने परिवार का अकेला सहारा थे।

मोहन सिंह के शहीद होने के बाद मां देबुली देवी को गहरा आघात पहुंचा। प्रशासन ने सरकार और सेना द्वारा दी गई सहायता राशि में से दो लाख रुपए उनकी मां देबुली देवी के नाम से एफडी के तौर पर रख दिए थे।

यह मां का बेटे के प्रति अगाध प्रेम का प्रतीक है कि अनपढ़ मां देबुली देवी ने सरकार से मिले सारे पैसों से बेटे मोहन की स्मृति में गांव में मंदिर बनाकर बेटे की मूर्ति स्थापित कराई।

बेटे की स्मृति में बनाए राधा-कृष्ण के इस मंदिर परिसर के बाहर शहीद मोहन सिंह की मूर्ति लगाई गई है।शहीद मोहन सिंह की यह मूर्ति मुंबई से बनकर आई। मूर्ति बनवाने में शहीद मोहन सिंह के जीजा शमशेर सिंह मेहरा ने भी सहयोग किया। जो मुंबई में नौ सेना में काम करते हैं। मूर्ति के अनावरण के मौके पर पत्नी विमला देवी भी परिवार सहित दिल्ली से गांव आई थीं।

गांव के लोगों ने बताया कि मंदिर में लोग पूजा-अर्चना करते हैं। साथ ही कारगिल दिवस और अन्य अवसरों पर लोग शहीद मोहन सिंह की मूर्ति पर माल्यार्पण करते हैं।

देबुली देवी का निधन छह साल पहले हो चुका है। शहीद की पत्नी और बच्चे दिल्ली में रहते हैं। हालांकि उनका गांव आना-जाना रहता है। 1999 में मोहन सिंह के शहीद होने के चार माह बाद उनका बेटा हुआ। जो इस समय दसवीं का छात्र है। दो बेटियां दिल्ली में पढ़ रही हैं। जबकि सबसे बड़ी बेटी का विवाह हो चुका है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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पिता 71 की लड़ाई में, बेटा कारगिल में शहीद - पिथौरागढ़

कारगिल शहीद जवाहर सिंह धामी के परिवार ने इस देश की रक्षा में बलिदान दिया था। ऐसे उदाहरण बहुत कम होंगे एक परिवार की दो पीढ़ियां देश के लिए शहादत दे चुकी हों और एक पीढ़ी ने द्वितीय विश्वयुद्ध में भागीदारी की।

पिथौरागढ़ जिले के मूनाकोट विकासखंड के अंतर्गत मड़मानले के पास अखुली गांव के इस परिवार की गाथा स्वर्णाक्षरों में लिखने लायक है। इस परिवार की तीन पीढ़ियों ने देश की रक्षा के लिए सेवा की थी।

कारगिल में जवाहर सिंह धामी की शहादत के बाद इस परिवार की अगली पीढ़ी अखुली गांव छोड़ चुकी है।

1991 में सेना में भर्ती हुए
जवाहर सिंह धामी 26 मई 1999 को कारगिल सेक्टर में दुश्मन के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। वह 25 राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात थे। उनकी टुकड़ी गश्त पर थी। तभी दुश्मन के साथ भिड़ंत हो गई। दुश्मन के आठ सैनिक मारे गए। शहीद जवाहर सिंह को कई गोलियां लगी थीं। जवाहर सिंह 1991 में सेना में भर्ती हुए थे। उसी साल उनका विवाह लीला देवी से हो गया। उनकी एक पुत्री है।

दादा दान सिंह धामी भी भारतीय सेना में थे
जवाहर सिंह के दादा दान सिंह धामी भी भारतीय सेना में थे। दूसरे विश्व युद्ध के समय 1942 की लड़ाई में भाग लेने के बाद जब वह रिटायर होकर घर आए तो उनका बीमारी से निधन हो गया। उनके बाद जवाहर के पिता कमान सिंह धामी ने भी भारतीय सेना ज्वाइन कर ली।

1971 में भारत-पाक युद्ध के समय जम्मू-कश्मीर में कमान सिंह धामी शहीद हो गए। तब जवाहर सिंह की उम्र मात्र एक साल की थी। माता झूपा देवी ने धैर्य नहीं छोड़ा। उन्होंने बेटे को जवाहर सिंह को बंदा प्राथमिक स्कूल से प्राइमरी तक की शिक्षा दिलवाई। हाईस्कूल की शिक्षा के लिए वह राजकीय इंटर कॉलेज मड़मानले आ गए।

हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त करते ही वह सेना में भर्ती हो गए, लेकिन झूपा देवी को बेटे का यह सुख भी ज्यादा समय तक नहीं मिल पाया। पहले ससुर की आकस्मिक मौत, फिर पति और बेटे की शहादत से झूपा देवी बुरी तरह टूट गई। अब वह बहू लीला देवी और नातिन के साथ रहती हैं। परिवार को पेंशन मिलती है। पिथौरागढ़ के बस्ते गांव में उन्होंने मकान बना लिया है।


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 जिला टिहरी गढ़वाल, देवप्रयाग ब्लाक के
मोल्या गांव के वीर शहीद दीप रावत की शहादत
को कोटि कोटि नमन | गढ़वाल रायफल में तैनात
उत्तराखंड के वीर सपूत दीप रावत को कल राजकीय
सम्मान के साथ अंतिम विदाई दी गयी | भगवान,
शहीद दीप रावत के परिजनों को इस दुःख की घड़ी से
लड़ने की शक्ति दें | हम सब आपके साथ हैं तथा शहीद
दीप रावत के अभूतपूर्व साहस एवं बलिदान से
उत्तराखंड, मोल्या गांव एवं सम्पूर्ण
भारतवासियों को आप पर गर्व है |

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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उत्तराखंड के जांबाज को मिला ‘कीर्ति चक्र’

उत्तराखंड के जांबाज सूबेदार अजय वर्धन तोमर को मरणोपरांत ‘कीर्ति चक्र’ से सम्मानित किया गया है। एक दिसंबर 2014 को जम्मू-कश्मीर में आतंकियों से लोहा लेते हुए वह शहीद हो गए थे।

मूलत: पौड़ी गढ़वाल के पट्टी लंगूर तल्ला के जवाड़ गांव और देहरादून में माजरी माफी निवासी सूबेदार अजय वर्धन तोमर 14 गढ़वाल राइफल्स में थे। एक दिसंबर 2014 को जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में नौगाम सेक्टर में घुसपैठ कर रहे आतंकियों से मुठभेड़ में तोमर शहीद हो गए थे।

48 घंटे तक चली मुठभेड़ में सैन्य टुकड़ी ने लश्कर-ए-तैय्यबा के कुछ आतंकियों को ढेर किया था। तोमर ने सालभर पहले ही दून में मकान बनाया था। शहीद की पत्नी लक्ष्मी सास, बेटी भूमिका और बेटे अक्षत संग यहां रहती हैं।

भूमिका नवीं, जबकि अक्षत पांचवीं कक्षा में पढ़ता है।सूबेदार अजय वर्धन को मरणोपरांत कीर्ति चक्र मिलने पर परिवार गर्व महसूस कर रहा है। भूमिका और अक्षत ने कहा कि� जांबाज पिता पर उन्हें हमेशा नाज रहेगा। बता दें कि इस पुरस्कार के एवज में प्रदेश सरकार की ओर से शहीद के परिजनों को आर्थिक सहायता दी जाती है।

हरीश गिरि, ईश्वरी लाल टम्टा, जीत सिंह को राष्ट्रपति पदक
रुद्रपुर के अग्निशमन अधिकारी हरीश गिरि, रेडियो इंस्पेक्टर ईश्वरी लाल टम्टा और 31 बटालियन के प्लाटून कमांडर विशेष श्रेणी जीत सिंह को गणतंत्र दिवस पर सोमवार को देहरादून में सराहनीय सेवा के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया जाएगा। देहरादून में राज्यपाल केके पाल उन्हें सम्मानित करेंगे।

मूलरूप से अल्मोड़ा के बजवाड़ निवासी हरीश गिरी 1978 में पुलिस में भर्ती हुए। नौकरी के दौरान ही उन्होंने पढ़ाई पूरी कर फायर सेफ्टी में डिप्लोमा और एलएलबी किया। अपने कार्यकाल के दौरान वे नैनीताल, पिथौरागढ़, देहरादून के साथ ही उत्तर प्रदेश के बरेली और पीलीभीत में भी तैनात रह चुके हैं।

एफएसओ हरीश गिरी ने मोबाइल पर बताया कि दिसंबर 2013 से वह रुद्रपुर में तैनात हैं। वर्ष 2010 में सराहनीय सेवा सम्मान चिह्न से भी उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। बताया कि फिलहाल उनका परिवार हल्द्वानी में रह रहा है। उधर, ईश्वरी लाल टम्टा 1976 में पुलिस सेवा में आए।

वे मूलरूप से बागेश्वर के गांव उडेरखानी के मूल निवासी हैं। तीनों की इस उपलब्धि पर एसएसपी नीलेश आनंद भरणे, एएसपी टीडी वैला, सीओ सिटी राजीव मोहन, सीएफओ एनएस कुंवर ने बधाई दी है।

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कारगिल युद्घः देवभूमि के सर्वाधिक वीरों ने हंसते हुए दी जान

कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के सर्वाधिक रणबांकुरों ने दुश्मन को देश की सरहद से बाहर खदेड़ते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर किया।

राज्य के 75 रणबांकुरें कारगिल युद्ध में शहीद हुए। राज्य के 16 सैनिकों को उनके अदम्य साहस के लिए वीरता पदकों से अलंकृत किया। राज्य की कुमाऊं और गढ़वाल रेजिमेंट ने कारगिल युद्ध में दुश्मन को मार भगाने में अहम योगदान दिया है।

गढवाल रेजिमेंट के 54 सैनिक शहीद हुए थे। कारगिल युद्ध में भाग लेने वाली लगभग हर रेजिमेंट में उत्तराखंड के बहादुर सैनिक शामिल थे। भारतीय सेना ने 524 सैनिकों को खोया तो वहीं 1363 गंभीर रूप से घायल हुआ। पाकिस्तानी सेना के लगभग चार हजार सैन्य बलों के जवान मारे गए। (amar ujala)

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देहरादून - 26
अल्मोड़ा - 3
बागेश्वर - 3
चमोली - 7
चंपावत -
नैनीताल - 5
पौड़ी - 10
पिथौरागढ़ - 4
रुद्रप्रयाग - 3
टिहरी - 11
उधम सिंह नगर - 2
उत्तरकाशी - 1

अलंकृत सैनिक
मेजर विवेक गुप्ता - महावीर चक्र
मेजर राजेश सिंह भंडारी- महावीर चक्र
नाइक ब्रिजमोहन सिंह - वीर चक्र
नाइक कश्मीर सिंह - वीर चक्र
ग्रुप कैप्टन एके सिन्हा - वीर चक्र
आनरेरी कैप्टन खुशीमन गुरुंग - वीरचक्र
राइफलमैन कुलदीप सिंह - वीर चक्र
लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग - सेना मेडल
सिपाही चंदन सिंह - सेना मेडल
लांस नाइक देवेंद्र प्रसाद - सेना मेडल
नाइक शिव सिंह - सेना मेडल
नायक जगत सिंह - सेना मेडल
राइफलमैन ढब्बल सिंह - सेना मेडल
लांस नाइक सुरमन सिंह - सेना मेडल
आनरेरी कैप्टन ए हेनी माओ - सेना मेडल
आनरेरी कैप्टन चंद्र सिंह - सेना मेडल

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उत्तराखंड के लाल शहीद मोहन नाथ को राष्ट्रपत‌ि ने द‌िया अशोक चक्र

आतंकवादियों से लोहा लेते शहीद हुए उत्तराखंड के वीर सपूत शहीद मोहन नाथ गोस्वामी को राष्ट्रपत‌ि ने राजपथ पर अशोक चक्र सम्मान से नवाजा। शहीद की पत्नी ने राष्ट्रपत‌ि से सर्वोच्च वीरता पुरस्कार ग्रहण क‌िया। 26 जनवरी को शांतिकाल में सैन्य अभियान के दौरान वीरता के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए दिया जाने वाला अशोक चक्र उत्तराखंड के सपूत लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी को मरणोपरांत दिया गया। इसके साथ ही दो वीर सपूतों सहित गढ़वाल और कुमाऊं रेजीमेंट के कई सैनिकों को राष्ट्रपति वीरता पदकों से अलंकृत किया जाएगा।

इस बार अशोक चक्र से सम्मानित होने वाले शहीद लांस नायक मोहन एकमात्र सैनिक हैं। दून के शहीद सिपाही शिशर मल्ल को सेना मेडल से सम्मानित किया जाएगा।

हल्द्वानी निवासी नौ पैरा के लांस नायक मोहन नाथ गोस्वामी दो सिंतबर-2015 को जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा जनपद के हापुरुड़ा के जंगल में गश्त कर रही सेना की टुकड़ी का हिस्सा थे। चार आतंकवादियों ने उनकी टुकड़ी पर हमला कर दिया।


लांस नायक मोहन के तीन साथी अचानक आई गोलीबारी में घायल हो गए। मोहन ने पहले एक आतंकी को निशाना बनाया और घायल साथियों को पेड़ की आड़ में ले गए। इस बीच उनके एक टांग पर गोली लग गई। लेकिन वह हार नहीं माने और अपने साथियों को सुरक्षित कर दोबारा फायर खोला, जिसमें एक आतंकी और मारा गया।

तीसरे आतंकी ने उनपर गोली चलाई, जो उनके पेट में जा लगी। साथी टुकड़ी ने इस बीच तीसरे आतंकी को मार गिया। लेकिन गंभीर रूप से घायल मोहन रुके नहीं।

उन्होंने चौथे आतंकी तक पहुंच कर उसे प्वाइंट ब्लैंक से शूट किया। उनके इस अदम्य साहस और सर्वोच्च कुर्बानी के लिए उन्हें सर्वोच्च सैन्य पदक अशोक चक्र से सम्मानित किया।

(source amar ujala)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जम्मू कश्मीर की सीमा पर हुए आतंकी हमले में गंभीर रूप से घायल हुए उत्तराखंड के बागेश्वर जनपद स्थित कपकोट (कर्मी गाँव) के निवासी जवान जितेंद्र सिंह दानू शहीद हो गए। उनका दिल्ली के आरoआरo अस्पताल में उपचार चल रहा था । कर्मी गुठण गांव निवासी जितेंद्र सिंह दानू (25) पुत्र केशर सिंह 17 कुमाऊं में तैनात थे। पिछले माह उनकी पोस्टिंग कुपवाड़ा क्षेत्र जम्मू कश्मीर के बांदीपुरा सेक्टर में थी। इसी दौरान 14 फरवरी को सीमा पर हुए आतंकी हमले में वे गंभीर रूप से घायल हो गए थे। तब से दिल्ली के आर आर अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था। जहाँ उन्होंने अंतिम साँस ली।
आज गांसू सरयू तट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनकी अंत्येष्टि की गई।
माँ भारती के वीर सपूत शहीद जितेंद्र सिंह दानू को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए नमन।
परमात्मा परिवार को इस दुःख की घड़ी में शक्ति प्रदान करे!


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कुपवाड़ा में शहीद उत्तराखंड के लाल को सैन्य सम्मान के साथ दी अंत‌िम व‌िदाई- Haldwani Uttarakhand
जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में शहीद लांस नायक भूपाल सिंह का पार्थिव शरीर बृहस्पतिवार की सुबह घर पहुंचते ही कोहराम मच गया। अपने जिगर के टुकड़े का चेहरा देखते ही पिता को चक्कर आ गया। हालत बिगड़ने पर परिजनों ने उनको एंबुलेंस से अस्पताल भेजा। इधर, रानीबाग में सैनिकों की टोली ने गमगीन माहौल में अपने साथी को अंतिम सलामी दी। कुपवाड़ा से सूबेदार मेजर रंजीत कुमार शहीद लांस नायक भूपाल सिंह का पार्थिव शरीर लेकर बुधवार देर रात हल्द्वानी की सेना छावनी में पहुंच गए थे। सुबह होने पर सैनिक शव लेकर गुनीपुर जिवानंद गांव स्थित शहीद के घर पहुंचे तो माता-पिता बेटे का चेहरा देखते ही बदहवाश हो गए। कुपवाड़ा के सैनिकों ने परिजनों को बताया कि भूपाल को सिर के पीछे गोली लगी थी। बहनों का भी रोते-रोते बुरा हाल हो गया। पिता की हालत खराब होने पर उनको एंबुलेंस से समीप के अस्पताल भेज दिया गया। काफी देर बाद उनकी हालत में सुधार हो सका। गांव के लोग शवयात्रा लेकर रानीबाग स्थित चित्रशिला घाट पहुंचे। गौला नदी के किनारे स्थानीय फौज के कैप्टन वैभव के नेतृत्व में आए 26 जवानों ने कई राउंड हवाई फायरिंग कर अपने साथी को अंतिम सलामी दी। ताऊ राजेंद्र सिंह ने मुखाग्नि दी। घाट पर लोगों का कहना था कि इकलौते बेटे के मौत की सूचना मिलने पर मंगलवार को भी भूपाल के पिता केशर सिंह को हार्ट अटैक पड़ गया था। कुपवाड़ा से आए सैनिक भी यह बता नहीं रहे थे कि आखिर किन हालातों में शहीद भूपाल को गोली लगी थी। गोली किसने चलायी थी। इस बारे में जिला सैनिक कल्याण अधिकारी बीएस रौतेला का कहना है कि इन सवालों का जवाब फौज की जांच रिपोर्ट आने पर ही मिल सकता है। source amar ujala

 

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