Author Topic: Heroes Of Wars From Uttarakhand - देश की रक्षा में शहीद उत्तराखंड रणबाकुरे  (Read 90158 times)

Lalit Mohan Pandey

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पूरा उत्तराखंड अपने रणबांकुरु पर गर्व करता है. देश के लिए अपने जीवन की बाज़ी लगा देने वाले बीरू को शत शत नमन. 

Devbhoomi,Uttarakhand

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UTTARAKHAND DEVBHOMI KAI RANBAKURON  KA JANM HUWA HAI LEKIN AAJ BHI UN RANBAKURON KO UNTANA SAMMAN OR ADAR NAHIN DIYA JAATA HAI,KYON ?
AAJ UTTARAKHAND JAHAN BHI HAI JAISA BHI HAI SAB IN RANBAKURON KI VAAY SE HAIN UNHIN UTTARAKHANDI RANBAKURON SAT-SAT NAMAN JAI DEVBHOOMI

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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देश के काम आया दून का लाल


                देहरादून। उत्ताराखंडी युवा और शहादत अब एक दूसरे के पर्याय बन चुके   हैं। वतन के लिए बलिदान देने वालों में यहां के युवा सबसे आगे हैं। मंगलवार   को छत्ताीसगढ़ में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के   पद पर तैनात देहरादून के जतिन गुलाटी (27) शहीद हो गए। जतिन की शहादत की   सूचना बुधवार सुबह परिजनों को मिली। बुधवार देर रात या गुरुवार सुबह तक   पार्थिव शरीर के देहरादून पहुंचने की संभावना है।
 करनपुर निवासी व पायल सिनेमा के निकट शॉप चलाने वाले श्याम गुलाटी व   उमा गुलाटी के एकलौते पुत्र जतिन गुलाटी सीआरपीएफ की 39वीं बटालियन में   तैनात थे। मंगलवार को सीआरपीएफ का दल छत्ताीसगढ़ के रायपुर जिले में   नारायणपुर-ओरछा मार्ग पर रोड ओपनिंग आपरेशन चला रहा था कि दल पर माओवादियों   ने घात लगाकर हमला कर दिया। इस हमले में सीआरपीएफ के 26 जवान शहीद हुए।   इनमें जतिन गुलाटी भी शामिल थे। परिजनों को जतिन की शहादत की सूचना बुधवार   सुबह आठ बजे मिली। जतिन के पिता श्याम गुलाटी ने बताया कि सीआरपीएफ   हेडक्र्वाटर से मिली जानकारी के मुताबिक पहले रायपुर से शहीद का पार्थिव   शरीर दिल्ली ले जाया जाएगा। दिल्ली से बुधवार देर रात या गुरुवार तक   पार्थिव शरीर के देहरादून पहुंचने की संभावना है।
 शुरू से ही रहा देश सेवा का जज्बा
 जतिन शुरू से ही सेना में जाना चाहते थे। ब्राइट्सलैंड से प्रारंभिक   शिक्षा हासिल करने के बाद जतिन ने डीएवी कालेज में बीएससी में प्रवेश लिया।   तब से ही वे सेना में जाने का प्रयास करने लगे थे। वे पांच बार लिखित   परीक्षा पास कर एसएसबी तक पहुंचे, लेकिन यहां किस्मत ने उनका साथ नहीं   दिया। 2004 में वे बीएसएफ में सब इंस्पेक्टर के रूप में भर्ती हुए। बावजूद   इसके अधिकारी बनने का सपना नहीं छूटा। 2006 में केंद्रीय पुलिस संगठन की ओर   से आयोजित परीक्षा में जतिन ने सफलता हासिल की। इसके बाद उन्हें पहली   तैनाती छत्ताीसगढ़ में ही मिली थी।
 जल्द छुट्टी पर आना था घर
 जतिन गुलाटी को जल्द ही छुट्टी पर घर आना था। परिजनों का कहना है कि   जतिन कमांडो ट्रेनिंग पर थे। दो सप्ताह पहले ही उनकी ट्रेनिंग समाप्त हुई   थी। जतिन की छुट्टी मंजूर हो गई थी, लेकिन इससे पूर्व उन्हें रायपुर में   ज्वाइनिंग लेनी थी। यहां ज्वाइन करने के बाद वे घर आने की तैयारी कर रहे   थे।
 लड़की ढूंढ रहे थे
 जतिन के परिजन उनकी शादी को लेकर चिंतित थे। वे इन दिनों उसके लिए लड़की   की तलाश कर रहे थे।
 तीन दिन पहले ही हुई थी बात
 जतिन की तीन दिन पहले ही अपने पिता से बात हुई थी। पिता ने जतिन से   खैर-खबर पूछी थी। तब जतिन ने बताया कि यहां सब ठीक है।
   http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6533194.html

Devbhoomi,Uttarakhand

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कारगिल दिवस


कारगिल युद्ध हुए 11 वर्ष बीत चुके हैं। इस दौरान सरकार ने युद्ध में शहीद सैनिकों को हर प्रकार से सम्मान देने का प्रयास किया है।

सूबे से शहीद हुए 75 कारगिल शहीदों के परिजनों में से अब तक 43 को पेट्रोल पंप व दस को गैस एजेंसियां स्वीकृत की जा चुकी हैं। आठ शहीदों की पत्नियों ने दूसरा विवाह कर लिया है। कारगिल में शहीद होने वाले अधिकारी व सैनिकों के परिजनों का सरकार ने पूरा ख्याल रखा है। कारगिल में शहीद होने वाले 75 जवानों में 58 शादीशुदा और 17 अविवाहित थे। शहीदों के परिजनों में से 43 को पेट्रोल पंप व 10 को गैस एजेंसियां आवंटित की गई हैं। साठ शहीदों के अभिभावकों को पेंशन आवंटित की गई थी। इनमें 12 का निधन हो चुका है और दो नेपाल में रह रहे हैं। 35 ऐसे परिवार है जहां अभिभावक व पत्नी दोनों को पेंशन मिल रही है। पांच वीर नारियों को सरकारी सेवा में रखा गया है।

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                          कारगिल दिवस: पलकें नम, सीना फख्र से चौड़ा


उत्तराखंड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। लोक गीतों में यहां के शूरवीरों की जिन वीर गाथाओं का जिक्र होता है वह अब सूबे की सीमाओं में ही न सिमट कर देश-विदेश में फैल गई हैं। हर साल यहां के औसतन दर्जन भर जवान देश के लिए सर्वोच्च बलिदान करते हैं। कारगिल युद्ध में सूबे के 75 सैनिकों ने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। ऐसा कोई पदक नहीं जो उत्तराखंड के जांबाजों ने अपने नाम न किया हो। इनकी याद में उत्तराखंड वासियों की पलकें जरूर नम होती हैं, लेकिन शहीदों की वीरगाथा से इनका सीना हमेशा फख्र से चौड़ा रहता है।

राष्ट्र की सुरक्षा और सम्मान के लिए उत्तराखंडी हमेशा से ही आगे रहे हैं। यहां के युवाओं में सेना में जाने का क्रेज आज भी बरकरार है। यही कारण है कि आईएमए से पास आउट होने वाला हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से है और भारतीय सेना का हर पांचवां जवान भी इसी वीर भूमि में जन्मा है। देश में जब भी कोई विपदा की घड़ी आई तो यहां के जवान अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे। उन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देकर वतन की आन बान और शान को बरकरार रखा है। चाहे भारत-चीन युद्ध में परमवीर चक्र विजेता मेजर धन सिंह थापा का शौर्य हो या फिर हाल ही में मुंबई आतंकी हमले में शहीद हुए अशोक चक्र विजेता गजेंद्र सिंह का अदम्य साहस। उत्तराखंड का जवान हमेशा से ही अपने फर्ज को पूरी शिद्दत के साथ निभाता रहा है। स्वतंत्रता से पूर्व यहां के कई वीर ब्रिटिश सेना के लिए भी अपनी जांबाजी दिखा चुके हैं। इसके लिए वह विक्टोरिया क्रास जैसा सम्मान भी पा चुके हैं। इनमें गबर सिंह का नाम आज भी याद किया जाता है। उनके नाम पर आज भी चंबा में मेला लगाया जाता है।

पदकों की सूची

परमवीर चक्र- 1

अशोक चक्र- 04

महावीर चक्र- 10

कीर्ति चक्र- 23

वीर चक्र- 95

शौर्य चक्र- 124

उत्तम युद्ध सेवा मेडल -01

युद्ध सेवा मेडल -15

सेना, नो सेना व वायु सेना मेडल- 541

मेंशन इन डिस्पेच -115

कुल - 929

स्वतंत्रता पूर्व वीरता पदक

- विक्टोरिया क्रास - 3

- इंडियन आर्डर आफ मैरिट - 53

- मिलिट्री क्रास - 25

- इंडियन डिस्िटग्विस्ड सर्विस मेडल - 89

मिलिट्री मेडल - 44

मेंशन इन डिस्पेच- 150

कुल - 364

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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                              नम आंखों से दी मेजर  मनीष को अंतिम विदाई        

                                                                     

उत्तरकाशी, जागरण कार्यालय : आर्मी एडवेंचर विंग के कामेट अभियान के   दौरान दुर्घटना का शिकार हुए मेजर मनीष गुसांई को पूरे सैन्य सम्मान के साथ   अंतिम विदाई दी गई। शवयात्रा में उनके अंतिम दर्शनों को बड़ी संख्या में   लोग उमड़े।
बीती 19 सितंबर की सुबह ग्लेशियर टूटने के कारण कुमांऊ स्काउट के मेजर   मनीष गुसांई और एक अन्य सैन्य अधिकारी की मौत हो गई थी। शुक्रवार को कुमांऊ   स्काउट के मेजर अमित चमोली व मेजर संतोष किरण की देखरेख में उनके शव को   सेना के हैलीकाप्टर से उनके गृहनगर उत्तरकाशी लाया गया। मातली हैलीपैड से   शव को पहले कोटी गांव स्थित उनके आवास पर ले जाया गया जहां परिजनों ने   गमगीन माहौल में अपने सपूत के अंतिम दर्शन किये। कुछ देर बाद सैन्य सम्मान   के साथ मुख्य बाजार होते हुए निकली शवयात्रा में हजारों लोग शामिल हुए।   केदारघाट में आईटीबीपी व उत्तराखंड पुलिस के जवानों ने गार्ड आफ आनर दिया।   इसके बाद उनके छोटे भाई मनोज ने चिता को आग दी। इस दौरान केदार घाट पर बड़ी   संख्या में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। जिनमें क्षेत्र के जनप्रतिनिधि, अधिकारी,   कर्मचारी व सैकड़ों युवा शामिल थे।
पांच दिन बाद पहुंचाया गया शव
उत्तरकाशी : कामेट हिमशिखर के अभियान में 19 सितंबर की सुबह ही दुर्घटना   हो गई थी, लेकिन खराब मौसम के चलते सेना के हवाई जहाज दल के बेस कैंप तक   नहीं पहुंच पा रहे थे। 23 सितंबर को मौसम खुलने पर मेजर मनीष के शव को   देहरादून पहुंचाया जा सका। जहां जरूरी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद   शुक्रवार 24 सितंबर को शव उत्तरकाशी पहुंचाया जा सका।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6750991.html

   

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देश की आजादी के लिए अल्मोड़ा जनपद के
सल्ट विकास खंड के लोगों का बलिदान किसी से
छिपा नहीं है। आजादी की लड़ाई में क्रान्ति की प्रबल
भावना को देखते हुए गाँधी जी ने इस क्षेत्र को कुमाऊँ
की बारदोली का नाम दिया।
कुमाऊँ व गढ़वाल की सीमा पर बसे सल्ट के
इतिहास के पन्नों को पलटें तो यह क्षेत्र शुरू से ही
आजादी की लड़ाई में जुटा हुआ था। सविनय अवज्ञा
आंदोलन में सर्वाधिक भाग लेने वाला यह अकेला
इलाका था। यही कारण था कि आजादी मिलने तक
अंग्रेजी हुकूमत ने इस इलाके के प्रति बेहद सख्त रुख
रखा और दमन की सारी हदें तोड़ दी। 1929-30 में
पाँच पट्टियों में बसे सल्ट में कांग्रेस की सदस्य संख्या
1000 तक रही। इसी के साथ गाँव-गाँव में महात्मा
गाँधी के कार्यक्रमों की धूम मच गई। 65 में से 61
मालदारों ने इस्तीफा दे दिया तथा तंबाकू और विदेशी
वस्तुओं का बहिष्कार कर दिया। सभाओं और प्रार्थना
के लिए रणसिंघ बजाकर सूचना दी जाती थी। 17

अगस्त 1930 को सल्ट के सत्याग्रही संचालक हरगोविन्द
पंत को हिरासत में ले लिया गया। इससे पूरे इलाके में
आक्रोश फैल गया। आंदोलन को दबाने के लिए इलाकाई
हाकिम हबीबुर्रहमान गोरी फौज के साथ सल्ट के विभिन्न
इलाकों में दमन करता हुआ पहुँच गया।
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जब-जब आंदोलन चले,
यह क्षेत्र इन आंदोलनों से कभी अछूता नहीं रहा लेकिन
सन् 1920 के दशक में क्षेत्र में पुरुषोत्तम उपाध्याय की
अगुवाई में लोंगों ने आजादी का बिगुल बजाया। 1922
में गाँधी जी के जेल जाने पर लोगों ने इसका जमकर
विरोध किया। श्री उपाध्याय 1927 में सरकारी नौकरी
छोड़कर पूरी तरह संघर्ष में कूद गए। 1927 में नशाबंदी,
तंबाकू बंदी आंदोलन के दौरान धर्म सिंह मालगुजार के
गोदामों में रखा मनांे तंबाकू फूंक दिया गया। इस क्षेत्र में
सविनय अवज्ञा, नमक सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह, कुली
बेगार, अंग्रेजो भारत छोड़ो जैसे आंदोलन सर्वव्यापी रूप
धारण कर चुके थे। 5 सितम्बर 1942 को खुमाड़ में चार
लोगों की वजह से आंदोलन और तेज हो गया। जब-जब
आंदोलनों की आग यहाँ तेज होती, तब-तब अंग्रेजों की
बर्बरता और दमन भी तेज हो जाता। 5 सितम्बर 194

को खुमाड़ में सभा की सूचना जब अंग्रेज हाकिमों को
मिली, तब एसडीएम जॉनसन को सेना समेत यहाँ के
लिए रवाना कर दिया गया। सभा में पहुँचकर जॉनसन
ने गोली चलाने के आदेश दे दिए। दो सगे भाई गंगाराम
और खीमानंद मौके पर ही शहीद हो गए जबकि चार
दिन तक घायल रहे चूड़ामणी व बहादुर सिंह भी
शहीद हो गए। इसके अलावा गंगा दत्त शास्त्री,
मधुसूदन, गोपाल सिंह, बचे सिंह व नारायण सिंह
गंभीर रूप से घायल हो गए। भगदड़ के दौरान कई
लोग चुटैल भी हुए।
इस घटना से आहत होकर व ग्रामीणों की
देशभक्ति की भावना को देखते हुए महात्मा गाँधी ने
सल्ट को कुमाऊँ की बारदोली नाम दिया। गाँधी जी
ने संदेश भेजकर अहिंसात्मक आंदोलन चलाने का
आग्रह किया। सन् 1947 में जब देश आजाद हुआ
तब लोगों ने सर्वाधिक दीप जलाकर खुशियाँ मनाई।
तब से हर वर्ष 5 सितम्बर के दिन शहीदों की स्मृति में
शहीद दिवस मनाया जाता है। अनेक राजनैतिक,
सामाजिक व स्थानीय ग्रामीण शहीदों को यहाँ
श्र(ांजलि देते हैं।

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छत्तीसगढ़ में शहीद हुआ चमोली का जवान
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त्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में बारूदी सुरंग के विस्फोट में शहीद आईटीबीपी के तीन जवानों में से एक कर्णप्रयाग नगर से सटे ग्वाड़ गांव का निवासी था। आईटीबीपी गौचर आठवीं वाहिनी के कमांडेंट सुनील रंजन राय ने बताया शहीद कांस्टेबल का शव देर शाम तक उनके पैतृक गांव में पहुंचने की सूचना है।

ब्लाक पोखरी के सेमीग्वाड़ निवासी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के मझले पुत्र कांस्टेबल शिवप्रसाद पुरोहित को आईटीबीपी में भर्ती हुए तीन वर्ष ही बीते थे कि देश सेवा का जज्बा रखने वाला जवान देश की सेवा के लिए शहीद भी हो गया। जुलाई 2007 में बतौर सिपाही भर्ती हुए शिवप्रसाद को बचपन से ही सेना में भर्ती होने का शौक था। बचपन के साथी हिमांशु बेंजवाल, संजय खाली, महेश बेंजवाल बताते हैं कि जुलाई 2007 में आईटीबीपी में भर्ती होने के बाद छुट्टी आने पर वह अपनी बहादुरी के किस्से उन्हें सुनाया करता था। उनका कहना है कि अभी कुछ दिन पहले ही वह छुट्टी पर घर आया था। उन्हें विश्वास नहीं होता कि वास्तव में उनका दोस्त शहीद हो गया है। घर में वृद्ध माता लीला देवी, पिता डा. राजेन्द्र प्रसाद, बड़ा भाई संजय व सबसे छोटे भाई भगवती प्रसाद का रो-रो कर बुरा हाल है। परिजनों को सांत्वना देने पहुंचे आईटीबीपी आठवीं वाहिनी के कमांडेट सुनील रंजन राय व तहसीलदार पोखरी बीएस मरांडी ने बताया कि देर शाम तक शहीद का पार्थिव शरीर सैन्य सम्मान के साथ पैत्रक गांव पहुंचेगा।

Source dainik jagran news

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                छत्तीसगढ़ में शहीद हुआ  चमोली का जवान

          कर्णप्रयाग, जागरण कार्यालय : छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में   बारूदी सुरंग के विस्फोट में शहीद आईटीबीपी के तीन जवानों में से एक   कर्णप्रयाग नगर से सटे ग्वाड़ गांव का निवासी था। आईटीबीपी गौचर आठवीं   वाहिनी के कमांडेंट सुनील रंजन राय ने बताया शहीद कांस्टेबल का शव देर शाम   तक उनके पैतृक गांव में पहुंचने की  सूचना है।
ब्लाक पोखरी के सेमीग्वाड़ निवासी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के मझले पुत्र   कांस्टेबल  शिवप्रसाद पुरोहित को आईटीबीपी में भर्ती हुए तीन वर्ष ही बीते   थे कि देश सेवा का जज्बा रखने वाला जवान देश की सेवा के लिए शहीद भी हो   गया। जुलाई 2007 में बतौर सिपाही भर्ती हुए शिवप्रसाद को बचपन से ही सेना   में भर्ती होने का शौक था। बचपन के साथी हिमांशु बेंजवाल, संजय खाली, महेश   बेंजवाल बताते हैं कि जुलाई 2007 में आईटीबीपी में भर्ती होने के बाद   छुट्टी आने पर वह अपनी बहादुरी के किस्से उन्हें सुनाया करता था। उनका कहना   है कि अभी कुछ दिन पहले ही वह छुट्टी पर घर आया था। उन्हें विश्वास नहीं   होता कि वास्तव में उनका दोस्त शहीद हो गया है। घर में वृद्ध माता लीला   देवी, पिता डा. राजेन्द्र प्रसाद, बड़ा भाई संजय व सबसे छोटे भाई भगवती   प्रसाद का रो-रो कर बुरा हाल है। परिजनों को सांत्वना देने पहुंचे आईटीबीपी   आठवीं वाहिनी के कमांडेट सुनील रंजन राय व तहसीलदार पोखरी बीएस मरांडी ने   बताया कि देर शाम तक शहीद का पार्थिव शरीर सैन्य सम्मान के साथ पैत्रक गांव   पहुंचेगा।



http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6798784.html

   

        

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नम आंखों से दी अंतिम विदाई
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जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा सीमा पर आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद फागपुर के सैनिक जगदीश सिंह का शारदा घाट पर सैनिक सम्मान के साथ अंतिम संस्कार कर दिया गया है। शव यात्रा में सैकड़ों लोग शामिल हुए।

जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में रविवार को सीमा पर दुश्मनों के साथ हुई मुठभेड़ में शहीद हुए राष्ट्रीय रायफल्स के 8-सेक्टर में तैनात फागपुर निवासी जगदीश सिंह पुत्र किशन सिंह का शव सोमवार को बनबसा लाया गया। पार्थिव शरीर पैश रेजीमेंट के जवान उनके निवास पर लेकर पहुंचे। शहीद का शव देखकर परिजनों में कोहराम मच गया। शहीद की मां व छोटी बहन का रो-रोकर बुरा हाल है, जबकि पत्नी को बेहोशी के दौरे पड़ने लगे। शव यात्रा में क्षेत्र के सैकड़ों लोगों ने नम आंखों से अंतिम विदाई दी। जब तक सूरज चांद रहेगा जगदीश तेरा नाम रहेगा, भारत माता की जय के नारों से आसमान गुंजायमान हो गया। बनबसा के शारदा घाट में एसडीएम शिवचरण द्विवेदी और 11 बिहार रेजीमेंट के मेजर एसके सिंह ने शहीद को पुष्पचक्र अर्पित कर श्रद्घांजलि दी। शहीद के बडे़ भाई होशियार सिंह ने चिता को मुखाग्नि दी। इस मौके पर पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल, कांग्रेस जिलाध्यक्ष मोहनराम आर्य, पूर्व जिपं उपाध्यक्ष बहादुरसिंह पाटनी, ग्राम प्रधान चंद्रप्रकाश, पुष्कर, भाजपा मंडल अध्यक्ष दीपक रजवार, थानाध्यक्ष नारायण सिंह सहित तमाम लोगों ने शहीद को अंतिम विदाई दी।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/uttranchal/4_5_6807955.html

 

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