देश की आजादी के लिए अल्मोड़ा जनपद के
सल्ट विकास खंड के लोगों का बलिदान किसी से
छिपा नहीं है। आजादी की लड़ाई में क्रान्ति की प्रबल
भावना को देखते हुए गाँधी जी ने इस क्षेत्र को कुमाऊँ
की बारदोली का नाम दिया।
कुमाऊँ व गढ़वाल की सीमा पर बसे सल्ट के
इतिहास के पन्नों को पलटें तो यह क्षेत्र शुरू से ही
आजादी की लड़ाई में जुटा हुआ था। सविनय अवज्ञा
आंदोलन में सर्वाधिक भाग लेने वाला यह अकेला
इलाका था। यही कारण था कि आजादी मिलने तक
अंग्रेजी हुकूमत ने इस इलाके के प्रति बेहद सख्त रुख
रखा और दमन की सारी हदें तोड़ दी। 1929-30 में
पाँच पट्टियों में बसे सल्ट में कांग्रेस की सदस्य संख्या
1000 तक रही। इसी के साथ गाँव-गाँव में महात्मा
गाँधी के कार्यक्रमों की धूम मच गई। 65 में से 61
मालदारों ने इस्तीफा दे दिया तथा तंबाकू और विदेशी
वस्तुओं का बहिष्कार कर दिया। सभाओं और प्रार्थना
के लिए रणसिंघ बजाकर सूचना दी जाती थी। 17
अगस्त 1930 को सल्ट के सत्याग्रही संचालक हरगोविन्द
पंत को हिरासत में ले लिया गया। इससे पूरे इलाके में
आक्रोश फैल गया। आंदोलन को दबाने के लिए इलाकाई
हाकिम हबीबुर्रहमान गोरी फौज के साथ सल्ट के विभिन्न
इलाकों में दमन करता हुआ पहुँच गया।
महात्मा गाँधी के नेतृत्व में जब-जब आंदोलन चले,
यह क्षेत्र इन आंदोलनों से कभी अछूता नहीं रहा लेकिन
सन् 1920 के दशक में क्षेत्र में पुरुषोत्तम उपाध्याय की
अगुवाई में लोंगों ने आजादी का बिगुल बजाया। 1922
में गाँधी जी के जेल जाने पर लोगों ने इसका जमकर
विरोध किया। श्री उपाध्याय 1927 में सरकारी नौकरी
छोड़कर पूरी तरह संघर्ष में कूद गए। 1927 में नशाबंदी,
तंबाकू बंदी आंदोलन के दौरान धर्म सिंह मालगुजार के
गोदामों में रखा मनांे तंबाकू फूंक दिया गया। इस क्षेत्र में
सविनय अवज्ञा, नमक सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह, कुली
बेगार, अंग्रेजो भारत छोड़ो जैसे आंदोलन सर्वव्यापी रूप
धारण कर चुके थे। 5 सितम्बर 1942 को खुमाड़ में चार
लोगों की वजह से आंदोलन और तेज हो गया। जब-जब
आंदोलनों की आग यहाँ तेज होती, तब-तब अंग्रेजों की
बर्बरता और दमन भी तेज हो जाता। 5 सितम्बर 194
को खुमाड़ में सभा की सूचना जब अंग्रेज हाकिमों को
मिली, तब एसडीएम जॉनसन को सेना समेत यहाँ के
लिए रवाना कर दिया गया। सभा में पहुँचकर जॉनसन
ने गोली चलाने के आदेश दे दिए। दो सगे भाई गंगाराम
और खीमानंद मौके पर ही शहीद हो गए जबकि चार
दिन तक घायल रहे चूड़ामणी व बहादुर सिंह भी
शहीद हो गए। इसके अलावा गंगा दत्त शास्त्री,
मधुसूदन, गोपाल सिंह, बचे सिंह व नारायण सिंह
गंभीर रूप से घायल हो गए। भगदड़ के दौरान कई
लोग चुटैल भी हुए।
इस घटना से आहत होकर व ग्रामीणों की
देशभक्ति की भावना को देखते हुए महात्मा गाँधी ने
सल्ट को कुमाऊँ की बारदोली नाम दिया। गाँधी जी
ने संदेश भेजकर अहिंसात्मक आंदोलन चलाने का
आग्रह किया। सन् 1947 में जब देश आजाद हुआ
तब लोगों ने सर्वाधिक दीप जलाकर खुशियाँ मनाई।
तब से हर वर्ष 5 सितम्बर के दिन शहीदों की स्मृति में
शहीद दिवस मनाया जाता है। अनेक राजनैतिक,
सामाजिक व स्थानीय ग्रामीण शहीदों को यहाँ
श्र(ांजलि देते हैं।