गढ़वाल का एतिहासिक वर्णन
जैसे कि इतिहासकार मानते हैं कि ना तो पुरात्तव प्रमाण और न ही इतिहासिक उल्लेख पर्याप्त उपलब्ध हैं। गढ़वाल की प्रारंभिक इतिहास का क्रम हमें वेदों, पुराणों, ग्रन्थों एवं इसके अतिरिक्त एटकिंसन के गजट (1884), ड़ा डबरल तथा अन्य इतिहासकारों द्वारा लिखित "उत्तराखण्ड का इतिहास" के विभिन्न खण्डों इत्यादि से ही गढ़वाल के इतिहास का पता चलता है।
विभिन्न अंग्रेज अफसरों जैसे कि बेटन (1851), रामसे (1861,1874), बैंकेट (1870) स्टोवैल, वाल्टन, ट्रेल (1928) इबोटसन (1929) तथा लेखक जैसे कि हरिकृष्ण रतौरी (1910,1918,1928), रायबहादुर पतिराम (1924), आधुनिक इतिहासकार जैसे कि सकलानी (1987), नेगी (1988) तथा तोलिया (1994-96) एवं पुरात्तविद जैसे कि के.पी. नैटियाल (1961,1969) इत्यादि गढ़वाल के इतिहास पर अंदरूनी दृष्टिपात करने में सहायता करते है। हालांकि श्री एस.एस.नेगी ने बड़ी बारीकी से कोशिश की है गढ़वाल के इतिहास को क्रमबद्ध करने की।
इस क्षेत्र के प्रारंभिक निवासियों के बारे में इतिहासकारों का मानना है कि गढ़वाल में आदिकाल तथा वैदिक सभ्यता के समय विभिन्न जनजातियों ने प्रवेश किया था।
जिनमें से किरात, तंगना, खास, दारद कलिंद योद्धया, नागा तथा कतिरिस प्रमुख थी। इनमें से ज्यादातर जनजातियों का उल्लेख प्राचीन ग्रथों तथा पुराणों में भी मिलता है।