Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन
History of British Rule, Administration, Policies over Garhwal, Kumaon, Haridwar
(1/1)
एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720:
Dosto,
Our Senior Member Mr Bhishma Kukreti ji will write articles on "History of British Rule, Administration, Policies over Garhwal, Kumaon, Haridwar Uttarakhand" in this thread.
For any queries, you can write to Mr Kukreti on kukretibhishma@gmail.com
M S Mehta
Bhishma Kukreti:
कुषाण युग में हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर में सड़कें
Roads in Kushan era n Haridwar, Bijnor, Saharanpur
Ancient History o Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 191
कुषाण कालीन हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 191
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
कुषाण काल में चीन व रोम से व्यापर संबंध शुरू हुए। पूरी अपनी पुस्तक में लिखता है कि व्यापार वृद्धि व साम्राज्य सुरक्षा हेतु अच्छी सड़कें निर्माण की गयीं। सड़कों में सुधार किया गया था , सुपथ बनाये गए थे।
सकल ( सियालकोट ) से प्रतिदिन पाटलिपुत्र तक 500 गाड़ियां जातीं थीं। साकल से श्रुघ्न (सहारनपुर ) से कालकूट कालसी (सहारनपुर -देहरादून प्राचीन सीमा ) से गढ़वाल भाभर होते हुए गोविषाण (काशीपुर ) से अहिच्छत्रा मार्ग था। सोपारा से श्रावस्ती व कशी से तक्षशिला सार्थ चलते थे। राजकीय सुरक्षा के अतिरिक्त लोग अपने साथ पंडित , मार्ग दर्शक भी ले जाते थे। संभवतया पंडित चिकित्सा में भी सहायक होते थे।
बांस के पुल - नदियाँ पार करने हेतु बांस के पुल बनाये जाते थे। बड़ी चौड़ी नदियों में नाव से परिहवन होता था। छोटी छोटी नदियों पर बाँध बनाकर नाव चलाने लायक बना दिए गए थे।
हरिद्वार से बद्रीनाथ मार्ग - पुरी अनुसार कुषाण काल से पूर्व ही हरिद्वार से बद्रीनाथ मार्ग से देवप्रयाग होते हुए धार्मिक यात्राएं शुरू हो चुकीं थीं। संभवतया हरिद्वार -बद्रिकाश्रम मार्ग में भी सुधार हुआ होगा। धार्मिक सहिष्णुता
यद्यपि कुषाण कालीन शासक बौद्ध थे तभी भी उनकी मुद्राओं में हिंदी , जैन , देवताओं को समुचित स्थान मिला है जो धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है।
कुषाण कल म सभी पंथ की देवी देवताओं की मूर्ति निर्मित होतीं थीं।
हरिद्वार में पशुबलि ?
कुषाण युग में वैदिक यज्ञों पशु बलि देने की प्रथा हो सकता है हरिद्वार के मंदिरों जैसे चंडी मंदिर में पशु बलि दी जाती रही होगी। चंडी मंदिर व उत्तराखंड के कई देवी मंदिरों में पशु बलि कुछ समय पहले ही बंद हुईं
विष्णु की नारायण रूप में पूजा
विष्णु की नारायण व वासुदेव रूप में पूजा प्रचलित थी। बद्रिकाश्रम नारायण रूप में प्रचलित था। विष्णु का सहठुजा रूप व कमलासन अधिक प्रसिद्ध हुआ था। ंलराम की भी मूर्तियां इस काल में निर्मित हुईं।
शुंग व कुषाण काल में सबसे अधिक पूजा शिव की होती थी। शिव की पूजा रूद्र , पशुपरी व नाग रूप में पूजा होने लगी थी। मथुरा में कुषाण कालीन अर्धनारेश्वर मूर्ति व चतुर्भुज शिव की मूर्ति मिलीं हैं
शिव को लिंगरूप में भी पूजा होती थी।
हरिदवार -कोटद्वार मार्ग में लल ढांग में पांडुवलाखंडहरों में लिंगधारी मूर्ति मिली थी जिसमे लिंग पर हर गौरी की आकृतियां अंकित हैं (डबराल उत्तराखंड का इतिहास भग -3 पृ . 236
डाब राल अनुसार वीरभद्र में गंगा तट पर लाल शिला का बना एक सुंदर मुखलिंग मिला था (वही )
बूटधारी सूर्य
सूर्य को बूट पहने मूर्ति में निर्मित करने की कला कुषाण युग की ही दें है। उत्तराखंड में कटारमल मंदिर व मंदिरों में सूर्य बूटधारी सूर्य रूपमे मिलते हैं (डबराल , वही )
नाग देवता की पूजा
भात ही नहीं उत्तराखंड में भी कुषाण काल में नाग पूजा अधिक होती थी। मूर्तियों में सर्पों को मानव रूप दिया जाता था। (वी डी महाजन 1990 , ऐनसियंट इंडिया , पृ. 1450 ) और नाग पूजा प्रचलित हुयी
तीर्थ यात्राओं का प्रचलन भी कुषाण युग में प्रचलित हो चुका था। सम्राट अशोक ने स्वयं कई बौद्ध तीर्थों यात्रा की थी
अनुमान लगा सकते हैंकि कुषाण काल में हरिद्वार एक तीर्थ स्थल रूप में विकसित हो चुका था। यदि हरिद्वार कुषाण काल में तीर्थस्थल रूप अख्तियार न करता तो सातवीं सदी में चीनी यात्री हरिद्वार की ओर आकर्षित नहीं होता।
हरिद्वार से बद्रीनाथ यात्रा
देवप्रयाग में रघुनाथ मंदिर के पीछे कुछ शिलालेखों में यात्रियों के नाम हैं जो दूसरी से चौथी सदी के मध्य देवप्रयाग आये थे व व शिलालेखों में (एपिग्राफिया इंडिका पृष्ठ 133 ) मानपर्वत (माणा ) अंकन से डा छावड़ा ने अनुमान लगाया कि ये यात्री माणा याने बद्रिकाश्रम गए थे। तब बद्रिकाश्रम जाने का एक ही मार्ग था हरिद्वार से देवप्रयाग होते हुए बद्रिकाश्रम पंहुचना।
हरी की पैड़ी
यदि जनश्रुतियों पर विश्वास करें तो कुषाण युग में हरिद्वार में हरी की पैड़ी पवित्र स्थल प्रसिद्ध हो जाना चाहिए था। जनश्रुतियों में कहा जाता है कि माहराज विक्रमादित्य (कालिदास काल ) ने हरी की पैड़ी निर्माण किया था।
कुशाण इतिहास संदर्भ -
पुरी , इण्डिया अंडर कुषाणज
महाभारत
बंदोपाध्याय - प्राचीन मुद्राएं
घ्रिशमैन , ईरान
एलन - क्वाइन्स ऑफ अन्सिएंट इण्डिया
राहुल , मध्यएशिया का इतिहास
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग -३
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 2018
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
Ancient Kushan Era History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of ushan Era Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of ushan Era Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Ancient ushan Era History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Ancient ushan Era History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Ancient ushan Era History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Ancient ushan Era History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Ancient ushan Era History of Sultanpur, Haridwar, Uttarakhand ; Ancient ushan Era History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient ushan Era History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of ushan Era Narsan Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Bijnor; Ancient History of Nazibabad Bijnor ; Ancient History of ushan Era Saharanpur; Ancient History of Nakur , ushan Era Saharanpur; Ancient History of Deoband, ushan Era Saharanpur; Ancient History of Badhsharbaugh , ushan Era Saharanpur; Ancient ushan Era Saharanpur History, Ancient ushan Era Bijnor History;
कनखल , कुषाण कालीन हरिद्वार इतिहास ; तेलपुरा , कुषाण कालीन हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा , कुषाण कालीन हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , कुषाण कालीन हरिद्वार का इतिहास ; कुषाण कालीन रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर कुषाण कालीन हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ; कुषाण कालीन सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , कुषाण कालीन हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना , बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , कुषाण कालीन बिजनौर इतिहास; कुषाण कालीन कुषाण कालीन सहारनपुर इतिहास; Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas
:============= स्वच्छ भारत ! स्वच्छ भारत ! बुद्धिमान उत्तराखंड =============:
Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर में कुषाण व कुणिंद राज्य अवसान
(कुषाण युग में हरिद्वार , बिजनौर, सहारनपुर, Haridwar ,Bijnor , Saharanpur in Kushan Era
)
History of Kunind Era in Haridwar , Saharanpur and Bijnor
Ending of , Kushan & Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 192
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 192
इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
कुषाण अवसान
मुद्राओं से सिद्ध होता है कि कुषाण अवसान पश्चात पर्वतीय उत्तराखंड , हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर के कुणिंद राजा स्वतंत्र हो गए। गोविषाण मुद्रा से सिद्ध होता है कि कुषाण नरेश वासुदेव की मृत्यु के बाद किसी कुषाण क्षत्रप एधुराया अधुजा का दक्षिण उत्तराखंड के मैदानी भाग पर सत्ता थी।
अनुमान लगाया जाता है कि 250 ईश्वी तक (जायसवाल , गुप्त एज ) कि सतलज पपूर्व , उत्तराखंड की दक्षिण सीमा भाग व मध्य देस में कुषाण साम्राज्य समाप्त हो चुका थ। कुषाण साम्राज्य अवसान पर इतिहासकारों मध्य एकमत नहीं है।
यौधेय मुद्राओं की विशेषताएं
यौयेध गण मुद्राओं के लेख निम्न प्रकार हैं (डबराल - व कके दी बाजपाई ,इंडियन न्यूमिस्मैटिक स्टडीज पृ 26, कनिंघम क्वाइनेज ऑफ ऐन्शिएंट इण्डिया पृ 77 )
१- यौधेयना , यौधेयनि या यधे यनि
२- यौधेय गणस्य जय (जय:) , वि , त्रि
३- भागवत स्वामिन ब्राह्मण यौधेय
३- भागवत स्वामिन ब्राह्मण देवस्य
४- ब्रह्मण देवस्य भागवत
५- स्वामी भागवत
६- भागवत: यधेयन:
७- कुमारस (कुमारस्य )
८- महाराजस
९- बहुधानेक
१०-भागवत स्वामीनो ब्राह्मण्य देवस्य कुमारस्य यौधेय गणस्य जयः
११- यौधेयाना बहुधानेक
इतिहासकार जैसे अल्लन मानते हैं कि कुमार कोई नाम न होकर कार्तिकेय का नाम है और बहुधानेक यौधेय गणों का मूल स्थान है।
पूर्वोक्त यौयेध मुद्राओं में निम्न चिकतराकंन मिलते हैं -
१- वेष्ठनीयुक्त बोधिबृक्ष की ओर जाता हुआ नंदी
२- बांये हाथ से कमर पकड़े , दाहिने हाथ में शूल लिए खड़ा वीर व मध्य में मयूर
३- बांये हाथ से कमर पकड़े , दाहिने हाथ आगे की ओर बढ़ाता खड़ा वीर
४- दाहिने हाथ में शूल लिए खड़ा षडानन कार्तिकेय व कंधे के ऊपर रिक्त स्थान में एक छोटा पक्षी (संभवतः मयूर )
५- दाहिने हाथ में शूल युक्त षडानन कार्तिकेय
६- हस्ती व नणदीपाद
७- अग्रभाग में हाथ में शूल लिए षडानन कार्तिकेय , बाम भाग मयूर , पृष्ठ भाग में कुणिंद सम्राटों की मुद्राओं में अंकित मिहिर सामान देवमूर्ति
८- ८-उपरोक्त गणराज्य की मुद्राएं हैं
योयेध वीर नाम से प्रसिद्ध था
वीर मुद्रा में किसी शासक का नाम नहीं है
यौधेयगण उत्थान
एक मतानुसार (वकाटका , 2006 गुप्त एज ) कुषाण साम्राज्य पर सर्व प्रथम यौधेयगण ने आक्रमण किया। किन्तु बहुत से इतिहासकार इस मत को नहीं मानते हैं। वास्तव में कुषाण अवसान के कई कारण थे।
कुणिंद व यौधेय सहयोग
इन दिनों जो भी मुद्राएं मिलीं है वे इस युग पर रोचक प्रकाश डालती हैं। मुद्राएं यौधेय -कुणिंद की सहयोग कथा कहतीं हैं। महाभारत में भी कुणिंद व यौधेयों के आपस में सहयोगी संबंध उल्लेख हैं।
मुद्राएं
कुणिंद -यौधेय सहयोग मुद्राएं 250 ईश्वी याने कुषाण अवसान से लेकर 457 ई गुप्त काल अभ्युदय की हैं वकाटका )। ये मुद्राएं सुनेत लुधियाना , बेहट सहारनपुर ,स्रुघ्न , बिजनौर देहरादून , भाभर के निकट भैड़ गाँव गढ़वाल , अल्मोड़ा में मिली हैं (डबराल पृष्ठ 252 ) । लगता है यौधेय -कुणिंद संघ था और उनका राज्य पूर्वी हिमाचल से लेकर स्रुघ्न , सहरानपुर , हरिद्वार , भाभर की संकरी पट्टी से होते हुए काशीपुर अल्मोड़ा तक था।
यौधेय -कुणिंद मुद्राओं की विशेषताएं
यौधेय -कुणिंद सहयोग की मुद्राएं कुषाण अवसान से गुप्त काल उद्भव तक प्रसारित की गयीं। अल्लन अनुसार कुणिंद मुद्राएं दो प्रकार की मुद्राएं हैं प्रथम पहली सदी से पहले की व दूसरी सदी के बाद की मुद्राएं रजत मुद्राएं हैं अपने समय की सुंदर मुद्राओं में गिनी जाती हैं
यौधेय मुद्राओं की विशेषताएं
यौयेध गण मुद्राओं के लेख निम्न प्रकार हैं (डबराल - व कके दी बाजपाई ,इंडियन न्यूमिस्मैटिक स्टडीज पृ 26, कनिंघम क्वाइनेज ऑफ ऐन्शिएंट इण्डिया पृ 77 )
१- यौधेयना , यौधेयनि या यधे यनि
२- यौधेय गणस्य जय (जय:) , वि , त्रि
३- भागवत स्वामिन ब्राह्मण यौधेय
३- भागवत स्वामिन ब्राह्मण देवस्य
४- ब्रह्मण देवस्य भागवत
५- स्वामी भागवत
६- भागवत: यधेयन:
७- कुमारस (कुमारस्य )
८- महाराजस
९- बहुधानेक
१०-भागवत स्वामीनो ब्राह्मण्य देवस्य कुमारस्य यौधेय गणस्य जयः
११- यौधेयाना बहुधानेक
इतिहासकार जैसे अल्लन मानते हैं कि कुमार कोई नाम न होकर कार्तिकेय का नाम है और बहुधानेक यौधेय गणों का मूल स्थान है।
पूर्वोक्त यौयेध मुद्राओं में निम्न चिकतराकंन मिलते हैं -
१- वेष्ठनीयुक्त बोधिबृक्ष की ओर जाता हुआ नंदी
२- बांये हाथ से कमर पकड़े , दाहिने हाथ में शूल लिए खड़ा वीर व मध्य में मयूर
३- बांये हाथ से कमर पकड़े , दाहिने हाथ आगे की ओर बढ़ाता खड़ा वीर
४- दाहिने हाथ में शूल लिए खड़ा षडानन कार्तिकेय व कंधे के ऊपर रिक्त स्थान में एक छोटा पक्षी (संभवतः मयूर )
५- दाहिने हाथ में शूल युक्त षडानन कार्तिकेय
६- हस्ती व नणदीपाद
७- अग्रभाग में हाथ में शूल लिए षडानन कार्तिकेय , बाम भाग मयूर , पृष्ठ भाग में कुणिंद सम्राटों की मुद्राओं में अंकित मिहिर सामान देवमूर्ति
८- ८-उपरोक्त गणराज्य की मुद्राएं हैं
योयेध वीर नाम से प्रसिद्ध था
वीर मुद्रा में किसी शासक का नाम नहीं है
प्राचीन मुद्राओं (43-57 इश्वी में यौधेय गणकी आर्थिक दरिद्रता झलकती है.
158से 257इश्वी में भी यौधेय दरिद्रता झलकती है
ताम्र मुद्राएँ जिन पर कुषाण प्रभाव है उनकी भाषा प्राकृत संस्कृत से प्रभावित है।
257 से 457 तक की मुद्राओं में यौधेय गणस्य जय: अंकित है। कुनिंद मुद्राएँ 250ई के पश्चात नही मिलते हैं।
कुणिंद मुद्राओं में निम्न लेख मिलते हैं (डबराल पृ -248 )
१- कदास (कादस्य )
२- कुणिंद
अगरजस (अग्रराजस्य )
२-राज्ञ बलभुतिस
३- राज्ञ कुणिंदस अमोघभूतिस (अमोघभूति स्य )
४- शिवदतस
५-हरी द तस
६- शिवपलितस
७- मगभतस
८- भगवतो छत्रेश्वर महात्मन
९- भानवर्मन
१०- रावण -रावणस्य , वणस्य
कुणिंद मुद्राओं में चित्रांकन
कुणिंद मुद्राएं भारतीय प्राचीन मुद्राओं में चित्रांकन में श्रेष्ठ मानी जाती हैं मुद्राओं में निम्न चित्रांकन मिलते हैं -
कुणिंद मुद्राओं में चित्रांकन अगले भाग में
( कुछ संदर्भ परमानंद गुप्ता , जियोग्राफी फ्रॉम एन्सिएंट इण्डिया पृ 32 से लिए गए हैं )
१- अग्रभाग में बौद्ध वेष्ठनी युक्त
Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India 2018
History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur to be continued Part --
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास to be continued -भाग -
Ending of Kunind /Kulind era , Yauyedh -Kuninda Coinage : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Yauyedh -Kuninda Coinage Ancient History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Yauyedh -Kuninda Coinage , Ancient History of Sultanpur, Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Yauyedh -Kuninda Coinage Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ; Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Bijnor; Ending of Kunind /Kulind era : Yauyedh -Kuninda Coinage , Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Nazibabad Bijnor ; Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Saharanpur; Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Nakur , Saharanpur; Ancient History of Deoband, Saharanpur; Ending of Kunind /Kulind era Yauyedh -Kuninda Coinage , : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient History of Badhsharbaugh , Ending of Kunind /Kulid era : Yauyedh -Kuninda Coinage , Ending of Kuninda /Kulinda Era and Saharanpur; Yauyedh -Kuninda Coinage Ancient Saharanpur History, Ending of Kunind /Kulind era : Ending of Kuninda /Kulinda Era and Ancient Bijnor History;
कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व कनखल , कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व हरिद्वार इतिहास ; तेलपुरा , कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व हरिद्वार इतिहास ; सकरौदा , कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व हरिद्वार इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार इतिहास ; कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व झाब्रेरा हरिद्वार इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार इतिहास ; कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व लक्सर हरिद्वार इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार इतिहास ; लंढौर , कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व हरिद्वार इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना , कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास; कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व देवबंद सहारनपुर इतिहास , कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व बेहट सहारनपुर इतिहास , कुणिंद मुद्राएं व यौयेध मुद्राएं व नकुर सहरानपुर इतिहास Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas
Navigation
[0] Message Index
Go to full version