Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 51110 times)

Bhishma Kukreti

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                  Entertainment in Kushan Period & History of Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur

   कुषाण युग में मनोरंजन और हरिद्वार  ,  बिजनौर  , सहारनपुर   इतिहास



        Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  184
                     
                           
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -184                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती 


       
 विदेशी शासन में भी जनता ने मनोरंजन की प्रवृति नहीं छोड़ी।  समाज उत्सव् , आख्यान , व्याख्यान , श्रवण , आखेट , द्यूत , वाद्य , संगीत , नृत्य से मनोरंजन करती थी। नर्तक व गायक गाँवों में भ्रमण करते थे। 
 नगर व गाँवों में गणिकाएं होतीं थीं।
 विभिन्न उत्सवो  मंदिरों में पूजा आदि भी होती थी। 




Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India 18 / 5/2016

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --185

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -185


      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;    Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास;  Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

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       Food Habits in Kushan Period &  History of Haridwar, Bijnor,   Saharanpur

                कुषाण युग में अन्नपान और हरिद्वार  ,  बिजनौर   , सहारनपुर   इतिहास

                      Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  185
                     
                           
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   185               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती 


       
 कुषाण राज्य प्रारम्भ होने से भारतीय भोजन में कोई आमूल -चूल परिवर्तन नहीं हुआ
मथुरा के शिलालेख से  है कि -
जौ का सत्तू , अरहर दाल का अधिक व सब स्थानों में प्रचार था।
सत्तू बिक्रेताओं को सत्तुकारक कहा जाता था।
सत्तू के अलावा आटे से बनी वस्तुये बटक , पूआ आदि का भी महत्वपूर्ण स्थान था।  आटा पीसने वालों को 'चूर्णकुटुक ' कहा जाता था और हरेक बस्ती में अनिवार्य रूप से रहते थे।
दूध , मांश , फल , कन्द -मूल आदि भी भोजन के महत्वपूर्ण अंग थे। , कन्द मूल -फल विक्रेताओं को 'वणिज ' कहते थे।
मदिरा का प्रचलन बहुत था और स्त्रियां भी पुरुषों के साथ मदिरा पीतीं थीं।

बौद्ध  विद्वान जो पहले कटोरा लेकर भोजन मांगते थे कुषाण युग में धन /सिक्के मांगने लगे।



Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  20/ 5/2016

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --186

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -186


      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;    Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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  House Hold Appliances in Kushan Period in Haridwar, Bijnor and Sahranpur

        हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर इतिहास संदर्भ में कुषाण युगीन गृह सामग्री

        Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  186
                     
                           
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  186               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती 


        धातु युग अपना प्रभाव दिखाने लग गया था और सम्पन लोग धातु पात्र रखने लगे थे।  किन्तु आम लोगों के मृतिका पात्र व काष्ट पात्रों से ही काम चलाते थे।  विम और कनिष्क शासन में पश्चमी संस्कृति का प्रभाव मिटटी बर्तनों पर साफ़ साफ़ झलकने लग गया था।
राय गोविन्द चन्द्र ने प्राचीन भारतीय मिट्टी के बरतन पुस्तक में कुषाण युगीन उत्तर भारतीय मृतिका पात्रों  किया है।  इस काल के पानी -मद्य पीने के मृतिका पात्रों में टोंटी लगी हैं व पकड़ने हेतु कुंडे लगे हैं।  पात्रों की सजावट पांच तरह की हैं -
१- पकाने से पूर्व लकड़ी की कलम से खुदाई
२- छीलकर उभारदार नक्काशी
३-ठप्पे
४- लाल रंग चमकते बरतन  और ईरान का प्रभाव
५- चित्रित बरतन।
 ऐसे ही बरतन डा डबराल (1956 ) को  11000 फ़ीट ऊँची तिब्ब्त -गढ़वाल सीमा पर पहाड़ी पर स्थित मलारी समाधी स्थलों पर भी मिले थे।
राय गोविन्द चन्द्र ने ऐसे पात्रों को  हस्तिनापुर व मथुरा में पाये जाने का वर्णन किया है।
इसका अर्थ निकलता है कि कुषाण युग में हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर में कुषाण युगीन मृतिका पात्रों  का प्रचलन था।




Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  21/ 5/2016

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --186

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -186


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  Funeral Rites  in Kushan Period and History of Haridwar, Saharanpur ,  Bijnor

  कुषाण युग में शव संस्कार : हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास

        Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  187
                     
                           
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  187               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती 


       
 कुषाण युग के प्रमुख इतिहासकार पुरी ने कुषाण युगीन संस्कारों का पूरा वर्णन लिखा है।  मृतक शव को चादर में लपेटकर लोग कंधे पर  श्मशान ले जाते थे।
शवयात्रा में लोग बाल खोलकर , छाती पीटकर चलते थे।  शवदाह के बाद हड्डियों को किसी वृक्ष के नीचे गाड़ दिये जाता था।  महापुरुषों की अस्थियों के स्तूप बनाए जाते थे।
 कुछ जातियों में शवों को मृतिकपात्र में भोज्य पदार्थ के संग गाड़ा जाता था, यह प्रथा ईरान में भी थी।
श्मशान के पास कुम्हारों की दुकाने होती थीं।   




Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  23/ 5/2016

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --188

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -188


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                               Trade in Kushan Period & Haridwar,  Bijnor,   Saharanpur History
                   
                                 कुषाण युग में व्यापार और हरिद्वार ,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास
        Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  188
                     
                           
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -     188             


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती 


        कुषाण युग में भारत का व्यापार पश्चमी देशों में बढ़ा।
कुषाण शासकों ने मध्यवर्ती बनकर लाभ उठाया और कुषाण नरेशों के आधीन भारत से रोम को कई वस्तु जैसे -
रत्न
उपरत्न
मोती
खनिज
लैपिस - लजुलि
समूर वाली खालें
नाना प्रकार के वस्त्र
काली मिर्च
अदरख
विलाशपूर्ण सामग्री

निर्यात किया जाता था। 
रोम से निम्न सामग्री आयात होतीं थीं -
पतले वस्त्र
मूंगा
सुवर्ण
रजत
धातु पात्र
श्रृंगार सामग्री
उत्तम मदिरा
रनिवासों हेतु गायक छोकरे  लावण्यवती लड़कियां

रोम से भारत को दस करोड़ स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त होतीं थीं।



Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  28 / 5/2016

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --189

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -189


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                     Tibetan  Traders and Wholesale Market in Haridwar, Bijnor and saharanpur

                          उत्तराखण्डी /तंगण /तिब्ब्ती व्यापरियों की हरिद्वार, बिजनौर और सहारनपुर में मंडी
       
                       Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  189
                     
                           
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 189                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती 


         प्राचीन काल से ही भारत का उत्तराखंड के पहाड़ों  व तिब्ब्त के साथ व्यापार हेतु हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर  का महत्व था और आज भी है।
कुषाण काल में भी हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर हिमालय व तिब्ब्त के साथ व्यापार हेतु मध्य स्थान का महत्वपूर्ण स्थान था।
  कुषाण काल में तिब्बत से व उत्तराखंड ले पहाड़ों से  हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर की मंडियों में निम्न माल लाते थे -
सुहाग
शिलाजीत
स्वर्ण
बिभिन्न जंतु -जानवर
बन औषधि
मसाले
अनाज
फल 
सुक्सा (डिहाइड्रेटेड फल व सब्जी )
वनों से बने कई वस्तुएं
ऊनी  वस्त्र
धातु
खनिज
इसी प्रकार तिब्ब्ती , तंगण , उत्तराखण्डी व्यापारी   हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर की मंडियों से गुड , सूत , रोम आदि से आयातित वस्तुएं , मसाले , अनाज आदि खरीदकर उत्तराखंड के पहाड़ों व तिब्बत ले जाते थे।






Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  29/ 5/2016

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --190

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -190


      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;    Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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               Old Establishments, Markets  in Haridwar , Bijnor, Saharanpur 

                        हरिद्वार   बिजनौर   , सहारनपुर   में प्राचीन वस्तियां

        Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  190
                     
                           
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  190               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती 


        कुषाण युग से  पहले ही  भाभर में अनेक छोटे बड़े व्यापारिक मंडियां स्थापित हो चुकीं  थीं। ये मंडियां मैदानी व पहाड़ों के मध्य व्यापारिक सेतु का  करतीं थीं।
 भाभर में स्रुघ्न , कालकूट , बेहट , वीरभद्र , कनखल , मोरगिरी , गोविषाण , मयूरध्वज आदि व्यापारिक केंद्र रहे होंगे जो बाद में नष्ट हो गई होंगी।
  शिव प्रसाद डबराल (उत्तराखंड का इतिहास -भाग ३ , पृष्ठ २३३ ) में लिखते हैं -
इसका पता अब केवल उनके प्राचीन खंडहरों या उनकी अवशिष्ठ पक्की ईंटों से लगता है की उस समय की ईंटें बड़ी होती थीं।
वीरभद्र , मयूरध्वज में ईंटों की दीवारें मिली थीं जो सुरक्षित न करने से इधर उधर हो गईं हैं।  लालढांग -पण्डुवाला में भी इसी तरह की ईंटें मिलीं थीं।   




Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  30/ 5/2016

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --190

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -190


      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;    Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास;  Haridwar Itihas, Bijnor Itihas, Saharanpur Itihas

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Bhishma Kukreti

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                    Kaul –Karar Patta Copy in Batten Settlement
 
                            British Administration in Garhwal   -31       
       -
History of British Rule/Administration over Kumaun and Garhwal (1815-1947) -48
            History of Uttarakhand (Garhwal, Kumaon and Haridwar) -885
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                              By: Bhishma Kukreti (History Student)


 कौल करार पट्टा नाम सोबनसिं रावत मालगुजार  मौजे पर्सुलि मलि मय २६ दाखिलिपातीं पटि गुजडू पर्गने मलासलान जिल्ले गढवाल (I) आगे मौजे १ तुमारे गाऊ के हिसदारौ ने मय  तुमारे दरख्वास्ति २० साल सुरु संवत १८९७ शै लगायत संबत १९१६ तक बाबत फशल खरीफ रवि के साथ जमा ८३२० रुपयो सीके कम्पनी के सेवाय रक्म सायरे व आवकारी व भट्टी खैराड वगैरह स ... नयां बन्दोबस्त होन तलक गुजरनि तुमारे नाम मालगुजारी चाहने का इकरारनामा दाखल किया (I) इस्वास्ते ... सत मंजूरी साहबान सदर के पट्टा तुमको दिया जाता है (I) ठेका साल २० का वमुजीव गाऊं मुदर्ज दरख्वास्त जमा ८३२० रुपैयों के तुमारे नाम मुकरीर हुवा (I) माफीक किस्तों के रूपये कीस्तवार तहसीलदार या पटवारी पर्गने अपने के पाश पंहुचाय के दाखला लेते रहोगे  (I) जो फांट रक्म बाबत तुमारे गाऊं के हिशेदारों से वसूल किया नया फांट होने तक उसी फांट बमुजव वसूल करते रहोगे(I) जब तक किश्तवारी न होवे तब तक जमा वसूल न करोगे (I) व दो किश्त का रुपया येकी क़िस्त में वसूल न करोगे (I) जब कोई हिस्सेदार या असामी रक्म कीस्त वमुजव न देवे तो उसी क़िस्त के रुपयों का दावा सरकारी कचैरी मैं ... साल पूरा होने के १ माह बाद  सरकारी कचैरी मैं उसी साल का दावा सुना नही जायेगा  (I)
.....
.....
              तफसील   
खरीफ      ------------ २०८ रु ०--------रवी  ------------  २०८  रु ०
ता. १ नवम्बर सै १५ तारिक  तक ता. १ दीशैम्बर से १५ ता. १ मई से १५ तक ता . १ जु ० से १५ तक चार आने हिसाब सै चार के हीशाब से चार आने हिशाब से चार आने हिशाब  से
१०४ ) --------------------------१०४ ) -------------------१०४ ) -------------१०४ )
(Dabral, page 187 from Awatar Singh Collections) 


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Copyright@ Bhishma Kukreti Mumbai, India, bckukreti@gmail.com 29/8/2016
History of Garhwal – Kumaon-Haridwar (Uttarakhand, India) to be continued… Part -886
*** History of British Rule/Administration over Kumaun, (Pauri, Rudraprayag, and Chamoli) Garhwal (1815-1947) to be continued in next chapter
(The History of Garhwal, Kumaon, Haridwar write up is aimed for general readers)
XX   
References 
 1-Shiv Prasad Dabral ‘Charan’, Uttarakhand ka Itihas, Part -7 Garhwal par British -Shasan, part -1, page 186- 188
 

Xx
History of British Rule, Administration , Policies, Revenue system,  over Garhwal, Kumaon, Uttarakhand ; History of British Rule , Administration , Policies Revenue system  over Pauri Garhwal, Udham Singh Nagar Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Chamoli Garhwal, Nainital Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Rudraprayag Garhwal, Almora Kumaon, Uttarakhand; History of British Rule, Administration, Policies ,Revenue system  over Dehradun , Champawat Kumaon, Uttarakhand ; History of British Rule, Administration, Policies, ,Revenue system  over Bageshwar  Kumaon, Uttarakhand ;
History of British Rule, Administration, Policies, Revenue system over Haridwar, Pithoragarh Kumaon, Uttarakhand;   








Bhishma Kukreti

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        Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -
                   
                         
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -                 


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


       





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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;    Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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                 हरिद्वार , बिजनौर ,  सहारनपुर   इतिहास  संदर्भ में भारत में कुषाण साम्राज्य               


       
                                कुशाण जाति आगमन

   शकों की हराकर पहलवों ने शासन किया और पहलवोँ को हराकर कुशाण राजाओं ने भारत में प्रवेश किया।
 प्राचीन  साहित्य में कुशाण जाति की पहचान तुषार या तोखारी जाति से की जाती है (सभापर्व  , महभारत ) । कुणिंद जनपद के निवासियों में पारद व तुषार दोनों का उल्लेख मिलता है  (सभापर्व , महाभारत )।
 
                        कुषाणों का भारतीय संस्कृति से परिचय व प्रभावित होना

                    कुषाणों द्वारा भारत प्रवेश से पहले ही भारतीय संस्कृति से परिचय हो चुका था व कुशाण भारतीय संस्कृति से परिचित भी थे।  गांधार आदि क्षेत्रों में मौर्य काल से ही कुशाण कांठे खोतन प्रदेश में अपना उपनिवेश बनाकर उसे सांस्कृतिक दृष्टि से भारत का भाग बना चुके थे (पुरी )।

                              कुजुल कदफिस्

 
  भारत में यवन , शक , पह्लव और कुशाण राजयविधि के बारे में इतिहासकारों के मध्य एका नही है।
           अनेक विद्वानों का मत है कि ईशा के प्रथम शती के पूर्वार्ध में कुशाण नरेश कुजुल कदफिस् ने पह्लव नरेश से उसकी राजधानी तक्षशिला छीन ली थी समकालीन , यवन , शक व पह्लवि शाशकों को कदफिस् की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी थी (बंदोपाध्याय )।
               पश्चिम की ओर कदफिस् का साम्राज्य मर्व तक था बैक्षु (ऑक्सस ) नदी के प्रसिद्ध व्यापारिक मार्ग पर कदफिस् का नियंत्रण था (पुरी ) ।
             कदफिस् की मुद्राओं में कुछ पर बैठे हुए बुद्ध का चित्र मिलता है।  इससे पहले भारत में बुद्ध का मानवचित्र नही मिलता है। कदफिस् के मुद्राओं में खरोष्ठी में  ' महरयस रयरस देवपुत्रस ( महराजस्य , राजराजस्य देवपुत्रस्य ) अंकित है। कदफिस् ने ध्रमठित का विरुद भी धारण किया था।  इससे साफ़ जाहिर है कि कदफिस् बौद्ध धर्म से प्रभावित था।
        कदफिस् को ही कुशाण सम्राज्य का पहला राजा माना जाता है और उसने 80 साल तक राज य किया।


                              कुषाण राजा विम कदफिस्




 कुशाण नरेश कुजुल के बाद उसका पुत्र विम ने राज्यभार संभाला और कुशाण साम्राज्य को कपिशा -गांधार से पूर्व की और कुरु -पांचाल और काशी तक पंहुचा दिया।
       कुशाण नरेश विम ने अनेक प्रकार की मुद्राएं प्रचलित कीं जो तक्षशिला से लेकर पूर्व में तिरहुत तक मिलीं हैं।
उसकी कुछ स्वर्णमुद्राओं पर शिव मूर्ति अंकित हैं।  कुछ में नंदी अंकित है।  रजत मुद्रा पर शिरस्त्राण , लम्बा कोट , पायजामा के साथ विम खड़ा मिलता है। उसके आगे वेदी और त्रिशूल है, पीछे धनद व आगे शायद कोई पात्र है।

  कुशाण नरेश विम  के ताम्रमुद्राओं में द्विभुज शिव भारतीय वेश भूषा में जटायुक्त , बाएं कंधे में व्याघ्र चर्म लटकाये व दायीं भुजा में त्रिशूल लिए खड़े मिलते हैं। बाएं कंधे पर नृकपाल व पुष्पों की माला है। नंदी पीची खड़ा है और शिव तनिक नंदी का सहारा लिए खड़े हैं।
      इन अन्य मुद्रा में त्रिशूल के साथ परुष लिए भी हैं।
           विम की मुद्राओं में हिन्दू देवता अंकन होने का अर्थ है कि विम की शैवमत में अपार श्रद्धा थी
  विम की मुद्राओं में उसका विरुद है - 'महरजस राजधिरज सर्वलोग इश्वरस माहीश्वरस विमकदफिसस ( महाराजस्य राजधिराजस्य सर्वलोकईश्वरस्य  माहेश्वरस्य विमकदफिसस्य ) मिलता है।
               उसकी एक मुद्रा में अग्रभाग में वह ऊँची टोपी तथा लम्बा लवाड़ा पहने खड़ा है , दाहिने और हवनकुंड व बाएं हाथ में परशु है।



                           कुषाण नरेश  विम कदफिस का उत्तराखंड पर अधिकार


                       

        कुषाण काल के सिक्के मुल्तान से सहारनपुर  व उत्तराखंड तक में पाये गए हैं (उपेन्द्र सिंह व डबराल ). उत्तरभारत में बसरा , भीता और कसिया तक विम मुद्राओं के मिलने से अनुमान सही ठहरता है कि विम का शासन उत्तर भारत में बड़े भाग पर था।  विद्वानो का मत है कि विष्णु पुराण का चक्रवर्ती सम्राट वेन ही कुषाण नरेश विम है।
  लोक गाथाओं के अनुसार विम कदफिस ने केसरीयस्तूप का निर्माण किया था।  इंदौरखेड़ा (बुलंदशहर ), एटा के अंतरजीखेड़ा , अलवर व मध्यभारत में कुछ दुर्गों का निर्माण विम कदफिस ने किया था।
                                        हरिद्वार में वेन किला

        कम से कम उत्तरखंड के दक्षिण भाग पर विम का अधिकार था।  मायापुर (हरिद्वार )  में उसने एक सुदृढ़ दुर्ग का निर्माण किया था। जो राजा वेन का किला कहलाया जाता था। डबराल कनिंघम के संदर्भ से लिखते हैं कि 1869 तक दुर्ग के खंडहर 250 गज तक गंगा नहर के किनारे बिखरे थे। वहीं प्राचीन नगर के अवशेष सूचक ऊँचे ऊँचे टीले थे , जिनकेऊपर ईंटों के टुकड़े बिखरे पड़े थे।  बड़ा टीला नहर के पुल के पास था।
            ईरान के इतिहास से पता चलता है कि ईरान के हेरात से सिंधु नदी के मुहाने , भरुकच्छ ,  हरिद्वार तक उसका शासन था।  विम कदफिस का कई व्यापारिक सड़कों पर अधिपत्य था।
       विम कदफिस की मृत्यु के पश्चात इस परिवार का राज्यांत भी हो गया और दोनों नरेश बौद्ध  या शैव्य धर्मों के अनुयायी थे। 

                                        क्षत्रपों द्वारा स्वंत्रता घोषित करना
             

         अनुमान किया जाता है कि विम का कोई पुत्र न था।  उसकी मृत्यु होते ही उसके क्षत्रपों ने स्वतंत्रता घोषित कर दी।  इनमे से निम्न क्षत्रपों  मुद्राएं मिलीं हैं (पुरी , इण्डिया अंडर कुषाणाज )-
तक्षशिला - जिओनिसेस
अभिसार - शिवसेन
उज्जैन - चष्टन व रुद्रदामन
मथुरा - सोतर मेगस
उज्जैन - विम राजयकाल में विम के क्षत्रपों -चष्टन व नहपान की मुद्राएं

मथुरा के सोतर मेगसको उपाधि माना जा सकता है।  उसकी मुद्राओं पर राजा नाम नही अंकित है। इस अज्ञात नाम नरेश का प्रभाव क्षेत्र कुरु , पंचाल और उत्तराखंड तक माना जा सकता है।
विम की मृत्यु पश्चात 20 -25 साल तक क्षेत्रीय सत्ता का शासन रहा होगा।  इस अवधि में उत्तराखंड , बिजनौर , सहारनपुर की राजनैतिक स्थिति जानने के लिए कोई सामग्री नही मिली है।

                                सोतर मेगस       

 

        सोतर मेगस की मुद्रायें मथुरा से लेकर पंजाब , कंधार -काबुल मिलें हैं।  इसलिए वीम शाशनकाल में यह क्षत्रप बड़ा प्रभावशाली रहा होगए व इसका क्षेत्र बड़ा विस्तृत रहा होगा।
    सोतर मेगस इस क्षत्रप की उपाधि मात्र है जिसका अर्थ महरक्षक है।  खरोष्ठी लिपि के लेखों में भी ' महरजस रजदिरजस महतस त्रतरस ' (महाराजस्य राजधिराजस्य महतस्य त्रातरस्य ' अंकित है।  इस नामधारी राजा का क्षेत्र मथुरा से काबुल तक मालूम पड़ता है।
 विद्वानों का  मत है कि वीम की मृत्यु के बाद उसके क्षत्रपों ने 20 -25 वर्षों तक  राज किया और इसी भांति इस अनाम मथुराधीश ने कुषाण राजा के नाम से शासन किया होगा।
इस काल के हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर के बारे में कोई सुचना  प्राप्त नहीं है

 

   

 

                कनिष्क (78 -101 A . D . )



   कनिष्क के राज्यारोहण के बारे में इतिहासकारों में मतैक्य है

       

   कनिष्क और विम की मुद्राओं में राजा की मुद्राओं में बहुत समीता है।  जिससे सिद्ध होता है कि कनिष्क व विम एक ही वंश  से संबंधित थे। हाँ उनके परिवार भिन्न थे।  कनिष्क कुषाण वंशी राजाओं में सबसे महान राजा माना जाता है और उसकी तुलना चक्रवर्ती राजा अशोक से की जाती है। 

                                     कनिष्क का राज्य विस्तार


     कनिष्क का साम्राज्य उत्तर भारत के मध्य देश , उत्तरापथ ,  अपरांत तीनो क्षेत्रों पर शासन था।  उसका साम्राज्य पाटलिपुत्र से , कोंकण , अफगानिस्तान , चीन तक फैला था। कठियावाड़ , सिंध , राजपुाताना व कश्मीर भी कनिष्क के शासित राज्य  थे।

कनिष्क के अभिलेखों की तिथियों से ज्ञात कि उसने पूर्व से पश्चिम की ओर राज्य विस्तार किया होगा (पुरी , इण्डिया अंडर कुशाणाज )  -

राज्य वर्ष ------------------------    अभिलेख स्थान

२ ------------------------------    कोसम , जिला अलाहाबाद

३ ----------------------------------   सारनाथ , बनारस जिला

४ व आगे --------------------------- मथुरा

११-------------------------------------सुई विहार , जेद उंड जिला

१८ ----------------------------------- माणिकयाल रावलपिंडी जिला

इस तालिका से विदित होता है कि आरम्भ में कनिष्क मथुरा का क्षत्रप था या उसे मथुरा क्षत्रप की सहायता प्राप्त थी।

माट (मथुरा ) में कुषाण राजाओं का देवकुल स्थापित था और उनकी प्रतिमाएं स्थापित की जाती थीं।  जब कि राजधानी पुष्पपुर (पेशावर ) थी।  मथुरा में देवकुल तभी स्थापित हुआ होगा जब कुषाण वंशी राजाओं का विशेष संबंध मथुरा से रहा होगा।

   

                                      कनिष्क का उत्तराखंड , सहारनपुर , बिजनौर पर अधिकार

 

 

       

  विम ने अपने रजयकाल में पंचनंद व कुरु पांचाल  अधिकार में ले लिए था।  इतिहासकार अनुमान (ऐज ऑफ इम्पीरियल यूनिटी पृष्ठ १६२  ) लगाते हैं कि जब विम मृत्यु पश्चात उसके क्षत्रपों ने स्वतंत्रता  घोषित कर दी तो तक्षशिला , मथुरा के क्षत्रपों का शासन अवश्य ही कुणिंद भूमि पर भी रहा होगा।

पुराणों के अनुसार बिंबस्फाटि  जिसकी पहचान कनिष्क से होती है उस राजा का शासन प्रयाग से लेकर अनुगंगा क्षेत्र (मध्य गंगा क्षेत्र - हरिद्वार इलाका ) तक फैला था। 

 

 

              कनिष्क का मध्य एशिया पर अधिकार



       

 ख्वारेज्म की खुदाई सिद्ध करती है कि (क्रिब जे आदि के अन्वेशनयुक्त लेख ) कनिष्क का साम्राज्य मध्य एशिया में वर्तमान उज़्बेकिस्तान व तजकिस्तान तक प्रसारित था।  कनिष्क ने अपनी पूर्वज भूमि तारिम पर  चाहा तो चीन की सेना से युद्ध करना पड़ा और वह हार गया व चीन सम्राट का करद (सम्राट को कर देने वाल राजा ) बनने हेतु तयार हो गया था।

 कुछ समय पश्चात कनिष्क ने अपनी सेना को पुष्ट किया और तरिम पर आक्रमण कर उसे जीत लिया व साथ में चीनी राजकुमारों को अपने साथ ले गया।  पंजाब में इन चीनी राजकुमारों के निर्वाहन हेतु उसने पंजाब की चिनियारी प्रदेश को निर्धारित किया और चिंयारी की आय से चीनी राजकुमारों का निर्वाह चलता रहा।

           कहा जाता है कि चीनी राजकुमारों ने यहां नाशपाती , आड़ू के पौधे मंगाकर इनकी फसल की शुरुवात की। (घृष्मैन , ईरान -पृष्ठ २८६ )

ख्वारेजम के रेगिस्तान कनिष्क -कुषाण वंश के नगरों के ध्वंस मिले हैं। इसीलिए ईशा की आरम्भिक तीन सदियों को कुशाण  संस्कृति नाम दिया गया है।

 

 

 

                                     कनिष्क  मुद्राएं



                                             

 कनिष्क की मुद्राएं बुद्धगया में महबोधिमन्दिर के ब्रजासन के तले पायी गई हैं।  बंगाल -बिहार से लेकर उत्तर भारत के कई स्कूटरों में कनिष्क मुद्राएं मिली हैं।  भारत से बाहर और समुद्र में भी  कनिष्क मुद्राएं प्राप्त हुयी हैं। कनिष्क मुद्राओं को टोला जय तो भार कई मन तक होगा।

 कनिष्क मुद्राओं के आगे  के भाग में राजा लम्बा चोगा, नुकीली टोपी , घुटने तक शकीय जुटे पहने हुए , भाला व अंकुश  लिए हुए है। कुछ मुद्राओं में राजा एक हाथ में भाला व दूसरे हाथ में हवन करते हुए है।  पश्च भाग में अनेक भारतीय व विदेशी देवी -देवताओं की छवि अंकित है।

  भारतीय देवी देवताओं में शिव , महासेन , स्कन्द , कुमार , विशाख विशेष रूप से अंकित हैं।

कुजुल के समान कनिष्क मुद्राओं में बुद्ध को प्राथमिकता मिलती है। बुद्ध एक चौकी पर बैठे हैं और दाहिना हाथ अभी मुद्रा में विराजमान हैं और बाम हस्त जंघा के ऊपर  रखा है।

  मुद्राओं में यूनानी लिपि में 'वेसिलियोस वेसिलियोन शाओननो शाओ कनिष्को कुषाणों ' ( राजाओं का राजा शाहनुशाह  कनिष्क कुशाण )   अंकित है।

 

                                           कनिष्क युग में ललित कला विकास

                                 

          कनिष्क की राजधानी पुरुषपुर (पेशावर ) थी और पुरुषपुर को पाटलिपुत्र सम्मान वैभव प्राप्त हो गया था।  इतने बड़े साम्राज्य प्रशासन हेतु विकेंद्रीकरण आवष्यक था इसलिए क्षेत्रीय राजधानियों महत्व बढ़ गया था।  कनिष्क के क्षत्रपों ने कई नगरों की स्थापना की व स्थापय कला में श्रीवृद्धि की। कस्मीर में कनिष्कपुर की स्थापना की गई।

  स्थापत्य , मूर्तिकला में सर्वाधिक विकास हुआ।  भारतीय कल्पनाओं और यवन कौशल से गांधार में नई स्थापत्य शैली उतपन हुयी।  बुद्ध की प्रथम मूर्ति कनिष्क काल में स्थापित हुयी जिस पर यवन प्रभाव पूरा है।  मथुरा में गांधार कला में सुधार हुआ जिसे मथुरा कला कहा जाता है।

 

 

       

 


  हरिद्वार  ,  बिजनौर   , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में अश्वघोष

       

       
        बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर के  व दक्षिण एसिया सम्राट  कनिष्क की पाटलिपुत्र विजय यात्रा में कनिष्क को महान संस्कृत नाटककार व काव्यकार अश्वघोष भी मिले थे।  कनिष्क अश्वघोष को पुष्पपुर (पेशावर ) ले गया। था। 
अश्वघोष के महाकव्य -
बुद्धचरित - संस्कृत में बुद्धचरित खंडित मिलता है किन्तु चीनी व तिब्ब्ती अनुबाद हैं।
सौंदरनंद
अश्वघोष के नाटक
सारिपुत्र - खंडित संस्कृत नाटक तरिम उपत्यका में मिला है
राष्ट्रपाल - का अनुवाद व मूल अभी तक नहीं मिला है
कालिदास का पूर्ववर्ती साहित्यकार  अश्वघोष  की रचनाओं में  कालिदास जैसी समानताएं मिलती हैं।
 


                           बौद्ध विद्वान वसुमित्र           


                                             


         कनिष्क को अशोक और मेनाद्र समान बौद्धधर्म पोषक माना जाता है।  कनिष्क ने बौद्ध विद्वान आचार्य पार्श्व व वसुमित्र को सम्मानित किया था।
  बौद्ध मत का चतुर्थ संगति /सभा कनिष्काल में कश्मीर के कुंडलवन विहार में हुयी थी।  सर्वास्तिवाद का संकलन व संगर्ह इस सभा में ही हुआ था। 
 ऐसा माना गया है कि विभाषाओं को संस्कृत में लिखा गया था तब से बहुत से बौद्ध गंथ संस्कृत में लिखे गए।
युवांचांग अनुसार  कनिष्क  संस्कृत अनुवादों को  ताम्रपत्रों में खुदवाकर एक स्तूप में बंद करवा दिया था और इस स्तूप का अब तक कोई पता  चलता है।  (राहुल -मध्य एसिया का इतिहास ) 

     

                               आयुर्वेद  आचार्य     चरक


       
 चरक आयुर्वेद  आचार्य माने जाते हैं। चरक का अर्थ  है घुमन्तु।  चरक ने ना केवल दुःख निदान के  श्लोक रचे अपितु आयुर्वेद हेतु बनशपतियों संकलन किया था।  चरक द्वारा रचित उनके श्रुति आधार पर  'चरक संहिता ' का संकलन उनके शिष्यों ने लिपिबद्ध किया।
कहा जाता है कि चरक कनिष्क के समकालीन थे कनिष्क ने चरक  को सम्मानित भी किया था (राहुल -मध्य एशिया का इतिहास ) 


               कनिष्क का महान व्यक्तित्व

 
 कनिष्क एक महान , बुद्ध भक्त , साहसी , विजय लालसी , रणनीतिकार सम्राट था।  कुछ ही वर्षों में कनिष्क ने उत्तर भारत के राजाओं के राज्य  साम्राज्य में मिला दिए थे।  उसने मध्य एशिया के चीन क्षेत्र में अपने पूर्वजों का साम्राज्य पुनः प्राप्त किया।
 उसके राज्य में विद्वानों का सत्कार होता था।  कनिष्क या विम ने एक कुषाण संबत भी चलाया था।
बुद्ध भक्त कुषाण की मुद्राओं में बुद्ध की ही प्रतिमाएं नहीं अपितु अन्य मतान्तरों देवी देवताओं के चिंन्ह भी मिलते हैं जो सिद्ध करते हैं कि वह सहिष्णु सम्राट था।
कनिष्क ने २३ सालों तक राज किया और कहा जाता है कि उसके निरंतर युद्ध से कुपित होकर उसके सेनापतियों ने उसे मार डाला था। 
       

                             कनिष्क के उत्तराधिकारी

       


                      वनिष्क व  द्वितीय

कनिष्क के मृत्यु उपरान्त उसके पुत्र  वनिष्क ने चार साल शासन   चलाया।  वनिष्क की कोई मुद्रा उपलब्ध नहीं है।
किसी अन्य कनिष्क की मुद्रा मिलने इतिहासकार मानते हैं कि यह राजा कनिष्क द्वितीय है।  कनिष्क द्वितीय का राज्य भी अल्पकालीन था।
                          हुविष्क

 उपरोक्त राजाओं का उत्तराधिकारी हुविष्क हुआ  रजयकाल 35 -40 वर्ष का था.
हुविष्क के अनेकों मुद्राओं व अभिलेखों अनुसार हुविष्क एक प्रतापी  शासक था। हुविष्क शासन काल  कुषाण काल का स्वर्ण काल माना जाता है।
हुविष्क ने भी अपनी मुद्राओं में देवी देवताओं के चित्र बनवाए। उसकी मुद्राओं में   देवी , यूनानी देवता , शिव , देवी , स्कन्ध , कुमार आदि की प्रतिमाएं अंकित हैं।  हुविष्क कनिष्क  उदारवादी था और अन्य धर्मों को सम्मान देता था।

                                 वासुदेव
कुषाण साम्राज्य का राजा वासुदेव हुआ।  वासुदेव के नाम व मुद्राओं  से सिद्ध होता है किअब कुषाण शासक पूर्ण तरह से हिन्दू संस्कृति में घुलमिल गए थे।  उसकी मुद्रा में उसका नाम 'महाराजा राजतिराज देवपुत्र शाही वासुदेव ' अंकित है।  वासुदेव की मुद्राओं में केवल ननादेवी  (उमा ) और शिव की आकृति मिलती हैं।  वासुदेव भी अन्य धर्मों के प्रति सहिष्णु था।

                                  कुषाण परिवार शासन   का अंत



        वासुदेव के पश्चात कनिष्क परिवार का शासन छिन्न -भिन्न हो गया।  भारतीय स्रोत्रों से कनिष्क परिवार के शासन अंत के कारणों पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता है।  ईरानी स्रोत्रों से (घृशमैन -ईरान ) विदित होता है कि ईरानी सम्राट शापुर ( 247 -272 AD ) ने सम्भवतः 262 के लगभग पश्च्मि कुषाण राज्य को याने सिंधु नदी तक हथिया लिया था और शापुर के वंशजों ने 'कुशाणशाहनशाह ' (कुषाण नरेशों के शाह ) उपाधि धारण की थी।
          जिन प्रदेशों पर शापुर ने अधिकार किया वहां के कुषाण शासकों ने अधीनता स्वीकार की।
उत्तर भारत पर कनिष्क परिवार ने 99 सालों तक उत्तर भारत  शासन किया।
ऐसा अनुमान किया जाता है कि वासुदेव के पश्चात भी कुषाण नरेश उत्तर भारत के कुछ भागों में विशेषतः बिजनौर , हरिद्वार , सहारनपुर व उत्तराखंड में वासुदेव के पश्चात भी कुषाण शासन था।  यदयपि विद्वानों में मतभेद। है


 

                                        हरिद्वार  ,  बिजनौर   , सहारनपुर में कुषाण साम्राज्य
       
  मथुरा , वाराणसी , सारनाथ में कुषाण राज्य   था और कुषाण क्षत्रपों ने पर्वतीय प्रदेश हस्तगित करने की  थी।  नेपाल में कुषाण सिक्कों की उपस्थिति साबित करती है कि पर्वतीय प्रदेश में कुषाण साम्राज्य था।
   बिजनौर  से 15 मील दूर उत्तर पूर्व की  ओर गंगाखादर बाएं तट पर मरखाम को टिप की टीले की खुदाई में कुषाण नरेश वासुदेव की  2 , वासुदेव II की 2 , भ्रि शक की 1 और कुमार गुप्त की 1 स्वर्ण मुद्राएं मिलीं थीं (पुरी , इंडिया अंडर कुशानज ,www.kushan.org/sources/coin/goldhoards.httm  ).मुद्रा सिद्ध करती हैं कि कुषाण युग में क्षत्रप भी मुद्रा चला सकते थे जैसे भ्रि शक क्षत्रप ने मुद्रा चालाई।
       
 डा के पी नौटियाल के अध्ययन से पता चलता है कि काशीपुर व टिहरी गढ़वाल के नरेंद्र  नगर क्षेत्र में भी कुषाण युगीन मुद्राएं मिली हैं ( डा डबराल , उत्तराखंड का इतिहास भाग -३ पृष्ठ २२५ व kushan.org/sources/coin/goldhoards.httm )..
इन मुद्राओं से सिद्ध हो ही जाता है कि हरिद्वार  ,  बिजनौर   , सहारनपुर में कम से कम विम राजयकाल से कनिष्क III  और वासुदेव II तक कुषाण साम्राज्य  अवश्य रहा है। 

           

                          कुषाण शासन प्रणाली 

       
  बलख -खोतान से बिहार तक , कश्मीर से लेकर सिंधु घाटी तक कुषाण साम्राज्य फैला था।  अतः कुषाण राजाओं ने शासन हेतु विकेन्द्रीकृत शासन प्रणाली अपनाई जिसमे क्षत्रपों को क्षेत्रीय शासन सौंपा  गया था।  म्हाक्षत्रपों को महत्वपूर्ण अधिकार सौंपे गए थे।   क्षत्रप 'महाराजा राजातिराज ' की उपाधि धारण नहीं कर सकते थे।  म्हाक्षत्रपों के अधीन क्षत्रप शासन चलाते थे।
            अभिलेखों से ज्ञात होता है कि प्रजा को महाक्षत्रप व क्षत्रप के नाम ज्ञात होता था और प्रजा उन्हें  राजा जैसे ही सम्मान देती थी।
   अभिलेखों में अंकित नामों से पता चलता है कि क्षत्रप /महाक्षत्रप का पद कुषाणों व शकादि के लिए सुरक्षित था व पद पारम्परिक थे।

दंडनायक , महादंडनायक , प्रचण्डदण्डनायक के पद संभवतया सेना , पुलिस  जैसे पद थे, सुव्यवस्था के उत्तरदायी होने  अतिरिक्त वे सम्राट से भी  सीधे संपर्क कर सकते थे  और ये पद भी कुषाणों , शकों, विदेशियों  के लिए आरक्षित थे। गांवों में अधिकारी स्थानीय होते थे।  क्षत्रप , दंडनायक आदि  विदेशी होने से प्रजा  को कस्ट व परेशानी होती थी।
                        कुषाण राज्य में संस्कृत

       


       
    मौर्य , शुंग काल में ब्राह्मणों ने संस्कृत विद्या व प्राचीन धर्मग्रंथों के पठन पाठन में कमी नहीं आने दी थी। जनता में संस्कृत के आकर्षण के कारण बौद्ध धर्मी आचार्यों ने भी संस्कृत में बौद्ध संबंधी साहित्य रचना शुरू किया।  प्रसिद्ध बौद्ध आचार्य अश्वघोष ने संस्कृत में दो महाकाव्य  और दो नाटकों की रचना की।
 चरकसंहिता , ज्योतिष , कर्मकांड , नीति धर्मशास्त्र  ग्रन्थ इसी काल में संस्कृत में लिखे गए।
    संस्कृत आम जनों की भाषा नहीं थी  जैन व बुद्ध मतावलम्बियों को संस्कृत में रचना रचने के लिए बाध्य होना पड़ा।
 हिमालय , बिजनौर , हरिद्वार में अवश्य ही संस्कृत विद्वान इस काल में रहे होंगे।


                      कुषाण युगीन वेशभूषा


       
 विशाल कुषाण राज्य में क्षेत्रीय वेशभूषा का बोलबाला था।  सामान्य पुरुषों की वेशभूषा प्रायः घुटने तक धोती या लंगोट , भारतीय पगड़ी थी।  कंधे पर उत्तरीय लटका रहता था।  हरिद्वार के आस पास की पहाड़ी क्षेत्रों में ऊनी कपड़ों का बोल बला रहा होगा। 
 नरिया लंहगा व चोली पहनती थीं।  स्तन नग्न होते थे।  हाथ -पांवों , कानो में अभिशन होते थे।  आभूषण वनस्पतियों से  लेकर धातु के होते थे। 
राजा व सामन्त कुछ अलग कपड़े पहनते थे जैसे सिलवटदार धोती और पीछे की और लटकने वाली चादर।  पैरों में चप्पल , खड़ाऊ या जूते। 
  कुषाण सैनिक लम्बा चोगा व पैजामा पहनते थे और बदन पर जिरहबख्त रहता   था।  शायद पगड़ी के नीचे लौह टॉप पहनते थे।  पट्टी के बल पर कंधों में खड्ग लटका रहता था।

                                     कुषाण युग में मनोरंजन

       
 विदेशी शासन में भी जनता ने मनोरंजन की प्रवृति नहीं छोड़ी।  समाज उत्सव् , आख्यान , व्याख्यान , श्रवण , आखेट , द्यूत , वाद्य , संगीत , नृत्य से मनोरंजन करती थी। नर्तक व गायक गाँवों में भ्रमण करते थे। 
 नगर व गाँवों में गणिकाएं होतीं थीं।
 विभिन्न उत्सवो  मंदिरों में पूजा आदि भी होती थी। 



                      कुषाण युग में अन्नपान
       
 कुषाण राज्य प्रारम्भ होने से भारतीय भोजन में कोई आमूल -चूल परिवर्तन नहीं हुआ
मथुरा के शिलालेख से  है कि -
जौ का सत्तू , अरहर दाल का अधिक व सब स्थानों में प्रचार था।
सत्तू बिक्रेताओं को सत्तुकारक कहा जाता था।
सत्तू के अलावा आटे से बनी वस्तुये बटक , पूआ आदि का भी महत्वपूर्ण स्थान था।  आटा पीसने वालों को 'चूर्णकुटुक ' कहा जाता था और हरेक बस्ती में अनिवार्य रूप से रहते थे।
दूध , मांश , फल , कन्द -मूल आदि भी भोजन के महत्वपूर्ण अंग थे। , कन्द मूल -फल विक्रेताओं को 'वणिज ' कहते थे।
मदिरा का प्रचलन बहुत था और स्त्रियां भी पुरुषों के साथ मदिरा पीतीं थीं।

बौद्ध  विद्वान जो पहले कटोरा लेकर भोजन मांगते थे कुषाण युग में धन /सिक्के मांगने लगे।



                             कुषाण युगीन गृह सामग्री

     


        धातु युग अपना प्रभाव दिखाने लग गया था और सम्पन लोग धातु पात्र रखने लगे थे।  किन्तु आम लोगों के मृतिका पात्र व काष्ट पात्रों से ही काम चलाते थे।  विम और कनिष्क शासन में पश्चमी संस्कृति का प्रभाव मिटटी बर्तनों पर साफ़ साफ़ झलकने लग गया था।
राय गोविन्द चन्द्र ने प्राचीन भारतीय मिट्टी के बरतन पुस्तक में कुषाण युगीन उत्तर भारतीय मृतिका पात्रों  किया है।  इस काल के पानी -मद्य पीने के मृतिका पात्रों में टोंटी लगी हैं व पकड़ने हेतु कुंडे लगे हैं।  पात्रों की सजावट पांच तरह की हैं -
१- पकाने से पूर्व लकड़ी की कलम से खुदाई
२- छीलकर उभारदार नक्काशी
३-ठप्पे
४- लाल रंग चमकते बरतन  और ईरान का प्रभाव
५- चित्रित बरतन।
 ऐसे ही बरतन डा डबराल (1956 ) को  11000 फ़ीट ऊँची तिब्ब्त -गढ़वाल सीमा पर पहाड़ी पर स्थित मलारी समाधी स्थलों पर भी मिले थे।
राय गोविन्द चन्द्र ने ऐसे पात्रों को  हस्तिनापुर व मथुरा में पाये जाने का वर्णन किया है।
इसका अर्थ निकलता है कि कुषाण युग में हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर में कुषाण युगीन मृतिका पात्रों  का प्रचलन था।

                 कुषाण युग में शव संस्कार   


       
 कुषाण युग के प्रमुख इतिहासकार पुरी ने कुषाण युगीन संस्कारों का पूरा वर्णन लिखा है।  मृतक शव को चादर में लपेटकर लोग कंधे पर  श्मशान ले जाते थे।
शवयात्रा में लोग बाल खोलकर , छाती पीटकर चलते थे।  शवदाह के बाद हड्डियों को किसी वृक्ष के नीचे गाड़ दिये जाता था।  महापुरुषों की अस्थियों के स्तूप बनाए जाते थे।
 कुछ जातियों में शवों को मृतिकपात्र में भोज्य पदार्थ के संग गाड़ा जाता था, यह प्रथा ईरान में भी थी।
श्मशान के पास कुम्हारों की दुकाने होती थीं।   

                    कुषाण युग में व्यापार


        कुषाण युग में भारत का व्यापार पश्चमी देशों में बढ़ा।
कुषाण शासकों ने मध्यवर्ती बनकर लाभ उठाया और कुषाण नरेशों के आधीन भारत से रोम को कई वस्तु जैसे -
रत्न
उपरत्न
मोती
खनिज
लैपिस - लजुलि
समूर वाली खालें
नाना प्रकार के वस्त्र
काली मिर्च
अदरख
विलाशपूर्ण सामग्री

निर्यात किया जाता था। 
रोम से निम्न सामग्री आयात होतीं थीं -
पतले वस्त्र
मूंगा
सुवर्ण
रजत
धातु पात्र
श्रृंगार सामग्री
उत्तम मदिरा
रनिवासों हेतु गायक छोकरे  लावण्यवती लड़कियां

रोम से भारत को दस करोड़ स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त होतीं थीं।

            उत्तराखण्डी /तंगण /तिब्ब्ती व्यापरियों की हरिद्वार, बिजनौर और सहारनपुर में मंडी
       
                 

         प्राचीन काल से ही भारत का उत्तराखंड के पहाड़ों  व तिब्ब्त के साथ व्यापार हेतु हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर  का महत्व था और आज भी है।
कुषाण काल में भी हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर हिमालय व तिब्ब्त के साथ व्यापार हेतु मध्य स्थान का महत्वपूर्ण स्थान था।
  कुषाण काल में तिब्बत से व उत्तराखंड ले पहाड़ों से  हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर की मंडियों में निम्न माल लाते थे -
सुहाग
शिलाजीत
स्वर्ण
बिभिन्न जंतु -जानवर
बन औषधि
मसाले
अनाज
फल 
सुक्सा (डिहाइड्रेटेड फल व सब्जी )
वनों से बने कई वस्तुएं
ऊनी  वस्त्र
धातु
खनिज
इसी प्रकार तिब्ब्ती , तंगण , उत्तराखण्डी व्यापारी   हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर की मंडियों से गुड , सूत , रोम आदि से आयातित वस्तुएं , मसाले , अनाज आदि खरीदकर उत्तराखंड के पहाड़ों व तिब्बत ले जाते थे।

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Bhishma Kukreti

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   कुणिंद मुद्राओं में चित्रांकन और हरिद्वार ,  बिजनौर   , सहारनपुर   इतिहास
        Kuninda Coinage aDesign  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  193
                   
                         
                     हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 193               


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


         कुणिंद मुद्राएं ताम्र , रजत व कांस्य तीनों धातुओं में मिलते हैं।
  कुणिंद मुद्राओं पर निम्न चित्रांकन विशेष हैं -
१- अग्रभाग में बौद्ध बेष्टनि युक्त विशाल बोधिबृक्ष , त्रिरत्न , पृष्ठ भाग में सूर्य
२- अग्रभाग में मृग के सम्मुख नारी (शकुंतला ?) , चैत्य व पृष्ठ भाग में चैत्य , त्रिरत्न , धर्मचक्र , बौद्धवेष्ठिनी , बोधिबृक्ष , स्वास्तिक
३- अग्रभाग में दाहिने हाथ में त्रिशूल व परुष लिए शिव ,शिव के बाएं  पहलू में बीघर चरम लटक रहा है। पृष्ठभाग में नाग , वृक्ष ,नक्षत्र , चैत्य
४- बलभुति की मुद्रा में अग्रभाग में सिर तक दाहिना हाथ उठाये पुरुष की आकृति , पृष्ठभाग अस्पस्ट
५- अल्मोड़ा से प्राप्त मुद्राओं में अग्रभाग में वेष्ठनीयुक्त वृक्ष के निकट जाता हुआ नंदी , , नाग , देव , या मानवाकृति।  पृष्ठ भाग में नणदीपाद व इन्द्रीयस्टी।  शिव दत्त की मुद्रा में वृक्ष व मृग अंकित पाए गए हैं
६- भानवर्मा की मुद्रा - अग्रभाग में नाग , पृष्ठ भाग अस्पस्ट।  गढ़वाली की मुद्राओं में भानु की मुद्राओं में षडानन कार्तिकेय तथा त्रिशूलधारी शिव
७- रावण मुद्रा - रावण की मुद्रा में अग्रभाग में त्रिशूलधारी शिव व पिष्टभाग में मेरु पर नणदीपाद
कुणिंद गण की आरम्भिक मुद्राओं में ही कुणिंद नाम चिन्ह मिलते हैं
८- कुणिंद की शेष मुद्राओं में नाम मिलते हैं
  यौयेध मुद्राओं में नरेश का नाम नहीं मिलते हैं पर मूलभूमि का नाम मिलता है।

भानु व रावण की मुद्राएं देहरादून में अधिक मिलीं हैं।  इन मुद्राओं में यौयेध चिन्ह बीर अंकित हैं।
  ऐसा प्रतीत होता है कि कुणिंद व यौयेध  ाजाओं के मध्य मुद्राओं की अदला बदली होती थी या दोनों राज्यों में एक दूसरे की मुद्राएं चलतीं थीं।



Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  2018

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -


      Ancient History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient   History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand  ;  Ancient  History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand  ;   Ancient History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;     Ancient  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;   Ancient History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;      History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;    Ancient History of Bijnor;    Ancient  History of Nazibabad Bijnor ;    Ancient History of Saharanpur;   Ancient  History of Nakur , Saharanpur;    Ancient   History of Deoband, Saharanpur;     Ancient  History of Badhsharbaugh , Saharanpur;   Ancient Saharanpur History,     Ancient Bijnor History;
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