Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन
History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास
Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी नरेश खर्परदेव
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - १७
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -17
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 329
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -३२९
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती - -
अज्ञातनामि कत्यूरी नरेश के पुत्र खर्परदेव की उपाधि भी 'परमभट्टारक महाराजधिराज परमेश्वर ' थी। खर्परदेव के शासन विषय में शिलालेख में कुछ नहीं मिलता। खर्परदेव की रानी का नाम भी शिलालेख में अपठनीय हो गया है। (डबराल )
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४४९
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Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी नरेश त्रिभुवनराजदेव
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - १८
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -18
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 330
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३३०
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती - -
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कत्यूरी नरेश त्रिभुवनराजदेव ने अपने पुरखों के अनुसार पराम्भट्टारक महाराजधिराज उपाधि धारण नहीं की क्योंकि तब उसके पड़ोसी सबल व आतंकी थे जैसे धर्मपाल। डा डबराल अनुसार धर्मपाल के राज्य कर्मियों ने केदारनाथ की भी यात्रा की थी।
कत्यूरी नरेश त्रिभुवनराजदेव ने जयकुलभुक्तिका में दो दूण वाला खेत ब्याघ्रेश्वर मंदिर को दान दिया था जिससे मंदिर में अर्चना , पुष्प , केशर का प्रबंध हो सके (२ )।
कत्यूरी नरेश त्रिभुवनराजदेव के भाई ने त्रिभुवनराजदेव के राज आरूढ़ के ११ वर्ष में बंन्दिरों को भूमि प्रदान की जिससे पता चलता है कि त्रिभुवनराजदेव ने कम से कम ११ वर्ष राज किया था। त्रिभुवनराजदेव का एक किरात पुत्र मित्र था जिसने ब्याघ्रेश्वर व गोबिंदपिंड देव हेतु भूमि दाम की थी (२ )। किरात पुत्र के बारे में अन्य कोई सूचना नहीं मिलती है।
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५०
२-शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग १ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ३७९
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी राजवंश का अज्ञात राजकुमार
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - १९
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -19
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 331
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३३१
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती - -
बागेश्वर शिलालेख से पता चलता है कि अधिधज के दुसरे पुत्र ने अपने भाई त्रिभवंराजदेव से अधिक भूमि दान दी थी और इस राजकुमार का नाम शिलालेख में नहीं है (१ )। उसने यह भूमि भटकु (भरके ) ब्याघ्रेश्वर वचंडालमुंडा डिवॉन को दान की थी। अज्ञात कत्यूरी राजकुमार ने एक प्यायू भी निर्माण करवाया था (१ ) ।
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५१
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी नरेश निंबर व वंशावली
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - २०
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -20
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 332
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३३२
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती - -
ललितशूर के ताम्रशासन में प्रस्तुत राजा का नाम श्रीनिंबरस् अंकन हुआ है। भूदेव के बागेश्वर शिलालेख में प्रस्तुत नरेश को निम्बर्त लिखा गया है। भूदेव के शिलालेखों में कत्यूरी राज वंशावली में अंतर् न होने से दोनों नाम एक ही नाम मने गए हैं। अतः प्रस्तुत नरेश को निंबर हीमाना जाता है (१ )
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५१
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी नरेश निंबर की राज्य प्राप्ति
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - २१
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -21
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part -333
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३३३
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती - -
ललितशूर ताम्रशासन अनुसार 'निंबर ने भगवान धुज्जर्टि की कृपा से शत्रु तिमिर को हटाकर अपनी भुजा बल से राज्य प्राप्त किया। ऐसा लगता है कि त्रिभुवनराज की मृत्यु पश्चात उसके वंशजों को निंबर ने लड़कर उन्हें राजगद्दी से उतारकर स्वयं राजगद्दी पर बैठा था।
धर्मपाल ने ८०० ई ० के लगभग बाद इंद्रायुध को कान्यकुब्ज की राजगद्दी से हटाकर चक्रायुध को बिठाया था। खालीमपुर ताम्र शासन अनुसार . चक्रायुध अभिषेक समय दरबार में गांधार , मरु आदि नरेश शामिल हुए थे किन्तु कार्तिकेय नरेश का नाम नहीं आया है। इसके दो कारण है या तो कार्तिकेयपुर कान्यकुब्ज के तहत था या कार्तिकेयपुर का महत्व नहीं था।
इस दरबार के समय धर्मपाल के राज्य अधिकारी केदारनाथ यात्रा पर आये थे। ऐसा लगता है कि निंबर का पाल वंश से अच्छे तालयकाट थे। और लगता है धर्मपाल की सह पर निंबर ने त्रिभवंराज देव या उसके वंशजों को राजगद्दी से उतारकर स्वयं गद्दी हासिल की (डबराल)।
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५२
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का कत्यूरी युगीन प्राचीन इतिहास अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर
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