Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन
History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास
Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी नरेश निंबर की प्रशस्ति
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - २२
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -22
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 324
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३२४
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
अभिलेखों में निंबर राज्य की किसी अन्य घटना का उल्लेख नहीं मिलता है। निंबर के पौत्र ललितशूर के ताम्रशासनों (पृष्ठ ३ -४ ) में निंबर को सतयुग सामान नरेश , दया , दाक्षिण्य , सत्व , शील , शौच , औदार्य , गाम्भीर्य , मर्यादा , आर्यवृत्ति , गुण संपन बतलाया गया है। ताम्रशासन में निंबर को आश्चर्य जनक कार्य करने वाला बतलाया गया है। भगवती माँ नंदा की असीम कृपा से निंबर को अपार लक्ष्मी प्राप्त हुयी थी। निम्बर की अग्रिम महिषी का नाम नाशू देवी था।
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५२
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में आदि गुरु शंकराचार्य का गढ़वाल आगमन
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - २३
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -23
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 325
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 325
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
ऐसा माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म केरल में हुआ (788 ई ) और उन्होंने केदारनाथ में समाधी ( ८ २० ई ) ली थी। आदि शंकराचार्य निंबरदेव या इष्टगण देव कत्यूरी के राज्य काल में गढ़वाल आये थे व उन्होंने बद्रीनाथ में अपने ग्रंथों की रचना की थी। ऐसा कहा जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य को व्यास ने दर्शन दिए थे। (१ )
केरल से आदि गुरु अवश्य ही हरिद्वार व सहारनपुर क्षेत्र से बद्रिकाश्रम आये होंगे। यदि शंकराचार्य द्वारिका से बद्रिकाश्रम आये तो भी सहारनपुर व हरिद्वार के रास्ते ही बद्रिकाश्रम गए होंगे। यदि शंकराचार्य जगनाथ पूरी से बद्रीनाथ आये तो चम्पावत , बागेश्वर व अल्मोड़ा के रास्ते बद्रिकाश्रम पंहुचे होंगे। बद्रीनाथ में शंकराचार्य ने वर्तमान मूर्ति की स्थापना की थी और तिब्बत समर्थित बौद्ध आतंक का नाश भी करवाया था।
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५३
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी नरेश इष्टगणदेव
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - २४
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -24
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 326
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -३२६
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
ललित शूर के ताम्रशासन (पृष्ठ ५ , ६ ) से पता लगता है कि निंबर के पुत्र इष्टगणदेव ने कान्यकुब्ज नरेश को संकट में फंसा देख संभवतया देवपाल के इशारे पर परम्भट्टारक महाधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण कर ली। ताम्रशासन अनुसार इष्टगणदेव ने अपनी िज्वाल तलवार से हाथी का मष्तश विदीर्ण कर कीर्ति पायी थी।
इस ताम्रशासन से अनुमान लगता है कि इष्टगणदेव पर किसी मैदानी राजा ने आक्रमण किया होगा क्योंकि पहाड़ों में राजा हाथी पर युद्ध नहीं कर सकते थे। संभवतया इष्टगणदेव ने मैदानी राजा को घाटी में युद्ध में परास्त किया होगा (१ )
एटकिनसन अनुसार यह प्रतियोगी प्रतिहार नरेश नागभट्ट का कोई सामंत रहा होगा (२ )। इष्टगणदेव की राज महिषी का नाम वेग्देवी और ओकले अनुसार भूदेव शिलालेख में रानी का नाम धरादेवी था।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५३
२- ऐटकिनसन, हिमालयन डिस्ट्रिक्ट्स जिल्द २ पृष्ठ ४६७
३- ओकले , होली हिमालय पृष्ठ ९८
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : नरेश ललित शूर
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - २५
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -25
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 327
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३२७
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी नरेश इष्टगण देव के पुत्र ललित शूर के दो ताम्रपत्र उपलब्ध हुए हैं (२ ) । दोनों ललित शूर के ताम्रशासनों में ललित शूर व ललित शूर के पुरुखों की प्रशंसा हुयी है (२ )। पहले ताम्रशासन में दूसरे ताम्रशासन से दो श्लोक अधिक अंकित हैं (३ )। ललित शूर की उपाधि दोनों ताम्रशासनों में परमभटारक महाराजधिराज परमेश्वर अंकन हुआ है (१ )।
ललित शूर के ताम्र शासन में ललित शूर ने अपने को परम महेश्वर परमब्रह्मण्य घोषित किया है। ललित शूर के ताम्र शासनों में ललित शूर को शौर्य -वीरातव में ललित शूर की समानता कीर्तिबीज , पृथु व गोपाल से की गयी है (२ )।
ललित शूर के ताम्रशासनों में पाल वंशजों के अभिलेखों का प्रभाव मिलता है (१ )।
ललित शूर के ताम्रशाशनों में ललित शूर के वंशज , राजयधिकारी व भूदानों का उल्लेख तो हुआ है किन्तु अन्य ऐतिहासिक घटनाओं का समावेश नहीं हुआ है (३ ) ।
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५३
२- ललित शूर के ताम्रपत्र पृष्ठ ५ व ६
३ शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग १ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ३७९
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का कत्यूरी युगीन प्राचीन इतिहास अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर , ललित शूर कत्यूरी राजा का ताम्रशासन , कत्यूरी , ललितशुर का चरित्र
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : ललित शूर देव द्वारा मन्दिरों को भूदान
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - २६
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -26
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 328
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३२८
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
वसंतन राजयकाल में वैष्णव धर्म का प्रवेश उत्तराखंड में हो चूका था। जनश्रुति अनुसार शंकराचार्य ने बड़रकाश्रम में नारायण मूर्ति थरपी। (डबराल ) . ललितशूर की एक रानी ने कार्तिकेयपुर क्षेत्र के गोरुन्नासा गाँव में भगवान नारायण मंदिर की शापना की थी (१ व २ )। ललित शूर के राज्य में श्रीपुरुष भट्ट ने गरुड़ आश्रम में नारायण मंदिर की स्थापना की थी। ललित शूर ने इन मंदिरों को भूमिदान दी थी (२ ) ।
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संदर्भ :
१- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५४
२-ललित शूर का ताम्र शासन पृष्ठ २०
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का कत्यूरी युगीन प्राचीन इतिहास अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर
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