Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 50594 times)

Bhishma Kukreti

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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :     देवप्रयाग में मेधातिथि की तपस्या         

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ३२
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -32
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -   334                 
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -३३४                   


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
मनुस्मृति के टीकाकार मेधातिथि  सलोणादित्य के समकालीन थे (१ ) ।  मेधातिथि के जन्म स्थल पर इतिहासकारों में मतभेद है।   काणे  व जॉर्ज बुहलर  मानते हैं कि मेधातिथि कश्मीर के थे या उत्तरीभारत के थे (२ )।  किन्तु कोई सबल तथ्य सामने नहीं आये हैं।
मेधातिथि ने मनुस्मृति की टीका की है।  यद्यपि इस टीका में शंकराचार्य का नाम नहीं है किन्तु टीका में कई विचार शंकराचार्य से मिलते हैं।  रॉबर्ट लिंगत (द  क्लासिकल लॉज़ ऑफ़ इण्डिया , ओक्सफोर्ड अमेरिका , १९७३ , पृष्ठ ११२ ) ने मेधातिथि समय ८२० ई  से ऊपर व 1050 से पहले माना है और इस विश्लेषण से मेधातिथि का समय ८२५ -९०० ई मध्य होना चाहिए (१ )।
    डा डबराल , कुकरेती का अनुमान ही नहीं अपितु बलयुक्त तर्क है कि मेधातिथि गढ़वाल के निवासी थे।  केदारखंड में उल्लेखित मेधातिथि वास्तव में मनुस्मृति के टीकाकार थे उन्होंने देवप्रयाग में तपस्या की थी व अवश्य ही मनुस्मृति की टीका देवप्रयाग में ही रची गयी थी -
 
पूरा मेधातिथिनम अनूप द्विजसत्तम: I सूर्य्य भक्तिरतो नित्यं सूर्यमेवाभजत् सदा II.
सदैव सौर्मन्त्र वै जपंस्तस्थौ तु स्वे गृहेI एकदा मुनिशार्दूल गतो मेधातिथिर्मुनि II
देवप्रयागके क्षेत्रे तीर्थानामुत्तमोत्तमे I सौरकुण्डे महातीर्तः तीर्थानां प्रवरे शुभे II
तत्र गत्वा मुनि श्रेष्ठ तपश्च्क्रे महामति: I निराहारो वतात्मा वै निर्ममो नि:स्पृहः सुधीः II
केदारखंड १५५ , ४ -८
    मेधातिथि के जीवन संबंधी यही ेल लिखित उल्लेख उपलब्ध है। 
 
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संदर्भ :
  १- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  - ४५७ 
२- काणे पी वी ,हिस्ट्री ऑफ  धर्मशास्त्र , १९७५ , जिल्द १ , पृष्ठ ५७५
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :   कत्यूरी नरेश   इच्छटदेव             

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  -३३ 
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -   33
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -   335                 
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   ३३५               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
 सलोणादित्य के पुत्र का नाम इच्छटदेव  था।  इच्छटदेव की उपाधि भी परम् भट्टारक महाराजाधिराज परमेश्वर ही था।  उसके उत्तराधिकारी देशटदेव, पद्मट   व सुभिक्षराज के अभिलेखों में भी यही उपाधि मिलती है (२ ) ।  इच्छटदेव  का कोई अभिलेख उपलब्ध नहीं है।
 इच्छटदेव  की रानी का नाम सिन्धुदेवी व राजधानी कार्तिकेयपुर था।
 इच्छटदेव  ने पराम् भट्टारक। . उपाधि  प्रतिहार नरेश महिपाल  की मृत्यु ( ९०८ ई  ० )  बाद ही ली होगी। 
-
संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  ४५८
२-  - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ३८४
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :  कत्यूरी नरेश   देशटदेव           

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ३४
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -34
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 336                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३३६                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
डबराल अनुसार ( २ ) देशटदेव ने भी परम भट्टारक माहराज धीरज परमेश्वर की उपाधि धारण की थी।  देशट के पुत्र  पद्मट व देशट के पौत्र सुभिक्षराज के अभिलेखों (शासनों ) में देशट  को परम माहेश्वर उपाधि दी गयी हैं (१ )। 
अभिलेखों में देशट का चरित्र  गुण (उपमाएं ) -  पद्मट  व सुभीक्षीराज के अभिलेखों में देशट  को दीन  अनाथ ,दुखी व शरणार्थियों की सहायता करने वाला घोषित किया गया है।
अभिलेखों अनुसार देशट  चतुर्दिशा से आने वाले  श्रेष्ठ ब्राह्मणों को  सुवर्ण दान देता था।  देश्ट ने शत्रुओं के कुचक्रों को भंज डाला था (२ )।  उससे कलियुग के कलुष खत्म हुए थे।  अभिलेखों अनुसार देशट सतयुग में धर्म का अवतार था। 
 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   - ४५८
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ - ३८४ - ३८५
 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :  देशट  की प्रतिहार नरेश से झड़प             

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ३५
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -35
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -   337                 
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३३७                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
एज ऑफ़ कन्नौज अनुसार खजुराहो शिलालेख अनुसार चंदेल नरेश हर्ष ने (९०० -९२५ ) प्रतिहार नरेश क्षितिपाल के सिंघासन की रक्षा की थी।  इससे निर्णय लिया जाता है कि  प्रतिहार  नरेश महिपाल (क्षितिपल ) के सामंत हर्ष चंदेल ने वीरता पूर्वक युद्ध कर राष्ट्रकूट नरेश इंद्र तृतीय को कन्नौज पर आक्रमण से भगाया था।  खुजराहो शिलालेख अनुसार चंदेल ने किसी युद्ध में खस नरेश के बल को टोला था (३ ) .
 
काव्य मींमांसा में  (परइ १२४ ) महिपाल के  राजकवि राजशेखर ने कार्तिकेय नरेश को खसाधिपति बतलाया है।  इससे लगता है वः खस नरेश कत्यूरी नरेश ही था (२ )।  सुभिक्षराज अभिलेख अनुसार देशट देव ने शत्रु के कुचक्र को नष्ट किया।  इससे अर्थ निकलता है कि देशटदेव की झड़प  प्रतिहार नरेश सामंत चंदेल हर्ष से हुयी थी (१ )।
 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४५८
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड
३-  आर सी मजूमदार , एज ऑफ इम्पीरियल कन्नौज पृष्ठ ३५ , ३६
 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :    कत्यूरी नरेश देशट द्वारा भूमिदान         

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ३६
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -36
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -338                     
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३३८                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी नरेश देशटदेव ने अपने राजयकाल के ५ वे वर्ष में ताम्र शासन प्रचारित किया था (३  )।   ताम्र शासन अनुसार देशटदेव ने विजयेश्वर मंदिर को एलाल क्षेत्र के यमुना ग्राम को भूमिदान दिया। 
  जागेश्वर मंदिरों के अभिलेखों से मालुम होता है इस समय भारत के अन्य क्षेत्रों से यात्री उत्तराखंड के मंदिरों की यात्रा हेतु उत्तराखंड आते थे (१ )।  देशट देव ब्राह्मणों को दान देता था।  देशटदेव की राजधानी कार्तिकेयपुर था व रानी का नाम महादेवी पद्मल्लदेवी था (१ )।
 
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४५९
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड ४११
३- एटकिन सन , हिमालयन डिस्ट्रिक्ट्स भाग ३  पृष्ठ ४७१
 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :   कत्यूरी  नरेश पद्मट  देव         

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ३७
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -37
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 339                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३३९                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
देशट के पुत्र पद्मटदेव ने भी  अपने ताम्र शासन में परम भट्टारक महाराजधिराज परमेश्वर की उपाधि धारण की है।  पद्मट देव को भी परम माहेश्वर , परब्रह्मण्य कहा गया है।  सुभिक्षराज के ताम्र शासन में पद्मट देव  के लिए कहा गया है कि ( २ )  उसने अपने बाहुबल से समस्त दिशाएँ जीती थीं।  वह चरों समुद्रों से घिरी पृथ्वी का पालक था।  हाथी , घोड़े व आभूषणों का दान देता था व उसने बलि , वैकर्तन , दधीची , चन्द्रगुप्त सभी को तिरष्कृत कर दिया था।  पद्मट देव की रानी का नाम महादेवी पल्लवी था (१ )। पद्मटदेव की राजधानी कार्तिकेयपुर थी। 
-
संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४५९
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ४११- ४१२
 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :   प्रतिहार आक्रमण  ?        

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ३८
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -38
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 340                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३४०                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
पद्मटदेव एक शक्तिशाली नरेश रहा होगा।  पद्मटदेव संभवतया प्रतिहार नरेश देवपाल वा चंदेल नरेश  यशोवर्मन का समकालीन था (१ )। चंदेल नरेश अपने खजुराहो शिलालेख में लिखता है कि उसकी सेना ने हिमालय के कठिन भागों में प्रयाण किया था  जससे आवाज से हाथी  शेर भाग गए (२ )।
यशोवर्मन चंदेल को ९२५ में राज्य प्राप्त हुआ ( एज ऑफ इम्पीरियल कन्नौज पृष्ठ - ३८२ ) उसने देवपाल की अधीनता किसी न किसी रूप में स्वीकार की थी (१ )।  अतः यशोवर्मन का हिमालय प्रयाण देवपाल सहायता हेतु हुआ होगा।  अभिलेख में विजय व पराजय का कोई उल्लेख नहीं है।  हो सकता है उत्तराखंड नरेश ने थोड़ा बहुत उपनयन देकर शांत किया होगा।   पद्मटदेव व पुत्र सुभिक्षरज की उपाधि से विदित होता है वे स्वतंत्र महाराजा ही थे।
 भूमिदान -
  पद्मटदेव ने अपने राज्य के  २५ वे वर्ष    भगवान बड़रकाश्रम मंदिर को भूमिदान दी थी ( पद्मटदेव  ताम्र शासन )।  पद्मटदेव  ताम्र शासन में उल्लेख है कि भूमिदान की आय से मंदिर में बलि , प्रदीप , गंध , सत्र , नैवैद्य , धुप , पुष्प , गायन , वाद्य , नृत्य , पूजा प्रवर्तन व खंडस्फुटित संस्कार होते थे ।
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  ४५९ 
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ४११
 
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :     कत्यूरी नरेश सुभिक्षराज  का वीर चरित्र        

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ३९
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -39
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  41                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -   ४१               


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
 पद्मटदे*व् के राज्याधिकारी व पुत्र सुभिक्षराज ने अपने राज्य अभिषेक के चौथे वर्ष में भगवती दुर्गादेवी , भगवान  ब्रह्मेश्वर को भूमि दान दी थी।  सुभिक्षराज ने अपने ताम्र शासन (२ ) में अपनी उपाधि परम भट्टारक महाराजधिराज परमेश्वर अंकित की है।  ताम्र शासन से पता चलता है कि नरेश सुभिक्षराज शास्त्र आदेशों अनुसार शासन करता था (२ )।  ताम्र पत्र आदेशानुसार सुभिक्षराज से कलियुग का  अन्धेरा उससे दूर रहता था।  सुभिक्षराज शत्रुओं की पत्नियों को वैधव्य दायी था।  सुभिक्षराज की ख्याति सारे संसार में फैली थी।  ताम्र शासन अनुसार सुभिक्षरज शत्रुओं की राजलक्ष्मी हार्न कर्ता था।  सुभिक्षराज ने कई व्यक्तियों के दर्प को हरा था।( १, २ )   
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ   ४६०
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ -३८४ - ३८५
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  : सुभिक्षराज की राजधानी              

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४०
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -40
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  -  342                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  ३४२                 


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
 कत्यूरी नरेश   सुभिक्षराज  की राजधानी  सुभिक्षपुर ( २ ) थी।  इतिहास विदों का मत है कि सुभिक्षराज ने कार्तिकेयपुर या कुछ बैग को सुभिक्षपुर नाम दे दिया था ।  राहुल का मत है कि ( राहुल , गढ़वाल पृष्ठ ७३ ) सुभिक्षराज ने कार्तिकेयपुर के निकट कोइ राजधानी स्थापित की थी।  डा डबराल (१ ) लिकते हैं कि  जोशीमठ के निकट तपोवन में स्थापत्य सामग्री से अनिमान लगता है कि यहां सुभिक्षराज ने राजधानी बसाई होगी।  मूर्तियां दसवीं सदी निकट की हैं .
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संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ  ४६१ 
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग १  वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ३८४
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में   कत्यूरी युग  :     आमात्य भट्ट भवरामन्         

 हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग  - ४१
Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History with reference  Katyuri rule -41
 
Ancient  History of Haridwar, History Bijnor,   Saharanpur History  Part  - 343                   
                           
    हरिद्वार इतिहास ,  बिजनौर  इतिहास , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -३४३                   


                  इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
 
कालीमठ के लक्ष्मी नारायण मंदिर के शिलालेख अनुसार  (२ ) ज्ञात होता है कि किसी कत्यूरी नरेश के आमात्य भट्ट भवरामन् ने भावेश्वर मंदिर का निर्माण किया था।  लिपि के हिसाब से शिलालेख दसवीं सदी का माना जा सकता है (१ )। डबराल मतानुसार ( १ ) भट्ट भवरामन  सुभिक्षराज या उसके उत्तराधिकारी का मंत्री था। 
-
संदर्भ :
 १ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' ,  उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४६१   
२-  ऐनुअल रिपोर्ट ऑन इंडियन एपिग्रफी  १९६० , पृष्ठ ६८
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