हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : प्रतिहार आक्रमण ?
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - ३८
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -38
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 340
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३४०
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
पद्मटदेव एक शक्तिशाली नरेश रहा होगा। पद्मटदेव संभवतया प्रतिहार नरेश देवपाल वा चंदेल नरेश यशोवर्मन का समकालीन था (१ )। चंदेल नरेश अपने खजुराहो शिलालेख में लिखता है कि उसकी सेना ने हिमालय के कठिन भागों में प्रयाण किया था जससे आवाज से हाथी शेर भाग गए (२ )।
यशोवर्मन चंदेल को ९२५ में राज्य प्राप्त हुआ ( एज ऑफ इम्पीरियल कन्नौज पृष्ठ - ३८२ ) उसने देवपाल की अधीनता किसी न किसी रूप में स्वीकार की थी (१ )। अतः यशोवर्मन का हिमालय प्रयाण देवपाल सहायता हेतु हुआ होगा। अभिलेख में विजय व पराजय का कोई उल्लेख नहीं है। हो सकता है उत्तराखंड नरेश ने थोड़ा बहुत उपनयन देकर शांत किया होगा। पद्मटदेव व पुत्र सुभिक्षरज की उपाधि से विदित होता है वे स्वतंत्र महाराजा ही थे।
भूमिदान -
पद्मटदेव ने अपने राज्य के २५ वे वर्ष भगवान बड़रकाश्रम मंदिर को भूमिदान दी थी ( पद्मटदेव ताम्र शासन )। पद्मटदेव ताम्र शासन में उल्लेख है कि भूमिदान की आय से मंदिर में बलि , प्रदीप , गंध , सत्र , नैवैद्य , धुप , पुष्प , गायन , वाद्य , नृत्य , पूजा प्रवर्तन व खंडस्फुटित संस्कार होते थे ।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४५९
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग १ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ४११
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