Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन
History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास
Bhishma Kukreti:
सहारनपुर , बिजनौर हरिद्वार पर कत्यूरी शासन समाप्ति
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - ४७
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -47
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 349
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३४९
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
वर्तमान जोशीमठ में कत्यूरी राजधानी होने का अर्थ है कि कत्यूरियों की उत्तरी सीमा तिब्बत - भारत की मध्यवर्ती पहाड़ों की श्रेणी तक था (१ )।
प्राचीन जनश्रुति जिसे एटकिनसन ने उद्घृत किया है (२ ) कि जोशीमठ को राजधानी बनाकर कत्यूरी नरेशों का राज्य सतलज तट से लेकर पूर्व गंडकी तक था। तथा महा हिमालय से लेकर दक्षिण मैदान व रुहेलखंड तक था।
यमुना से सतलज तक कत्यूरी राज्य की पुष्टि अभी तक किसी ऐतिहासिक अभिलेखों व प्रमाणों से नहीं हुयी है। सतलज के तट में निरत स्थान में एक बूटधारी सूर्य मूर्ती का मंदिर भी है (१ )। राहुल अनुसार (कुमाऊं , पृष्ठ ३३ ) इस सूर्य मंदिर की स्थापना ८ -९ वीं ईश्वी में हुआ था। राहुल की धारणा है कि ललित शूर समय यह मंदिर कत्यूरी नरेशों के अधिकार में था।
कत्यूरियों ने लगभग २५० ढाई सौ वर्षों तक राज किया। और तीन वंशजों के राज होने से कई बदलाव अवश्यंभावी हैं।
वैजनाथ कांगड़ा शिलालेख (कांगड़ा गजेटियर परइ ५०१ ) अनुसार दसवीं सदी के अंत में तीरगत जालंधर नरेशों की शक्ति विस्तृत थी। संभवतया इस समय कत्यूरी अधिकार यमुना के पश्चिम में समाप्त हो चला होगा (१ )। तारीख यामिनी अनुसार (इलियट डाउसन , हिस्ट्री ऑफ़ इण्डिया खंड २ पृष्ठ ४७ इंडियन कल्चर गव डॉट कॉम डॉट इन /रेयर बुक्स ) दसवीं सदी में अम्बाला -सहारनपुर , सिरमौर व देहरादून (पश्चमी भाभर ) पर किसी चाँद राय का अधिकार था। ओकले व गैरोला अनुसार (३ ) मायापुर , हरिद्वार व गढ़वाल भाभर में सामंत भी स्वतंत्र बन बैठे थे। इससे अनुमान लगता है कि अंतिम काल में कत्यूरियों का शासन बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर पर समाप्त हो गया था।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४६४
२- एटकिनसन , हिमालय डिस्ट्रिक्ट्स खंड २ , पृष्ठ ४६७
३-ओकले - गैरोला हिमालयन फ़ोल लोर पृष्ठ १०२ - १०३
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : कत्यूरी नरेश चरित्र
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - ४८
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule 48 -
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 350
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३५०
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
चौदह कत्यूरी नरेशों में त्रिभुवनराज , निंबर व सलोणादित्य को छोड़ अन्य कत्यूरी नरेशों की उपादि पट्टमभट्टारक महाराजधिराज रहा है। अभिलेखों में कत्यूरी राजाओं को सतयुग राजा सामान बतलाया गया है। इन कत्यूरी नरेशों को दया , दाक्षिण्य , सत्य , सत्व , शील , शौर्य , औदार्य , गाम्भीर्य आदि गुणों सहित बताया गया है (२ )। ताम्रशासनों में कत्यूरी नरेशों के लिए अंकित है कि ये नरेश आदर्श जीवन यापन करते थे।
कत्यूरी नरेश दींन अनाथों के रक्षक थे।
नरेश विद्याभाषी थे। कत्यूरी नरेशों की राज सभा में दूर दूर से विद्वान् तर्क हेतु आते थे व राजा उन्हें पारितोषिक देते थे (१ )।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४६६
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग १ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ३८० (कत्यूरी शासकों के ताम्र शासन )
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : कत्यूरी राज में क्षेत्रीय सामंत शासन
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - ५०
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -50
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 352
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३५२
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी शासन में क्षेत्रीय शासन ठकुराई के सामंत देखते थे। ये ठकुराई के सामंत वास्तव में क्षेत्रीय राजा ही थे। सामंत पद कुल क्रमागत था (१ )। ये सामंत समय आने पर केंद्रीय राजा की सहायता करते थे व उपादेय देते थे। शक्तिहीन नरेश समय सामंत शक्तिशाली बन बैठते थे व नरेश को धमकी भी दे सकते थे। अशोक चल्ल व क्राचल्लदेव के आक्रमण समय कत्यूरी सामंतों ने कत्यूरी को सहायता देने की जगह इनके सामंत बन बैठे। इस समय के सामंत आपस में भी लड़ते रहते थे (१ ) । यदि नरेश ने किसी गांव को मंदिर हेतु दान दिया हो तो सामंत उस भूमि से कर नहीं ले सकते थे। अर्थात सामंत जनता से कर ले राजा को उपादेय देते थे।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४६६
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हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का कत्यूरी युगीन प्राचीन इतिहास अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर , कत्यूरी युग में हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर इतिहास , कत्यूरी नरेशों की शासन पद्धति , कत्यूरी राज में जनता , सामंत शासन में कर व्यवस्था
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : कत्यूरी मंत्री परिषद
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - ५१
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -51
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 353
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३५३
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी राज में नरेश सर्वोपरि पद था। नरेश ही विभिन्न अधकारियों की नियुक्ति करते थे। डबराल का मत है कि अधिकतर अधिकारियों के पद कुल परम्परागत थे (१ )। कत्यूरी अभिलेखों में निम्न ९ बड़े प्रभावशाली अधिकारीयों का उल्लेख मिलते हैं -
अमात्य - प्रधानमंत्री
आयुक्तक - कमिश्नर
- उपरिक - राजयपाल
कोषपाल - कोषाधिकारी
विषयपति -- जनपद अधिकारी
श्रेष्ठि - नगर सेठ
दंडनायक , महादंडनायक - प्रमुख पुलिस अधिकारी
महासंधिविग्रहधिकृत - संधि -युद्ध मंत्री
महादानक्षप टल धिकृत - धर्माधिकारी
महत्वपूर्ण कार्यों की जानकारी सभी अधिकारियों को दी जाती थी।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४६६
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Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : कत्यूरी राज में जनपद प्रशासन
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग -५२
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -52
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 354
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३५४
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
राज्य कुछ प्रांतों मे बंटा था। प्रांतों (विषयों ) का प्रशासन विषयक देखते थे। निम्न प्रांत (विषय ) कत्यूरी राज में थे (१, २ ) -
कार्तिकेय पुर - जोशीमठ से गोमती तक
टंकणपुर -अलकनंदा भगीरथी का मध्यवर्ती क्षेत्र
एशाल - भगीरथी -यमुना मध्य क्षेत्र
मायापुर हाट - हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४६७
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग १ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ३७२, ३८१
Copyright @ Bhishma Kukreti
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का कत्यूरी युगीन प्राचीन इतिहास अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर , कत्यूरी युग में हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर इतिहास , कत्यूरी नरेशों की शासन पद्धति , कत्यूरी राज में जनता , कत्यूरी राज में मंत्री परिषद आदि
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