Uttarakhand > Uttarakhand History & Movements - उत्तराखण्ड का इतिहास एवं जन आन्दोलन
History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास
Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : कत्यूरी राज्य के भुक्तियाँ
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - ५३
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -53
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 355
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३५५
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
नरेशों के प्रशासन में राज्य भुक्तियों (Regions/Zones ) में बंटा था जिनके तहत जनपद (जिले ) होते थे (१ ) । कत्यूरी राज्यों के अभिलेखों में केवल जयकुल भुक्ति का उल्लेख मिला है। डबराल (१ ) की मान्यता है कि कत्यूरी राज्यसमय में भुक्ति सीमित क्षेत्र के लिए प्रयोग हुआ है। कत्यूरी राज्य में भुक्ति किसी विषय (zone ) का हिस्सा रहा होगा। डबराल का मानना (२ ) है कि कत्यूरी राज्य में इंद्र वीके (ललित शुर अभिलेख ) ; बद्रिकाश्रम, जोशीमठ , शिलादित्य ( सुभिक्षराज का ताम्र शासन ) नाम की भुक्तियाँ अवश्य थीं ।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४६७
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग १ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ -३७८
Copyright @ Bhishma Kukreti
हरिद्वार, बिजनौर , सहारनपुर का कत्यूरी युगीन प्राचीन इतिहास अगले खंडों में , कत्युरी वंश इतिहास और हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर , कत्यूरी युग में हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर इतिहास , कत्यूरी नरेशों की शासन पद्धति , कत्यूरी राज में जनता , कत्यूरी राज में मंत्री परिषद आदि , कत्यूरी राज में क्षेत्र अनुसार प्रशासनिक इकाई
Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : कत्यूरी युग में पूजा पद्धति
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग - ६५
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -65
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 367
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -३६७
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कत्यूरी राजाओं ने मंदिरों को भूमि प्रदान की थी। इन भूमि के आय से मंदिरों में देवताओं को फूल , धुप , बत्ती , दिया , तेल , नैवैद्य आदि की व्यवस्था की जाती थी (१, २ )। बहुत से मंदिरों में वाद्य व संगीत , भजन , नृत्य की भी व्यवस्था होती थी (३, सुभिक्षरज ताम्र शासन ) जैसे ये मंदिर थे - गोपेश्वर , केदारनाथ , तुंगनाथ , कटारमल आदि। इन मंदिरों के देवदासियों का प्रचलन था व डा डबराल क़्नुसार (१ ) इन नृत्यकारों के वंशज आज भी हैं। इन देव दासियों के परिवारों के निर्वाह हेतु मंदिर की भूमि से आय का कुछ हिस्सा उपयोग होता था। मंदिरों में हवन आदि का भी प्रयोग होता था व मंदिर मरोम्मत आदि का व्यव जो भूमि आय से ही आता था।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४७६
२- शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग १ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड पृष्ठ ३८०
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Bhishma Kukreti:
बद्रिकाश्रम में पूजा प्रबंधन
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में कत्यूरी युग : आदि शंकराचार्य उत्तराखंड आगमन -३
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तराखंड पर कत्यूरी राज भाग -
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference Katyuri rule -
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part -
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
बद्रिकाश्रम महाभारत काल से ही हिन्दू धर्मियों का आस्था केंद्र था। किन्तु तिब्बती बौद्ध आतंकियों द्वारा मंदिर के आभूषण लूटने की घटनायी हुईं जिससे बद्रिकाश्रम मंदिर में पूजा व्यवधान पड़ा। शंकराचार्य आगमन से अंतर् यह आया कि बद्रिकाश्रम में पूजा व्यवस्था प्रबंध अनुशासित हो गया।
शंकराचार्य ने पूउजा प्रबंधन भार अपने शिष्य तोटकाचार्य को दिया।
रतूड़ी गढ़वाल का इतिहास (पृष्ठ ४८२ ) में १९ आचार्यों का नाम जिन्होंने ८२० ईश्वी से १२२० ईश्वी तक पूजा प्रबंध किया।
बद्रिकाश्रम में रावल पुजारियों का प्रवेश बहुत बाद में हुआ।
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : सरसावा राज्य का उत्थान
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तर भारत में मुस्लिम आतंकवादियों का अधिकार भाग - १
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference the start of Muslim Terrorism in North India 1 -
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 373
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३७३
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
कीरग्राम प्रशस्ति (कांगड़ा गजेटियर परइ ५०३ ) व तारीखे यामिनी (भाग २ पृष्ठ ४७ ) अनुसार लगता है कि सुभिक्ष राज के उत्तराधिकार राज्य सँभालने के नाकाबिल थे व कमजोर थे व यमुना का पश्च ठकुराई त्रिगर्त जालंधर राज्य के अधिकार में आ गया था।
उत्तराखंड के दक्षिण की ओर यमुना के पूर्व व पछ्मी भाग के मैदानों (देहरादून , हरिद्वार, सहरानपुर और संभवतया बिजनौर भी ) क्षेत्र पर सरसावा राज्य नरेश चाँद राय ने अधिकार कर लिया था। इलियट व डाउसं (हिस्ट्री ऑफ इंडिया भाग २ पृष्ठ ४७ ) अनुसार चाँद राय की राजधानी सर्वा (सरसावा ) में थी व वहां एक बड़ा किला स्थापित था।
अर्थात इस समय हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर भाभर भी चाँद नरेश चाँद राय के अधीन रहे होंगे।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४८३
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : शाही महाराजा जयपाल
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में उत्तर भारत में मुस्लिम आतंकवादियों का अधिकार भाग - २
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference, the start Muslim Terrorism in North India -2
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 379
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ३७९
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
शाही परिवार का राज पंजाब , सिंधु के पश्चिम में काबुल तक अधिकार था। शाही राज सरसावा राज्य के पश्चिम में था। शाही राजा जयपाल की उपाधि 'भट्टारक महाराजाधिराज जयपाल' था (२ )।
महराजा जयपाल की दो राजधानियां उद्मांड व लाहौर में थीं। गजनी का आतंकवादी अत्याचारी मुस्लिम अमीर सुबुकतिगिन और उसके आतंकवादी पुत्र महमूद ने शाही महाराजा जयपाल के राज्य के पश्चिमी भाग पर लूटमार , हत्त्याएं , अग्निकांड करते आये थे। शान्ति प्रेमी हिन्दू शाही महाराजा जयपाल ने दो बार सेना लेकर लमघान पंहुचकर आतंकवादी , हत्यारों से घोर किये। किन्तु दोनों बार कटटर मुस्लिम आतंकवाद ही जीता। सन १००१ में मुस्लिम आतंकवादी लुटेरा महमूद ने काबुल से उदमांड तक के क्षेत्र पर अधिकार क्र दिया।
लुटेरे , आतंकवादी मुस्लिम अमीर महमूद ने काबुल से उमांड तक अधिकार क्र लिया व आतंकवादी महमूद ने धन लूटा चार लाख सुंदर नर -नारियों को बंदी बनाकर आतंवादी मुस्लिम लुटेरे ने दास बनाया। मुस्लिम आतंकवादी , लुटेरे , हत्त्यारे से हारने के कारण हिंदी महाराजा जयपाल ने खुदकशी कर ली। (१ )
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४८४
२- शैलेन्द्र नाथ सेन , ऐनसियंट इंडियन हिस्ट्री ऐंड सिवलिजेसन , न्यू एज इंटरनेशनल पृष्ठ ३४२ , जनवरी २०१४
Copyright @ Bhishma Kukreti
उत्तरी भारत पर आतंकवादी मुस्लिम आक्रांताओं के आक्रमण व अधिकार समय उत्तराखंड ;
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