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History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास
Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : ब्रह्मदेव कत्यूरी राजा
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में बैद्यनाथ के कत्यूरी शाशक भाग -६
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference, Katyuris of Baijnath -6
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 401
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -४०१
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
सभी तीन कत्यूरी वंशावलियों में ब्रह्मदेव का नाम मिलता है। ब्रह्मदेव के राज में संभवतया पाटलीदुन (जिम कॉर्बेट क्षेत्र ) व भाभर क्षेत्र कत्यूरी राज अंतर्गत थे (१ )।
ब्रह्मदेव के बारे में शेष कुछ भी जानकारी नहीं मिलती है।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४९९
Copyright @ Bhishma Kukreti , 2022
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : बैद्यनाथ के कत्यूरी शासक , हरिद्वार, सहारनपुर , बिजनौर इतिहास में बैद्यनाथ के कत्युरी शासक
Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : कत्यूरी अंतिम शासक वीर देव
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में बैद्यनाथ के कत्यूरी शाशक भाग -७
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference, Katyuris of Baijnath - 7
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 402
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ४०२
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती -
लोक गाथाओं अनुसार वीरदेव कत्यूरी वंश का अंतिम शासक था जो बीर , दुस्साहसी जीडी था। हांडा ने वीरदेव कत्यूरी का काल १०६५ दिया है।
यह विदित है कि कत्यूरी के अंतिम दिनों तक कत्यूरियों का हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर से शासन समाप्त हो चूका था.
कह सकते हैं कि बैजनाथ के कत्यूरियों काल में बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर उत्तराखंड से अलग हो चुके थे।
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संदर्भ :
१ - शिव प्रसाद डबराल 'चारण ' , उत्तराखंड का इतिहास भाग ३ वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , पृष्ठ ४९९
२-ओ सी हांडा , २००२ उत्तरांचल का इतिहास , इंडस पब्लिशिंग हाउस , पृष्ठ २३
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : बैद्यनाथ के कत्यूरी शासक , हरिद्वार, सहारनपुर , बिजनौर इतिहास में बैद्यनाथ के कत्युरी शासक
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : तोमरों की उत्तर भारत में पृष्ठभूमि व शासन
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में तोमर वंश राज्य - १
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference, Tomar Dynasty -1
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 403
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ४०३
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती पर
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तोमर राज्य आज के दिल्ली व कुछ भाग हरयाणा का भाग था। डबराल (२ ) अनुसार संस्कृत ग्रंथों व शिलालेखों में तोमर वंश राज्य का उल्लेख मिलता है। तोमर के अन्य नाम थे जैसे - तुंवर , तूँ अर, तंवर , तोर व तूर (२ )।
डबराल अनुसार तोमरों की मूलभूमि हिमालय पड़तल रही थी (हरियाणा दिल्ली ) . कन्निंघम ने तोमर राजा अंग पाल (७३६ ईश्वी ) से लेकर पृथ्वी पाल तक (११५१ ईश्वी ) का २० तोमर राजाओं का विवरण दिया है (२ )
महमूद गजनवी के समय देहरादून व शिवालिक प्रदेश (सहारनपुर व हरिद्वार भी होंगे ही ) पर किसी शक्तिशाली राजा चाँद राय का राज था । डबराल निश्चित नहीं कर सकें हैं कि चाँद राय किस वंशज का राजा था व क्या वह तोमर वंशी भी था ? (२ )
तोमरों द्वारा राज्य विस्तार
तोमरों के प्रारम्भिक अभिलेखों से पता चलता है कि तोमर प्रतिहार भोज व महेन्द्रपाल के सामंतों के रूप में हरियाणा व निकट शासन करते थे। शक्ति वृद्धि साथ ही तोमरों ने यमुना के पूर्वी भागों पर भी अधिकार कर लिया। 908 ईश्वी लगभग महेन्द्रपाल की मृत्यु हुयी और महेन्द्रपाल की दुर्बल उत्तराधिकारियों के कारण तोमरों की शक्ति बढ़ गयी।
दशरथ शर्मा (३ ) अनुसार 908 ईश्वी पश्चात तोमरों का अधिकार मेरठ कमिश्नरी (सहरानपुर सह ) देहरादून , हरिद्वार , भाभर बिजनौर (रुहेलखंड कमिश्नरी ) व रामगंगा तक प्रसार हो गया था।
References-
संदर्भ
१- एलेक्जेंडर कन्निंघम , १८ ७१ , आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया रिपोर्ट्स १८६२-१८८४ , आर्किओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया जिल्द १
२० शिव प्रसाद डबराल चारण , उत्तराखंड का इतिहास भाग ४ , गढ़वाल का इतिहास , वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , भारत , पृष्ठ ७० -७१
३- दशरथ शर्मा अर्ली चौहान डाइनेस्टीज पृष्ठ ३५०
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : तोमर वंश परिपेक्ष्य में हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास, तोमर वंश व सहारनपुर इतिहास , बिजनौर इतिहास व तोमर राज्य इतिहास
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : तोमर राजा महीपाल का हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर पर अधिकार
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में तोमर वंश राज्य -२
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference, Tomar Dynasty -
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - २
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - 2
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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राजा महीपाल तोमर वंश में सबसे शक्तिशाली राजा हुआ है। महमूद गजनी ने १००१ -१०२५ तक भारत वर्ष पर धावे बोले और सोमनाथ व कान्यकुब्ज को लूटा। यमुना पश्चिम के क्षेत्र को अपने राज्य में मिला लिया। गजनी व उत्तराधिकारी प्रजापीड़क , मानव हत्त्यारे व आतंकवादी थे व प्रजा को पीड़ा पंहुचने वाले थे। आतंक इनका जन्मजात गुण था। सर्वत्र घोर अराजकता प्रसारित हो चुकी थी।
तोमर नरेश महीपाल ने १०४३ तक परमार भोज व अनहिल चौहमान की सहायता से उत्तर भारत से जन्मजात , धार्मिक अंधेपन के आतंकवादी मुस्लिमों से स्वतंत्र करवाने में सफल रहे।
महिपाल व साथियों ने हांसी , नगरकोट , थानेश्वर के दुर्गों में मानववाद विरोधी , जन्मजात आतंकवादी , निर्मम हत्त्यारे , प्रजापीड़क मुस्लिम सैनिकों को खदेड़ा (१ )। नगरकोट में मंदिर का पुनर्जिवितीकरण किया व देव मूर्ति पुनः स्थापित किया। पंजाब के बड़े भाग को आतंकवादी मुस्लिमों से स्वतंत्र कराया।
महिपाल व चाहमानों में शत्रुता
पंजाब पर अधिकार से महीपाल का सम्मान बढ़ गया। दक्षिण में तोमर राज्य की सीमा शाकम्भरी के चौहमान राज्य से सटी थी। उन दोनों में सीमा विवाद के कारण द्वेषाग्नि बढ़ गयी जो बाद में जन्मजात आतंकवादी मुस्लिमों हेतु वरदान सिद्ध हुआ।
तोमरनरेश महीपाल का हरिद्वार, बिजनौर व सहारनपुर पर अधिकार
कन्निंघम अनुसार (एसियाटिक एपिग्रफी परइ २६२ ) महीपाल ने गढ़ देस पर भी अधिकार किया और उसके अंतिम काल में मायापुर -हरिद्वार , व यमुना के पूर्व में स्रुघ्न (सहरानपुर भाग ) मण्डलपुर आदि में था। इन स्थानों में तोमर नरेशों के मुद्राएं प्रचुर मात्रा में मिली हैं (रतूड़ी , गढ़वाल का इतिहास पृष्ठ २३८ ) .
References-
संदर्भ
१- शिव प्रसाद डबराल चारण , उत्तराखंड का इतिहास भाग ४ , गढ़वाल का इतिहास , वीरगाथा प्रेस दुगड्डा , उत्तराखंड , भारत , पृष्ठ -७१ -७२
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास : तोमर वंश परिपेक्ष्य में हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास, तोमर वंश व सहारनपुर इतिहास , बिजनौर इतिहास व तोमर राज्य इतिहास
Bhishma Kukreti:
हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में : तोमर नरेश अंगपाल तृतीय
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हरिद्वार , सहारनपुर , बिजनौर इतिहास संदर्भ में तोमर वंश राज्य - ३
Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History with reference, Tomar Dynasty -३
Ancient History of Haridwar, History Bijnor, Saharanpur History Part - 405
हरिद्वार इतिहास , बिजनौर इतिहास , सहारनपुर इतिहास -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग - ४०५
इतिहास विद्यार्थी ::: आचार्य भीष्म कुकरेती
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कनिंघम अनुसार (आर्किओलॉजिकल सर्वे रिपोर्ट vol 5 पृष्ठ १४३ ) तोमर राज्य की महिपाल वाली प्रतिष्ठा अनंगपाल तृतीय तक थी। ११३२ में श्रीधर कवि रचित पार्श्वनाथ कविता ग्रंथ में दिल्ली एक समृद्ध नगरी थी। महिपाल तक उत्तर भारत के राजा परस्पर सहयोग करते रहे। किन्तु तोमर राज्य की समृद्धि से मगध , अजमेर के चौहमान तोमर पराभाव हेतु प्रयत्न करने लगे। तंग आकर अनंगपाल तृतीय व उत्तराधिकारियों ने महमूद गजनी से संधि कर ली व पड़ोसी राजपूत राजाओं से युद्ध जारी रखा (२ ) ।
References-
संदर्भ -
१ - शिव प्रसाद डबराल चारण , १९६९ , उत्तराखंड का इतिहास भाग ४ पृष्ठ
२- हिंदी विश्व कोश , खंड ५ ,पृष्ठ ४३७
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