Author Topic: History of Haridwar , Uttrakhnad ; हरिद्वार उत्तराखंड का इतिहास  (Read 102796 times)

Bhishma Kukreti

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                 Sage  Dhyaumya a  Uttarakhandi Priest /Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                           पांडवों का गढ़वाली -उत्तराखंडी पुरोहित धौम्य

                                       History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --75


                                             हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -75

                                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

 जब पांडवों को द्रौपदी स्वयंबर की सूचना मिली तो वे दक्षिण पांचाल की और निकल पड़े।  उत्तर दिशा के रास्ते में  वे  गंगातट पर सोमाश्रयाण आश्रम तीर्थ पंहुचे। उसी तीर्थ के निकट मुनि देवल के भाई धौम्य ऋषि का आश्रम उत्कोचक था।  पांडवों ने उन्हें अपना पुरोहित बनाया (महाभारत , आदिपर्व १८२/२-६ )। धौम्य सदा पांडवों के पुरोहित ही नही अपितु सलाहकार भी बने रहे।
ऋषि धौम्य के साथ पांडव द्रौपदी स्वयंबर पंहुचे जहां मत्स्य नेत्र भेदन से अर्जुन ने द्रौपदी को जीता।  माता कुंती ने सभी भाइयों को द्रौपदी से विवाह आज्ञा दी।  इस तरह द्रौपदी पांचों पांडवों की पत्नी बनी।

ऋषि धौम्य ने विवाह संस्कार कराये।
आगे जाकर द्रौपदी पुत्रों के सभी जात संस्कार ऋषि धौम्य ने करवाये.
डा डबराल ने मुनि धौम्य को गढ़वाली ब्राह्मण की संज्ञा दी है।
       

** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर
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Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  9/3/2015

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --76

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -76
   
Dhaumya, Uttarakhandi Purohit of Pandavas in History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Dhaumya, Uttarakhandi Purohit of Pandavas inHistory of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Dhaumya, Uttarakhandi Purohit of Pandavas in History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ;Dhaumya, Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Dhaumya, Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas inHistory of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Dhaumya, Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ;Dhaumya, Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ;Dhaumya, Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in  History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Dhaumya, History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Dhaumya, Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Narsan Haridwar, Uttarakhand  ; Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in   History of Bijnor; Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in  History of Nazibabad Bijnor ; Uttarakhandi Purohit/Brahmin  of Pandavas in History of Saharanpur;
History of Nakur , Saharanpur; History of Deoband, Saharanpur; History of Badhsharbaugh , Saharanpur; कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास
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                  History: Arjun Marrying Girl from Gangadwar (Haridwar )

                            हरिद्वार की नागपुत्री उलूपी से पाण्डुपुत्र अर्जुन विवाह

                                       History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --75


                                      हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -75

                                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
  द्रौपदी पांच पांडवों की पत्नी थी अतः यदि एक पांडव द्रौपदी के साथ हो तो दूसरे पांडव को वहां जाना वर्जित था और नियम तोड़ने पर बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ता था।  अर्जुन से नियम टुटा और उसे 12 वर्ष तक वनवास भोगना पड़ा।  इस दौरान अर्जुन समस्त भारत में घुमा।
   इस अवधि में अर्जुन गंगाद्वार पंहुचा और गंगास्नान के दौरान नागराज पुत्री उलूपी ने उसे खींचा और अर्जुन को अपने पिता के महल में ले गयी जहां अर्जुन ने उलूपी से गन्धर्व विवाह किया।  उलूपी से अर्जुन का पुत्र इरवान हुआ।  इरवान को कुरुक्षेत्र के महयुध में ही याद किया गया।  उसने पांडवों की और से युद्ध में भाग लिया।

 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
   
History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; History of Saharanpur;
History of Nakur , Saharanpur; History of Deoband, Saharanpur; History of Badhsharbaugh , Saharanpur;
कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास
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                            Winning Uttarakhand in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                                              हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में पांडवों की उत्तराखंड विजय


                                        History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --76


                                       हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -76

                                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


   इंद्रप्रस्थ में अद्भुत सभा नरीमन के बाद पाडंवों ने युद्धिष्ठर के नेतृत्व में अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया।  भीमसेन को पूर्व में , अर्जुन को उत्तर , नकुल को दक्षिण व सहदेव को पश्चिम में भेजा गया।  उत्तराखंड पुत्र घटोत्कच्छ को लंका विजय हेतु भेजा गया।
  पांडवों के उत्तरी सीमा से लगे कुलिंद क्षेत्र की ठकुराइओं को जितने में अर्जुन को अधिक कठिनाई नही हुई।
कुलिन्दों के पडोसी राज्य कालकूट (कालसी ) व अनार्त (तराई (बिजनौर व हरिद्वार सहित ) की ठकुराइयों को जीतकर अर्जुन सुमंडल (जम्मू)  नरेश को लेकर स्यालकोट की और निकला।
                         उत्तराखंड से भेंट
 उत्तराखंड नरेश सुमुख ने इंद्रप्रस्थ में युधिष्ठिर को कई वस्तुएं  कीं जैसे सोना जड़ा अद्भुत शंख, मेरु व मदिराचल प्रदेश क मध्य से देवरिंगाल वनो के शाशक , तंगण , दीर्घ वेणिक , प्रदर , पशुप , कुलिंद , परतंगण आदि जनजातियों के शासकों ने भी युधिष्ठिर को भेंट दीं।
इन क्षेत्रों की पहचान पर्वतीय उत्तराखंड , भाभर , तराई , बिजनौर हरिद्वार व कुछ भाग सहारनपुर से होती है।
इतिहासविद मदन भट्ट मेरु को पिथौरागढ़ में मानते हैं।
उत्तराखंडी पुरोहित के नेतृत्व में अन्य ब्राह्मणो नारद , देवल आदि के साथ युधिष्ठिर का यज्ञ सम्पन हुआ
** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
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Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India 11 /3/2015

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --77

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -77
   
Winning Uttarakhand in context History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context  History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Winning Uttarakhand in context History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; History of Saharanpur;
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         Arjun Visiting Uttarakhand in Vanvas in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                                              हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में अर्जुन द्वारा उत्तराखडं भ्रमण



                                            History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --77


                                       हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -77 

                                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

                                                द्यूतक्रीड़ा और पांडवों को वनवास
 इंद्रप्रस्थ से कुरु कुमार दुर्योधन दुखी था।  एक रणनीति के तहत हस्तिनापुर में पांडवों व कौरवों के मध्य दरबार में जुआ खेला गया जिसमे युधिष्ठिर राज्य , सर्व सम्पति ही नही द्रौपदी को भी हार  गया। द्रौपदी का चेर हरण हुआ।  और अंत में पांडवों को बारह वर्ष का वनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास हुआ।
 वनवास जाने से पहले पांडवों ने कुंती को विदुर के पास छोड़ा व अपने आप पुरोहित धौम्य के संरक्षण में द्रौपदी संग वन को गए।  सबसे पहले पांडव गंगातीर में एक महान वत वृक्ष -प्रमाणकोटी के नीचे गए। क्या यह बट वृक्ष हरिद्वार या बिजनौर में था ? हस्तिनापुर से नजदीक का गंगातट तो हरिद्वार , बिजनौर , मजफरनगर आदि क्षेत्र ही हो सकता है।
फिर पांडव द्वैतवन , काम्यकवन में रहे और उस दौरान गुरु धौम्य पांडवों के सभी सांस्कृतिक -धार्मिक कर्मकांडों को निभाते रहे।
           दिव्यास्त्र पाने हेतु अर्जुन उत्तराखंड  भ्रमण पर गया। गंधमाधन से आगे इंद्रकील पर्वत पर तपस्या करने लगा जहां इंद्र ने  उसे दिव्यास्त्र प्राप्ति हेतु शिवजी की तपस्या करने की सलाह दी।
 अर्जुन को शिवजी से पाशुपात अस्त्र प्राप्त हुआ।
इससे इतिहासकार अंदाज लगाते हैं कि उत्तरी गढ़वाल व उत्तरी कुमाऊं में ताम्र व लौह खाने थीं और तब धातु से अस्त्र शस्त्र बनाना भी आज के न्यूक्लियर बम्ब बनाने जैसा ही था।  विवेचना से लगता है कि द अर्जुन ने गढ़वाल में धातु के अस्त्र गढ़वाए होंगे। फिर अर्जुन देवलोक से इंद्र द्वारा प्रदत दिव्यास्त्र लेकर आया।  क्या इन्द्रपुरी तिब्ब्त के नजदीक किसी खनिज खानों के नजदीक था ?


 ** संदर्भ - ---
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Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  12 /3/2015

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --78

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -78
   
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                          Kulind Kingdom in Context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                                           
                                             हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  संदर्भ में कुलिंद जनपद

                                           History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  --79


                                       हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -79 

                                                                   इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती
                                         
                                                     
      महाभारत अनुसार कुलिंद जनपद गंगा जी का पर्वतीय क्षेत्र था।  यह क्षेत्र गंगाद्वार से बद्रिकाश्रम आदि तक फैला था। इसका अर्थ है कि बिजनौर व सहारनपुर का कुछ न कुछ क्षेत्रों का संबंध कहीं कहीं न कहीं कुलिंद से था। कुलिंद का राजा सुबाहु था।  कुरुक्षेत्र युद्ध का समय लगभग 1400 BC माना जाता है।  अतः सुबाहु को भी इसी काल का माना जा सकता। है
उत्तर  कुलिंद कालीन सिक्के बहुत जगह में मिले हैं। पाणनि (550 BC ) ने अष्टाध्यायी में कुलुन का उल्लेख किया है जिसे कुलिंद जनपद माना जाता है । इसका अर्थ है कि कुलिंद जनपद 500 BC से पहले अस्तित्व में था।
 महाभारत में कुलिंद का वर्णन गंगाद्वार के साथ हुआ यही किन्तु पश्चिम व पूर्व की और का वर्णन नदारद है।  हाँ कुलिंद का वर्णन नेपाल, त्रिगत के साथ बार बार आने का अर्थ है गढ़वाल, कुमाऊं व बिजनौर कुलिंद जनपद के भाग थे या सहभागी जनपद थे। संभवतया सहारनपुर का पूर्वी भाग भी महाभारतीय कुलिंद जनपद में था। बागभट्ट आधारित हेमचन्द्र के साहित्य में कुलिंद राज्य यमुना (कालिंदी नदी ) स्रोत्र की श्रेणियों को कुलिंद जनपद कहा गया है। जहां से कुलिंद जनपद यमुना -सतलज मध्य भी फिाला था (मोतीचनद्र , स्टडीज इन महाभारत ).
ताल्मी अनुसार कुलिन्द्जन की भूमि सतलज , यमुना व गंगा का मध्य प्रदेश फैला था।
बराहमिहिर अनुसार कुलिन्द्जनपद एमडीआर प्रदेश से पूर्व में भी था।


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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --79

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -79
   
Kulind Kingdom in Context History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Kulind Kingdom in Context History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context  History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context  History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Kulind Kingdom in Context History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context  History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar;Kulind Kingdom in Context  History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;Kulind Kingdom in Context History of Bijnor; Kulind Kingdom in Context History of Nazibabad Bijnor ; Kulind Kingdom in Context History of Saharanpur;
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                    Rivers of Kulind Kingdom in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur

                                   हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में कुलिंद जनपद की नदियां
                               
                                       History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  -- 80

                                 
                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  80                                     


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

   साक्ष्य नही मिलता है कि महाभारतीय कुलिंद जनपद में बिजनौर व हरिद्वार क्षेत्र थे।  हाँ सहारनपुर क्षेत्र अवश्य ही कुरु राज्य में रहा होगा।
यह भी सत्य है कि कुलिंद राज्य मध्य हिमालय अथवा गढ़वाल -कुमाऊं में था या सारे उत्तराखंड को कुलिंद कहा गया है।  चूँकि महाभारत व ने साहित्य में कुलिंद का वर्णन अधिक है तो यह अंदाज लगाया जा सकता है कि हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर के परिपेक्ष में कुलिंद एक पसिद्ध व धनी राज्य रहा होगा।  हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर पड़ोसी राज्य होंगे तो भी बहुत से बातें कुलिंद व इन स्थानो में एकी जैसी रही होंगी या कुलिंद के सापेक्ष से अंदाज लगाया जा सकता है कि हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुरकी क्या स्थिति रही होगी।
                         कुलिंद राज्य की नदियां
यमुना - इसे गंगा की सात धाराओं में से एक माना गया है। आज भी यमुना सहारनपुर की प्रमुख नदी है जिसमे हिण्डोन , सलोनी नदी मिलती हैं।
गंगा - गंगा को  जान्हवी , भगीरथी , मंदाकिनी , अलकनंदा नाम से पुकारा गया है।  गंगा की सात धाराओं में गंगा , यमुना , सरस्वती , रथस्था (रामगंगा ) सरयू , गोमती , गण्डकी आती हैं।  हरिद्वार में गंगा आती है और इसे गंगाद्वार कहा गया है  कनखल का जिक्र महाभारत में आत है।  आज भी बिजनौर में रामगंगा बहती है
        बिजनौर संदर्भ में मालिनी नदी का महाभारत में वर्णन है।  ज्ञातव्य हो कि मालिनी गढ़वाल के चंडाखाल से निकलकर गढ़वाल भाभर होते बिजनौर भाभर होते हुए शुक्रताल के पास गंगा से मिल जाती है।  कण्वाश्रम वर्णन से गढ़वाल भाभर ही नही हरिद्वार , बिजनौर सहारनपुर भाभर -तराई भाग का ऐतिहासिक अंदाज लगाया जा सकता है।


 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
घोषाल , स्टडीज इन इंडियन हिस्ट्री ऐंड कल्चर
आर के पुर्थि , द एपिक सिवलीजिसन

Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India 16  /3/2015

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
   
Rivers of Kulind Kingdom in context History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Bijnor; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Nazibabad Bijnor ; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Saharanpur; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Nakur , Saharanpur; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Deoband, Saharanpur; Rivers of Kulind Kingdom in context History of Badhsharbaugh , Saharanpur;Rivers of Kulind Kingdom in context
कनखल , हरिद्वार का इतिहास ; तेलपुरा , हरिद्वार का इतिहास ; सकरौदा ,  हरिद्वार का इतिहास ; भगवानपुर , हरिद्वार का इतिहास ;रुड़की ,हरिद्वार का इतिहास ; झाब्रेरा हरिद्वार का इतिहास ; मंगलौर हरिद्वार का इतिहास ;लक्सर हरिद्वार का इतिहास ;सुल्तानपुर ,हरिद्वार का इतिहास ;पाथरी , हरिद्वार का इतिहास ; बहदराबाद , हरिद्वार का इतिहास ; लंढौर , हरिद्वार का इतिहास ;बिजनौर इतिहास; नगीना ,  बिजनौर इतिहास; नजीबाबाद , नूरपुर , बिजनौर इतिहास;सहारनपुर इतिहास
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Geographical and Flora -Fauna Other Aspects of Kulind in context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur


                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में कुलिंद राज्य का  भूगोल , वनस्पति आदि

                            History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  -- 81

                                 
                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  81                                     


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

 महाभारत में कुलिंद राज्य का विस्तृत वर्णन मिलता है और स्वाभाविक कि गढ़वाल , कुमाऊं की पहाड़ियों का अधिक वर्णन मिलेगा।  अपितु भाभर क्षेत्र का भी वर्णन मिलता है।  इससे महभरतकालीन हरिद्वार, बिजनौर और सहारनपुर की स्थिति का भी आकलन किया जा सकता है -
सरोवर - अधिकतर पहाड़ी सरोवरों  का वर्णन मिलता है.
कुण्ड -तप्त कुण्ड का वर्णन नही है पर ऐसे  गरम  पानी के स्रोत्रों का भी  शोणित अग्निनिवास के नाम से वर्णन महाभारत  में है
                                             जलवायु -
नदियों का वर्णन से लगता है छोटी नदियां गर्मियों में सूख जाती थीं , जड़ों में पतझड़ होता था।
भाभर (यहां पर अंदाज से हरिद्वार , बिजनौर और सहारनपुर के संदर्भ में ) में गर्मियों में भी नदियों में जल रहता था।  भाभर की नदियों के तट पर प्रचुर मात्रा में पेड़ होते थे जंतुओं को प्राणदायक थे। इन वनों में पलास , तिलक , आम , चंपा के अतिरिक्त अन्य फूल फल भी होते थे।
                                     भाभर क्षेत्र में वनस्पति
भाभर क्षेत्र में व शिवालिक ढालों में बेल , आक , खैर , कैथ व बांकली पेड़ मिलते थे। ग्रीष्म कल में झाड़ियाँ सूख जाती थी जो वर्षाकाल में जंगल जैसे होते थे।
                        फल फूल
खाद्य फल देने वाले वृक्ष - कुलिंद जनपद में अम्बाड़ा,  अंजीर , अनार , आम , आंवला , इंगुद , कैथ , खजूर , गम्भीरी , गूलर , जामुन , ताल , तिन्दुक , तेंदु , नीम्बू , बहेड़ा , बरगद , बेर , बेल , भिलावा आदि वृस्ख मिलते थे
 फूलवाले पेड़ पौधे - अशोक , इन्दीवर , कनेर , कुटज , कोविदार , चमपा , तिलक , पाटल , परिजात , पुन्नाग , मंदार , बकुल आदि थे व कमल व कीचकवेणु भी मिलते थे।
                            प्राणी वर्ग
भाभर के वनों में मृग , सिंह , बाघ ,  एण, हाथी , सुवर , भैंसे मिलते थे।
पक्षियों में गौरया , कदम्ब , कांरडव , कुरर , क्रौंच , चक्रवाक, जलकुक्कुट , पुंस्कोकिल , प्रियक , प्लव , बगुला , भृंगराज , मद्गु , सारस हंस आदि
 मधुमखी , सांप , भौंरे , डांस भी मिलते थे।

 ** संदर्भ - ---
वैदिक इंडेक्स
डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
राहुल -ऋग्वेदिक आर्य
मजूमदार , पुसलकर , वैदिक एज
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Copyright@ Bhishma Kukreti  Mumbai, India  17/3/2015

   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --82

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -82
   
Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ;Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Bijnor; History of Nazibabad Bijnor ; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Saharanpur;
Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Nakur , Saharanpur; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Deoband, Saharanpur; Geographical and Other Aspects of Kulind & History of Badhsharbaugh , Saharanpur;
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                               हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में अतिमानव
       
                      History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  -- 82

                                 
                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  82                                     


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


           महाभारत में कुलिंद राज्य के कई अतिमानव जातियों का भी उल्ल्ख है।  गंगाघाटी (हरिद्वार सहित ) में निम्न जातियां थीं
१- गन्धर्व
२-किन्नर
३-यक्ष
४-क्रोधवश राक्षस
५-घटोत्कच की सेना
६-रौद्र व मैत्र राक्षस
७- सुपर्ण , नाग , यक्ष , किन्नर
इनकी संख्या दस लाख से अधिक उल्लेखित है।
गंगाद्वार (बिजनौर हरिद्वार आदि ) में नाग वंशी अतिमानव रहते थे।  वे जल तैराकी में अतिकुशल थे।  अर्जुन ने नागकन्या उलिपि से शादी भी की थी।
इन अतिमानवो में कई प्रकार के गन थे।  कई अतिमानव मानवभक्षी थे। इन्हे विकराल मानव भी कहा गया है।


 ** संदर्भ - ---
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डा शिव प्रसाद डबराल , उत्तराखंड  इतिहास - भाग -२
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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
   
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 Extraordinary Humans, Colonies  of Mahabharata Kulind Kingdom (history Haridwar, Bijnor, Saharanpur)

                               हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में अतिमानव व बस्तियां
       
                      History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  -- 82A

                                 
                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  82 A                                     


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती

                बस्तियां

कुलिंद जनपद को गढ़वाल , कुमाऊं , हरिद्वार , हिमाचल और कुछ भाग सहारनपुर  जाता है।
महाभारतीय कुलिंद राज्य में निम्न बस्तियां थे -
१- गाँव - महाभारत में गाँवों के नाम तो नही उल्लेख हैं किन्तु वर्णन है
२- नगर - हरिद्वार , सहारनपुर के नजदीक 'एकचक्रा' शहर का वर्णन है जिसे आज का देहरादून का शहर चकरौता माना जाता है।  अतः कहा जा सकता है कि 'हरिद्वार , बिजनौर , सहारनपुर में भी नगर 'एकचक्रा के अनुसार ही रहे होंगे।
३- तीर्थ - गंगा  (सभी गढ़वाल कुमाऊं , हिमाचल की नदियां ) किनारे कई तीर्थ थे।  हरिद्वार तो महाभारत में तीर्थ माना जाता  था।
४- आश्रम -गंगाद्वार , भाभर के कण्वाश्रम , भृगुश्रृंगी (उदयपुर पट्टी , पौड़ी गढ़वाल , हरिद्वार के निकट ) तो इस भाग के आश्रम थे।
 आवास  की दृष्टि से दो मुख्य निवासी थे
१-  स्थिर वासी
२- अस्थिरवासी या पशुचालक
इसके अतिरिक्त तीसरि  निवासी थे -
जख्म रात तखम बसेरा - जहां रात वहीं बसेरा याने घुमन्तु
भाभर , हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर में जहां जल सुलभ था वहीं वस्तियाँ थी। गंगाद्वार (हरिद्वार ) में नागजाति के निवासी थे।
गाँव व नगरों में मकान लकड़ी व मिटटी पत्थर के बनते थे।
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   History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  to be continued Part  --

 हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर का आदिकाल से सन 1947 तक इतिहास  to be continued -भाग -
   

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     Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind  context History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur


                           हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास संदर्भ में महाभारतीय कुलिंद में पशुपालन व शिल्प

                            History of Haridwar, Bijnor, Saharanpur  Part  -- 83

                                 
                     हरिद्वार,  बिजनौर , सहारनपुर   इतिहास  -आदिकाल से सन 1947 तक-भाग -  83                                     


                                               इतिहास विद्यार्थी ::: भीष्म कुकरेती


                           पशुपालन
    महाभारत  जब कुलिंद जनपद के बारे में पशुपालन के बारे में उल्लेख है तो उसी दृष्टि से उसी तरह हरिद्वार , बिजनौर व सहारनपुर में था।
कुलिंद जनपद के निम्न पालतू पशुओ का उल्लेख है -
गाय
चंवर गाय
भेड़
बकरी
अश्व
गधे
हाथी
कई स्थान बैलों के लिए प्रसिद्ध थे जैसे आज  का उत्तरी चमोली गढ़वाल में रांकवयण बैल प्रसिद्ध थे।
आश्रमों में गाय पाली जातीं थीं।
कुलिंद राज्य प्रवेश याने भाभर में हाथी व अश्व प्रचुर मात्रा में पाले जाते थे। 
                      शिल्प

    पहाड़ी कुलिंद,  घाटियों व भाभर में जहां भेड़े पाली जाती थीं वहां अति उत्तम ऊनी  वस्त्र बनाये जाते थे।
मधु निर्माण सभी जगह होता था। कुलिंद जनपद का शहद तो सम्राट अशोक के समय में भी कुलिंद क्षेत्र से (हरिद्वार , सहारनपुर व बिजनौर सहित ) निर्यात होता था
धातु विज्ञान व खनन विज्ञान विकसित था  व यह क्षेत्र प्रसिद्ध था व नदी किनारे सुवर्ण चूर्ण के लिए भी प्रसिद्ध था।  धातु वर्तन बनाये जाते थे।
अर्जुन ने यदि यहां अस्त्र शस्त्र प्राप्त किये थे तो सिद्ध होता है कि बिजनौर , हरिद्वार व सहारनपुर में भी  आदि अस्त्र शस्त्र बनाये जाते थे।
जड़ी बूटियां भी प्रसिद्ध थीं अतः आयुर्वेदिक दवाइयो का निर्यात किया जाता रहा होगा।
घर मिटटी पत्थर , राल , लकड़ी से बनाये जाते थी।
पहाड़ों के शिल्प उत्पाद संभवतया मैदानी मंडियों से निर्यात किया जाता था।

 ** संदर्भ - ---
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Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Kankhal, Haridwar, Uttarakhand ; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Har ki Paidi Haridwar, Uttarakhand ; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Jwalapur Haridwar, Uttarakhand ;Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind &  History of Telpura Haridwar, Uttarakhand ;Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind &  History of Sakrauda Haridwar, Uttarakhand ;  History of Bhagwanpur Haridwar, Uttarakhand ; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Roorkee, Haridwar, Uttarakhand ; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Jhabarera Haridwar, Uttarakhand ;Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Manglaur Haridwar, Uttarakhand ;Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind &  History of Laksar; Haridwar, Uttarakhand ;Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Sultanpur,  Haridwar, Uttarakhand ; History of Pathri Haridwar, Uttarakhand ;Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind &  History of Landhaur Haridwar, Uttarakhand ; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind &  History of Bahdarabad, Uttarakhand ; Haridwar; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Narsan Haridwar, Uttarakhand ;  History of Bijnor; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind &  History of Nazibabad Bijnor ; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind &History of Saharanpur; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind &History of Nakur , Saharanpur; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Deoband, Saharanpur; Pasturing and Crafts in Mahabharata Kulind & History of Badhsharbaugh , Saharanpur;
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