14 जनवरी, 1921 को उत्तरायणी पर्व के अवसर पर कुली बेगार आन्दोलन की शुरुआत हुई, इस आन्दोलन में आम आदमी की सहभागिता रही, अलग-अलग गांवों से आये लोगों के हुजूम ने इसे एक विशाल प्रदर्शन में बदल दिया। सरयू और गोमती के संगम के पास के सरयू बगड़ के मैदान से इस आन्दोलन का उदघोष हुआ। जिलाधिकारी ने जन नेताओं पर प्रतिबंध लगा दिया, पं० हरगोबिन्द पंत, लाला चिरंजीलाल और बद्री दत्त पाण्डे को नोटिस थमा दिया लेकिन इसका कोई असर उनपर नहीं हुआ, उपस्थित जनसमूह ने सबसे पहले बागनाथ जी के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की और फिर 40 हजार लोगों का जुलूस सरयू बगड़ की ओर चल पड़ा, जुलूस में सबसे आगे एक झंडा था, जिसमें लिखा था "कुली बेगार बन्द करो", इसके बाद सरयू मैदान में एक सभा हुई, इस सभा को सम्बोधित करते हुये बद्रीदत्त पाण्डे जी ने कहा "पवित्र सरयू का जल लेकर बागनाथ मंदिर को साक्षी मानकर प्रतिग्या करो कि आज से कुली उतार, कुली बेगार, बरदायिस नहीं देंगे।" सभी लोगों ने यह शपथ ली और गांवों के पधान अपने साथ कुली रजिस्टर लेकर आये थे, शंख ध्वनि और भारत माता की जय के नारों के बीच इन कुली रजिस्टरों को फाड़कर संगम में प्रवाहित कर दिया।
अल्मोडा का तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर डायबल भीड़ में मौजूद था, उसने बद्री दत्त पाण्डे जी को बुलाकर कहा कि "तुमने दफा १४४ का उल्लंघन किया है, तुम यहां से तुरंत चले जाओ, नहीं तो तुम्हें हिरासत में ले लूंगा।" लेकिन बद्रीदत्त पाण्डे जी ने दृढ़ता से कहा कि "अब मेरी लाश ही यहां से जायेगी", यह सुनकर वह गुस्से में लाल हो गया, उसने भीड़ पर गोली चलानी चाही, लेकिन पुलिस बल कम होने के कारण वह इसे मूर्त रुप नहीं दे पाया।