उत्तराखण्ड के सुप्रसिद्ध कवि स्व० श्री गौरी दत्त पाण्डे "गौर्दा" ने कुली बेगार के प्रति लोगों को अपनी कविताओं के माध्यम से जागरुक करने का प्रयास किया और वे इसमें सफल भी हुये। इस गीत में कुली बेगार से होने वाली आम आदमी की समस्या और उससे लड़ने की प्रेरणा के साथ ही अब कुली बेगार न देने की अपील तथा इसी ताकत से आजादी की लड़ाई में जुटने का आह्वान किया गया है।मुलुक कुमाऊं का सुणी लियो यारो, झन दिया-झन दिया कुली बेगार।
चाहे पड़ी जा डंडे की मार, झेल हुणी लै होवौ तैय्यार।।
तीन दिन ख्वे बेर मिल आना चार, आंखा देखूनी फिरी जमादार।
घर कुड़ी बांजी करी छोडी सब कार, हांकी ली जांछ सबै माल गुजार।।
पाकि रुंछ जब ग्यूं-धाने सार, दौरा करनी जब हुनी त्यार।
म्हैण में तीसूं दिन छ उतार, लगियै रूंछ यो तिन तार॥
हूंछिया कास ऊं अत्याचार, मथि बटि बर्षछ मूसलाधार।
मुनव लुकोहं नि छ उड़यार, टहलुवा कुंछिया अमलदार॥
बरदैंस लीछिया सब तैय्यार, फिर लै पड़न छी ज्वातनैकि मार।
तबै लुकछियां हम गध्यार, द्वी मुनि को बोझ एका का ख्वार॥
भाजण में होलो चालान त्यार, भूख मरि बेर घर परिवार।
भानि-कुनि जांछि कुथलिदार, ख्वारा में धरंछी ढेरों शिकार॥
टट्टी को पाट ज्वाता अठार, खूंठा मिनूर्छियां रिश्तेदार।
घ्वाड़ा मलौ कूंछ सईस म्यार, पटवारि, चपरासि और पेशकार॥
अरदलि खल्लासि आया सरदार, बाबर्चि खनसाम तहसीलदार।
घुरुवा-चुपुवा नपकनी न्यार, बैकरन की अति भरमार॥
दै-दूध, अंडा-मुर्गि द्वि चार, को पूछो लाकड़ा-घास का भार।
बाड़-बड़ा मालैलै भरनी पिटार, अरु रात-दिना पड़नी गौंसार॥
भदुवा डिप्टी का छन वार-पार, अब कुल्ली नी द्यूं कै करो करार।
कानून न्हांति करि है बिचार, पाप बगै हैछ गंगज्यू की धार॥
अब जन धरो आपणो ख्वार, निकाली घारौ आपणा ख्वार।
निकाली नै निकला दिलदार, बागेश्वर है नी गया भ्यार॥
कौतिक देखि रया कौतिकार, मिनटों में बंद करो छ उतार।
हाकिम रै गया हाथ पसार, चेति गया तब त जिलेदार॥
बद्रीदत्त जसा हुन च्याला चार, तबै हुआ छन मुलुक सुधार।
कारण देशका छोड़ि रुजगार, घर-घर जाइ करो परचार॥
लागिया छन यै कारोबार, ऎसा बहादुर की बलिहार।
दाफा लागी गैछ अमृतधार, बुलाणा है करि हालो लाचार॥
डरिया क्वै जन, खबरदार....! पछिल हटणा में न्हांति बहार।
चाकरशा.....देली धिक्कार, फूंकि दियौ जसि लागिछ खार॥
भूत बणाई कुलि उतार, बणि आली उनरी करला उतार।
कैसूं उठैया जन करिया कोई गंवार, जंगल में तुम खबरदार॥
हूणा लागी रई लुलुक सुधार, मणि-मणि कै मिलला अधिकार।
हमरा दुःख सुणि भयौ औतार, गांधी की बोलो सब जै जैकार॥
जागि गौछ अब सब संसार, भारत माता की होलि सरकार।
ज्यौड़ि बाटी हैछ लु जसो तार, तोडि नि सकनौ भूरिया ल्वार॥
सत्य को कृष्ण छ मददगार, हमरी छ वांसू अन्त पुकार।
चिरंजीव, गोबिन्द, बद्री-केदार, हयात मोहन सिंह की चार॥
बणी गई यों मुल्क का प्यार, प्रयाग-कृष्णा छन हथियार।
ऎसा बहादुर चैंनी हजार, स्वारथ त्यागि लगा उपकार॥
शास्त्री लै छन देश हितकार, इन्न सूं लै लागि छ धार।
देशभक्ति की यो छ पन्यार, कष्टन शनेर होय हजार॥
स्वारथि मैंनू की न्हांति पत्यार, आपुणा देसकि करनी उन्यार।
नौकरशाही छ बणि मुखत्यार, कुली देऊणा में मददगार।।
विनती छू त्येहूं हे करतार, देश का यौं लै हुना फुलार।
आकाशबाणी छ नी हवौ हार, जीत को पांसो छन पौबार॥
देश का गीत गावो गीतार, चाखुलि-माखुली छोड़ौ भनार।
निहोलो जब तक सम व्यवहार, भुगुतुंला तब तक कारागार॥
लागि पड़ि करौ देश उद्धार, नी मिलौ तुमन फिरि फिटकार।
दीछिया गोरख्योल कन फिटकार, वी है कम क्या ग्वारखोल यार॥
पत्तो छु मेरो लाला बजार, गौरी दत्त पाण्डे, दुकानदार।