Author Topic: Land consolidation Movement-चकबंदी आंदोलन के प्रणेता गणेश सिंह 'गरीब'  (Read 4365 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

In Uttarakhand there had been several social movements time to time like Chipko Aandolan, Maiti Aandolan, Nasha Mukt Aandolan etc.People have been overwhemily participating in such a social movement.

We are posting here information about 'Land Consolidation Movement' and source of this movement is 'Ganesh Singh'Gareeb' who has devoted his entire for this movement and active since many decades.

पहाड़ के विकास का रास्ता चकबंदी से खुलेगा। अधिकांश लोग इससे सहमत हैं और सरकार भी इसे स्वीकारती है, लेकिन राज्य बने 12 साल का वक्फा गुजरने के बावजूद कोई पहल अब तक नहीं हुई। नतीजा, पलायन के चलते खाली होते गांव और बंजर में तब्दील होते खेत। इस सबके मद्देनजर चकबंदी के प्रति जनजागरण और जनप्रतिनिधियों को इसे मनवाने के लिए अब 'गरीब क्रांति' आंदोलन को धार देनी होगी। इस कड़ी में गरीब क्रांति का ध्वज तैयार कर लिया गया है, जिसके नीचे यह अभियान चलेगा।

सूबे में बिखरी जोत खेती लायक बने, यह तभी संभव है जब चकबंदी लागू होगी। इससे कृषि के आधार को मजबूत करने की पहल होगी, जिससे स्वावलंबन की मंजिल हासिल होगी। इसी मकसद से पिछले साढ़े तीन दशक से गणेश सिंह 'गरीब' चकबंदी के लिए प्रयासरत हैं। उनकी इस मुहिम को गति देने को अब गरीब क्रांति आदोलन शुरू किया गया है। गरीब क्रांति के कार्यकर्ता कपिल डोभाल के मुताबिक आंदोलन को समूचे राज्य में ले जाने के मद्देनजर गरीब क्रांति आंदोलन का ध्वज तैयार किया गया है। इसी झंडे के नीचे राज्यभर में चकबंदी के लिए जनजागरण अभियान चलेगा। इसकी शुरुआत पौड़ी जिले के अंतर्गत सतपुली से होगी। अभियान के दौरान चकबंदी की अनिवार्यता और इसके फायदे से लोगों को अवगत कराया जाएगा, ताकि पहाड़ को बचाया जा सके।

गरीब क्रांति का ध्वज

गरीब क्रांति ध्वज की पृष्ठभूमि हरे रंग में है, जो हरियाली यानी समृद्धि का प्रतीक है। किनारे मंडुवे की बालियां हैं, जो पहाड़ की पारंपरिक कृषि को दर्शाती है। बीच में रणसिंह यहां की संस्कृति का द्योतक है, जो जंग के लिए आगे आने का आह्वान करता है। झंडे पर दिया गया छोटा सा दीपक गणेश सिंह गरीब की जलाई चकबंदी की लौ का प्रतीक है, जिससे होकर गांव के विकास का रास्ता जाता है।

'चकबंदी को लेकर सरकार ने अभी तक प्रारूप बनाने का कार्य भी नहीं किया है, जबकि इसे अब तक बन जाना चाहिए था। यदि पहाड़ को बर्बाद होना था तो राज्य किसलिए मांगा गया।'

-गणेश सिंह 'गरीब' चकबंदी आंदोलन के प्रणेता

'सरकार पहाड़ में चकबंदी की बात तो करती है, लेकिन इसके प्रारूप के मामले में मौन है। पहाड़ को आबाद करने को जरूरी है कि लोगों को जमीन से जोड़ा जाए।'

-कुंवर सिंह भंडारी, सेवानिवृत्त चकबंदी अधिकारी (source dainik jagran)

M S MEhta


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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गणेश सिंह नेगी गरीब पुत्र स्वर्गीय श्री चन्दन  सिंह नेगी एवं स्वर्गीय कंठी देवी १ मार्च १९३७  को गाँव सूला पट्टी आसवालस्यूं कल्जीखाल ब्लाक पौड़ी गढ़वाल में जन्म,शिक्षा डी ए वी इंटर कॉलेज देहरादून से,विवाह १९६० में सरस्वती देवी ग्राम खांडा तल्ला पट्टी आसवालस्यूं के साथ, जीवन- नौकरी का  मोह नहीं रहा दिल्ली  में लोदी कालोनी में  manufacturing व रेपयरिंग का कार्य १९६१ से १९८१ के मध्य,मूल विचार-पर्वतीय छेत्रों के विकास के भूमि सुधार  व चकबंदी ही एक मात्र विकल्प है,पहल-पहाड़ में स्वरोजगार व स्वावलंबन के लिए स्वयं प्रयोग करने  के  लिए २६ जनवरी १९८१ में दिल्ली गाँव में बसने चले आये. १८ नाली बंजरके  भूमि को चन्दन वाटिका नाम से आबाद कर लोगो के सम्मुख चकबंदी का उदहारण प्रस्तुत किया.अभियान- चकबंदी के लिए पर्वतीय चेत्र के सैकड़ो  गाँव में पदयात्राएं,विचारगोष्ठी,जनसंपर्क के दौरान जनता में पोस्टर व पर्चो से जनजागरण,सम्मेलनों का आयोजन- विकास खंड स्तर पर , जिला स्तर में पोड़ी  गढ़वाल में,चकबंदी कार्यकर्ताओं का राज्य स्तर पर सम्मलेन,भ्रमण= विकास खंड अधिकारी बुधिबल्लभ दुन्दी के सहयोग से वर्ष १९९२ में १२ दिनों तक हिमाचल प्रदेश  के शिमला व मंडी जिलो  में चकबंदी योजना का अध्यन,सम्बंधित प्रकाशन: पुस्तिका उज्जवल और हमारा दायित्व वर्ष १९७८, गागर में सागर स्मारिका १९८७, पुस्तक पर्वतीय विकास और चकबंदी १९९०,चकबंदी आन्दोलन: विभिन संगठनों के वैनर के तहत इस आन्दोलन को गरीब जी के सयोजक्त्व में चलाया गया. जिनमे अखिल भारतीय प्रगतिशील गढ़वाली संगठन, दिल्ली १९७७,पर्वतीय विकास संगठन कल्जीखाल १९८४, मजदूर कृषक संघ कल्जीखाल १९८६, पर्वतीय चकबंदी समिति पोड़ी १९८८,चकबंदी परामर्श समित कोटद्वार २०००,मूल नागरिक किसान मंच कल्जीखाल 2001,विविध: आकाशवाणी केंद्र नजीबाबाद एवं पौड़ी से सम्बंधित विषय पर ४० वार्ताएं दर्जनों पत्र पत्रिकाओं व स्मारिकाओ में सम्बंधित लेखों का प्रकाशन,जनमत सर्वेक्षण: पाँच बार वर्ष-२०००,२००१ ,२००२,२००३ ,२००७ में ,चकबंदी का प्रयोग: चन्दन वाटिका ग्राम सूला १९८१, कीर्तिबाग़ ग्राम हुलाकीखाल खिसू १९८५, प्रेमविहार ग्राम तचवाद एकेश्वर 1988, अन्य प्रयास: चकबंदी को लेकर प्रधानमंत्री,मुख्यमंत्रियों, राज्य के केन्द्रीय मंत्रियों,सांसदों. विधायको,योजनाआयोग,उच्चाधिकारियों, मीडिया के लोगो से सम्पर्क व पत्राचार,
प्रभाव: तत्कालीन सांसाद लोकसभा एवं वर्तमान मुख्यमंत्री भुवनचंद खंडूरी 24  मार्च १९९३ को एवं राज्यसभा सदस्य मनोहरकान्त ध्यानी के द्वारा १९९७ में संसड में प्रश्नकाल में चंबंदी पर प्रश्न रखा,भूमिका: २७ सितम्बर १९८९ में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पर्वतीय चेत्र में चकबंदी का निर्णय, १९९० में चकबंदी आयुक्त द्वारा चकबंदी सर्वेक्षण दल भेजा,१९९१ में पौड़ी एवं अल्मोड़ा में चकबंदी कार्यालयों की विधिवत स्थापना, नवसृजित राज्य में पहली बार राजस्वमंत्री श्री हरक सिंह रावत के पहल पर २००३ में चकबंदी परामर्श समिति का गठन,
मनोनयन: राज्य सरकार की चकबंदी परामर्श समिति में नामित सदस्य २००३,राज्य सरकार द्वारा गठित भूमि सुधार परिषद  में नामित सदस्य २००४, राज्य सरकार द्वारा गठित उच्च स्तरीय चकबंदी समिति में नामित सदस्य २००९, सम्मान: अनेको संस्थावों द्वारा सम्मानित.

http://ganeshgarib.blogspot.in/2011/12/blog-post.html

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Gansh Gareeb was born to Chandan Singh Negi and Kanthi Devi on 1st March.1937 in a small village called Soola Patti.,Pauri Garhwal in the Indian state of Uttarakhand.. He studied at DAV Inter College, Dehradun. He got married to Saraswati Devi in 1960. He went to Delhi in 1961 where he started the  repairing work of redio from 1961 to 1981. But all along he kept thinking about the development of his native place in the hills. This brought him back to his village in 1981.Realizing that only land reforms could better the misery of the hilly people. In order to stress upon the importance of land consolidation he changed the face of 18 Naali barren land by transforming it into a fertile agricultural zone. To spread more awareness he walked from one place to another pasting posters and distributing pamphlets and organizing meetings. He brought together the land consolidation workers at block, district and state levels. He toured extensively. In 1992 he went to the districts of Shimla and Mandi in the neighbouring hill state of Himachal Pradesh to study the Land Consolidation Project.  He published some journals like Pustika Ujjwal Bhavishya and Hamara Daiytwa (1978), Gagar Mein Sagar Smarika (1987), Parvatiya Vikas aur Chakbandi (1990). This programme was carried forward under his supervision under the banners of other land reform agencies too. These were – Akhil Bhartiya Pragatisheel Garhwali Sangathan , Delhi (1977), Pravatiya Vikas Sangathan, Kaljikhal Pauri Gharwal (1984), Mazdoor Krishant Sangathan, Kaljikhal , Pauri Garhwal (1986), Chakbandi Pramarsh Samiti, Pauri (1988), Chakbandi Paramarsh Samiti Kotdwara, Pauri Gharhwal (2000), Mool Nagrik Kishan Manch, Kaljikhal Pauri Gharwal (2001)  to till date.He also participated in 40 radio- talk shows on Land Consolidation at the All India Radio studios at Najibabad and Pauri. He published a tremendous amount of literature on the subject. General Surveys were conducted for five years from 2000 to 2005. He demonstrated the use of a land consolidation project at Chandan Vatika , village Soola in 1981,Kirtibagh,Village Hulakikhal,Khirsu, 1987, Premvihar,Village Tachvad Akeshvar,1988, and his other efforts included contact and correspondence with the state ministers, MLAs and parliamentarians. He also met the higher officials in the planning Commission and the media.MP B C Khanduri and Rajya Sabha member Manoharkant Dhyani raised chakbandi related questions in Lok Sabha 1993 and Rajya Sabha 1997 respectively. On  27 September 1989 the UP government took the decision of land consolidation in the hilly regions .In 1990 a Land Consolidation Survey team was sent as a result of which Chakbandi offices were established at Pauri and Almora. When Uttarakhand became a state a Land Consolidation Advisory Committee was formed by the initiative of minister Harak Singh Rawat in 2003. Ganesh Gareeb was a nominated member of this committee. He was also a nominated member in the state government established Land Reforms Parishad in 2004,and also a member of a high level committee on land consolidation in uttarakhand in 2009. Gareeb Ganesh has been honoured and fecilitated by several organizations.



एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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 कुछ गीत/ नारे चकबंदी के लिए
आज के बाद एक नया अफसाना बयां होगा
न जमीं न जन्नत पर हम सा को दीवाना होगा
राह भी मुस्कराएगी खुद व खुद और
मंजिल पूछेगी बता *GANESH GARIB * तुझे जाना कहाँ होगा
                                                                     -अनुसूया प्रसाद जोशी



क्यों फांके हम शहर की धूल,खिल उठा जागा एक फूल

अब न होगा हाल बेहाल, हर गाँव होगा खुशहाल

खेत से खेत का नाता जुड़ेगा , सपना पूरा चकबंदी करेगा

न उजड़ेंगे खेत खलि11 हान, न भागेगा नौजवान

**गरीब** गणेश से श्री गणेश होगा, कंधे से कन्धा जुड़ता चलेगा.
                                                                                        *कपिल डोभाल*

गणेश ***गरीब*** गरीब से क्या,***गरीब क्रांति*** में गरीब है क्या
गरीब का अर्थ गरीब नहीं ,गरीब बिखरे हुए खेतो की
साथ जोड़ने की मुहिम का नाम
गरीब आह्वान करे उनका , जो छोड़ चले खेत खलियान
आवो जरा खुद जुड़ तो ले ,फिर गावों को भी जोड़ हम लें
गावों में अलख जगाने का ,स्वागत गीत का नाम गरीब
आवो मनाएं गरीब क्रांति ,हर घर में जले दीप गरीब का
लौ इसकी जलती ही रहे . लौ इसकी जलती ही रहे

                                                                        - तरुण

गाँव गरीब मजदूर किसान ,कैंसे हो इनका उत्थान ?
उजाड़ रहे हैं खेत और किसान ,बचा लो उत्तराखंडियो की पहचान ?

तीन मूल मंत्र -
१ सत्य और श्रम के रास्ते पर चलकर
२ गाँव खेती और चकबंदी की बुनियाद पर
३ संकल्प और विवेक के बल पर

चलेगा गरीब क्रांति का रथ, तभी होगा सबका उत्थान
चकबंदी ही देगी लाखो को देगी काम , गाँव से पलायन पर लगेगा विराम
तभी बचेगी संस्कृति और पहचान , बढेगा सबका सम्मान
तभी तो खेत बचेगा गाँव बसेगा , हमारी मात्रभूमि का सम्मान बढेगा




जय जवान की, जय किसान की, जय बोलो मजदूरों की.
बोलो खून पसीने की जय , जय बोलो मतवालों की.
जय जवान और जय किसान. यह सरकारक नारा है.
जो जवान को , मिले किसान को यह हमारा नारा है.
तेरा बहुमत,तेरी ताकत. लीकें राज अमीरों का.
लूट खसूट के शासन में , जीना कठिन गरीबो का .
कर्जे में तू पैदा होता, कर्जे में ही पलता है .
जीवन भर कर्जे का बोझा, कर्जे में ही मरता है .
खून पसीना करता है , तब मेहनत की खाता है.
मुफतखोर कुर्सी पर बैठा, लूट के मौज मनाता है.
भरता तू ही पेट सभी का, फिर भी तू भिखमंगा क्यों ?
तेरे ही बचो की फीकी, होली और दिवाली क्यों?
तू ही भूखा सोता क्यों, लुटेरा मौज मनाता क्यों ?
तू हो सबका पालनकर्ता, लेकिन बंधक बना है क्यों?
जीने का अधिकार सभी को , ऐंसा बिगुल बजा दे तू .
भीख नहीं है अधिकार चाहिए, ऐंसा बिगुल बजा दे तू.
गरीब की यह बाणी सुन लो , गरीबी पार लगाएगा .
धरती की असली सेवको को , उचित सम्मान दिलाएगा.
                                             

http://ganeshgarib.blogspot.in/p/blog-page_7373.html

 

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