सपनों का उत्तराखंड - राज्य आंदोलनकारी बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा क्षुब्ध हैं
पौड़ी: सपनों का उत्तराखंड न बनने से राज्य आंदोलनकारी बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा क्षुब्ध हैं। सरकार के सम्मान के दावों से वह इस कदर खिन्न हैं कि महीनों से उन्होंने जुबान तक नहीं खोली। वह मौन हैं व करीब 23 दिन से उन्होंने भोजन भी नहीं लिया।
सूबे के वरिष्ठ व जमीन से जुड़े राज्य आंदोलनकारियों की बात करें तो बाबा मथुरा प्रसाद बमराड़ा का नाम अग्रणी है। बात भ्रष्टाचार के खिलाफ जेपी आंदोलन की हो या फिर पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन की। प्रत्येक जनांदोलन में बाबा ने अहम भूमिका निभाई। राज्य बनने के बाद सरकारों ने सम्मान के रूप में चिह्नित आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरियां तो किसी को पेंशन स्वीकृत की, लेकिन 74 वर्षीय बाबा को आंदोलनकारी कार्ड के सिवा कुछ नहीं मिला। मुख्यमंत्री रहते डॉ. निशंक ने दून अस्पताल में भर्ती बाबा बमराड़ा को बेरोजगार बच्चे की नौकरी समेत हरसंभव सहयोग का भरोसा दिया, लेकिन वह सिर्फ आश्वासन ही साबित हुआ।
बेवश हुआ संघर्ष का सेनापति

एक समय बाबा बमराड़ा के आंदोलनकारी तेवरों की धमक दिल्ली के जंतर-मंतर तक होती थी। उनका पूरा जीवन आंदोलनों के नाम रहा, लेकिन हाथ लगी सिर्फ बेबसी। एक दशक पूर्व बाबा की पत्नी की आकस्मिक मौत हुई। चार वर्ष पूर्व अतिवृष्टि में पणियां गांव में उनका पैतृक आवास जमींदोज हुआ। उनका एक पुत्र कुछ सालों से लापता है। दूसरे के सामने पिता की सेवा के लिए समय निकालने का संकट है। वह बेरोजगार है। फिलवक्त वह चतुर्थ श्रेणी के पद पर तैनात अपने दूसरे बेटे के सरकारी आवास पर दिन काट रहे हैं।
बाबा बमराड़ा के पुत्र अरुणेद्र बमराड़ा के मुताबिक 23 दिनों से उनके पिताजी ने भोजन नहीं लिया। पूछने पर कोई जबाब नहीं देते। उपेक्षा से वह इतने कुंठित हुए हैं कि अब वह किसी भी बात नहीं नहीं करते हैं।