(भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की भी अग्रणी भूमिका रही है। उत्तराखण्ड की धरती पर उस दौर में कुली-बेगार और डोली-पालकी जैसे बड़े आन्दोलन भी हुये। अल्मोड़ा जिले के सल्ट के खुमाड़ नामक स्थान पर अंग्रेजों द्वारा इस आन्दोलन का बर्बरता पूर्वक दमन किया गया। जिसमें चार लोग शहीद हो गये और कई घायल हो गये थे। उन्हीं नाम-अनाम शहीदों और आन्दोलनकारियों को समर्पित श्री देवेन्द्र उपाध्याय जी का यह लेख दो भागों में प्रस्तुत है।)
shaheed_smarak_patna
http://www.merapahad.com/salt-kranti-an-important-chapter-of-indian-freedom-movement/शहीद स्मारक पटना
अल्मोड़ा जिले का सल्ट उन दिनों बहुत बीहड़, संचार और यातायात के साधनों से विहीन पिछड़ा क्षेत्र था। तब भी राष्ट्रीय आन्दोलन की चिंगारी सल्ट तक पहुंच गई। यह वही सल्ट था, जहां पटवारी-पेशकार बड़े अफसरों को घूस देकर अपने तबादले करवाते थे। नदी में बहने डूबने व पेड़ से गिरने से हुई मौतों के लिये भी वे घूस लेते थे। गांव में पहली बार पहुंचने पर पटवारी-पेशकार के टीके (दक्षिणा) का पैसा वसूला जाता था। फसल पर हर परिवार से एक पसेरी अनाज और खाने-पीने का सामान जबरिया इकट्ठा किया जाता था।
14 जनवरी, 1921 को बागेश्वर में हरगोबिन्द पन्त, बद्रीदत्त पाण्डे और विक्टर मोहन जोशी आदि के नेतृत्व में कुली बेगार के रजिस्टर सरयू को समर्पित कर दिये गये, हजारों लोगों ने कुली-बेगार न करने का संकल्प लिया। तब सरकारी अधिकारियों ने पौड़ी गढ़्वाल जिले की गूजडू पट्टी के साथ सल्ट की चार पट्टियों से बेगार कराने का फैसला लिया। इसकी सूचना हरगोबिन्द पन्त को मिली तो वे एस०डी०एम० के पहुंचने से पहले ही सल्ट पहुंच गये। वहां विभिन्न स्थानों पर सभायें हुई और जनता ने एक स्वर में कुली-बेगार न देने का संकल्प किया।
खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय तब जिला बोर्ड के प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थे। खुमाड़ में सल्ट क्षेत्र का गढ़ बनाया गया था और वहीं से सूत्र संचालन होता था। 22 मार्च, 1922 को महात्मा गांधी की गिरफ्तारी की सूचना से सल्ट की जनता में असंतोष तीव्र हो गया। पुरुषोत्तम उपाध्याय के घर पर बैठक रखकर इलाके में रचनात्मक कार्य करने का फैसला हुआ। सल्ट की चारों पट्टियों में ग्राम पंचायतें बनाई गई और स्वच्छता, सफाई, ऊन कताई, अछूतोद्धार व रास्तों की मरम्मत का अभियान छेड़ा गया। पंचायतों में बड़े-बड़े संगीन मामलों के फैसले भी लिये जाने लगे। स्वयं सेवकों की भर्ती होने लगी, अब तक पुरुषोत्तम जी सरकारी नौकरी में रहते हुये स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग ले रहे थे। उन्होंने १९२७ में नौकरी से इस्तीफा दे दिया, उनके साथ ही सहायक अध्यापक लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने भी इस्तीफा दे दिया। उस इलाके के समृद्ध ठेकेदार पान सिंह पटवाल भी इनके साथ आन्दोलन में शामिल हो गये।
प्रेम विद्यालय ताड़ीखेत के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये १९ मई, १९२७ को महात्मा गांधी ताड़ीखेत पहुंचे तो सल्ट के कार्यकर्ता भी उनका स्वागत करने गये। दिसम्बर १९२७ में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में भाग लेने के लिये पुरुषोत्तम उपाध्याय के नेतृत्व में सल्ट के कार्यकर्ता भी वहां पहुंचे। इसके बाद सल्ट में नशाबंदी आन्दोलन, विदेशी बहिष्कार, स्वदेशी प्रचार और तंबाकू का व्यसन छुड़ाने के लिए गांव-गांव में प्रचार किया गया। धर्म सिंह मालगुजार के घर में मनों तंबाकू की होली जला दी गई।
नमक सत्याग्रह से भी सल्ट अछूता नहीं रहा, अप्रैल, १९३० में सल्ट के चमकना, उभरी और हटुली में नमक बनाया गया। १७ अगस्त, १९३० को मालगुजारों ने सामूहिक इस्तीफे दे दिये, गांव के मालगुजार ही गांवों में ब्रिटिश राज की रीढ बने थे, जिनके माध्यम से पटवारी-पेशकार मनमानी करते थे। सल्ट इलाका बीहड़ तो था ही, उस पर ऊंचे-नीचे पहाड़, तब यह फैसला लिया गया कि जब भी कोई सभा होगी तो रणसिम्हा (तुतुरी) बजाई जायेगी। राष्ट्रीय चेतना जागृत होने के कारण पटवारी-पेशकार को मिलने वाली रिश्वत बन्द हो गई, लड़ाई-झगड़े बन्द हो गये। पटवारी-पेशकार को जो चीजें मोल लेनी पड़ रही थी, उनकी दस्तूर बन्द हो गई थी। उन्होंने अधिकारियों को गलत रिपोर्ट भेजनी शुरु कर दी, जिससे सल्ट में अतिरिक्ट पुलिस तैनात कर दी गई।
२० सितम्बर, १९३० को एस.डी.एम. हबीबुर्रहमान ने पुलिस के ५०-६० जवानों को लेकर सल्ट के लिये प्रस्थान किया और भिकियासैंण पहूंचा। २३ सितम्बर को उसने खुमाड़ से ३-४ कि०मी० दूर नयेड़ नदी के किनारे नर सिंह गिरि के बगड़ में कैंप लगाया। डंगूला गांव को घेर लिया गया, उस समय गांव के लोग खेतों में काम पर गये थे। कुछ बीमार और बूढे घर पर थे। उनकी पुलिस ने पिटाई कर दी, बचे सिंह (स्वतंत्रता सेनानी) के घर का ताला तोड़कर सामान की कुर्की कर ली। घोड़ों के पैरों के नेचे रौंदकर फसल बरबाद कर दी गई, पूरे गांव में पुलिस द्वारा लूट की गई। आस-पास के गांवों खुमाड़, टुकनोई, चमकना में खबर पहुंची तो रणसिंहा बज उठा, सैकड़ों लोग लाठियां लेकर नयेड़ के किनारे पहुंच गये। एस.डी.एम. से फसल का मुआवजा (५ रु०) भीड ने वसूल किया। गोरा पुलिस कप्तान भीड़ पर गोली चलाने के लिये आमादा था, पर उसे एस.डी.एम. ने रोक दिया, प्रशासनिक अमले को खाली हाथ वापस जाने के लिये मजबूर होना पड़ा।
उधर मौलेखाल के टीले में सभा हुई, जिसमें फैसला लिया गया कि जनता को अत्याचारों से बचाने के लिये नेता अपनी गिरफ्तारी देंगे। ठेकेदार पान सिंह पटवाल ने खुद को सबसे पहले गिरफ्तार करवाने की पेशकश की। इस हेतु एस.डी.एम. को नोटिस भेज दिया गया कि २९ सितम्बर को देवायल में आम सभा होगी। पुलिस के जत्थे के साथ एस.डी.एम. हबीबुर्रहमान देवायल पहुंच गया। पर इस बार वह मानिला-जालीखान होते हुये जिला बोर्ड की सड़क से पहुंचा। सभा में एस.डी.एम. को कुर्सी दी गई, लेकिन गोरे पुलिस कप्तान को घुसने भी नहीं दिया गया, ठेकेदार पान सिंह पटवाल को गिरफ्तार कर लिया गया।………….
Read more:
http://www.merapahad.com/salt-kranti-an-important-chapter-of-indian-freedom-movement/#ixzz2hV5VF1JU