Author Topic: Salt Kranti, Freedom Struggle Movement-सल्ट क्रांति स्वाधीनता संग्राम की लडाई  (Read 4190 times)

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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Dosto,

We are sharing here some information about 'Salt Kranti' Freedom Struggle Movement.

सल्ट क्रांति : कुमाऊं की बारदोली

मातृभूमि को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने के लिए भारतीयों द्वारा चलाए गए ऐतिहासिक स्वाधीनता  संग्राम में उत्तराखण्ड की उल्लेखनीय भूमिका रही है। उत्तराखण्ड की धरती  पर ऐसी अनेक महान विभूतियों नेजन्म लिया है, जिन्होंने न केवल स्थानीय स्तर पर बलिक राष्ट्रीय स्तर पर भी स्वाèाीनता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभार्इ। वर्तमान में अल्मोड़ा जिले (तत्कालीन कुमाऊं क्योंकि तब उत्तराखण्ड में केवल 2 ही प्रशासनिक क्षेत्र थे। एक कुमाऊं और दूसरा टिहरी रियासतद्ध के सल्ट क्षेत्र में  स्वाèाीनता संग्राम की एक ऐसी ही ऐतिहासिक घटना घटित हुर्इ थी, जिसके महत्व को देखते हुए स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांèाी ने इसे कुमाऊं की बारदोली  की संज्ञा दी थी और आज भी प्रतिवर्ष सितम्बर माह की 5 तारीख को इस घटना को याद करते हुए अल्मोड़ा जनपद के सल्ट क्षेत्र के खुमाड़ नामक स्थान पर शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है।


M S Mehta

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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जिस प्रकार, गुजरात के बारदोली में बि्रटिश राज के अत्याचारों और जनविरोèाी नीतियों के खिलाफ स्थानीय निवासियों ने शांतिपूर्ण तरीके से अवज्ञा कर ऐतिहासिक आन्दोलन चलाया था और इसी आन्दोलन से सरदार बल्लभ भार्इ पटेल एक बड़े जननेता के रूप में उभरे थे, उसी प्रकार उत्तराखण्ड के इस दुर्गम और पिछड़े इलाके में सरकारी प्राथमिक विधालय के शिक्षक की नौकरी से त्यागपत्र दे कर पुरूषोत्तम उपाèयाय और लक्ष्मण सिंह अèािकारी तथा इलाके के समृ( ठेकेदार पान सिंह पटवाल समेत आस पास के गांवों के मालगुजारों ;पèाानद्ध ने बि्रटिश राज की जनविरोèाी नीतियों की खिलाफत करते हुए इस ऐतिहासिक आन्दोलन से स्वाèाीनता की अलख जगार्इ थी। नमक सत्याग्रह के दौरान भी सल्ट क्षेत्र के कुछ गांवों में स्थानीय आन्दोलनकारियों ने नमक बनाकर नमक कानून को तोड़ा था। दरअसल, स्वाèाीनता आंदोलन के महत्व को समझते हुए स्थानीय गांवों के मालगुजारों ने सामूहिक रूप से त्यागपत्र दे  दिया था, जिससे गांवों में बि्रटिश राज की नींव हिल गर्इ थी, जिसे कुचलने के लिए इलाके में अतिरिक्त पुलिस तैनात कर दी गर्इ थी।  इससे इलाके में कर्इ अत्याचार हुए। आन्दोलनकारियों को जेलों में बन्द कर दिया गया और उनकी सम्पत्ति कुर्क कर जब्त कर दी गर्इ, किन्त फिर भी आन्दोलनकारियों का हौसला कम नहीं हुआ और वे शांतिपूर्ण तरीके से अंग्रेजाें से लोहा लेते रहे।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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1942 के आरमिभक महीनों से ही जनता का यह आन्दोलन उग्र हो गया और इसमें सल्ट क्षेत्र की चार पटिटयों के ग्रामीणों के साथ गढ़वाल क्षेत्र के पौड़ी जनपद की गुजडू  पटटी के लोगों ने सक्रिय रूप से अपनी भागीदारी निभार्इ और अंतत: बि्रटिश सत्ता ने इस जनान्दोलन को कुचलने के लिए 3 सितम्बर 1942 को खुमाड़ में भारी संख्या में जुटे निहत्थे आन्दोलनकारियों को अपनी गोलियों का निशाना बना डाला, जिसमें दो सगे भार्इयों (गंगाराम और खिमानन्द) समेत चार निहत्थे आन्दोलनकारी खुमाड़ के ऐतिहासिक मैदान में शहीद हो गए। ऐसे महान शहीदों की शहादत को याद करते हुए


एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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हर वर्ष 5 सितम्बर के दिन खुमाड़ में शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है।

एम.एस. मेहता /M S Mehta 9910532720

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(भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन में उत्तराखण्ड की भी अग्रणी भूमिका रही है। उत्तराखण्ड की धरती पर उस दौर में कुली-बेगार और डोली-पालकी जैसे बड़े आन्दोलन भी हुये। अल्मोड़ा जिले के सल्ट के खुमाड़ नामक स्थान पर अंग्रेजों द्वारा इस आन्दोलन का बर्बरता पूर्वक दमन किया गया। जिसमें चार लोग शहीद हो गये और कई घायल हो गये थे। उन्हीं नाम-अनाम शहीदों और आन्दोलनकारियों को समर्पित श्री देवेन्द्र उपाध्याय जी का यह लेख दो भागों में प्रस्तुत है।)
shaheed_smarak_patna
http://www.merapahad.com/salt-kranti-an-important-chapter-of-indian-freedom-movement/
शहीद स्मारक पटना

अल्मोड़ा जिले का सल्ट उन दिनों बहुत बीहड़, संचार और यातायात के साधनों से विहीन पिछड़ा क्षेत्र था। तब भी राष्ट्रीय आन्दोलन की चिंगारी सल्ट तक पहुंच गई। यह वही सल्ट था, जहां पटवारी-पेशकार बड़े अफसरों को घूस देकर अपने तबादले करवाते थे। नदी में बहने डूबने व पेड़ से गिरने से हुई मौतों के लिये भी वे घूस लेते थे। गांव में पहली बार पहुंचने पर पटवारी-पेशकार के टीके (दक्षिणा) का पैसा वसूला जाता था। फसल पर हर परिवार से एक पसेरी अनाज और खाने-पीने का सामान जबरिया इकट्ठा किया जाता था।

14 जनवरी, 1921 को बागेश्वर में हरगोबिन्द पन्त, बद्रीदत्त पाण्डे और विक्टर मोहन जोशी आदि के नेतृत्व में कुली बेगार के रजिस्टर सरयू को समर्पित कर दिये गये, हजारों लोगों ने कुली-बेगार न करने का संकल्प लिया। तब सरकारी अधिकारियों ने पौड़ी गढ़्वाल जिले की गूजडू पट्टी के साथ सल्ट की चार पट्टियों से बेगार कराने का फैसला लिया। इसकी सूचना हरगोबिन्द पन्त को मिली तो वे एस०डी०एम० के पहुंचने से पहले ही सल्ट पहुंच गये। वहां विभिन्न स्थानों पर सभायें हुई और जनता ने एक स्वर में कुली-बेगार न देने का संकल्प किया।

खुमाड़ के पुरुषोत्तम उपाध्याय तब जिला बोर्ड के प्राइमरी स्कूल में हेडमास्टर थे। खुमाड़ में सल्ट क्षेत्र का गढ़ बनाया गया था और वहीं से सूत्र संचालन होता था। 22 मार्च, 1922 को महात्मा गांधी की गिरफ्तारी की सूचना से सल्ट की जनता में असंतोष तीव्र हो गया। पुरुषोत्तम उपाध्याय के घर पर बैठक रखकर इलाके में रचनात्मक कार्य करने का फैसला हुआ। सल्ट की चारों पट्टियों में ग्राम पंचायतें बनाई गई और स्वच्छता, सफाई, ऊन कताई, अछूतोद्धार व रास्तों की मरम्मत का अभियान छेड़ा गया। पंचायतों में बड़े-बड़े संगीन मामलों के फैसले भी लिये जाने लगे। स्वयं सेवकों की भर्ती होने लगी, अब तक पुरुषोत्तम जी सरकारी नौकरी में रहते हुये स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग ले रहे थे। उन्होंने १९२७ में नौकरी से इस्तीफा दे दिया, उनके साथ ही सहायक अध्यापक लक्ष्मण सिंह अधिकारी ने भी इस्तीफा दे दिया। उस इलाके के समृद्ध ठेकेदार पान सिंह पटवाल भी इनके साथ आन्दोलन में शामिल हो गये।

प्रेम विद्यालय ताड़ीखेत के वार्षिकोत्सव में भाग लेने के लिये १९ मई, १९२७ को महात्मा गांधी ताड़ीखेत पहुंचे तो सल्ट के कार्यकर्ता भी उनका स्वागत करने गये। दिसम्बर १९२७ में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में भाग लेने के लिये पुरुषोत्तम उपाध्याय के नेतृत्व में सल्ट के कार्यकर्ता भी वहां पहुंचे। इसके बाद सल्ट में नशाबंदी आन्दोलन, विदेशी बहिष्कार, स्वदेशी प्रचार और तंबाकू का व्यसन छुड़ाने के लिए गांव-गांव में प्रचार किया गया। धर्म सिंह मालगुजार के घर में मनों तंबाकू की होली जला दी गई।

नमक सत्याग्रह से भी सल्ट अछूता नहीं रहा, अप्रैल, १९३० में सल्ट के चमकना, उभरी और हटुली में नमक बनाया गया। १७ अगस्त, १९३० को मालगुजारों ने सामूहिक इस्तीफे दे दिये, गांव के मालगुजार ही गांवों में ब्रिटिश राज की रीढ बने थे, जिनके माध्यम से पटवारी-पेशकार मनमानी करते थे। सल्ट इलाका बीहड़ तो था ही, उस पर ऊंचे-नीचे पहाड़, तब यह फैसला लिया गया कि जब भी कोई सभा होगी तो रणसिम्हा (तुतुरी) बजाई जायेगी। राष्ट्रीय चेतना जागृत होने के कारण पटवारी-पेशकार को मिलने वाली रिश्वत बन्द हो गई, लड़ाई-झगड़े बन्द हो गये। पटवारी-पेशकार को जो चीजें मोल लेनी पड़ रही थी, उनकी दस्तूर बन्द हो गई थी। उन्होंने अधिकारियों को गलत रिपोर्ट भेजनी शुरु कर दी, जिससे सल्ट में अतिरिक्ट पुलिस तैनात कर दी गई।

२० सितम्बर, १९३० को एस.डी.एम. हबीबुर्रहमान ने पुलिस के ५०-६० जवानों को लेकर सल्ट के लिये प्रस्थान किया और भिकियासैंण पहूंचा। २३ सितम्बर को उसने खुमाड़ से ३-४ कि०मी० दूर नयेड़ नदी के किनारे नर सिंह गिरि के बगड़ में कैंप लगाया। डंगूला गांव को घेर लिया गया, उस समय गांव के लोग खेतों में काम पर गये थे। कुछ बीमार और बूढे घर पर थे। उनकी पुलिस ने पिटाई कर दी, बचे सिंह (स्वतंत्रता सेनानी) के घर का ताला तोड़कर सामान की कुर्की कर ली। घोड़ों के पैरों के नेचे रौंदकर फसल बरबाद कर दी गई, पूरे गांव में पुलिस द्वारा लूट की गई। आस-पास के गांवों खुमाड़, टुकनोई, चमकना में खबर पहुंची तो रणसिंहा बज उठा, सैकड़ों लोग लाठियां लेकर नयेड़ के किनारे पहुंच गये। एस.डी.एम. से फसल का मुआवजा (५ रु०) भीड ने वसूल किया। गोरा पुलिस कप्तान भीड़ पर गोली चलाने के लिये आमादा था, पर उसे एस.डी.एम. ने रोक दिया, प्रशासनिक अमले को खाली हाथ वापस जाने के लिये मजबूर होना पड़ा।

उधर मौलेखाल के टीले में सभा हुई, जिसमें फैसला लिया गया कि जनता को अत्याचारों से बचाने के लिये नेता अपनी गिरफ्तारी देंगे। ठेकेदार पान सिंह पटवाल ने खुद को सबसे पहले गिरफ्तार करवाने की पेशकश की। इस हेतु एस.डी.एम. को नोटिस भेज दिया गया कि २९ सितम्बर को देवायल में आम सभा होगी। पुलिस के जत्थे के साथ एस.डी.एम. हबीबुर्रहमान देवायल पहुंच गया। पर इस बार वह मानिला-जालीखान होते हुये जिला बोर्ड की सड़क से पहुंचा। सभा में एस.डी.एम. को कुर्सी दी गई, लेकिन गोरे पुलिस कप्तान को घुसने भी नहीं दिया गया, ठेकेदार पान सिंह पटवाल को गिरफ्तार कर लिया गया।………….

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विनोद सिंह गढ़िया

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बापू ने खुमाड को दिया ‘बारदोली’ नाम

[justify]कुमाऊं की पर्वत श्रंखलाएं अपने आंचल में प्राकृतिक सौन्दर्य का खजाना छिपाये जहां पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करती हैं वही इन पर्वत श्रंखलाओं ने ऐसे कवियों और वीर सपूतों को जन्म दिया है। जिनका वीर गाथाएं आज भी घर घर में बडे बुजुर्ग नयी पीढी को बड़े उत्साह से सुनाया करते हैं। स्वतन्त्रता आंदोलन में देश को आजाद कराने में वैसे तो पूरे कुमाऊं का विशेष योगदान रहा है, लेकिन अल्मोड़ा जनपद में स्थित सल्ट क्षेत्र की आजादी की लड़ाई में अपनी एक अलग पहचान है। आज भी सल्ट में आजादी की लड़ाई में शहीद हुए रणबांकुरों की वीर गाथाएं घर घर गाई जाती हैं। बलिदान की इसी भावना का परिणाम है कि गांधी जी ने सल्ट को कुमाऊं की बारदोली का नाम दिया। सन् 1921 में कुली बेगार प्रथा आन्दोलन में यहां के लोगों ने जहां बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 'वहीं- झन दिया लोगों कुली बेगारा, आब है गई गांधी अवतारा'। 'सल्टियां वीरों की घर घर बाता, गोरा अंग्रेजा तू छोड़ि दे राजा।' जैसे जनवादी कवियों की कलम ने कुली बेगार प्रथा आन्दोलन में लोगों को उत्साहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सन् 1930 में सल्ट की शांत वादियां सविनय अवज्ञा आन्दोलन को लेकर छटपटाने लगी। सल्ट के लोगों ने गोरी सरकार के आदेशों को धता बताते हुए समूचे कुमाऊं में आन्दोलन का जो शंखनाद किया उससे अंग्रेजों को इस बात का अहसास हो गया था कि अब ये लोग आजादी के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इस आन्दोलन में हरगोविन्द पन्त, पुरूषोत्तम उपाध्याय, लक्ष्मण सिंह अधिकारी अपने साथियों के साथ जहां तीन महीने तक मुरादाबाद की जेल की सलाखों के पीछे पड़े रहे वही फिरंगी सरकार से देश को आजाद कराने के लिये खुमाड़ निवासी पुरूषोत्तम उपाध्याय, पोखरी के कृष्ण सिंह ने रानीखेत में धारा 144 तोड़ी तो लाल सिंह, नैनसिंह व प्रेम सिंह को भी जेल की हवा खानी पड़ी। पांच सितम्बर ,1942 का वह दिन कुमाऊं के लोग कैसे भूल सकते हैं जब खुमाड़ में क्रान्तिकारियों की विशाल सभा में एसडीएम. जानसन ने अंधाधुंध फायरिंग कर अपनी हैवानियत का परिचय दिया। चार लोग शहीद हो गए। पांच सितम्बर उन्नीस सौ चौरासी में शहीद स्मारक के निर्माण के बाद हर वर्ष पांच सितम्बर यहां शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। राजनैतिक दलों के कार्यकर्ताओं के अलावा सभी प्रशासनिक अधिकारियों का जमावड़ा भी यहां लगता है। खुमाड़ शहीद स्मारक को राष्ट्रीय संग्रहालय बनाये जाने की सल्टियों की हसरत अभी अधूरी है। शहीद स्मारक पर लगने वाले मेले में शहीदों की शहादत पर राजनीति करने का समय अब नहीं रहा, तो इस क्रान्तिकारी कर्मस्थली का विकास करने का।

लेख : प्रकाश नैलवाल, मौलेखाल (सल्ट)
साभार : दैनिक जागरण
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